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सिंचाई

भारत की कृषि का ज्यादातर हिस्सा मानसूनी वर्षा पर निर्भर है । खेतों में फसलों को कृत्रिम रूप से जल देना सिंचाई कहलाता है ।

भारत की उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु, वर्षा की असमानता एवं अनिश्चितता, वर्षा जल का तेजी से बहकर सागरों में चले जाना, जल का तीव्र वाष्पीकरण, फसलों की बहुलता एवं विशिष्टता तथा मिट्टी की प्रकृति आदि कारणों से सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है ।

भारत में सिंचाई योजनाएं

भारत में सिंचाई योजनाओं को मुख्यतः निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जाता है-

वृहद् सिंचाई योजना

  • 10 हजार हेक्टेयर या उससे अधिक कृषि सिंचित भूमि के लियेसामान्यतः बड़ी नहरों तथा बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं शामिल

 

मध्यम सिंचाई योजना

  • 2 हजार हेक्टेयर से लेकर 10 हजार हेक्टेयर के बीच की सिंचित भूमि के लिए छोटी नहरें शामिल

 

लघु सिंचाई योजना

  • 2 हजार हेक्टेयर से कम की सिंचित भूमि के लिए कुओं, निजी व सरकारी नलकूपों, तालाबों, ड्रिप सिंचाई आदि को शामिल
  • लघु सिंचाई योजना के माध्यम से ही भारत में सर्वाधिक सिंचाई लघु सिंचाई को प्रोत्साहित करने हेतु 2006 में केंद्र सरकार ने लघु सिंचाई योजना शुरू की, जो 2010 में राष्ट्रीय लघु सिंचाई मिशन के रूप में परिवर्तित कर दी गई जोकि 2013 - 14 तक जारी रही ।
  • 1 अप्रैल, 2014 से राष्ट्रीय लघु सिंचाई योजना, ' राष्ट्रीय सतत् कृषि विकास मिशन के अंतर्गत ' खेत जल प्रबंधन नाम से क्रियान्वित की गई । 1 अप्रैल, 2015 से लघु सिंचाई के घटक खेत जल प्रबंधन को ' प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में मिला दिया गया ।

 

सिंचाई के साधन

  • कुल सिंचित क्षेत्रफल के लगभग आधे से अधिक भाग पर सिंचाई छोटे साधनों, जैसे - कुएँ, नलकूपों, तालाबों, झीलों, जलाशयों आदि की सहायता से की जाती है, जबकि शेष भाग की सिंचाई नहर जैसे बड़े साधनों के माध्यम से की जाती है।
  • सिंचाई में सहायक विभिन्न साधनों का आनुपातिक योगदान ( 2015 के आँकड़ों के अनुसार) निम्नलिखित तालिका में उल्लिखित है।

सिंचाई के साधन                             कुल सिंचित क्षेत्र

• कुएँ एवं नलकूपों द्वारा                61.58%

• नहरों द्वारा                                24.54%

   तालाबों द्वारा                            2.97%

• अन्य द्वारा                                10.91%

कुआँ एवं नलकूप सिंचाई 

  •   देश की कुल सिंचित भूमि के 61.58 प्रतिशत भाग की सिंचाई कुओं एवं नलकूपों से होती है । वर्तमान में ये भारत में सिंचाई के सर्वप्रमुख साधन हैं ।
  • गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में ये सिंचाई के प्रमुख साधन हैं । इसके अलावा हरियाणा,  बिहार,  तमिलनाडु,  आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक राज्यों में भी कुओं एवं नलकूपों की । सहायता से सिंचाई की जाती है ।
  • नलकूपों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है । इसका सर्वाधिक विस्तार सरयू पार के मैदानों में है ।

कुआँ एवं नलकूप सिंचाई के लाभ

  • निर्धन कृषकों के लिये कुएँ द्वारा सिंचाई अधिक सुगम एवं सस्ता साधन है ।
  • कुओं एवं नलकूप सिंचाई से मृदा के लवणीय होने का खतरा नहीं रहता है।
  • आवश्यकतानुसार जल के उपयोग के कारण ही नहरों की अपेक्षा इसमें जल की बर्बादी कम होती है ।

