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बहमनी साम्राज्य

दक्कन में अमीरान-ए-सदह के विद्रोह के परिणाम स्वरूप मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के अंतिम दिनों में बहमनी साम्राज्य की स्थापना हुई।

जफर खाँ (1347-1358 ई.) 

जफर खाँ नामक सरदार अलाउद्दीन हसन बहमन शाह की उपाधि धारण करके 1347 ई. में सिहासनारूढ़ हुआ और बहमनी साम्राज्य की नींव डाली।

उसने गुलबर्गा को अपने नव-संस्थापित साम्राज्य की राजधानी बनाया तथा उसका नाम अहसानाबाद रखा।

अपने साम्राज्य के शासन के लिए उसने इसे चार तरफों अथवा प्रान्तों में विभाजित कर दिया-गुलबर्गा, दौलताबाद, बरार और बीदर। प्रत्येक प्रान्त एक शासक के अधीन था। गुलबर्गा का तरफ सबसे महत्वपूर्ण था। इसमें बीजापुर सम्मिलित था।

दक्षिण के हिन्दू शासकों को उसने अपने अधीन किया तथा अपने अनुयायियों को पद और जागीर प्रदान करेन की नयी प्रथा प्रारंभ की। उसने हिन्दुओं से जजिया न लेने का आदेश दिया।

अपने शासन के अंतिम दिनों में बहमनशाह ने दाबुल पर अधिकार किया जो पश्चिमी समुद्र तट पर बहमनी साम्राज्य का सबसे महत्वपूर्ण बन्दरगाह था।

कहा जाता है कि वह अपने को अर्द्धपौरागणित ईरानी योद्धा बहमनशाह का वंशज मानता है किन्तु लोक श्रुतियों के अनुसार बहमनशाह उसके ब्राम्हण आश्रयदाता के प्रति आदर का प्रतीक था।

मुहम्मदशाह प्रथम

उसने शासन का कुशल संगठन किया। उसके काल की मुख्य घटना विजयनगर तथा वारंगल से युद्ध तथा विजय थी

इसी काल में बारूद का प्रयोग पहली बार हुआ जिससे रक्षा संगठन में एक नई क्रांति पैदा हुई। सेना के सेनानायक को अमीर-ए-उमरा कहा जाता था और उसके नीचे बारबरदान होते थे।

ताजुद्दीन फिरोजशाह (1397-1422 ई.)

यह बहमनी वंश के सर्वाधिक विद्वान सुल्तानों में से एक था। उसने एशियाई विदेशियों या अफाकियों को बहमनी साम्राज्य में आकर स्थायी रूप से बसने के लिए प्रोत्साहित किया।

जिसके परिणामस्वरूप बहमनी अमीर वर्ग अफीकी और दक्कनी दो गुटों में विभाजित हो गया। यह दलबंदी बहमनी साम्राज्य के पतन और विघटन का मुख्य कारण सिद्ध हुआ।

फिरोजशाह बहमनी का सबसे अच्छा कार्य प्रशासन में बड़े स्तर पर हिन्दुओं को सम्मिलित करना था, कहा जाता है इसी समय से दक्कनी ब्राम्हण प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने लगे। उसने दौलताबाद में एक बेधशाला बनवाई।

सुल्तान ताजुद्दीन फिरोज द्वारा पश्चिम एशियाई देशों जैसे-ईराक, ईरान एवं अरब देशों से विदेशी मुसलमानों को भी आमंत्रित किया और उन्हें प्रशासन में उच्च पद दिया।

उसने अकबर के फतेहपुर सीकरी की भांति भीमा नदी के किनारे फिरोजाबाद नगर की नींव डाली। गुलबर्गा युग के सुल्तानों में यह अंतिम सुल्तान था।

इसका शासन काल गुलबर्गा के संत गेसूदराज के साथ संघर्ष के कारण दूषित हो गया

शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम (1422-1446 ई.)

