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संसद सदस्य की योग्यता

  • संविधान के अनुच्छेद 84 द्वारा संसद की सदस्यता के लिए निम्नलिखित योग्यता किसी व्यक्ति में अपेक्षित है-
  • वह भारत का नागरिक हो,
  • वह निर्वाचन आयोग द्वारा इस निर्मित प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर हस्ताक्षर करता है,
  • उसे राज्यसभा की दशा में 30 वर्ष कम तथा लोकसभा की स्थिति में 25 वर्ष से कम आयु  का नही होनी चाहिए।

उसके पास ऐसी कोई अन्य अर्हता हो, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा विहित की गई है। संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 बनाकर निम्नलिखित अर्हता नियत की है-

  • राज्यसभा की सदस्यता के लिए- राज्यसभा में किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के प्रतिनिधित्व के रूप में वह व्यक्ति चुना जाएगा, जो उस राज्य या राज्यक्षेत्र के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का निर्वाचक हो, लेकिन इस प्रावधान की भावना का राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा उलंघन किया जाता रहा है क्योंकि किसी राज्य संघ राज्य क्षेत्र से राज्यसभा का प्रतिनिधि चुने जाने के लिए राजनीतिक दल के सदस्य उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के किसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचक बन जाते है, जबकि उससे पहले वे उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के किसी भी निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचक नहीं होते । ऐसे नेताओं को भ्रष्टाचार का दोषी माना जाना चाहिए तथा उन्हे सदैव के लिए संसद की सदस्यता के अयोग्य कर देना चाहिए। निवर्तमान चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने इस सम्बन्ध में कदम उठाये थे।
  • लोकसभा की सदस्यता के लिए- लोकसभा की सदस्यता के लिए यह अर्हता निश्चित की गयी है कि अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित स्थान की दशा में चुनाव में खड़े होने वाले व्यक्ति के लिए उसी जाति या जनजाति का होना चाहिए तथा सिक्किम राज्य के स्थान/स्थानों की स्थिति में चुनाव में खड़े होने वाले व्यक्तियों को सिक्किम का निर्वाचक होना चाहिए।

 

संसद सदस्य के लिए योग्यता

अनुच्छेद 102 के अनुसार कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निम्नलिखित आधार पर अयोग्य होगा-

  • यदि वह भारत सरकार के या कियी राज्य की सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है,  लेकिन यदि संसद ने विधि द्वारा किसी पद को धारण करने की छूट दी है, तो उस पद को धारण करने वाला व्यक्ति संसद की सदस्यता के  लिए अयोग्य नही होगा।
  • यदि वह सक्षम न्यायालय द्वारा विकृतचित्त घोषित कर दिया गया है,
  • यदि वह अमुक्त दिवालिया है,
  • यदि वह भारत का नागरिक नही है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या यदि वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा धारण करता है,
  • यदि वह दल-बदल कानून (संविधान की दसवीं अनुसूची) के आधीन संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया गया है,
  • यदि वह संसद द्वारा बनाई गयी किसी विधि के आधीन आयोग्य घोषित कर दिया गया है, संसद ने 1951 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 बनाकर निम्नलिखित व्यक्तियों को संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया हैः
  • जो कुछ अपराधों के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी निर्णीत किया गया हो,
  • जो भ्रष्ट आचरण का दोषी ठहराया गया हो,
  • जो व्यक्ति भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण करते हुए भ्रष्टाचार के कारण या राज्य के प्रति अभक्ति के कारण पदच्युत कर दिया गया हो,
  • जो सरकार के साथ अपने व्यापार या कारोबार के अनुक्रम में सरकार को माल प्रदान करने के लिए या सरकार द्वारा किये जाने वाले किसी कार्य के लिए संविदा लिया हो,
  • जो व्यक्ति किसी ऐसी कम्पनी या निगम का (सहकारी सोसाइटी से भिन्न) जिसकी पूँजी में सरकार का 25 प्रतिशत या अधिक हिस्सा है, प्रबंध अभिकर्ता या सचिव है,
  • जो व्यक्ति अपने चुनाव व्यय का लेखा दाखिल करने में असफल रहा है।

संसद सदस्यों की आयोग्यता से सम्बन्धित प्रश्न पर विनिश्चय

जब संसद सदस्यों की अयोग्यता से सम्बंधित प्रश्न उत्पन्न होता है, तब उसका विनिश्चय राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। इस संबन्ध में राष्ट्रपति का निर्णय अंतिम होता है, तथा इस निर्णय के विरूद्ध न्यायालय में याचिका या अपील दाखिल नहीं की जा सकती । राष्ट्रपति संसद के सदस्यों की अयोग्यता से संबन्धित प्रश्न का निर्णय करते समय चुनाव आयोग की राय लेता है और सी के अनुसार कार्य करता है।

लेकिन संसद सदस्य दल-बदल के आधार पर संसद की सदस्यता के लिए अयोग्यता का निर्णय लोकसभा या राज्यसभा के सभापति, जैसी भी स्थिति हो, द्वारा किया जाता है।

संसद के सदस्यों के लिए आचार संहिता

25 नवम्बर 2001 को सम्पन्न सर्वदलीय राष्ट्रीय सम्मेलन में संसद एवं विधान सभाओं की मर्यादा बनाये रखने तथा इन सदनों में अनुशासनहीनता को रोकने के उद्देश्य से एक आचार संहिता का निर्माण किया गया है। इस आचार संहिता के प्रमुख बिन्दु निम्नवत् हैं-