सौनी परियोजना 

  • 17 अप्रैल, 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के बोटाड ( Botud ) जिले में सौराष्ट्र नर्मदा अवतरण सिंचाई परियोजना के चरण - 1 (लिंक - I) को राष्ट्र को समर्पित किया । उन्होंने सौनी योजना के चरण -II ( लिंक-II ) की आधारशिला भी रखी ।
  • इस परियोजना की संकल्पना, नर्मदा नदी के बाढ़ के पानी से सौराष्ट्र क्षेत्र की दस लाख एकड़ भूमि को लाभान्वित करने के लिये की गई है । इसके तहत सौराष्ट्र क्षेत्र के 115 बांधों को जोड़ा जाएगा एवं इस क्षेत्र को सूखे की समस्या से निजात मिलेगी । कुओं एवं नलकूप सिंचाई से समस्याएँ
  • कुआँ एवं नलकूप सिंचाई के द्वारा केवल सीमित क्षेत्रों की ही सिंचाई की जा सकती है । इसके द्वारा सिंचाई के लिये अधिक जल निकालने के कारण गर्मी के मौसम में भूमिगत जल का स्तर अत्यधिक नीचे चला जाता है, जिसके कारण पेयजल की उपलब्धता में समस्या उत्पन्न हो जाती है ।
  • बिजली की कमी के कारण, बिजली से चलने वाले नलकूपों द्वारा समय पर सिंचाई में बाधा उत्पन्न होती है । कठोर चट्टानों वाले क्षेत्रों में खासकर प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्रों कुआं खोदना अत्यंत कठिन कार्य है ।

नहर सिंचाई

  • यह भारत में सिंचाई का दूसरा प्रमुख साधन है, जिसके द्वारा 24.54 प्रतिशत भू - भाग पर सिंचाई होती है ।
  • नहरों द्वारा सिंचाई उत्तरी भारत में अधिक होती है, जबकि दक्षिण भारत में कठोर चट्टानी संरचना का विकास होने के कारण नहर निर्माण की प्रक्रिया अत्यंत जटिल होने से इसका विकास सीमित क्षेत्रों में ( नदियों के डेल्टाई क्षेत्रों में ही हो पाया है । ध्यातव्य है कि उत्तरी भारत में मुलायम जलोढ़ मृदा का विस्तार होने के कारण नहरों का जाल निर्मित करना अपेक्षाकृत अधिक आसान रहा है । यही कारण है कि सतलुज - गंगा मैदानी क्षेत्र में नहरों द्वारा व्यापक रूप से सिंचाई की जाती है ।
  • नहरों द्वारा देश के कुल सिंचित क्षेत्र का सर्वाधिक विस्तार उत्तर प्रदेश में है  इसके अलावा मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार आदि राज्यों में भी नहरों से सिंचाई होती है ।

देश की प्रमुख नहरें

राज्य

नहर

नहर का स्रोत

पंजाब

सरहिंद नहर

ऊपरी बारी दोआब नहर

नांगल बांध नहर

बिस्त दोआब नहर

भाखड़ा नहर

पूर्वी नहर

  सतलुज नदी

  रवि नदी

  सतलुज नदी

  सतलुज नदी

  सतलुज नदी

  रावी नदी

हरियाणा

पश्चिमी यमुना नहर

गुडगाँव नहर

  यमुना नदी

  यमुना नदी

उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड

   पूर्वी यमुना नहर

  आगरा नहर

  ऊपरी गंगा नहर

  निचली गंगा नहर

  शारदा नहर

  बेतवा नहर

  यमुना नदी

  यमुना नदी

  गंगा नदी (हरिद्वार के समीप)

  गंगा नदी (नरौरा, बुलंदशहर)

शारदा नदी

बेतवा नदी (झाँसी के समीप परीछा नामक स्थान पे)

बिहार

  पूर्वी सोन नहर

  पश्चिमी सोन नहर

  त्रिवेणी नहर

  तिरहुत नहर तथा      सारण नहर

  सोन नदी

  सोन नदी

  गंडक नदी

  गंडक नदी

पश्चिम बंगाल

  मिदनापुर नहर

  एडन नहर

  तिलपाड़ा बांध की      नहरें

  दुर्गापुर नहर

कांगसबाती नदी

दामोदर नदी

मयूराक्षी नदी (बीरभूम जिला)

दामोदर नदी (दुर्गापुर)

राजस्थान

  बीकानेर नहर

 

