क्रिप्स मिशन, 1942
द्वितीय विश्व युद्ध के निर्णायक दौर में पहुँचने के समय ब्रिटिश शासन द्वारा यह अनुभव किया जाने लगा कि भारतीयों द्वारा स्वेच्छा से दिया गया असयोग अधिक मूल्यवान होगा । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए 1942 के मार्च माह में ब्रिटिश कैबिनेट मंत्री स्टेफोर्ड क्रिप्स को कुछ प्रस्ताओं के साथ भारत भेजा गया, जिसे भारत के सभी राजनैतिक दलों ने अस्वीकार कर दिया । क्रिप्स प्रस्ताव के अन्तर्गत यह मान लिया गया था कि युद्वोपरान्त भारतीयों को यह अधिकार होगा कि वे अपने लिए अपनी संविधान सभा में संविधार का निर्माण कर सकें, किन्तु प्रान्तों को नये संविधान स्वीकार करने या न करने की छूट दी गयी थी । मुस्लिम लीग द्वारा इस प्रस्ताव को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि इसके द्वारा देश को सम्प्रदायिक आधार पर बटवारे की उसकी मांग की व्यवस्था इस प्रस्ताव में नही थी । कांग्रेस द्वारा इस आधार पर विरोध किया जा रहा था कि प्रस्ताव द्वारा देश के छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटने की सम्भावनाओं के द्वारा खोल दिये गये थे । गाँधी जी द्वारा इस प्रस्ताव को यह कहकर आलोचना की गयी कि यह प्रस्ताव बाद की तारीख का चेक है।
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