उसने सर्वप्रथम गुलबर्गा के स्थान पर बीदर को अपनी राजधनी बनाई। बहमनी साम्राज्य की इस नवीन राजधानी को मुहम्मदाबाद नाम दिया गया।

अहमद के शासन काल में इस दलगत राजनीति (दक्कनी एवं अफाकी) ने साम्प्रदायिक रूप ले लिया क्योंकि सुल्तान ने ईरान से शिया संतों को भी आमंत्रित किया। खुरासान में स्थित इस्फरायनी का कवि शेख आजरी उसके दरबार में आया था।

उसका शासन काल न्याय एवं धर्म निष्ठता के लिए प्रख्यात था। अतः उसे इतिहास में अहमदशाहवली या संत अहमद भी कहा जाता है

अलाउद्दीन अहमद द्वितीय (1436-1458 ई.)

सुल्तान अलाउद्दीन अहमद अपने पिता अहमद प्रथम की भांति योग्य एवं संकल्प युक्त शासक नहीं था। उसके शासन काल में अफाकियों के आगमन पहले से कहीं अधिक बढ़ गये।

इसी के काल में ईरानी (अफाकी) निवासी महमूद गवां का उत्कर्ष हुआ। वह पहले एक व्यापारी था। उसे व्यापारियों के प्रमुख (मलिक उत् तुज्जार) की उपाधि मिली।

इसी काल में उड़ीसा के गजपति नरेशों की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा का सूत्रपात हुआ और दक्षिण की ओर उनके विस्तारवाद के परिणामस्वरूप बहमनी एवं गजपति सेनाओं से कई बार युद्ध हुआ।

फरिश्ता एवं बुरहाने-मआसिर के लेखक से हमें ज्ञात होता है कि उसने ‘‘मस्जिदों, सार्वजनिक विद्यालयों एवं दातव्य संस्थाओं की स्थापना की, अपनी राजधानी बीदर में एक अस्पताल का निर्माण भी करवाया। उसने वहां दो सुन्दर गांव धार्मिक दान के रूप में दिये थे ताकि इन गांवों के राजस्व को पूर्णतः दवाओं एवं पेय पदार्थों की आपूर्ति में लगाया जा सके।’’

हुमायूं

अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र हुमायूं शासक बना वह इतना निष्ठुर था कि उसे ‘जालिम’ की उपाधि दी गयी थी। इसे ‘दक्कन का नीरो’ भी कहा जाता था।

उसने महमूद गवां को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

हुमायूं की मृत्यु के समय उसक पुत्र निजामुद्दीन अहमद की आयु केवल आठ वर्ष की थी। इस कारण हुमायूं ने अपने जीवनकाल में ही एक प्रशासनिक परिषद की स्थापना की। जिसमें राजमाता, महमूद गवां सहित चार व्यक्ति थे।

मुहम्मद तृतीय (1463-1482 ई.)

  • राज्यारोहण के समय मुहम्मद तृतीय की आयु केवल नौ वर्ष की थी। महमूद गवां इसका प्रधानमंत्री था।
  • उसके शासन काल में ख्वाजा जहाँ की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात महमूद गवां को ख्वाजा जहाँ की उपाधि प्रदान की गई। महमूद गवां ने अपरमित राजभक्ति से बहमनी राज्य की सेवा की तथा कुशल कूटनीति व सैनिक नेतृत्व से उसे ऊँचाईयों पर पहुंचा दिया।
  • मुहम्मद तृतीय के शासन काल में रूसी यात्री निकितिन बहमनी राज्य की यात्रा की थी। उसने बहमनी शासन में जनसाधारण की दशा का वर्णन अपने लेख में किया है।

