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कला एवं संस्कृति

मौर्यात्तर काल में कला का आधार मुख्यतः बौद्ध धर्म ही रहा। कनिष्क के शासनकाल में कला के क्षेत्र में दो स्वतंत्र शैलियों का विकास हुआ-

  1.  गांधार कला,
  2.  मथुरा कला

गांधार कला

  • उत्तर-पश्चिम में गांधार में ई.पू. प्रथम शताब्दी के मध्य कला की एक शैली का विकास हुआ, जिसे ‘गांधार शैली’ कहते हैं।
  • इस शैली को इण्डो-ग्रीक शैली या ग्रीक बुद्धिष्ट शैली भी कहा जाता है। इसका सर्वाधिक विकास कुषाण काल में हुआ।
  • गांधार कला के अन्तर्गत मूर्तियों के शरीर की आकृति को सर्वथा यथार्थ दिखाने का प्रयत्न किया गया है।
  • इस कला की विषय वस्तु बौद्ध परंपरा से ली गई है, किन्तु निर्माण का ढंग यूनानी था।
  • गांधार कला के अन्तर्गत बुद्ध की धर्मचक्रमुद्रा, ध्यानमुद्रा, अभयमुद्रा और वरदमुद्रा आदि मुर्तियों का निर्माण किया गया।
  • गांधार मूर्तिकला शैली में बुद्ध की मूर्तियां यूनानी देवता अपोलो के समान बनाई गई हैं।
  • गांधार कला शैली की उत्पत्ति का स्रोत एशिया माइनर तथा हेलेनिस्टिक कला थी।

मथुरा कला

  • मौर्यात्तर काल में विकसित हुई मथुरा शैली के मूर्तिकारों ने विभिन्न देशी परंपराओं के सम्मिश्रण से इस कला को जन्म दिया, जिसमें बुद्ध की विलक्षण प्रतिमाएं बनीं। परन्तु इस जगह की ख्याति कनिष्क की सिरविहीन खड़ी मूर्ति को लेकर है।
  • जैन धर्मानुयायियों ने भी मथुरा में मथुरा मूर्तिकला की शैली को प्रश्रय दिया, जहां शिल्पियों ने महावीर की एक मूर्ति बनाई।
  • इस शैली में मुख्यतः लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया जाता था।
  • कुषाण शासकों के द्वारा भी इसका संरक्षण किया गया। अतः इस काल में इसका विकास हुआ।
  • मथुरा कला के अन्तर्गत बुद्ध की धर्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा, अभयमुद्रा, ध्यानमुद्रा, भू-स्पर्श मुद्रा आदि मूर्तियों का निर्माण किया गया।
  • मथुरा कला का भरहुत और सांची की कलाओं के साथ निकट का संबंध है।
  • सबसे प्रसिद्ध स्मृति ‘मनुस्मृति’ ई.पू. दूसरी सदी में लिखी गई।
  • अश्वघोष रचित सौंदरानंद, बुद्ध के सौतेले भाई आनंद के बौद्ध धर्म में दीक्षित होने के प्रसंग पर आधारित है।
  • अश्वघोष के नाटकों के कुछ भाग मध्य एशिया के एक विहार से प्राप्त हुए हैं।
  • रूद्रदामन का ‘गिरनार अभिलेख’ संस्कृत काव्य का अनूठा उदाहरण है।
  • कुषाण साम्राज्य के ‘सुई विहार’ के अभिलेख में भी संस्कृत का प्रयोग हुआ है।

 

गांधार कला एवं मथुरा कला में अन्तर

  • गांधार कला में गहरे नीले एवं काले पत्थर का प्रयोग हुआ है जबकि मथुरा कला में लाल पत्थर का
  • गांधार कला के संरक्षक शक एवं कुषाण दोनों थे जबकि मथुरा कला के संरक्षक कुषाण थे
  • गांधार कला यथार्थवादी है जबकि मथुरा कला आदर्शवादी ।
  • गांधार कला में मुख्यतः बौद्ध की मूर्तियां पाई जाती हैं जबकि मथुरा कला में बौद्ध, जैन तथा ब्राम्हण धर्म से संबंधित मूर्तियां मिलती हैं ।

मौर्यात्तर कालीन साहित्य

गाथासप्तशती

हाल 

कामसूत्र

वात्स्यायन

महाभाष्य

पतंजलि

सौंदरानंद, बुद्धचरित

अश्वघोष

चरक संहिता

चरक  

स्वप्नवासवदत्ता

भास

नाट्यशास्त्र

भरत मुनि    

चारूदत्ता

भास

मिलिंदपन्हो

नागसेन

उरूभंग

भास

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