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जल परिवहन

भारत में जल परिवहन का उपयोग प्राचीन काल से हो रहा है । यह परिवहन का सबसे सस्ता एवं पारस्थितिकी-अनुकूल साधन है । भारी एवं वृहत समानों के परिवहन हेतु यह सर्वाधिक उपयुक्त साधन  है ।

जल परिवहन के दो प्रकार हैं-

(क) आन्तरिक जल परिवहन (अन्तःस्थलीय) ।

(ख) महासागरीय जल परिवहन ।

(क) अन्तः स्थलीय जल परिवहन  

इसके अन्तर्गत नदियाँ, नहरें, पश्च जल तथा सँकरी खाड़ियाँ आदि आती हैं । वर्तमान में भारत में 14500 km लंबा अन्तरिक जलमार्ग नौकायन हेतु उपलब्ध है । देश के कुल परिवहन में इसकी भागीदारी लगभग 1% है । देश में राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास, संरक्षण एवं नियमन हेतु 1986 में अन्तःदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण (Inland Water ways Authority of India) स्थापित किया गया है । इस प्राधिकरण के द्वारा तीन अन्तः स्थलीय जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है-

राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1

  • इलाहाबाद से हल्दिया के बीच तक का यह जलमार्ग गंगा-भागीरथी एवं हुगली नदी तंत्र के अन्तर्गत है । इस जलमार्ग की लम्बाई 1620 k.m. है । यह जलमार्ग उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड (साहेबगंज जिला) तथा पश्चिम बंगाल से होकर गुजरता है । यह जलमार्ग भारत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जलमार्गों में से एक है जो यांत्रिक नौका द्वारा पटना तक एवं साधारण नौका द्वारा इलाहाबाद तक नौकायन के योग्य  है ।

विकासात्मक उद्देश्य के तहत इसे तीन भागों में विभाजित किया गया है-   

(I) हल्दिया से फरक्का        -      560 k.m.

(II) फरक्का से पटना         -      460 k. m.

(III) पटना से इलाहाबाद    -      600 k.m .

  • फरक्का में गंगा नदी पर 25 मीटर ऊँचा बाँध बनाया गया है । इसके द्वारा गलिया नदी के ऊपरी सिरे के जल को 385 कि. मी. लम्बी सहायक नहर बनाकर भागीरथी नटी में डाला जाता है । यहाँ से जल हुगली नदी में पहुँचता है । इससे हुगली नदी सालों भर जल से भरी रहती है तथा कोलकाता बंदरगाह में जमने वाली मिट्टी बह कर समुद्र में गिर जाती है । 10 मीटर गहराई वाले जहाज कोलकाता बन्दरगाह तक पहुँच सकते हैं ।
  • 2010 तक अन्तःस्थलीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) द्वारा हल्दिया (सागर द्वीप) से फरक्का तक नौकायन हेतु जलमार्ग की गहराई 3 मीटर, फरक्का से पटना तक 2 मीटर तथा पटना से इलाहाबाद तक 1.5 मीटर बनाए रखी गई है । 2011 तक फरक्का एवं पटना के बीच गहराई को बढ़ाकर 2.5 मीटर तथा पटना से इलाहाबाद के बीच 2 मीटर करने का लक्ष्य रखा गया था ।

राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या - 2

  • यह जलमार्ग सादिया (असम) से धुबरी (असम) तक ब्रह्मपुत्र नदी में 891 km . की दूरी में विस्तृत है । ब्रह्मपुत्र नदी मुहाने से डिब्रूगढ़ तक स्टीमर चलाने के योग्य है ।

राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या - 3 

  • राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-3 की कुल लम्बाई 205 कि.मी. है । इसका विस्तार केरल के पश्चिमी तटीय क्षेत्र में है । इसके अन्तर्गत पश्चिमी तट नहर [कोट्टापुरम (केरल) से कोल्लम (केरल) ], [ उद्योगमंडल नहर [कोच्चि (केरल) से पाथलम सेतु (केरल) ] तथा चम्पकारा नहर  [कोच्चि से अंबलामुगल (केरल)] को शामिल किया गया है । इस जलमार्ग की घोषणा फरवरी 1993 में की गई । यह भारत का पहला राष्ट्रीय जलमार्ग है, जिसके पूरे विस्तार में, 24 घंटे नौकायन की सुविधा  है ।

राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-3, विस्तृत ब्यौरा 

1 . पश्चिमी तट नहर (कोट्टापुरम से कोल्लम)                  -168 कि.मी.