महमूद गवां की उपलब्धियां 

  • प्रशासनिक परिषद के सदस्य एवं सुल्तान हुमायूं के शासन काल में प्रधानमंत्री के रूप में महमूद गवां बहमनी साम्राज्य की राजनीति के समस्याओं को भलीभांति समझ चुका था।
  • महमूद गवां का सबसे बड़ा योगदान यह है कि बहमनी साम्राज्य की समस्त राजनीतिक समस्याओं का निराकरण कर उसे बहमनी साम्राज्य को उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया।
  • सबसे पहले उसने मालवा पर अधिकार किया। उसकी सबसे महत्वपूर्ण सैनिक सफलता गोवा पर अधिकार प्राप्त करना था। गोवा पश्चिमी समुद्री तट का सर्वाधिक प्रसिद्ध बंदरगाह था। यह विजयनगर का संरक्षित राज्य (क्षेत्र) था।
  • महमूद गवां ने नवविजित प्रदेशों सहित भूतपूर्व चार तरफों (प्रान्तों) को अब आठ तरफो (प्रान्तों) में विभाजित किया-‘बरार’ को गाविल और माहुर, ‘गुलबर्गा’ को बीजापुर एवं गुलबर्गा, दौलताबाद को दौलताबाद एवं जुन्नार तथा ‘तेलंगाना’ को राजमुद्री और वारंगल के रूप में विभाजित किया।
  • उसने प्रत्येक प्रान्तों से थोड़ी-थोड़ी जमीन लेकर उसे खालसा भूमि में परिवर्तित किया। इसके अतिरिक्त प्रान्तीय गवर्नरों के सैनिक अधिकारों में भी कटौती की अब पूरे प्रान्त में केवल एक किले को ही प्रत्येक गवर्नर के अधीन रहने दिया गया।
  • महमूद गवां ने भूमि की व्यवस्थित पैमाइश, ग्रामों के सीमा-निर्धारण और लगान-निर्धारण की जांच कराई।
  • महमूद गवां बड़ा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सुरूचि सम्पन्न व्यक्ति था। वह विद्वानों का महान संरक्षक था। उसने बीदर में एक महाविद्यालय की स्थापना की।
  • महमूद गवां ने अपनी राजनीतिक गतिविधियों को न केवल बहमनी साम्राज्य तक सीमित किया अपितु उसके बाहर ईरान, ईराक, मिस्र और टर्की के सुल्तानों के साथ पत्र व्यवहार भी किया।
  • किन्तु इस महान व्यक्ति का अन्त दुखद रहा। 1481-82 ई. में मुहम्मद तृतीय ने इसे राजद्रोह के आरोप फांसी (मृत्यु दण्ड) दे दी। इसका मुख्य कारण अफाकियों एवं दक्कनियों के मध्य वैमनस्यता थी।
  • मुहम्मद तृतीय के शासन काल में यह बीजापुर का तफरदार (गवर्नर) था।

बहमनी साम्राज्य का पतन

  • महमूद गवां की मृत्यु के दो दशक के भीतर बहमनी साम्राज्य का तीव्र गति से पतन प्रारंभ हो गया।
  • शिहाबुद्दीन महमूदशाह के शासन काल (1482-1518 ई.) में प्रान्तीय तरफदारों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित करना प्रारंभ कर दिया और पन्द्रहवी शताब्दी के अन्त तक बहमनी साम्राज्य खण्डित हो गया।
  • महमूद शाह और उसके उत्तराधिकारी एक तुर्की सरदार (विदेशी) अमीर अली बरीद के हाथों की कठपुतली मात्र थे। जो इन सुल्तानों के शासन काल में साम्राज्य का वजीर था।
  • इस वंश का अंतिम सुल्तान कलीमुल्लाशाह था। 1527 ई. में उसकी मृत्यु के बाद बहमनी साम्राज्य का अन्त हो गया।
  • सुल्तान शिहाबुद्दीन महमूद कासिम बरीद को वजीर या प्रधानमंत्री नियुक्त करने के बाद बहमनी साम्राज्य का विघटन हो गया और उसके स्थान पर पांच नवीन राजवंशों का उदय हुआ। इनके नाम इनके संस्थापकों की उपाधियों पर थे-(1) बीदर का बरीदशाही (2) बरार का इमादशाही (3) अहमद नगर का निजामशाही (4) बीजापुर का आदिलशाही और (5) गोलकुण्डा का कुतुबशाही।
  • इमादशाही और निजामशाही राजवंशों के संस्थापक हिन्दू से इस्लाम धर्म स्वीकार करने वाले दक्कनी लोग थे।

बरार

  • सबसे पहले बहमनी साम्राज्य से अलग होने वाला क्षेत्र बरार था, जिसे फतहउल्ला इमादशाह (हिन्दू से मुसलमान) ने 1484 ई. स्वतंत्र घोषित करके इमादशाही वंश की स्थापना की। 1574 ई. बरार को अहमद नगर ने हड़प लिया।

बीजापुर

  • बीजापुर के सूबेदार यूसुफ आदिल खां ने 1489-90 ई. में बीजापुर को स्वतंत्र घोषित करके आदिलशाही वंश की स्थापना की। आदिलशाही सुल्तान स्वयं को तुर्की के आटोमन राजवंश का वंशज मानते हैं।  
  • आदिल खां धार्मिक रूप से सहिष्णु था, परन्तु शिया धर्म को तरजीह दी। वह कला और साहित्य का भी महान संरक्षक था।

इब्राहीम आदिलशाह (1534-1558 ई.)

