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संसदीय समितियां

समितियों के माध्यम से ही संसद अपना अधिकतर कार्य करती है और इन समितियों को कुछ ऐसे कार्यों को निपटाने के लिए गठित किया जाता है, जिनके लिए विशेषज्ञों अथवा व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता नहीं होती।

भारत में समिति प्रणाली का विकास तो प्राचीनकाल से ही हो गया था लेकिन आधुनिक काल में इसका विकास मान्टेग्यू-चेम्सफोर्ड  के सुधारों के परिणामस्वरूप हुआ। वर्तमान समय की समितियों की तुलना में उस समय की समितियों को कम विशेषाधिकार तथा शक्तियां प्राप्त थी, भारतीय संविधान के प्रवर्तन के बाद से संसदीय समितियां कुछ हद तक लघु संसद के रूप में कार्य करती हैं।

संसदीय समितियों का गठन संसद द्वारा निर्मित प्रक्रिया तथा कार्य संचालन के नियमों के आधीन किया जाता है।

समिति का गठन- समिति का गठन या तो लोकसभा के सदस्यों द्वारा या राज्यसभा के सदस्यों द्वारा या दोनों सदनों के सदस्यों द्वारा किया जाता है। जब लोकसभा के सदस्यों से किसी समिति का गठन हो, तो या तो सदस्य लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा नामजद किये जाते है या लोकसभा के सदस्यों द्वारा चुने जाते है और जब राज्यसभा के सदस्यों से समिति का गठन होता है तब या तो सभापति द्वारा सदस्य नाम जद किये जाते है या सदस्यों द्वारा चुने जाते है समिति के किसी सदस्य को सदस्यता के आधार पर इस आधार पर आक्षेप किया जा सकता है कि उस सदस्य का इतना अधिक व्यैक्तिक, आर्थिक या प्रत्यक्ष हित है कि समिति द्वारा विचारणीय विषयों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। समिति का गठन निश्चित अवधि के लिए किया जाता है और उसके सदस्य समिति में बने रहने तक सदस्य बनें रहते है लेकिन कोई सदस्य इससे पूर्व भी त्यागपत्र दे सकता है।

संसदीय समितियों के प्रकार

भारत में दो प्रकार की समितियां हैं-

  1.  स्थायी समिति एवं
  2. तदर्थ समिति।

1.स्थायी समिति

 स्थायी समितियां वे समितियां है, जो प्रत्येक वर्ष या समय-समय पर नियमित रूप से सदन द्वारा निर्वाचित या अध्यक्ष द्वारा या सभापति द्वारा मोनोनीत की जाती हैं। ऐसी समितियां स्थायी प्रकृति की होती हैं। स्थायी समितियों को उसके कृत्यों के आधार पर निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है-

वित्तीय समितियां- संसद की वित्तीय समितियां निम्नलिखित हैं-

1.लोकसभा की प्राक्कलन समिति- इस समिति में लोकसभा के 30 सदस्य होते है और इसमें राज्यसभा के सदस्यों को शामिल नहीं किया जाता। इस समिति को "स्थायी मितव्ययिता समिति" भी कहा जाता है। यह समिति सरकारी अव्यय को रोकने की सिफारिश करती है, समिति की सदस्यों का चुनाव प्रत्येक वर्ष आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से एक वर्ष  के लिए किया जाता है। इस समिति के निम्नलिखित कार्य है-

  • बजट अनुमानों की जांच कर यह बताना कि क्या उसमें शामिल नीति की मितव्ययिता, संगठन में सुधार, कार्य कुशलता या प्रशासनिक सुधार किये जा सकते है।
  • वह यह सिफारिश करे कि प्रशासन में कुशलता एवं मितव्ययिता लाने के लिए किस वैकल्पिक नीति को स्वीकार किया जा सकता है।
  • वह यह जांच करे कि क्या बजट अनुमानों में शामिल नीति की सीमाओं में रहकर धन ठीक ढंग से लगाया गया है।
  • वह यह सिफारिश करे कि संसद के समक्ष बजट अनुमान किस रूप में पेश किए जाएँ ।

2.सरकारी उपक्रमों सम्बन्धी समिति- इस समिति का गठन 22 सदस्यों द्वारा किया जाता है, जिनमें से 15 लोकसभा से तथा 7 राज्यसभा से निर्वाचित होते है समिति का अध्यक्ष लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उन सदस्यों में से नामजद किया जाता है, जो उस समिति के सदस्य चुने गये होते हैं।

