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सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल

सिंधु घाटी सभ्यता के कुछ प्रमुख स्थल एवं उनकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

हड़प्पा

  • सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की खोज सर्वप्रथम 1921 ई. में हड़प्पा में की गई। हड़प्पा वर्तमान में रावी नदी के बायें तट पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में स्थित है।
  • स्टुअर्ट पिग्गट ने इसे ‘अर्द्ध-औद्योगिक नगर’ कहा है। यहां के निवासियों का एक बड़ा भाग व्यापार, तकनीकी उत्पाद और धर्म के कार्यां में संलग्न था। उन्होंने हड़प्पा व मोहनजोदड़ो को ‘एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वां राजधानी’ कहा था।
  • नगर की रक्षा के लिए पश्चिम की ओर एक दुर्ग का निर्माण किया गया था। यह दुर्ग उत्तर से दक्षिण की ओर 415 मीटर लंबा तथा पूर्व से पश्चिम की ओर 195 मीटर चौड़ा है। जिस टीले पर यह दुर्ग बना है उसे व्हीलर ने ‘माउंड ए-बी’ की संज्ञा प्रदान की है।

मोहनजोदड़ो

  • इसका सिंधी भाषा में अर्थ ‘मृतकों का टीला’ होताहै। यह सिंध (पाकिस्तान) के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है।
  • सर्वप्रथम इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की थी। मोहनजोदड़ो की शासन व्यवस्था राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक थी।
  • वृहद् स्नानागार, मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल है। इसके केन्द्रीय खुले प्रांगण के बीच जलकुंड या जलाशय बना है।
  • तांबे तथा टिन को मिलाकर हड़प्पावासी कांसे का निर्माण करते थे। मोहनजोदड़ो से कांसे की एक नर्तकी की मूर्ति पायी गई है, जो द्रवी मोम विधि से बनी है।

चन्हूदड़ो

  • यह सैंधव नगर मोहनजोदड़ो से 130 किमी. दक्षिण-पूर्व सिंध प्रांत (पाकिस्तान) में स्थित है। इसकी सर्वप्रथम खोज 1934 ई. में एन. गोपाल मजूमदार ने की थी तथा 1935 ई. में अर्नेस्ट मैके द्वारा यहां उत्खनन करवाया गया।
  • चन्हूदड़ो एकमात्र पुरास्थल है, जहां से वक्राकार ईंटें मिली हैं।
  • चन्हूदड़ो में किसी दुर्ग का अस्तित्व नहीं मिला है। चन्हूदड़ो से पूर्वोत्तर हड़प्पाकालीन संस्कृति (झूकर-झांकर) के अवशेष मिले हैं।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक औद्योगिक केंद्र था जहां मणिकारी, मुहर बनाने, भार-माप के बटखरे बननाने का काम होता था। अर्नेस्ट मैके ने यहां से मनका बनाने का कारखाना तथा भट्टी की खोज की है।

लोथल

सिन्धु सभ्यता नगर

राखीगढ़ी

  • हरियाणा के हिसार जिले में स्थित प्रमुख पुरातात्विक स्थल।
  • यहां से अन्नागार एवं रक्षा प्राचीर के साक्ष्य मिले हैं।
  • मई 2012 में ‘ग्लोबल हैरिटेज फंड’ ने इसे एशिया के दस ऐसे ‘विरासत-स्थलों’ की सूची में शामिल किया है, जिनके नष्ट हो जाने का खतरा है।

कालीबंगा

  • यह राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्घर नदी के बायें तट पर है। कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ ‘काले रंग की चूड़ियां’ हैं।
  • इसकी खोज 1951 में अमलानंद घोष द्वारा की गई तथा 1961 ई. में बी.बी. लाल और बी.के. थापर के निर्देशन में व्यापक खुदाई की गई।
  • यहां से जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है।
  • यहां के भवनों का निर्माण कच्ची ईंटों द्वारा हुआ था; यहां से अलंकृत ईंटों के साक्ष्य भी मिले हैं।
  • कालीबंगा में शवों के अंत्येष्टि संस्कार हेतु तीन विधियों-पूर्ण समाधीकरण, आंशिक समाधीकरण एवं दाह-संस्कार के प्रमाण मिले हैं।

बनावली

  • हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित इस पुरास्थल की खोज 1973 ई. में आर.एस. बिष्ट ने की थी।
  • इस स्थल से कालीबंगा की तरह हड़प्पा-पूर्व और हड़प्पाकालीन दोनों संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं।
  • यहां जल निकास प्रणाली का अभाव था
  • यहां से मिट्टी का बना हल मिला है। साथ ही अधिक मात्रा में जौ मिला है।

धौलावीरा

  • यह गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में स्थित है। इसकी खोज 1967 ई. में जे.पी. जोशी ने की थी। यहां से प्राप्त होने वाली सिंधु लिपि के 10 बड़े चिन्हों से निर्मित शिलालेख महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
  • धौलावीरा के निवासी जल संरक्षण की तकनीक से परिचित थे।
  • नगर तीन भागों में विभाजित था-दुर्गभाग, मध्य नगर तथा निचला नगर।
  • धौलावीरा से हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र खेल का मैदान (स्टेडियम) मिला है।

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