  • इब्राहीम बीजापुर का पहला सुल्तान था जिसने शाह की उपाधि धारण की और फारसी के स्थान पर हिन्दवी (दक्कनी-उर्दू) को राजभाषा बनाया और हिन्दुओं को अनेक पदों पर नियुक्त किया।

अली आदिलशाह (1558-1580 ई.)

  • इब्राहीम के बाद उसका पुत्र अली आदिल शाह गद्दी पर बैठा। उसका विवाह अहमदनगर के हुसैन निजाम शाह की पुत्री चांदबीबी से हुआ था। इसे सूफी के रूप में भी जाना जाता है।

इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय (1580-1627 ई.)

  • वह एक महान विद्या प्रेमी और विद्या संरक्षक था। उसकी प्रजा उसे उदार दृष्टिकोण के कारण जगत गुरू की उपाधि से सम्बोधित करती थी।
  • गरीबों की सहायता करने के कारण उसे ‘अबला बाबा’ अथवा ‘निर्धनों का मित्र’ कहा जाता था।
  • इस काल में सुल्तान की चाची चांदबीबी बीजापुर की वास्तविक शासिका रही।
  • इब्राहीम आदिलशाह ने हिन्दी गीत संग्रह 'किताब-ए-नौरस' की रचना की। उसी के शासनकाल में फरिश्ता ने तारीख-ए-फरिश्ता नामक प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ की रचना पूरी की।
  • इब्राहीम ने नौरसपुर नगर की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाई।
  • इब्राहीम का पुत्र मुहम्मद आदिलशाह उसका उत्तराधिकारी हुआ। मुहम्मद आदिलशाह गोल गुम्बद के नाम से विश्व प्रसिद्ध मकबरे में दफन है जो विश्व का एक स्थापत्यीय आश्चर्य माना जाता है।
  • 1686 ई. में बीजापुर का एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया जब उसे मुगल बादशाह औरंगजेब ने जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया

अहमदनगर

  • इस राज्य का संस्थापक मलिक अहमद था। 1490 ई. में उसने अपने को स्वतंत्र घोषित करके निजामशाही वंश की स्थापना की।
  • महमूद गवां को प्राण दण्ड देने के पश्चात मलिक अहमद को बहमनी साम्राज्य का वजीर नियुक्त किया गया था। उसने निजाममुलमुल्क की उपाधि धारण की
  • मलिक अहमद ने 1490 ई. में अहमदनगर की स्थापना की और जुन्नैर से वहां अपनी राजधानी स्थानांतरित की।

बुरहान निजामशाह

  • मलिक अहमद की मृत्यु के बाद उसका सात वर्षीय पुत्र बुरहान शासक बना। सौभाग्य से उसे मुकम्मल खां दक्किनी के रूप में एक योग्य प्रधानमंत्री प्राप्त हुआ।
  • अहमद नगर के सुल्तानों में बुरहान पहला शासक था जिसने निजामशाह की उपाधि को धारण किया।

हुसैन निजामशाह

  • उसके शासन काल को दक्कन के इतिहास में एक युगान्तकारी युग के रूप में स्वीकार किया जाता है।
  • 1562 ई. में बीजापुर के आदिलशाह, गोलकुण्डा के इब्राहीम कुतुबशाह और विजयनगर के रामराय की संयुक्त सेनाओं ने अहमदनगर पर आक्रमण किया। इस सैनिक मोर्चे का निर्माता विजयनगर का रामराय था। इन संयुक्त सेनाओं ने आमतौर पर अहमदनगर के निवासियों और विशेष रूप से मुसलमानों को बुरी तरह लूटा।
  • हुसैन निजाम शाह 1565 में विजयनगर के विरूद्ध मुस्लिम संघ में सम्मिलित था।

मुर्तजा निजामशाह (1565-1588 ई.)

