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विधि आयोग

यह एक ‘गैर-सांविधिक निकाय’ है जो विधि एवं न्याय मंत्रालय के करीबी समन्वय में तथा उसके सामान्य निर्देशों के अंतर्गत कार्य करता है।

भारत में प्रथम विधि आयोग लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में 1833 के चार्टर अधिनियम के अंतर्गत वर्ष 1834 में स्थापित किया गया था। इसके उपरांत वर्ष 1853, 1861 तथा 1879 में क्रमशः द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ विधि आयोगों का गठन किया गया। भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता, भारतीय संविदा अधिनियम, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, संपत्ति स्थानांतरण अधिनियम इत्यादि इन पहले चारों विधि आयोगों के ही परिणाम हैं।

स्वतंत्रता के बाद विरासत में मिले कानूनों में संशोधन और उन्हें अद्यतन करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1955 में अटॉर्नी जनरल श्री एम.सी. सीतलवाड़ की अध्यक्षता में स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि आयोग की स्थापना की। तब से अब तक तीन-वर्षीय कार्यकाल वाले कुल 20 विधि आयोग गठित किए गए, जिनमें से 20वें विधि आयोग की कार्यावधि 31 अगस्त, 2015 को समाप्त हुई। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा 21वें विधि आयोग का गठन किया गया है।

21वां विधि आयोग

  • 15 मार्च, 2016 को केंद्र सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. बलबीर सिंह चौहान को 21वें विधि आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
  • उल्लेखनीय है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 9 सितंबर, 2015 को 21वें विधि आयोग के गठन की स्वीकृति प्रदान की थी।
  • 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 1 सितंबर, 2015 से प्रभावी होगा तथा यह तीन वर्ष का (31 अगस्त, 2018 तक) होगा।
  • 21वें विधि आयोग के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में गुजरात उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि आर. त्रिपाठी (सेवाकाल 14 मार्च, 2016 से 31 अगस्त, 2018) को नियुक्त किया गया है।
  • आयोग के सदस्य सचिव एवं सचिव, भारत सरकार पी.के. मल्होत्रा हैं और डॉ. (श्रीमती) पवन शर्मा सचिव, विधि आयोग, भारत हैं जबकि डॉ. जी. नारायण राजू (सचिव, लेजिस्लेटिव) तथा पी.के. मल्होत्रा (विधि सचिव) ही इसके पदेन (Ex-Officio) सदस्य हैं। दो पूर्णकालिक सदस्यों की नियुक्ति अभी (अप्रैल, 2016 तक) नहीं की गई है।
  • इस आयोग को आवश्यकता होने पर तथा सरकार के अनुमोदन के आधार पर पांच अंशकालिक सदस्यों को नियुक्त करने का भी अधिकार है।

