ज्वालामुखी तथा भूकम्प
ज्वालामुखी का तात्पर्य उस छिद्र अथवा दरार से है जिसका संबंध पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होता है, और जिसके माध्यम से तप्त गैस, तरल, लावा, राख, जलवाष्प आदि का निर्गमन होता है।
ज्वालामुखी क्रिया के अन्तर्गत मैग्मा के निकलने से लेकर धरातल या उसके अन्दर विभिन्न रूपों में इसके ठण्डा होने की प्रक्रिया शामिल होती है।
ज्वालामुखी क्रिया के दो रूप होते हैं। यथा-
(1) धरातल के नीचे भूगर्भ में मैग्मा के शीतल होकर जमने की प्रक्रिया, जिससे बैथालिथ फैकोलिथ, लैपोलिथ, सिल तथा डाइक स्वरूप की अन्तः स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। इसका विवेचन चट्टानों के अध्याय में किया गया है।
(2) दूसरे में धरातल के ऊपर घटित होने वाली क्रियाएं सम्मिलित होती है। इनमें प्रमुख हैं-
इस व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्वालामुखी क्रिया एक व्यापक शब्द है, जिसमें अनेक क्रियाएं तथा अनेक रूप सम्मिलित हैं। ज्वालामुखी, ज्वालामुखी क्रिया का एक रूप है।
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