इस समिति के कार्य निम्नलिखित हैं-

  • सरकारी उपक्रमों के प्रतिवेदनों और लेखाओं की और उन पर नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदनों की जांच करना।
  • सरकारी उपक्रमों की स्वायतत्ता और कार्यकुशलता के सन्दर्भ में यह जांच करना कि क्या सरकारी उपक्रमों के कार्य व्यापार सिद्वांतो और विवेकपूर्ण वाणिज्यक प्रथाओं के अनुसार चलाये जाते हैं।
  • ऐसे विषयों की जांच करना, जो सदन या अध्यक्ष द्वारा निर्दिष्ट किये जाएं।

3.लोक लेखा समिति- प्राक्कलन समिति की जुड़ुआ बहन के रूप में ज्ञात इस समिति में 22 सदस्य होते है, जिनमें से 15 सदस्य लोकसभा के सदस्यों द्वारा तथा 7 सदस्य राज्यसभा के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं। 1967 से स्थापित प्रथा के अनुसार इस समिति के अध्यक्ष के रूप में विपक्ष के किसी सदस्य को नियुक्त किया जाता है।

इस समिति के कार्य निम्नलिखित हैं-

  • भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा दी गयी लेखा परीक्षण संबन्धी प्रतिवेदनों की जांच करना ।
  • भारत सरकार के व्यय के लिए सदन द्वारा प्रदान की गयी राशियों का विनियोग दर्शाने वाले लेखाओं की जांच करना। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि क्या धन संसद द्वारा प्राधिकृति रूप से खर्च किया गया है, और उसी प्रयोजन के लिए खर्च किया गया है जिस प्रयोजन के लिए दिया गया था।
  • यदि किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर उसके प्रयोजन के लिए सदन द्वारा प्रदान की गयी धनराशि से अतिरिक्त धनराशि को व्यय किया गया हो, तो समिति उन परिस्थितियों की जांच करती है, जिनके करण ऐसा अतिरिक्त व्यय करना पड़ा है और इस सम्बन्ध में ऐसी सिफारिश करती है, जिसे व उचित समझे।
  • समिति राष्ट्र के वित्तीय मामलों के संचालन में अव्यय, भ्रष्टाचार, अकुशलता या कार्य-चालन में कमी के किसी प्रमाण की भी खोज करती है। 

 

विषयगत समितियां- 1989 में लोकसभा की नियम समिति विषय विभाग से सम्बन्धित समितियों की स्थापना की सिफारिश की थी फलस्वरूप इस सिफारिश के अनुसरण में तीन समितियों की स्थापना की गयी थी। 1991 में नियम समिति ने पुनः यह सिफारिश की कि सरकार के सभी विभागों के लिए विषयगत समिति की स्थापना की जाय,  जिससे कोई भी क्षेत्र संसदीय जांच के क्षेत्र से बाहर न हो । 1989 की सिफारिश के आधार पर निम्नलिखित तीन विषयगत समितियों का गठन किया गया था । इन समितियों का गठन 22 सदस्यों द्वारा होता है, जिनमें से 15 लोकसभा अध्यक्ष द्वारा लोकसभा से तथा 7 राज्यसभा से सभापति द्वारा मोनोनीत किये जाते हैं। मंत्रिपरिषद का कोई भी सदस्य इन समितियों का सदस्य नहीं हो सकता । इन समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है  लेकिन अध्यक्ष का चयन इसके सदस्यों में से ही किया जा सकता है। विषयगत समितियां और उनके कार्य निम्नलिखित है-

1.कृषि समिति-कृषि मंत्रालय के कार्यक्षेत्र में आने वाले मामलों की जांच इस समिति द्वारा की जाती है तथा यह समिति कृषि से सम्बन्धित अन्य मंत्रालयों तथा विभागों के आधीन आने वाले विषयों पर भी विचार कर सकती है। इसके अतिरिक्त कृषि उद्योग के सर्वागीण विकास द्वारा देश की आर्थिक प्रगति में सक्षम योगदान देने के लिए आवश्यक सिफारिश भी कर सकती है।