21वें विधि आयोग के प्रमुख विषय

  • पुराने कानूनों की समीक्षा करना/निरसित करना-
  • ऐसी विधियों की पहचान, जो अब आवश्यक या प्रासंगिक नहीं हैं और जिन्हें तत्काल निरसित किया जा सकता है।
  • उन विधियों की पहचान, जो आर्थिक उदारीकरण के वर्तमान माहौल से सुसंगत नहीं हैं तथा उनमें परिवर्तन की आवश्यकता है।
  • उन विधियों की पहचान, जिनमें अन्यथा परिवर्तन या संशोधन की आवश्यकता है और उनके संशोधन हेतु सुझाव देना।
  • विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के विशेषज्ञ समूहों द्वारा सुझाए गए संशोधनों पर व्यापक परिप्रेक्ष्य में विचार करना ताकि उनमें समन्वय स्थापित किया जा सके।
  • एक से अधिक मंत्रालयों/विभागों के कामकाज पर प्रभाव डालने वाले विधानों के संदर्भ में मंत्रालयों/विभागों की टिप्पणियों पर विचार करना।
  • विधि के क्षेत्र में नागरिकों की शिकायतों के त्वरित निपटान हेतु उपाय सुझाना।
  • कानून और निर्धनता-
  •  गरीबों को प्रभावित करने वाली विधियों की जांच तथा सामाजिक-आर्थिक विधानों की पश्चात-लेखा परीक्षा करना।
  • गरीबों की सेवा में विधि एवं न्याय प्रक्रिया का उपयोग करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करना।
  • न्यायिक प्रशासन की प्रणाली को समीक्षागत रखना, ताकि उनका समय की उचित मांगों के अनुरूप होना सुनिश्चित किया जा सके तथा उनसे विशेष रूप से ये प्राप्त हो-
  • विलंबों का उन्मूलन, बकाया मामलों का निपटाना और व्ययों में कमी, ताकि न्यायसंगत एवं उचित निर्णय संबंधी मुख्य सिद्धांत पर प्रभाव डाले बिना मुकदमों का शीघ्र और किफायती निपटारा किया जा सके।
  • विलंब का कारण बनने वाली जटिलताओं को कम एवं समाप्त करने के लिए प्रक्रियाओं का सरलीकरण।
  • न्याय प्रशासन से संबंधित सभी मानकों में सुधार।
  • वर्तमान कानूनों का परीक्षण- राज्य की नीति के निदेशक सिद्धांतों के प्रकाश में मौजूदा विधियों की जांच करना तथा उनमें सुधार करना, और साथ ही ऐसे कानून सुझाना जो निदेशक तत्त्वों के क्रियान्वयन हेतु आवश्यक हों और जिनसे संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
  • लैंगिक समानता को प्रोत्साहन देने की दृष्टि से मौजूदा विधियों की जांच करना और उनमें तत्संबंधी संशोधन सुझाना।
  • सार्वजनिक महत्त्व की केंद्रीय विधियों को सरल बनाने और उनमें असंगतियों, अस्पष्टताओं एवं अनियमितताओं को दूर करने हेतु उनमें सुधार करना।
  • संविधि पुस्तिका (Statute Book) को अद्यतन करने हेतु सरकार को उपाय सुझाना।
  • विधि और न्याय मंत्रालय (विधिक मामले विभाग) के माध्यम से सरकार द्वारा आयोग को विशेष रूप से संदर्भित किए गए विधि एवं न्यायिक प्रशासन से संबंधित किसी विषय पर विचार कर सरकार को अपने सुझाव देना।
  • किसी विदेशी देश को शोध उपलब्ध कराने हेतु विधि और न्याय मंत्रालय (विधिक मामले विभाग) के माध्यम से सरकार द्वारा आयोग को संदर्भित किए जाने वाले किसी अनुरोध पर विचार करना।
  • खाद्य सुरक्षा और बेरोजगारी पर वैश्वीकरण के प्रभाव की जांच करना तथा वंचित तबके के लोगों के हितों की रक्षा के लिए उपाय सुझाना।
  • उल्लेख्यनीय है कि विधि आयोग की रिपोर्टों पर संबंधित प्रशासनिक मंत्रालयों से सलाह के साथ विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा विचार किया जाता है और इन्हें समय-समय पर संसद को प्रस्तुत किया जाता है।
  • अब तक 20 विधि आयोगों द्वारा विभिन्न विषयों पर कुल 262 रिपोर्टें सौंपी जा चुकी हैं।

 

अब तक गठित विधि आयोग

क्रम

अवधि

अध्यक्ष

पहला विधि आयोग

1955-1958

एम.सी. सीतलवाड़

(भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल)

दूसरा विधि आयोग

1958-1961

न्यायमूर्ति टी.वी. वेंकटरामा अय्यर

तीसरा विधि आयोग

1961-1964

न्यायमूर्ति जे.एल. कपूर

चौथा विधि आयोग

1964-1968

न्यायमूर्ति जे.एल. कपूर

पांचवां विधि आयोग

1968-1971

श्री के.वी.के. सुंदरम

छठां विधि आयोग

1971-1974

न्यायमूर्ति पी.बी. गजेंद्रगडकर

सातवां विधि आयोग

1974-1977

न्यायमूर्ति पी.बी. गजेंद्रगडकर

आठवां विधि आयोग

1977-1979

न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना

नौवां विधि आयोग

1979-1980

न्यायमूर्ति पी.वी. दीक्षित

दसवां विधि आयोग

1981-1985

न्यायमूर्ति के.के. मैथ्यू

ग्यारहवां विधि आयोग

1985-1988

न्यायमूर्ति डी.ए. देसाई

बारहवां विधि आयोग

1988-1991

न्यायमूर्ति एम.पी. ठक्कर

तेरहवां विधि आयोग

1991-1994

न्यायमूर्ति के.एन. सिंह

चौदहवां विधि आयोग

1995-1997

न्यायमूर्ति के. जयचंद्र रेड्डी

पंद्रहवां विधि आयोग

1997-2000

न्यायमूर्ति बी.पी. जीवन रेड्डी

सोलहवां विधि आयोग

2000-2001

न्यायमूर्ति बी.पी. जीवन रेड्डी

 

2002-2003

न्यायमूर्ति एम. जगन्नाथ राव

सत्रहवां विधि आयोग

2003-2006

न्यायमूर्ति एम. जगन्नाथ राव

अठारहवां विधि आयोग

2006-2009

न्यायमूर्ति ए.आर. लक्ष्मणन

उन्नीसवां विधि आयोग

2009-2012

न्यायमूर्ति पी.वी. रेड्डी

बीसवां विधि आयोग

2012-2013

न्यायमूर्ति डी.के. जैन

 

2013-2015

न्यायमूर्ति ए.पी. शाह

इक्कीसवां विधि आयोग

2015-2018

न्यायमूर्ति बलवीर सिंह चौहान

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