प्रमुख नहर सिंचाई परियोजना
इंदिरा गांधी नहर परियोजना
पश्चिमी यमुना नहर
इस नहर का निर्माण तुगलक वंश के शासक 'फिरोजशाह तुगलक' ने करवाया था । यह यमुना नदी के दाहिने किनारे पर ताजेवाला (हरियाणा) से निकाली गई है ।
सरहिंद नहर
यह नहर पंजाब के रोपड़ से सतलुज नदी के बायें किनारे से निकाली गई है ।
ऊपरी गंगा नहर
इस नहर को हरिद्वार के समीप गंगा नदी से निकाला गया है । इस नहर का प्रवाह बहुत ही उबड़-खाबड़ क्षेत्रों से होता है । इस नहर के जल से उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों की भूमि सिंचित होती है ।
निचली गंगा नहर
यह नहर बुलंदशहर के नरौरा से गंगा नदी से निकलती है । यह नहर कासगंज के समीप ऊपरी गंगा नहर में मिल जाती है । इससे उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर, एटा, मैनपुरी, इटावा, कानपुर आदि क्षेत्रों में सिंचाई की जाती है ।
शारदा नहर
इसे उत्तराखंड के नैनीताल (बनबासा) के निकट शारदा नदी से निकाला गया है । इस नहर के माध्यम से उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर, पीलीभीत, लखनऊ, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, जौनपुर आदि जिलों में सिंचाई की जाती है । इसी नहर पर 'खातिमा' शक्ति केंद्र भी स्थापित है ।
भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न प्रकार की पारंपरिक जल संरक्षण संरचना एवं सिंचाई की पध्द्तियां |
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जैव भौतिक क्षेत्र |
संरचना |
व्याख्या |
राज्य / क्षेत्र |
ट्रांस हिमालय |
जिंग |
बर्फ से जल इकट्ठा करने का टैंक |
लद्दाख |
पश्चिमी हिमालय |
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लद्दाख पर्वतीय क्षेत्रों में जल के नाले । छोटे तालाब ( ये चारों तरफ से छायादार पेड़ों से घिरे रहते हैं ताकि पानी वाष्पिकृत न हो सके) प्राकृतिक बांध या कंदरा के पास एक अस्थायी मंडारण क्षेत्र बनाया जाता है , जिसमें पानी को संगृहीत करके नहरों के माध्यम से खेतों में सिंचाई की जाती है पत्थरों को तराश कर बनाए गए टैंक |
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पूर्वी हिमालय |
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सोढ़ीनुमा क्षेत्र जहाँ पानी के आने और निकलने के रास्ते होते हैं । इस तरह अरुणाचल से पानी का प्रबंधन लोअर सुबनश्री के क्षेत्र में अपातानी जनजाति द्वारा चावल की खेती और मछली पालन के लिये किया जाता है । |
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उत्तरी-पूर्वी हिमालय |
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रन ऑफ ( बहते पानी का संग्रहण ) , यह नागालैंड के किकरुमा क्षेत्र में प्रचलित तकनीक है , जहाँ पर अत्यधिक वर्षा होती है । पहाडी क्षेत्रों से बहते जल को विभिन्न सीढ़ीनुमा ढलानों के माध्यम से तालाब बनाकर संगृहीत कर लिया जाता है । इस जल का उपयोग पशुपालन व चावल की खेती में किया जाता है । पहाडी क्षेत्रों में प्राकृतिक जल धाराओं से बॉस की नलियों द्वारा पानी लाकर बूंद सिंचाई करना । |
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ब्रम्हापुत्र घाटी |
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तालाब , इसका निर्माण बोडो जनजाति द्वारा सिंचाई हेतु किया जाता है । डुंग/ झंपोस कम दूरी के सिंचाई माध्यम हैं जो धान के खेतों को बांध से जोड़ते हैं । यह पद्धति जलपाईगुड़ी क्षेत्र में अपनाई जाती है । |
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गंगा-सिंधु मैदान |
दिघी
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अहर एक प्रकार के तालाब / हौज होते हैं जिनके तीन ओर तटबंध बना होता है, चौथी तरफ भूमि का प्राकृतिक ढाल / प्रवणता होती है । पाइन कृत्रिम | चैनल हैं जिनके माध्यम से नदी के पानी का उपयोग कृषि क्षेत्र में किया जाता है । छोटे चौकोर या गोल जलाशय जिन्हें नदी के पानी से भरा जाता था ।