2.पर्यावरण और वन समिति-इस समिति का कार्य उन सभी मामलों की जांच करना है, जो पर्यावरण और वन मंत्रालय के अधीन आते हों या इन मंत्रालयों के आधीन आने वाले विषयों से सम्बन्धित हो। यह पर्यावरण और वन सम्पदा के सर्वेक्षण और सुरक्षा के लिए सिफारिश भी कर सकती है।

3.विज्ञान और प्रोद्योगिकी समिति-यह समिति विज्ञान और प्रोद्योगिकी मंत्रालय इससे सम्बन्धित विभागों, संगठनों तथा इसके सम्बन्धित मामलों पर विचार-विमर्श कर सकती है और नयी-नयी वैज्ञानिक तकनीकी प्रक्रियाओं के अधिकतम प्रयोग और आधुनिकीकरण द्वारा देश के आर्थिक विकास के लिए उचित सिफारिश कर सकती है।

 

नयी समिति प्रणाली-  20 जुलाई 2004 को लोकसभा द्वारा संसद की स्थाई समितियों की संख्या 17 से बढ़ाकर 24 करने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिए जाने के पश्चात 5 अगस्त, 2004 को इन समितियों का गठन कर दिया गया । इन 24 समितियों में 16 लोकसभा और 8 राज्यसभा की है। प्रत्येक समिति में 31 सदस्य रखने का प्रावधान है। इनमें 21 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से सदस्य होंगे।

       ध्यातब्य है कि लोकसभा की नियम समिति द्वारा 1991 में दी गयी सिफारिश के अनुसार, भारत में 17 संसदीय समितियों को गठित किया गया था। इन समितियों का गठन विभिन्न मंत्रालयों की बजट माँगों, उनकी वार्षिक रिपोर्टो, विधेयक और सरकार की दीर्घकालिक नीतियों पर विचार करने के लिए किया गया था। यह समितियां सरकार के काम काज की गहन समीक्षा करेंगी, जिससे संसद के प्रति सरकार का उत्तरदायित्व बना रहे। इन समितियों में से प्रत्येक में कुल 45 सदस्य होते थे, जिनमें से 30 सदस्य लोकसभा से और 15 सदस्य राज्यसभा के लिए जाते थे। इन समितियों के सदस्य एक वर्ष के लिए मनोनीत किये जाएंगे और इसके लिए प्रत्येक राजनीतिक दल के नेता अपने सदस्य का नाम पीठासीन अधिकारी को देंगे। समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति पीठासीन अधिकारी करेगा, और सदन में विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों की संख्या के अनुपात में उसके दल के सदस्यों को समिति में शामिल किया जायेगा।

 

 

सदन की समितियां- सदन से सम्बन्धित समितियां निम्नलिखित हैं-

 

कार्य मंत्रणा समिति- संसद के दोनों सदनों में कार्यमंत्रणा समिति होती है। लोकसभा की कार्यमंत्रणा समिति के अध्यक्ष सहित 15 सदस्य होते है। लोकसभा का अध्यक्ष कार्य मंत्रणा समिति का पदेन अध्यक्ष होता है। राज्यसभा की कार्यमंत्रणा समिति में इसके सभापति तथा उपसभापति सहित 11 सदस्य होते हैं। राज्यसभा का सभापति इस समिति का पदेन सभापति होता है। लोकसभा का अध्यक्ष तथा राज्य सभा का सभापति अपने-अपने सदस्यों को नामजद करते हैं। इस समिति के कार्य निम्नलिखित हैं-

  • समिति यह सिफारिश करती है कि सरकार के विधायी कार्यो तथा अन्य कार्यो को निबटाने के लिए कितना समय नियत किया जाय लेकिन राज्यसभा में यह समिति यह भी सिफारिश करती है कि गैरसरकारी विधेयकों तथा संकल्पों पर विचार विमर्श के लिए कितना समय नियत किया जाय।
  • समिति राज्यसभा के सभापति तथा लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा सौपे गये अन्य कार्यो का निर्वहन भी करती है।
  • वह स्वयं सरकार से यह सिफारिश कर सकती है कि किसी विशेष विषय पर सदन में विचार-विमर्श किया जाय अथवा नहीं। समिति ऐसे विचार विमर्श के लिए समय नियत कर सकती है।

 

गैर सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्पों सम्बन्धी समिति- इस समिति का गठन लोकसभा में किया जाता है। समिति में कुल 15 सदस्य होते है और लोकसभा का उपाध्यक्ष इस समिति का अध्यक्ष होता है इस समिति के कार्य निम्नलिखित हैं-