  • प्रश्नकाल के दौरान संदन में शान्ति बनाये रखना,
  • सदन के बीच में आने से बचने की कोशिश की जाए।
  • यदि कोई सदस्य किसी सरकारी दस्तावेज, कागज या रिपोर्ट के किसी गोपनीय मुद्दे का हवाला देना चाहता हो, तो उसे पहले इसकी सूचना अध्यक्ष को देनी चाहिए, ताकि वह इस पर उचित फैसला कर सके।
  • प्रत्येक सदस्य को अपनी सम्पत्ति की घोषणा करनी चाहिए या किसी मामले से  यदि वह सम्बद्ध है, तो उसे उसपर चर्चा से पहले उन्हें सदन को यह बताना चाहिए।
  • राष्ट्रपति या राज्यपाल  के अभिभाषण के समय सदन में एकजुटता, सम्मान और मर्यादा का परिचय दें।
  • यदि किसी का व्यक्तिगत हित सार्वजनिक हित के आड़े आता है, तो उसे सार्वजनिक हित को तो तरजीह देनी चाहिए।
  • सदस्यों को अपने कर्तव्यों का सदैव ध्यान रखना चाहिए।
  • कोई सदस्य जब किसी मसले पर बोल रहा हो, तो अन्य सदस्यों को शोर-शराबा करके उसकी बात में व्यवधान नहीं पैदा करना चाहिए। किसी सदस्य को बोलने के समय टोका-टाकी करने से अन्य सदस्यों को बचने का प्रयास करना चाहिए।
  • सदन में किसी तरह की नारेबाजी नहीं की जानी चाहिए।
  • विरोध व्यक्त करने के लिए सदन में कोई दस्तावेज नहीं फाड़ा जाना चाहिए।
  • संसद विधानमंडलों अथवा केन्द्रशासित प्रदेशों की विधान सभाओं के भीतर या उसको परिसर में कहीं पर भी सत्याग्रह अथवा धरने पर नहीं बैठना चाहिए।
  • सदनों में सेल्यूर फोन अथवा पेजर लेकर नहीं जाना चाहिए।
  • बिना स्पीकर को नोटिस दिये किसी के खिलाफ किसी तरह का आरोप अथवा उसकी प्रतिष्ठा धूमिल करने वाली कोई बात नहीं कही जानी चाहिए।
  • चर्चा के दौरान ऐसे किसी मामले अथवा तथ्य का जिक्र नहीं करना चाहिए, जो न्यायालय में लंबित हो।
  • पीठ की बिना पूर्व अनुमति के सदस्यों को सदन में कोई बयान नहीं पढ़ना चाहिए ।
  • स्पीकर की व्यवस्था पर न तो कोई सवाल उठाया जाना चाहिए, और न किसी तरह की टिप्पड़ी की जानी चाहिए।
  • अध्यक्ष द्वारा अनुमति दिये जाने के पूर्व सदस्यों को किसी मसले पर नहीं बोलना चाहिए।
  • सदन की किसी भी समिति के साक्ष्यों को किसी सदस्य अथवा अन्य व्यक्ति द्वारा तब तक नही छापा जाना चाहिए जब तक वे सदन में पेश न कर दिए गए हों।
  • सदन की समितियों को किसी मामले के तथ्यों को जानने के लिए, तब तक यात्रा पर नहीं जाना चाहिए जब तक की वह बेहद जरूरी न हो।
  • स्थानीय अधिकारियों से चर्चा से पूर्व तो ऐसे टूर कतई नही आयोजित किए जाएं ।
  • किसी संगठन से सम्बद्व सदस्यों के लिए सरकार के साथ किसी तरह का व्यापार न करें।
  • सदस्य को उपलब्ध कराये गये सरकारी आवास को यह किराए आदि पर न देकर उससे किसी तरह का आर्थिक लाभ अर्जित न करें।
  • ऐसे किसी मामले में जिसमें सदस्य के हित परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हों किसी सरकारी अधिकारी अथवा मंत्री पर दबाव डालने का प्रयास न किया जाए।
  • सदस्यों को अपने किसी रिश्तेदार, परिचित की नौकरी या व्यापारिक सुविधा के लिए किसी सरकारी अधिकारी को पत्र नहीं लिखना चाहिए, तथा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में रूचि नहीं लेनी चाहिए।
  • सदन में किसी प्रकार का बैज लगाकर न आएं ।
  • किसी भी तरह का हथियार लेकर सदन में न आएं।
  • सदन में कोई झंडा, निशान या किसी तरह की अन्य वस्तु का प्रदर्शन न करें।
  • ऐसा कोई साहित्य, प्रश्नावली, परचा प्रेस विज्ञाप्ति संसद या विधानमण्डल के परिसर में वितरित नहीं करें, जिसका सदन के कामकाज से मतलब न हो।
  • इस आचार संहिता का उलंघन करने पर सम्बन्धित सदस्य के खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाही की जा सकती है, इसमें उसको डांट-फटकार, निन्दा, सदन से बाहर करना आदि सम्भव है, इसके अलावा उनका सदन से स्वतः निलम्बन भी सम्भव है।

 

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