  • यह हुसैन निजामशाह का उत्तराधिकारी था। इसके शासनकाल में मुगलों ने पहली बार अहमद नगर पर आक्रमण किया।

बुरहान (1591-1595 ई.)  

  • यह मुगल सम्राट अकबर के दरबार में बंधक था। इसे बीजापुर के सुल्तान इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय द्वारा पराजित होना पड़ा। बुरहान की दूसरी सबसे बड़ी विफलता यह थी कि वह पुर्तगालियों से चैल को पुनर्विजित नहीं कर सका।
  • ऐतिहासिक ग्रन्थों के संदर्भ में उसके शासन काल में बुरदान-ए-मआसिर नामक ऐतिहासिक ग्रन्थ की रचना हुई।

चांदबीबी

  • इसका विवाह बीजापुर के शासक अली आदिलशाह के साथ हुआ था। अपने पति की मृत्यु के पश्चात वह पुनः अहमदनगर वापस लौट आयी और अहमदनगर की राजनीति में बड़ी स्मरणीय भूमिका का निर्वाह किया।
  • बुरहान की मृत्यु के बाद उसका पुत्र इब्राहीम केवल चार माह तक ही शासन किया। इस काल में अहमदनगर की स्थिति अत्यंत विवाद ग्रस्त थी क्योंकि निजामशाही अमीर वर्ग के चार गुटों द्वारा चार दावेदारों ने गद्दी के लिए अपने दावे प्रस्तुत किये जिसमें एक का समर्थन मियाँ मंझू (दक्कनी) ने किया और दूसरे का पक्ष चांदबीबी ने लिया।
  • जब मियाँ मंझू ने अपने समर्थक की स्थिति संकटग्रस्त देखी तो उसने मुगल सम्राट अकबर के पुत्र मुराद को अपनी सहायता के लिए आमंत्रित किया। इस आमंत्रण के प्रत्युत्तर में मुराद ने अपनी सेनाओं सहित अहमद नगर की ओर आगे बढ़ा। चांदबीबी ने बहादुरी के साथ अहमदनगर के प्राचीर की रक्षा की। किन्तु अंत में उसे मुगलों से समझौता करना पड़ा तथा बरार क्षेत्र मुगलों को समर्पित कर दिया।

मलिक अम्बर

  • अहमदनगर की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष के नाटक के अगले दृश्य का नायक मलिक अम्बर था जो मूलतः एक अबीसीनियाई दास था जिसे तीन बार दासता से मुक्त किया जा चुका था और बाद में वह अहमदनगर का एक प्रमुख वजीर बन गया।
  • उसने मुर्तजा द्वितीय को सुल्तान घोषित किया और स्वयं अहमद नगर की कमान संभाली। उसने मुगलों के सम्मुख नतमस्तक न होने का संकल्प लिया था।
  • मलिक अम्बर अहमदनगर को केन्द्र बनाकर छापामार युद्ध प्रणाली के द्वारा मुगल प्रदेशों पर बार-बार आक्रमण किये। मुगलों के विरूद्ध उसका यह प्रतिशोध काफी लम्बे समय तक चलता रहा, किन्तु 1617 तथा 1621 ई. में वह खुर्रम के हाथों पराजित हुआ।
  • मलिक अम्बर ने दक्षिण में टोडरमल की भूमि व्यवस्था के आधार पर रैय्यतबाड़ी (जाब्ती प्रणाली) व्यवस्था लागू की तथा भूमि को ठेके (इजारा) पर देने की प्रथा को समाप्त कर दिया।
  • अन्त में 1633 ई. मुगल सम्राट शाहजहां ने अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।

 

गोलकुण्डा

  • गोलकुण्डा का मुस्लिम राज्य बारंगल के पुराने हिन्दू राज्य के खण्डहरों पर कायम हुआ।
  • गोलकुण्डा के कुतुबशाही वंश का संस्थापक कुलीशाह था। उसने 1512 या 1518 ई. में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की।

इब्राहीम (1550-1580)