2 . उद्योगमंडल नहर (कोच्चि से पाथलम सेतु)              - 23 कि. मी.

3 . चम्पाकारा नहर (कोच्चि से अंबलामुगल)                -  14 कि. मी.

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 3 की कुल लम्बाई                -   205 कि.मी.

 

राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या - 4

  • इस जलमार्ग की घोषणा 25-11-2008 को की गई है । राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-4 के अंतर्गत भद्राचलम से राजमुंद्री के बीच गोदावरी नदी के जलमार्ग को, वजीराबाद से विजयवाड़ा के बीच कृष्णा नदी जलमार्ग को तथा काकीनाडा से पुडुचेरी के बीच नहर-जलमार्ग को शामिल किया गया है । इस जलमार्ग की कुल लम्बाई 1095 कि.मी. है ।

भद्राचलम से राजमुंद्री (गोदावरी नदी)          -      171 कि.मी.

वजीराबाद से विजयवाड़ा (कृष्णा नदी)         -      157 कि.मी.

काकीनाडा से पुडुचेरी (नहर)                      -      767 कि.मी.

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-4 की कुल लम्बाई      -      1095 कि.मी.

  • काकीनाडा से पुडुचेरी के बीच जो नहर जलमार्ग है उसमें उत्तर से दक्षिण की ओर क्रमशः काकीनाडा    नहर, इलूरु नहर कोम्मामुर नहर, उत्तरी बकिंगघम नहर तथा दक्षिणी बकिंगघम नहर शामिल हैं । नहर जलमार्ग के अन्तर्गत सिंचाई नहर एवं खारा जल नहर (Salt Water Canal) दोनों शामिल हैं ।

राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-5 

  • इस जलमार्ग की घोषणा भी राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-4 के साथ ही 25-11-2008 को की गई है । राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या - 5 के अन्तर्गत तालचेर से धमरा के बीच ब्राह्मणी नदी तंत्र के जलमार्ग को, जियोनखली से चरबतिया के बीच पूर्वी तट नहर जलमार्ग को, चरबतिया से धमरा के बीच मताई नदी जलमार्ग को तथा मंगलगढ़ी से पारादीप के बीच महानदी के डेल्टाई नदियों के जलमार्ग को शामिल किया गया है । इस जलमार्ग की कुल लम्बाई 623 कि. मी. है ।

जियोनखली (पश्चिम बंगाल) से चरबतिया (उड़ीसा) [पूर्वी तट नहर)     – 217 कि.मी.

चरबतिया (उड़ीसा) से धमरा (उड़ीसा मताई नदी)                             - 40 कि.मी.

तालचेर (उड़ीसा) से धमरा (उड़ीसा) [ब्राह्मणी, खरसुआ                     -  265 कि. मी.

 एवं धमरा नदी-तंत्र

मंगलगढ़ी (उड़ीसा) से पारादीप (उड़ीसा) [महानदी-डेल्टा नदी-तंत्र )   -  101 कि.मी.

राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-5 की कुल लम्बाई                          -                     623 कि.मी.

  • पूर्वी तट नहर (East Coast Canal, ECC) के अन्तर्गत पुराना हिजली ज्वारीय नहर (The Old Hijli Tidal Canal) एवं उड़ीसा के तटवर्ती नहर को शामिल किया जाता है ।

प्रस्तावित राष्ट्रीय जलमार्ग

  • बराक नदी के जलमार्ग को लखीपुर (Lakhipur) [असम] से भांग Bhanga ) [करीमागंज, असम] के बीच, भाया सिलचर (असम), अगला राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप में प्रस्तावित किया गया है । इसके लिए पेश विधेयक संसद में लम्बित है । यह जलमार्ग 121 कि.मी. लम्बा है ।

 

(ख) महासागरीय जल परिवहन

भारत की तट रेखा 7517 कि.मी. लम्बी है किन्तु तट रेखा बहुत कम कटी-फटी है । अतः इसके तट पर बड़े प्राकृतिक बन्दरगाह बहुत कम विकसित हुए हैं । भारत में 13 बड़े बन्दरगाह हैं, तथा 185 गौण बन्दरगाह हैं । बड़े बन्दरगाहों की देखरेख एवं प्रबंधन का कार्य केन्द्र सरकार करती है । छोटे बन्दरगाह राज्य सरकार के नियंत्रण में होते हैं ।  

