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Study Material



सैन्धव सभ्यता के लोगों के जीवन के विभिन्न पक्ष 

सामाजिक जीवन

  • सिंधु घाटी से प्राप्त अवशेषों के आधार पर उस काल के सामाजिक जीवन का अनुमान लगाया जा सकता है। समाज की इकाई परंपरागत तौर पर परिवार थी। मातृदेवी की पूजा तथा मुहरों पर अंकित चित्र से यह पता चलता है कि हड़प्पा समाज संभवतः मातृसत्तात्मक था समाज में विद्वान (पुरोहित), योद्धा, व्यापारी और श्रमिक वर्ग की मौजूदगी थी। आवासों की संरचना समाज की आर्थिक विषमता को दर्शाती है।
  • हड़प्पावासी साज-सज्जा पर विशेष ध्यान देते थे। स्त्री एवं पुरूष दोनों आभूषण धारण करते थे यहां से प्रसाधन मंजूषा मिली है।चन्हूदड़ो से लिपस्टिक के साक्ष्य मिले है।
  • सिंधु सभ्यता के लोग सूती ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते थे।
  • इस सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे।
  • मनोरंजन के लिए चौपड़ और पासा खेलते थे।
  • अंत्येष्टि में पूर्ण समाधीकरण सर्वाधिक प्रचलित था, जबकि आंशिक समाधीकरण एवं दाह संस्कार का भी चलन था।
  • यहां के लोग गणित, धातु निर्माण, माप-तौल प्रणाली, ग्रह-नक्षत्र, मौसम विज्ञान इत्यादि की जानकारी रखते थे।
  • श्रमिकों की स्थिति का आकलन कर, व्हीलर ने दास प्रथा को स्वीकार किया है।
  • सैंधव सभ्यता के लोग शांतिप्रिय थे, वे युद्ध कम पसंद करते थे।

राजनीतिक जीवन

  • हड़प्पाइयों के राजनीतिक संगठन का कोई स्पष्ट आभास नहीं है। चूंकि, हड़प्पावासी वाणिज्य-व्यापार की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिए ऐसा माना जाता है कि शासन व्यवस्था में भी वणिक अथवा व्यापारी वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
  • हंटर के अनुसार, ‘‘मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक होकर जनतंत्रात्मक था।’’
  • व्हीलर के अनुसार, ‘‘सिंधु सभ्यता के लोगों का शासन मध्यवर्गीय जनतंत्रात्मक शासन था और उसमें धर्म की महत्ता थी।’’

आर्थिक जीवन

  • सैंधव सभ्यता की उन्नति का प्रमुख कारण उन्नत कृषि तथा व्यापार था। अतः इस काल की अर्थव्यवस्था सिंचित क्रषि अधिशेष, पशुपालन, विभिन्न दस्तकारियों में दक्षता और समृद्ध आंतरिक और विदेश व्यापार पर आधारित थी। सैंधव सभ्यता का व्यापार केवल सिंधु क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था अपितु मिस्र, मेसोपोटामिया और मध्य एशिया से भी व्यापार होता था।
  • सैंधव सभ्यता के प्रमुख बंदरगाह-लोथल, रंगपुर, सुरकोटदा, प्रभासपाटन आदि थे।
  • हड़प्पा सभ्यता में माप की दशमलव प्रणाली तथा माप-तौल की इकाई 16 के गुणक में होती थीं।
  • इस सभ्यता के लोग गेहूं, जौ, राई, मटर, तिल, सरसों, कपास आदि की खेती किया करते थे। सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को दिया जाता है। यूनानियों ने इसेसिंडन’ (सिडोन) नाम दिया है। ये लोग तरबूज, खरबूज, नारियल, अनार, नींबू, केला जैसे फलों से भी परिचित थे।
  • यहां के प्रमुख खाद्यान्न गेहूं तथा जौ थे।
  • कषि कार्य हेतु प्रस्तर (पत्थर) एवं कांसे के औजारों का प्रयोग किया जाता था। संभवतः ये लोग लकड़ी के हलों का प्रयोग करते थे। सैंधव नगरों में कषि पदार्थां की आपूर्ति ग्रामीण क्षेत्रों में होती थी, इसलिये अन्नागार नदियों  के किनारे बनाए गए थे।
  • कृषि उन्नति के साथ पशुपालन का भी विकास हुआ था। कृषि कार्यों एवं व्यापार तथा परिवहन में पशुओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। पशुओं में-कूबड़ वाले बैल, भेड़, बकरी, हाथी, भैंस, गाय, गधे, सुअर कुत्ते आदि के होने का अनुमान है। गुजरात के निवासी हाथी पालते थे।

धार्मिक जीवन

  • सैंधव निवासी ईश्वर की पूजा मानव, वृक्ष एवं पशु तीनों रूपों में करते थे। इस सभ्यता के लोग भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र आदि में विश्वास करते थे। ताबीजों के आधार पर जादू-टोने में विश्वास करने तथा कुछ जगहों की मुहरों (जैसे-चन्हूदड़ो में) पर बलि प्रथा के दृश्य अंकित होने के आधार पर बलि प्रथा का भी अनुमान लगाया जाता है।
  • ये लोग मातृदेवी, रूद्र देवता (पशुपति नाथ), लिंग-योनि आदि की पूजा करते थे। इसके अलावा सैंधववासी वृक्ष, पशु, सांप, पक्षी इत्यादि की भी पूजा करते थे विशाल स्नानागार का प्रयोग संभवतः धार्मिक अनुष्ठान तथा सूर्य पूजा में होता होगा। कालीबंगा से प्राप्त अग्निकुण्ड के साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि अग्नि तथा स्वास्तिक आदि की पूजा की जाती थी। स्वास्तिक और चक्र सूर्य पूजा के प्रतीक थे
  • सैंधववासी पुनर्जन्म में विश्वास करते थे, इसलिए मृत्यु के बाद दाह संस्कार के तीन तरीके प्रचलित थे-पूर्ण शवाधान, आंशिक शवाधान एवं कलश शवाधान।
  • इनके धार्मिक दृष्टिकोण का आधार इहलौकिक तथा व्यावहारिक अधिक था। मूर्ति पूजा का आरंभ संभवतः सैंधव सभ्यता से ही होता है।
  • हड़प्पा से प्राप्त एक मृण्मूर्ति के गर्भ से एक पौधा निकला दिखाया गया है, इसे उर्वरता की देवी का प्रतीक माना जाता है।

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