  • इसका शासन काल गोलकुण्डा के इतिहास का एक अविस्मरणीय युग था। वह एक बड़ा सुसंस्कृत व्यक्ति, प्रसिद्ध भाषाविद् और अपने साम्राज्य के हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों में बड़ा लोकप्रिय था।
  • गोलकुण्डा के सुल्तानों में इब्राहीम पहला शासक था जिसने कुतुबशाह की उपाधि धारण किया।
  • वह दक्कनी राज्यों द्वारा विजयनगर के विरूद्ध गठित संयुक्त सैनिक मोर्चे में शामिल था।

मुहम्मद कुली (1580-1612)

  • यह हैदराबाद नगर का संस्थापक और दक्कनी उर्दू में लिखित प्रथम काव्य संग्रह या दीवान का लेखक था। उसने उर्दू और तेलुगू को समान रूप से संरक्षण प्रदान किया।

अब्दुल्ला

  • सुल्तान के अल्पायु होने के कारण उसकी सुयोग्य माता हयात बख्श बेगम ने शासन का संचालन किया। उसने अपने नाम पर अनेक ग्रामों सरायों आदि का निर्माण कराया।
  • 1687 ई. में औरंगजेब ने इस राज्य पर अधिकार कर उसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
  • गोलकुण्डा साहित्यकारों का बौद्धिक क्रीड़ा स्थल था। अकबर का समकालीन सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुबशाह साहित्य एवं स्थापत्य कला में विशेष रूचि रखता था। वह पहला व्यक्ति था जिसने काव्य में धर्म निरपेक्ष विषयों पर लेखनी चलाईं। उसे दक्कनी उर्दू काव्य का जन्मदाता माना जाता है।
  • कुतुबशाही साम्राज्य की प्रारंभिक राजधानी गोलकुण्डा हीरो का विश्व प्रसिद्ध बाजार तथा मछलीपट्टनम एक प्रसिद्ध बंदरगाह था।

बीदर (1526-27 ई.)

  • अमीर अली बरीद ने बीदर को स्वतंत्र घोषित करके बरीद शाही वंश की स्थापना की। इसे दक्कन की लोमड़ी कहा जाता है।
  • 1618-1619 ई. में इस राज्य को बीजापुर ने हड़प लिया।
  • इनमें इमादशाही (बरार) और निजामशाही (अहमदनगर) राजवंशों के संस्थापक हिन्दू से इस्लाम धर्म स्वीकार करने वाले दक्कनी लोग थे।
  • 1574 ई. में बरार को अहमदनगर ने तथा 1618-19 ई. में बीदर को बीजापुर ने हड़प लिया।

बहमनी साम्राज्य से स्वतंत्र होने वाले राज्य क्रमशः बरार, बीजापुर, अहमद नगर, गोलकुण्डा तथा बीदर हैं।

दक्कन के राज्यों से संबंधित प्रमुख सरदार

राज्य

प्रमुख सरदार

बहमनी

महमूद गवां

अहमद नगर

मलिकअम्बर, मुक्कल खां दक्किनी

गोलकुंडा 

मीर जुमला, मदन्ना, अखन्ना

बीजापुर

अफजल खां, मुरारी पंडित

विजयनगर

नरसा नायक, कुमार सवन्न, रदौला खां

 

                    दक्कन के प्रमुख राज्य, राजधानियाँ एवं संस्थापक

राज्य

राजधानी

राजवंश

   संस्थापक

1. खानदेश

बुरहानपुर

फारूकी वंश

मलिक रजा (1399 ई.)

2. बरार

एलिचपुर, गाविलगढ़

इमादशाही वंश

फतहउल्ला इमादशाह  (1484 ई.)

3. बीजापुर

नौरसपुर

आदिलशाही वंश

यूसुफ आदिल खाँ (1489-90 ई.)

4.अहमदनगर     

जुन्नार, अहमदनगर, खिरकी

निजामशाही वंश

मलिक अहमद (1490 ई.)

5.  गोलकुण्डा

गोलकुण्डा

कुतुबशाही वंश

कुलीशाह (1512 या 18 ई.)

6. बीदर

बीदर

बरीदशाही वंश

अमीर अली बरीद (1526-27 ई.)

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