सीढ़ीदार कुएँ । |
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पश्चिमी भारत (मरुस्थलीय क्षेत्र) |
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कुंडा / कुंडी एक प्रकार के तस्तरीनुमा हौज / तालाब होते हैं । इनका ढलान केंद्र ( जहाँ पर कुआँ होता है ) की ओर होता है । इनमें वर्षा के जल का संग्रहण पीने हेतु किया जाता है । टैंकों के पास गहरे कुएँ का निर्माण कर दिया जाता है ताकि टैंक से पानी रिस कर इसमें इकट्ठा होता रहे । इसमें वर्षा के पानी का संचयन भी किया जाता है । टैंक , इनका आकार आयताकार होता है जोकि सीढ़ीनुमा होता है ।
जमीन के अन्दर टैंक
खादिन की मुख्य विशेषता यह है कि निचले पहाडी ढलानों पर 100 से 300 मीटर लंबे तटबंध बनाये जाते हैं , जिनमें वर्षा का पानी संचित कर लिया जाता है , जिसका प्रयोग सिंचाई हेतु किया जाता है ।
कम गहरे कुए |
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मध्यवर्ती उच्च भूमि |
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जलाशय |
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खुले कुएं |
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मिट्टी के चेक डैम |
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पत्थर के चेक डैम |
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नदियों के बीच में डाईवर्जन बांध |
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वर्षा जलसंयंत्र टैंक जैसी संरचना |
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पूर्वी ऊँची जमीन |
मुंड |
पानी के रास्ते में मिट्टी के बांध बनाना |
ओडिशा |
दक्कन का पठार |
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वर्षा जल संग्रहण जलाशय |
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चेक डैम या पानी का बहाव परिवर्तन हेतु नदी पर बांध बनाना |
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भूगर्भीय जल स्रोत एवं सतही जल स्रोतों का नेटवर्क जो भूगर्भीय व सतही नहरों द्वारा जुड़ा होता है |
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पश्चिमी घाट |
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क्षैतिज कुँए-इन कुओं का पानी टनल के माध्यम से बाहर निकाल कर एक गहरे गढ्ढे में इकट्ठा किया जाता है |
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पूर्वीघाट |
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घास एवं अन्य पौधा तथा कीचड़ से बने तात्कालिक बांध |
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पूर्वी तटीय मैदान |
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तालाब |
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तालाब सिंचाई
तालाब सिंचाई के लाभ
तालाब सिंचाई से समस्याएँ
भारत में सिंचाई की आधुनिक विधियाँ
ड्रिप सिंचाई
महत्त्वपूर्ण तथ्य
ड्रिप सिंचाई के लाभ
ड्रिप सिंचाई की सीमाएँ
फव्वारा सिंचाई
फव्वारा सिंचाई के लाभ
फव्वारा सिंचाई की सीमाएँ
सतही सिंचाई
सतही सिंचाई के लाभ
सतही सिंचाई से समस्याएँ
रेनगन तकनीक
इस तकनीक के द्वारा 20 से 60 मी . की दूरी तक प्राकृतिक बरसात की तरह सिंचाई की जाती है । इसमें कम पानी से अधिक क्षेत्रफल को सींचा जा सकता है । सिंचाई के अन्य साधनों की अपेक्षा इसके माध्यम से आधे से भी कम समय एवं पानी से खेत की सिंचाई संभव है ।
फर्टिगेशन
इस विधि के द्वारा जल के साथ उर्वरकों को भी मिलाकर सिंचाई की क्रिया संपन्न की जाती है । इस सिंचाई की आधुनिक खोज 'इजराइल ' से हुई । इस विधि से सिंचाई होने से जल व उर्वरकों दोनों का इष्टतम उपयोग होता है । इसमें वैसे उर्वरकों को उपयोग में लाया जाता है जो पूर्ण घुलनशील तथा जल से अभिक्रिया विहीन होते हैं ।
कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम
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