अर्थव्यवस्था की दृष्टि से देश के अन्य परिवहन साधनों की तुलना में महासागरीय परिवहन का विशेष महत्व है । भारत में भार की दृष्टि से लगभग 95% तथा मूल्य की दृष्टि से 70% विदेशी व्यापार महासागरीय मार्गों द्वारा होते हैं । इन मार्गों का उपयोग देश की मुख्य भूमि तथा द्वीपों के बीच परिवहन के लिए भी होता है ।

भारत के 13 बड़े बन्दरगाह

 कांडला 

  • इस बन्दरगाह का निर्माण गुजरात के कच्छ जिले में, कच्छ की खाड़ी में 1930 ई. में किया गया था । शुरुआत में यहाँ सिर्फ साधारण आकार के जहाज ठहर सकते थे । लेकिन भारत के बंटवारे के बाद जब कराची बन्दरगाह पाकिस्तान में चला गया । तो उत्तरी गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश  दिल्ली एवं जम्मू-कश्मीर राज्यों के सामानों के आयात-निर्यात हेतु कांडला बंदरगाह को विकसित किया गया ।
  • इसका पताश्रय प्राकृतिक एवं सुरक्षित है । कांडला बंदरगाह को मुक्त व्यापार क्षेत्र (Free Trade Zone) बनाया गया है । यहाँ आयात-शुल्क एवं चुंगी नहीं देना होता है । पेट्रोलियम-उत्पाद के आयात हेतु यह बंदरगाह प्रसिद्ध है । यहाँ से पाइप-लाइन द्वारा पेट्रोलियम को देश के आंतरिक मार्गों तक ले जाने की व्यवस्था की गई है । इस बंदरगाह की एक समस्या है कि यह भूकंप प्रभावित क्षेत्र (जोन-V) में स्थित है

मुम्बई बंदरगाह 

  • मुम्बई बंदरगाह सालसट द्वीप के प्राकृतिक कटान में स्थित है । इसका पोताश्रय प्राकृतिक एवं सुरक्षित है । चक्रवात एवं तूफान के समय भी जहाज सुरक्षित खड़े रह सकते हैं । मुम्बई बंदरगाह में जल की गहराई 11 मीटर है । स्वेज नहर की गहराई भी इतनी ही है । अतः स्वेज नहर से आने वाले सभी जहाज यहाँ ठहर सकते  है । पेट्रोलियम, खाद्यान्न, सूती एवं ऊनी वस्त्र, चमड़ा एवं यात्री परिवहन की दृष्टि से इस बंदरगाह का विशेष महत्व है । यहाँ मुक्त व्यापार क्षेत्र स्थापित किया गया   है ।

 

न्हावा शेवा बंदरगाह या जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह ( JLNP ) 

  • नवी मुम्बई में पनवेल के पास इस बंदरगाह का विकास मुम्बई बंदरगाह के भार को कम करने के उद्देश्य से किया गया है । यह देश का आधुनिकतम बंदरगाह है ।

मर्मागुआ  

  • यह गोवा में जुआरी नदी के बाँये तट पर स्थित है । यह एक प्राकृतिक बंदरगाह है । यहाँ से लौह अयस्क का बहुतायत में निर्यात किया जाता है । ज्ञातव्य है कि गोवा लौह अयस्क की दृष्टि से धनी राज्य है । यहाँ से काजू, मछलिया, मसाले, चावल आदि का भी निर्यात किया जाता है ।
  • खनिज-तेल, उर्वरक, सीमेंट, खाद्य-पदार्थ, काँच के सामान आदि का आयात किया जाता है । यहाँ से आयात की तुलना में निर्यात अधिक किया जाता है । 

न्यू मंगलौर

  • मंगलौर से 9 कि.मी. उत्तर में इस बंदरगाह को विकसित किया गया है । यहाँ से कुद्रेमुख के लौह अयस्क को निर्यात करने की सुविधा है । मछलियाँ, उर्वरक, काजू, वनोत्पाद, कहवा यहाँ से निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ हैं । यह रेल लाइन एवं N .H - 17 द्वारा मुम्बई एवं कोच्चि से जुड़ा है ।

कोच्चि 

  • केरल के तट पर विलिंगटन द्वीप पर स्थित यह एक प्राकृतिक बंदरगाह है । यह समुद्र के समानान्तर विशाल लैगून के मुहाने पर स्थित है ।
  • यहाँ से मुख्यतः नारियल-उत्पाद, काजू, चाय, रबर, मछली, मसाले निर्यात किए जाते हैं । खनिज तेल, उर्वरक  कोयला, खाद्य तेल का आयात किया जाता है ।  

