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Study Material



काल निर्धारण 

  • सैन्धव सभ्यता की तिथि को निर्धारित करना भारतीय पुरातत्व का विवादास्पद विषय है। यह सभ्यता आरम्भ से ही विकसित रूप में दिखाई पड़ती है तथा इसका पतन भी आकस्मिक प्रतीत होता है। ऐसी स्थिति में कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है।
  • इस क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रयास जान मार्शल का रहा है। उन्होंने 1931 में इस सभ्यता की तिथि लगभग 3250 ई.पू.से 2750 ई.पू. निर्धारित किया।
  • रेडियों कार्बन-14 (सी-14) जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा हड़प्पा सभ्यता की तिथि 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू. माना गया है। जो सर्वाधिक मान्य है।
  • नवीनतम आंकड़ों के अनुसार यह सभ्यता 400-500 वर्षां तक विद्यमान रही तथा 2200 ई.पू. से 2000 ई.पू. के मध्य यह अपने परिपक्व अवस्था में थी।

सिंधु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार

सिन्धु सभ्यता की  सीमा

  • वह उत्तर से दक्षिण लगभग 1100 किमी. तक तथा पूर्व से पश्चिम लगभग 1600 किमी. तक फैली हुई थी। अभी तक उत्खनन तथा अनुसंधान द्वारा करीब 2800 स्थल ज्ञात किये गए हैं। सिंधु घाटी सभ्यता अपने त्रिभुजाकार स्वरूप में थी जिसका क्षेत्रफल लगभग 13 लाख वर्ग किमी. है।
  • सर्वप्रथम चार्ल्स मैसन ने 1826 ई. में सैंधव सभ्यता का पता लगाया, जिसका सर्वप्रथम वर्णन उनके द्वारा 1842 में प्रकाशित पुस्तक में मिलता है। उसके बाद वर्ष 1921 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में पुरातत्तविद् दयाराम साहनी ने उत्खनन कर इसके प्रमुख नगर ‘हड़प्पा’ का पता लगाया। सर्वप्रथम हड़प्पा स्थल की खोज के कारण इसका नाम ‘हड़प्पा सभ्यता’ रखा गया।
  • सर जॉन मार्शल के दिशानिर्देश में ही राखालदास बनर्जी द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में की गई।
  • रेडियो कार्बन-14 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू. माना गया है। यह सभ्यता 400-500 वर्षां तक विद्यमान रही तथा 2200 ई.पू. से 2000 ई.पू. के मध्य तक यह अपनी परिपक्व अवस्था में थी। नवीन शोध के अनुसार यह सभ्यता लगभग 8,000 साल पुरानी है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माताओं के निर्धारण का महत्वपूर्ण स्रोत उत्खनन से प्राप्त मानव कंकाल है। सबसे अधिक कंकाल मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए हैं। इनके परीक्षण से यह निर्धारित हुआ है कि सिंधु सभ्यता में चार प्रजातियां निवास करती थीं-भूमध्यसागरीय, प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड, अल्पाइन तथा मंगोलॉयड।इनमें से सबसे ज्यादा भूमध्यसागरीय प्रजाति के लोग थे

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