• Have Any Questions
  • +91 6307281212
  • smartwayeducation.in@gmail.com

Study Material



अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद

  • किसी भी देश के लिये जल सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संसाधनों में से एक है और सिंचाई , पशुपालन तथा स्वच्छता के अन्य उद्देश्यों के लिये हमारे राज्य अधिकतर जल नदियों से ही प्राप्त करते हैं ।
  • सभी दिशाओं में बहने वाली, भारत में विभिन्न राज्यों से होकर जाने वाली ये नदियाँ या तो अंतरा-राज्यीय (एक ही राज्य के भीतर बहने वाली) होती हैं या अंतरराज्यीय (दो या अधिक राज्यों से गुजरने वाली) होती हैं, जिसके कारण कभी-कभी राज्यों के बीच विवाद भी हो जाता है ।

 

कुछ प्रमुख अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद

कावेरी नदी जल विवाद - यह विवाद केंद्रशासित प्रदेश पुदुच्चेरी, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल राज्यों के मध्य नदी जल बँटवारे को लेकर है ।

कृष्णा नदी जल विवाद - कर्नाटक में कृष्णा नदी पर अलमट्टी बांध की ऊँचाई बढ़ाने को लेकर तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के मध्य जल विवाद है ।

यमुना नदी जल विवाद- हरियाणा में निर्माणाधीन हथिनीकुंड परियोजना को लेकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा दिल्ली के मध्य विवाद   है ।

पेरियार नदी जल विवाद- पेरियार नदी पर निर्मित मुल्ला पेरियार बांध की ऊँचाई को लेकर तमिलनाडु तथा केरल के मध्य विवाद है ।

सतलुज - यमुना लिंक नहर विवाद- पंजाब तथा हरियाणा के मध्य नहर जल को लेकर विवाद है ।

 

संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान के अनुच्छेद 262 के दो खंड 262 (1) तथा 262 (2) हैं, जिनमें अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के समाधान से संबंधित उपबंध किये गए हैं ।
  • अनुच्छेद 262 (1) में यह प्रावधान है कि संसद, विधि द्वारा अंतर्राज्यीय नदी के जल वितरण जैसे मुद्दों के न्याय निर्णयन के लिये विशेष अधिकरण (या कोई अन्य निकाय) गठित करने की शक्ति रखती है ।
  • अनुच्छेद 262 (2) के तहत यदि संसद विधि में यह निर्दिष्ट कर दे कि कोई न्यायालय उस मुद्दे के संबंध में अपनी अधिकारिता का प्रयोग नहीं करेगा तो उच्च न्यायालय सहित सर्वोच्च न्यायालय भी उस अधिकरण की कार्यवाही में हस्तक्षेप या उसके निर्णय का न्यायिक पुनर्विलोकन नहीं कर सकेगा ।
  •  संसद द्वारा इस संबंध में 1956 में दो अधिनियम पारित किये गए-
    • नदी बोर्ड अधिनियम , 1956
    • अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956

 

नदी बोर्ड अधिनियम, 1956

  • नदी बोर्ड अधिनियम, 1956 में अंतर्राज्यीय नदियों एवं नदी घाटियों के नियमन तथा विकास हेतु नदी बोर्ड गठित करने का प्रावधान है ।
  • राज्य सरकार द्वारा अनुरोध किये जाने पर अथवा उसके बगैर भी केंद्र सरकार किसी अंतरराज्यीय नदी अथवा नदी घाटी (अथवा उसके किसी विशेष भाग) के नियमन एवं विकास से संबंधित मामलों में संबंधित सरकार को सलाह देने के लिये बोर्ड का गठन कर सकती है और केंद्र सरकार इसकी अधिसूचना जारी कर सकती है ।

अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956

  • यह कानून पूरे भारत में मान्य है । यदि किसी राज्य का किसी अन्य राज्य के साथ जल विवाद है तो वहाँ की सरकार इस कानून के अंतर्गत केंद्र सरकार से अनुरोध कर सकती है कि यह विवाद निपटारे के लिये अधिकरण को सौंप दिया जाए ।
  • यदि केंद्र सरकार को लगता है कि विवाद बातचीत से नहीं सुलझ सकता तो वह विवाद को अधिकरण के पास सौंप देती है । अधिकरण उसके उपरांत मामले की जाँच करता है और निर्णय सुनाता है, जिसे अंतिम माना जाता है और सभी पक्षों के लिये बाध्यकारी भी माना जाता है ।
  • उच्चतम न्यायालय और अन्य न्यायालय भी उनके निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करेंगे ।

अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2017

  • जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने 14 मार्च, 2017 को लोकसभा में अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) बिल, 2017 पेश किया। बिल अंतरराज्यीय नदी जल विवाद एक्ट, 1956 में संशोधन करता है।
     

विवाद निवारण समिति -एक्ट के तहत जब राज्य सरकार की ओर से जल विवाद से संबंधित कोई शिकायत केंद्र सरकार को मिलती है तो केंद्र सरकार प्रभावित राज्यों से विवाद को हल निकालने के लिए बातचीत करने का आग्रह कर सकती है। अगर बातचीत से इस विवाद का हल नहीं निकलता तो केंद्र सरकार को ऐसी किसी शिकायत के मिलने के एक वर्ष के भीतर जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन करना होता है।
 

बिल इस प्रावधान को हटाता है और यह प्रावधान करता है कि केंद्र सरकार विवाद निवारण समिति (डीआरसी) का गठन करेगी ताकि दोस्ताना तरीके से राज्यों के बीच के जल विवादों को सुलझाया जा सके। डीआरसी को केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए एक वर्ष का समय मिलेगा जिसे अधिकतम छह महीने के लिए बढ़ाया जा सकेगा।
 

डीआरसी के सदस्य -डीआरसी में संबंधित क्षेत्रों के ऐसे लोगों को सदस्य के रूप में चुना जाएगा, जिन्हें केंद्र सरकार विवाद का निवारण करने के लिए उपयुक्त समझे।
 

ट्रिब्यूनल -अगर डीआरसी के जरिए विवाद का हल नहीं निकले, तो बिल के अनुसार, उस पर निर्णय लेने के लिए (एड्जुडिकेशन के लिए) अंतरराज्यीय नदी जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन किया जाए। इस ट्रिब्यूनल की कई शाखाएं हो सकती हैं।
 

सभी मौजूदा ट्रिब्यूनलों को भंग कर दिया जाएगा और उन ट्रिब्यूनलों में निर्णय लेने के लिए जो मामले लंबित पड़े होंगे,उन्हें नए गठित ट्रिब्यूनल में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
 

 

Videos Related To Subject Topic

Coming Soon....