  • गैर सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्पों के लिए समय नियत करना,
  • संविधान में संशोधन करने वाले गैर सरकारी सदस्यों के विधेयकों को लोकसभा में पेश किये जाने के पूर्व जांच करना,
  • ऐसे गैर सरकारी विधेयकों की जांच करना, जिनके मामले में सदन की विधायी क्षमता को चुनौती दी गयी हो।

 

सभा की बैठकों से सदस्यों की अनुपस्थिति सम्बन्धी समिति-  संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि यदि संसद के किसी सदन का सदस्य सदन की अनुमति के बिना सदन की सभी बैठकों से 60 दिन की अवधि तक अनुपस्थित रहता है, तो सदन उसका स्थान रिक्त घोषित कर सकता है। राज्यसभा यह कार्य स्वयं करती है, जबकि लोकसभा में इस कार्य को करने के लिए एक समिति होती है, जिसमें 15 सदस्य होते है। यह समिति निम्नलिखित कार्य करती है-

  • लोकसभा की बैठकों से अनुपस्थित रहने के लिए अनुमति देने हेतु सदस्यों से प्राप्त सभी प्राथना पत्रों पर विचार करना।
  • जिन मामलों में सदन का कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना बैठकों से 60 दिन या इससे अधिक अवधि तक अनुपस्थित रहता है, तो इस सम्बन्ध में रिपोर्ट देना कि सदस्य की ऐसी अनुपस्थिति को माफ कर दिया जाय या उसके स्थान को रिक्त कर दिया जाय।
  • सदन के सदस्यों की उपस्थिति के सम्बन्ध में ऐसे अन्य कृत्यो का निर्वहन करना जो लोकसभाध्यक्ष द्वारा समय-समय पर उसे सौपा जाय।

 

नियम समिति- संसद के दोनो सदनों में नियम समिति का गठन किया जाता है। लोकसभा अध्यक्ष सहित इसमें 15 सदस्य शामिल किये जाते है तथा राज्यसभा की समिति में सभापति तथा उपसभापति के साथ कुल 16 सदस्य सम्मिलित किये जाते है। लोकसभा का अध्यक्ष तथा राज्यसभा का सभापति अपने-अपने सदन की समितियों के पदेन अध्यक्ष होते है। इस समिति के कार्य निम्नलिखित हैं-

  • सदन में प्रक्रिया तथा कार्य संचालन के मामलों पर विचार-विमर्श करना, तथा
  • सदन की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन के नियमों की आवश्यकतानुसार संशोधन या परिवर्तन की सिफारिश करना। 

 

जांच समितियां- संसद की निम्नलिखित जांच समितियां हैं-

(1) याचिका समिति- संसद के दोनों सदनों में याचिका समिति का गठन किया जाता है। लोकसभा की याचिका समिति में सदन के 15 सदस्य तथा राज्यसभा की याचिका समिति में सदन के 10 सदस्य शामिल किये जाते है।

इस समिति के कार्य निम्नलिखित हैं-

 

  • प्रत्येक ऐसी याचिका की जांच करना, जो सदन में पेश किये जाने के पश्चात समिति को निर्दिष्ट की जाती है ।
  • सदन में पेश की गयी तथा समिति को निर्दिष्ट की गयी याचिका पर यह अपनी रिपोर्ट पेश करती है।
  • समिति या तो समीक्षाधीन विशिष्ट मामले में या भविष्य में ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए उपचारात्मक सुझाव देती है।
  • विभिन्न व्यक्तियों से और संघों से प्राप्त पत्रों एवं तारों सहित उन अभ्यावेदनों पर विचार करती है, जो याचिका सम्बन्धी नियम के अधीन न  आते हो और उनके उचित निपटारे के लिए निर्देश देती है।

 

(2) विशेषाधिकार समितिः- जब संसद के किसी सदन या किसी सदन के किसी सदस्य के विशेषाधिकार के भंग होने का प्रश्न उत्पन्न होता है, तो ऐसे प्रश्न की जांच के लिए विशेषाधिकार समिति को निर्दिष्ट किया जाता है। संसद के दोनों सदनों में अध्यक्ष या सभापति द्वारा प्रतिवर्ष विशेषाधिकार समिति का गठन किया जाता है। लोकसभा की विशेषाधिकार समिति में 15 सदस्य तथा राज्यसभा की विशेषाधिकार समिति में 10 सदस्य होते है। समिति को गठित करते समय विभिन्न दलों तथा गुटों को उनकी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाता है विशेषाधिकार के उलंघन के मामले की जांच करके समिति उस पर अपनी रिपोर्ट देती है और उसकी रिपोर्ट के आधार पर विशेषाधिकार का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को दण्डित किया जाता है।

