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मेवाड़

गुहलौत राजवंश के अन्तर्गत मेवाड़ एक बहुत प्राचीन राज्य था, जिसकी राजधानी नागदा थी। दिल्ली सुल्तानों के आक्रमण के पश्चात नई राजधानी चित्तौड़ हो गई। 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ पर अधिकार करलिया। किन्तु खिलजी वंश के पतनोपरान्त राजनीतिक अव्यवस्था का लाभ उठाकर सिसोदिया वंशीय हम्मीर देव ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया और सिसोदिया वंश की नींव डाली

हम्मीरदेव

  • हम्मीर का सुदीर्घ शासनकाल मेवाड़ के इतिहास में एक नवीन युग का अरूणोदय था। 1314ई. में उसने पुनः मेवाड़ राज्य की स्थापना की। यद्यपि वह अलाउद्दीन के समय में चित्तौड़ को नहीं जीत सका था। परन्तु मुहम्मद बिन तुगलक के समय में स्वतंत्र रूप से चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।

मोकल (1421-1433 ई.)

  • मोकल के शासनकाल में मेवाड़ न केवल एक महान शक्ति बन गया अपितु अपीन बौद्धिक एवं कलात्मक उपलब्धियों के लिए भी प्रसिद्ध हो गया।
  • मोकल ने अनेक मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया, एकलिंग मंदिर के चारों ओर पर परकोटे का निर्माण कराया, माना, फन्ना एवं विशाल नामक प्रसिद्ध शिल्पकारों एवं कविराज वानी विलास तथा योगेश्वर नामक दो विद्वानों को राजकीय संरक्षण प्रदान किया

राणा कुम्भा (1433-1468 ई.)

  • 1433 ई. में मोकल का पुत्र कुम्भा उसका उत्तराधिकारी बना। उसके सिंहासनारूढ़ होने के साथ मध्यकालीन मेवाड़ के महान युग का सूत्रपात होता है।
  • अपने आन्तरिक प्रतिद्वन्द्वियों पर सावधानी से विजय प्राप्त करके अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के पश्चात कुम्भा ने अपना ध्यान राजस्थान के छोटे-छोटे राज्यों जैसे-बूंदी, कोटा, डूँगरपुर, सारंगपुर, नागौर आदि के राजपूत शासकों को मेवाड़ की अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।
  • राणा कुम्भा की सर्वाधिक गौरवपूर्ण सफलता मालवा के महमूद खलजी के विरूद्ध विजय थी जिसने मेवाड़ के राजनीतिक अपराधियों को अपने राज्य में शरण प्रदान की थी।
  • राणा कुम्भा ने अपने पिता मोकल के हत्यारे महपा पनवार को, जिसने भागकर मालवा में शरण ली थी को महमूद से समर्पित करने की मांग की। महमूद द्वारा हत्यारे को समर्पित करने से इन्कार करने पर राणा कुम्भा ने युद्ध की घोषणा कर दी और महमूद खलजी को पराजित करके युद्ध बन्दी के रूप में उसे चित्तौड़ ले आया।
  • इस विजय (मालवा) की स्मृति में कुम्भा ने चित्तौड़ में (1448 ई.) कीर्ति स्तंभ या विजय स्तंभ का निर्माण करवाया।
  • राणा कुम्भा की शान्तिपूर्ण उपलब्धियां भी कम महत्वपूर्ण नहीं थी। वह ज्ञान की विभिन्न विधाओं जैसे गणित, तर्कशास्त्र, धर्मशास्त्र, साहित्य, संगीत में प्रवीण था। उसने जयदेव के गीत गोविंद पर रसिक प्रिया नामक टीका लिखी
  • वह एकलिंग महात्म्य के अंतिम अध्याय का भी रचयिता था। वह एक महान संगीतकार और कुशल वीणावादक था। उसने संगीत शास्त्र पर संगीतराज, संगीत मीमांसा, संगीत रत्नाकर, सुप्रबन्ध आदि ग्रन्थ लिखे। जो संगीत के क्षेत्र में उसकी प्रवीणता के प्रमाण हैं।
  • उसके शासन काल में अनेक मंदिरों, तालाबों, मठों, सरायें आदि का भी निर्माण कराया गया। 

राणा सांगा (1508-1528 ई.)

  • यह रायमल का पुत्र था और उसका वास्तविक नाम संग्रामसिंह था। उसके शासनकाल में मेवाड़ का गौरव अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया था। वह एक यशस्वी योद्धा, कुशल सेनानी एवं एक महान राजनीतिज्ञ था।
  • उसने गुजरात तथा मालवा को पराजित किया। 1517-18 में घटोली के युद्ध में उसने दिल्ली शासक इब्राहीम लोदी को पराजित किया।
  • 1527 में मुगल बादशाह बाबर द्वारा खानवा के युद्ध में राणा सांगा पराजित हुआ। 1528 में एक षड्यंत्रकारी ने जहर देकर उसकी हत्या कर दी।

मारवाड़ (आधुनिक जोधपुर)

  • मारवाड़ पर राठौर वंश का शासन था जो प्राचीन राष्ट्रकूट या कन्नौज के गहड़वाल वंश से संबंधित थे।

चुन्द

  • दिल्ली सल्तनत की पतनावस्था का लाभ उठाकर चुंद ने (1394 ई.) आधुनिक मारवाड़ की नींव डाली।
  • चुन्द के पुत्र जोधा ने (1459 ई.) जोधपुर नगर बसाया।

मालदेव

मालदेव के शासन काल में मारवाड़ अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। मालदेव शेरशाह सूरी का प्रबल शत्रु था।

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