  कालीसिल परियोजना

  गंभीरी परियोजना

  बांकली बांध परियोजना

  पार्वती परियोजना

  घग्घर परियोजना

  इंदिरा नहर

  सतलुज नदी (फिरोजपुर के समीप हुसैनवाला से)

  कालीसिल नहर

  गंभीर नदी (चित्तौड़गढ़)

  सुकरी नदी

  पार्वती नदी

  घग्घर नदी

  सतलुज एवं व्यास नदियों के संगम पर स्थित हरीके बैराज

महाराष्ट्र

  गोदावरी नहर

  मूठा नहर

  भंडादरा बांध की      नहरें

  मूला परियोजना

  वीर परियोजना

  गोदावरी नदी (बेल झील के समीप)

  मूठा नदी (खड़कवासला)

  प्रवर नदी (पश्चिमी घाट)

  मूला नदी

  नीरा नदी

तमिलनाडु

  कावेरी डेल्टा नहर

  मेट्टूर परियोजना

  निचली भवानी नहर

  कोल्लिडम नदी (कावेरी नदी की सहायक)

  कावेरी नदी

  भवानी नदी (कावेरी की सहायक नदी

केरल

  मालमपुझा बांध

  वलायर यलाशल     की नहरें

  मंगलम परियोजना

  मालमपुझा नदी (मालाबार जिला)

  कोरायर नदी

  चेरुकुना पुझा नदी

आंध्र प्रदेश

  गोदावरी डेल्टा की नहरे

 

  कृष्णा डेल्टा की नहरें

  कृष्णा सिंचाई योजना की नहरें

  राम सागर परियोजना

  तुंगभद्रा परियोजना

  कृष्णा-पेन्नार परियोजना

  गौतमी गोदावरी तथा विशिष्ट गोदावरी (डेल्टा क्षेत्र में गोदावरी की शाखाएं)

  कृष्णा नदी

  कृष्णा नदी

 

  गोदावरी नदी (पोलवरंम नामक स्थान)

  तुंगभद्रा नदी (कृष्णा की सहायक नदी)

  कृष्णा तथा पेन्नार नदी

 

नहर सिंचाई के लाभ

  • नहरों द्वारा पूरे वर्ष सिंचाई हेतु जल की उपलब्धता बनी रहती है।
  • नहरें, नदियों द्वारा पर्वतों से लाई गई उपजाऊ मिट्टी और अन्य पोषक तत्वों की वाहक होती हैं, जो इसे खेतों तक पहुँचाती हैं ।
  • नहरों द्वारा दूर तक सिंचाई के लिये भरपूर जल उपलब्ध कराया जा सकता है ।
  • नहरों द्वारा सिंचाई के साथ-साथ कहीं-कहीं पर जलविद्युत उत्पादन का भी कार्य किया जाता   है ।
  • नहरों के रख-रखाव पर कम खर्च पड़ता है, क्योंकि एक बार बन जाने के बाद नहरें बिना किसी अतिरिक्त व्यय के निरंतर कार्यरत रहती हैं ।

नहर सिंचाई से समस्याएँ

  • नहरों का जल रिस कर जलाक्रांतता की स्थिति पैदा करता रहता है, जिसकी वजह से संलग्न क्षेत्रों में अति जल भराव के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं ।
  • नहरों में रिसाव के कारण कई स्थानों पर दलदल की स्थिति पैदा हो जाती है, जिससे मलेरिया मच्छरों के पनपने की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं । इंदिरा गांधी नहर के आस-पास इस समस्या को देखा गया है ।
  • नहरों द्वारा अति सिंचाई से भूमि में लवणता की मात्रा में वृद्धि हो जाने से भूमि ऊसर हो जाती  है । पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के कई क्षेत्रों में यह समस्या उत्पन्न हो गई है । महाराष्ट्र की नीरा नदी की घाटी में नमक की सतह जम जाने से लगभग हज़ारों हेक्टेयर भूमि कृषि के लिये अनुपयोगी हो गई है ।
  • नहरों द्वारा सिंचाई केवल समतल मैदानी भागों में ही संभव है । असमतल एवं पथरीली भूमि पर नहर की खुदाई एवं जल का बहाव कठिन होता है ।
  • नहरों के जल के साथ नुकसानदेह खरपतवारों के बीज भी खेतों में पहुँच जाते हैं, जो फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं ।

 

 

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