 

छानबीन समितियां-  छानबीन समितियां निम्नलिखित हैं-

(1) सरकारी आश्वासन सम्बन्धी समिति- इस समिति का गठन सर्वप्रथम  दिसम्बर, 1953 को हुआ। इसका गठन दोनों सदनों में होता है। लोकसभा की समिति में 15 सदस्य तथा राज्यसभा की समिति में 10 सदस्य होते है, यह समिति अपने-अपने सदनों में मंत्रियों द्वारा दिये गये आश्वासनों की छानबीन करती है, तथा इस सम्बन्ध में रिपोर्ट देती है कि मंत्रियों द्वारा दिये गये आश्वासन कहां तक पूरे हुए है, और यदि पूरे किये गये है, तो क्या आश्वासन कम से कम समय में पूरे किये गये हैं।

(2) अधीनस्थ विधायन संबन्धी समिति- इस समिति के गठन का मुख्य उद्देश्य यह है कि समिति यह छानबीन करे कि संविधान या संसद द्वारा प्रत्यायोजित विधायन, जो नियम, उपनियम, विनियम आदि बनाने के लिए स्थानीय निकायें या प्रधिकारियों को प्रत्यायेजित किया गया है, सुचारू रूप से कार्य कर रहे हैं या नहीं । इस समिति का गठन प्रति वर्ष संसद के दोनों सदनों के लिए की जाती है। दोनों सदनों की इस समिति में 12-15 सदस्य होते हैं, जो लोकसभाध्यक्ष द्वारा या राज्यसभा के सभापति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं।

(3) सभा पटल पर रखे पत्रों सम्बन्धी समिति- यह समिति संसद के प्रत्येक सदन द्वारा गठित की जाती है। लोकसभा में इस समिति के 15 और राज्यसभा में 10 सदस्य होते हैं। इस समिति का गठन 1975 से प्रारम्भ हुआ।  समिति का कार्य सभा-पटल पर रखे गये सभी पत्रों की जांच करना है और यदि पत्र सदन में अवैध रूप से या अत्यधिक विलम्ब से रखे गये हों, तो जांच का प्रतिवेदन देना है।

(4) अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण सम्बन्धी समिति इस समिति में 30 सदस्य शामिल किये जाते हैं, इनमें से 20 लोकसभा तथा 10 राज्यसभा के सदस्य होते है, जो संसद सदस्य के अलग-अलग सदनों द्वारा अपनें सदस्यों में से निर्वाचित किये जाते हैं। इस समिति के कार्य निम्नलिखित हैं-

  • अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के आयुक्त के प्रतिवेदन पर विचार करना तथा संसद में इस बारे में रिपोर्ट  पेश करना कि उन पर सरकार द्वारा क्या उपाय किये गये हैं या करने अपेक्षित हैं।
  • विभिन्न सेवाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के प्रतिनिधित्व, उनके कल्याण संबन्धी कार्यक्रमों और इन जातियों के कल्याण संबन्धी मामलों की जांच करना और उनकें बारे में रिपोर्ट देना।
  • यह सुनिश्चित करना कि इन पिछड़े समुदायों के लिए संवैधानिक रक्षा को प्रभावी ढंग से कार्यरूप दिया जाय।

 

सेवायें उपलब्ध कराने वाली समितियां- ये समितियां निम्नलिखित हैं-

(1) सामान्य प्रयोजन समिति- संसद के दोनों सदनों की एक सामान्य प्रयोजन समिति होती है। लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा की समिति का तथा राज्यसभा का सभापति राज्यसभा की समिति का पदेन अध्यक्ष होता है। इस समिति में उपाध्यक्ष या उपसभापति, सभापति तालिका के सदस्य, सम्बन्धित सदन की सभी स्थायी समितियों के अध्यक्ष, मान्यता प्राप्त दलों, गुटो के नेता, और ऐसे अन्य सदस्य इस समिति के सदस्य होते है, जो पीठासीन अधिकारी द्वारा मोनोनीत किये जाएँ । इसका गठन 1954 में किया गया था। सदन और सदन के सदस्यों के कार्यो से सम्बन्धित जो तदर्थ मामले किसी अन्य संसदीय समिति के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते, उन पर यह समिति परामर्श देती है।