नयी तूतीकोरिन

  • तमिलनाडु तट के सहारे मन्नार की खाड़ी में इसकी अवस्थिति है । यह एक खुला बंदरगाह है जो हेयर द्वीप के पूर्वी किनारे से 9 कि. मी. दूर है । बाद में इसके पोताश्रय को गहरा कर उसे कृत्रिम रूप से विकसित किया गया है । यहाँ से चाय, कपास, चमड़ा, सूती वस्त्र, प्याज आदि वस्तुओं का नियति एवं खनिज तेल, कोयला, नमक, उर्वरक खाद्य-तेल का आयात किया जाता है ।

चेन्नई

  • पूर्वी तट पर यह भारत का प्रमुख बंदरगाह है । यह एक कृत्रिम  बंदरगाह है । खुले समुद्र में इसकी अवस्थिति होने से जहाज को लहरों से हानि होती है । इससे बचने के लिए तट से 3 कि.मी. दूर 914 मीटर लंबी दीवार बनाई गई है । मुंबई के पश्चात यह भारत का दूसरा सर्वाधिक व्यापार करने वाला बंदरगाह है ।
  •  इस बंदरगाह से लौह अयस्क, खाद्यान्न, चमड़ा, चीनी, तम्बाकू, नारियल-उत्पाद आदि पदार्थों का निर्यात किया जाता है । यहाँ से आयात होने वाले सामानों में पेट्रोलियम, रासायनिक पदार्थ, कोयला, खाद्य तेल, कपास प्रमुख हैं ।

एनोर

  •  यह बंदरगाह तमिलनाडु के तट पर चेन्नई के उत्तर में स्थित है । चेन्नई के भार को कम करने के लिए इसे विकसित किया गया है । कोयले के व्यापार हेतु इस बंदरगाह का विशेष महत्व है ।
  • तमिलनाडु सरकार अपने लिए आंतरिक एवं आयातित कोयला इस बन्दरगाह से प्राप्त करती है ।

 

विशाखापत्तनम 

  • आंध्र प्रदेश में स्थित यह देश का एक गहरा एवं अच्छा प्राकृतिक बंदरगाह है । पोताश्रय के मुख पर “डॉलफिन नोज” नामक पहाड़ी के समुद्र में निकले होने के कारण यह तूफानों से स्वतः सुरक्षित है ।  इस बंदरगाह से आयात से अधिक निर्यात किया जाता है ।
  • बैलाडीला क्षेत्र के लौह अयस्क का निर्यात इसी बंदरगाह से किया जाता है । मैंगनीज, चमड़े का सामान, खाद्यान्न, कोयला आदि सामानों का भी निर्यात होता है । आयातित वस्तुओं में खनिज तेल, उर्वरक, रसायन, मशीनरी, कोक आदि प्रमुख हैं ।

पारादीप

  • उड़ीसा के तट पर स्थित यह एक कृत्रिम बंदरगाह है । यहाँ यांत्रिक तरीके से लौह अयस्क एवं कोयला लादने-उतारने की सुविधा है । लौह अयस्क, मैंगनीज, बॉक्साइट, अभ्रक, ग्रेफाइट, कोयला आदि का यहाँ से निर्यात किया जाता है । इंजीनियरिंग सामान, उर्वरक, मशीन आदि का आयात किया जाता है ।  

हल्दिया

  • पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के मुहाने पर इस बंदरगाह का विकास किया गया है । यह कोलकाता बंदरगाह के भार को कम करता है तथा उन बड़े-बड़े जहाजों का आश्रय-स्थल है जो कोलकाता तक नहीं पहुँच पाते हैं । पेट्रोलियम पदार्थ के व्यापार हेतु इस बंदरगाह का विशिष्ट महत्त्व है ।

कोलकाता

  • पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के बाएँ तट पर अवस्थित यह एक नदी-पत्तन है । हुगली नदी में गाद जमने की समस्या के कारण कोलकाता तक भारी जलयान नहीं जा पाता । इसके लिए कोलकाता से 64 कि.मी. दूर खुली खाड़ी में डायमंड हार्बर का निर्माण किया गया है । उच्च ज्वार के समय बड़े जहाज कोलकाता के मुख्य    पोताश्रय खिदिरपुर तक जाते हैं ।
  • कोलकाता बंदरगाह से जूट निर्मित सामान, कोयला, चमड़े का सामान, कागज, चाय, लोहा-इस्पात, चीनी, अभ्रक आदि का निर्यात किया जाता है । आयातित सामानों में खनिज तेल, उर्वरक, रसायन, खाद्य तेल, इंजीनियरिंग के सामान, कपास, आदि प्रमुख हैं ।

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