(2) आवास समिति- संसद के दोनों सदनों में आवास समिति का गठन किया जाता है। प्रत्येक सदन की समिति में 12 सदस्य होते है, जो सम्बंधित सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा मनोनीति किये जाते है, यह समिति सदस्यों के आवासों, खानपान, चिकित्सा सहायता आदि जैसी अन्य सुविधाओं से सम्बन्धित मामलों के सम्बंध में कार्य करती है ।

(3) ग्रंथालय समिति-  यह लोकसभा तथा राज्यसभा की सयुक्त समिति है । इसके लोकसभा अध्यक्ष द्वारा मोनोनीत 6 लोकसभा सदस्य तथा राज्यसभा के सभापति द्वारा मोनोनीत 3 सदस्य शामिल किये जाते हैं। समिति का गठन प्रत्येक वर्ष किया जाता है। समिति का मुख्य कार्य ग्रंथालय तथा उसकी सहायक सेवाओं, अर्थात संदर्भ, शोध तथा प्रलेखन सेवाओं के प्रयोग में सदस्यों की सहायता करना है। यह समिति पुस्तकों के चयन, ग्रंथालय के लिए नियम बनाने और इसकी भावी योजना आदि से सम्बंधित मामलों में अध्यक्ष को सलाह देना है।

(4) संसद सदस्यों के वेतन एवं भत्ते सम्बन्धी समिति- यह समिति का गठन संसद सदस्य (वेतन तथा भत्ता) अधिनियम 1954 के अधीन नियम बनाने के लिए गठित की जाती है । यह दोनों सदनों की सयुक्त समिति है तथा इसमें लोकसभा के 10 तथा राज्यसभा के 5 सदस्य शामिल किये जाते हैं। इस समिति का मुख्य कार्य संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के लिए चिकित्सा, आवास, टेलीफोन, और डाक सुविधाओं आदि के लिए भारत सरकार से सलाह करके सामान्य रूप से उसके दैनिक और यात्रा भत्ता आदि की अदायगी को विनियमित करने के लिए नियम बनाना।

 

2.तदर्थ समितियां

संसद की तदर्थ समितियों को दो संवर्गो में रखा जा सकता है-

 

प्रवर/संयुक्त प्रवर समिति

विधेयकों की समीक्षा करने के लिए जब लोकसभा या राज्यसभा द्वारा अलग-अलग समितियों का गठन किया जाता है, तो इस प्रकार गठित समिति को प्रवर समिति कहा जाता है, दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग गठित की जाने वाली समिति में संबन्धित सदन के 30-30 सदस्य शामिल किये जाते हैं। जब विधेयकों की समीक्षा के लिए दोनों सदनों द्वारा संयुक्त रूप से समिति का गठन किया जाता है, तो उसे संयुक्त प्रवर समिति कहा जाता है संयुक्त प्रवर समिति में 45 सदस्य होते है जिसमें से 30 सदस्य लोकसभा से और 15 राज्यसभा के होते है।

किसी विशिष्ट मामलें की जांच करने तथा प्रतिवेदन देने के लिए समिति

अध्यक्ष या सभापति द्वारा किसी विशिष्ट मामले की जांच करने तथा उस पर प्रतिवेदन देने के लिए अलग से समिति का गठन किया जा सकता है । इस प्रकार की समिति संयुक्त भी हो सकती है । और जब संयुक्त संसदीय समिति का गठन होता है, तब इसमें 45 सदस्य (30 लोकसभा के तथा 15 राज्यसभा के) सदस्य और अलग समिति के गठन पर इसमें संबंधित सदन के 30 सदस्य होते हैं। इस प्रकार की समिति का गठन सर्वप्रथम  1951 में मुद्गल के आचरण की जांच करने के लिए गठित की गयी थी। इस प्रकार गठित अन्य समितियों में से कुछ है- रेलवे अभिसमय समिति, लाभ के दो पदों संबंधी संयुक्त संसदीय समिति, बोफोर्स मामले पर संयुक्त संसदीय समिति तथा प्रतिभूति घोटाला जांच संयुक्त संसदीय समिति। 

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