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पृथ्वी का भूगर्भिक इतिहास

हमारी पृथ्वी की आयु 4.6 अरब वर्ष है। उक्त आयु की पुष्टि उल्का पिण्डों एवं चंद्रमा के चट्टानों के विश्लेषण एवं परीक्षण से ज्ञात हुआ है। किन्तु पृथ्वी के सर्वाधिक प्राचीन चट्टानों के रेडियोधर्मी पदार्थों  के परीक्षणोपरान्त पृथ्वी आयु 3.9 अरब वर्ष निर्धारित की गई है। ज्ञातव्य है कि उल्का पिण्डों एवं चन्द्रमा के चट्टानी विश्लेषण से प्राप्त पृथ्वी की आयु को अधिक प्रमाणिक माना गया है।

  • पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास की व्याख्या का सर्वप्रथम प्रयास फ्रांसीसी वैज्ञानिक 'कास्ते द बफन' ने किया था।
  • वर्तमान समय में पृथ्वी के इतिहास को अधोलिखित कालखण्डों में बांटा  गया  है।जो निम्नलिखित है -

 

महाकल्प- यह सामान्यतः सबसे बड़ा कालखण्ड होता है।

 युग-महाकल्पों को पुनः युगों में विभक्त किया गया है। जिन्हें क्रमशः प्रथम, द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ युग कहा जाता है।

शक या कल्प- प्रत्येक युग को छोटे-छोटे शक अथवा कल्प में विभक्त किया गया है।

 

पृथ्वी की उत्पत्ति आज से लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व एक ज्वलित गैसीय पिण्ड से हुआ था। लगभग 4.6 अरब वर्ष में उक्त गैसीय पिण्ड के ऊपर भू-पटल का निर्माण हुआ। भूपटल के निर्माण काल को अजीवी महाकल्प की संज्ञा प्रदान की गई। भू-पटल की स्थापना से लेकर आज तक के पृथ्वी के इतिहास को जीवी महाकल्प के रूप में अभिहित किया जाता है। चट्टानों की आयु के अनुसार जीवी महाकल्प को पांच प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है-

           जीवी महाकल्प   युग        प्रारंभ (लगभग)          अवधि (लगभग)

1. आर्कियोजोइक -       4.0 अरब वर्ष पूर्व                          1.5 अरब वर्ष

2. प्रोटीरोजोइक   -       2.5 अरब वर्ष पूर्व                          1.91 अरब वर्ष

3. पेलियोजोइक प्रथम युग  -  59 करोड़ वर्ष पूर्व                34.2 करोड़ वर्ष

4. मीसोजोइक   द्वितीयक युग-  24.8 करोड़ वर्ष पूर्व          18.3 करोड़ वर्ष

5.(अ) सीनोजोइक तृतीयक युग -    6.5 करोड़ वर्ष पूर्व       6.3 करोड़ वर्ष

5.(ब) नियोजोइक चतुर्थक युग -                                     20 लाख वर्ष पूर्व जारी है।

  • आर्कियोजोइक तथा प्रोटीरोजोइक महाकल्प को सम्मिलित रूप से प्री-कैम्ब्रियन महाकल्प भी कहा जाता है। जो 59 करोड़ से 4.0 अरब वर्ष पहले तक था। अर्थात प्री-कैम्ब्रियन महाकल्प की अवधि लगगभग 3.41 अरब वर्ष की थी। ध्यातव्य है कि आर्कियोजोइक तथा प्रीटीरोजोइक महाकल्प को सबसे लम्बी अवधि वाले काल भाग-इओन की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है।
  • आर्कियोजोइक इरा की चट्टानों में जीवाश्मों का पूर्णतः अभाव है। इसमें ग्रेनाइट तथा नीस की प्रधानता है। इनमें सोना तथा लोहा आदि पाया जाता है। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति इसी महाकल्प में आदिसागर में हुई थी।
  • प्रोटीरोजोइक महाकल्प में समुद्र में विविध प्रकार के अपृष्ठवंशीय जीवों का विकास हुआ।
  • सम्पूर्ण प्री-कैम्ब्रियन महाकल्प में प्रायः आग्नेय चट्टानें ही पायी जाती है। सुपीरियर झील के समीपवर्ती भागों तथा भारत में धारवाड़,छोटा नागपुर, कुडप्पा समूह, दिल्ली-क्रम की चट्टानों एवं अरावली पर्वत का विकास इसी महाकल्प में हुआ था। इस पर्वत निर्माणकारी क्रिया को चर्नियन हलचल की संज्ञा प्रदान की गई हैं।

 

भूगर्भिक समय मापक्रम एवं उसकी विशेषताएं

  • वर्तमान समय में पृथ्वी के भूगर्भिक संरचना के विकास क्रम के काल को विभिन्न कालों, जैसे-इयान, महाकल्प, कल्प, युग आदि में बांटा गया है।

 

प्री-कैंब्रियन महाकल्प

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  • लगभग 480 करोड़ वर्ष पूर्व प्री-कैंब्रियन महाकल्प शुरू हुआ था। इसका समय पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर आज से 57 करोड़ वर्ष के पहले तक का माना जाता है।
  • इस महाकल्प में निर्मित प्राचीनतम पर्वत को ‘आर्कियन पर्वत’ कहते हैं। ताप और दाब के कारण इस युग की चट्टानों में सर्वाधिक रूपांतरण हुआ है। इस महाकल्प की चट्टानों में ‘ग्रेनाइट एवं नीस’ की प्रधानता है, जिसमें सोना एवं लोहा पाया जाता है।
  • भारत में इसी समय अरावली पर्वत तथा धारवाड़ क्रम की चट्टानों का भी निर्माण हुआ। इसी समय ‘कनाडियन या लाॅरेंशियन शील्ड’ का निर्माण हुआ।
  • इस महाकल्प में समुद्रों में रीढ़ विहीन (एक कोशिकीय) जीवों का उद्भव हो गया था किन्तु शैलों में जीवाश्मों का पूर्णतः अभाव था।
  • वनस्पति के क्षेत्र में इस समय तक केवल सागरीय घास का ही उद्भव हे सका था, परन्तु स्थल भाग जीव रहित था।

 

कैंब्रियन कल्प

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  • यह पेलियोजोइक (पुराजीव) महाकल्प का पहला कल्प था। कैंब्रियन कल्प आज से 57 करोड़ वर्ष पूर्व समाप्त हो गया अर्थात यह कल्प 6.5 करोड़ वर्ष तक था।
  • इस काल में पृथ्वी के ऊपर छिछले सागरों का विस्तार होता रहा। ग्रेट ब्रिटेन के वेल्स, उत्तरी-पश्चिमी स्काॅटलैंड, पश्चिमी इंग्लैंड कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में कैंब्रियन चट्टानों का निर्माण हुआ।
  • यूरोप महाद्वीप में ज्वालामुखी क्रिया हुई, परन्तु पर्वत निर्माण के लक्षण नहीं मिलते हैं।
  • स्थल सतह पर अभी भी जीवों का विकास नहीं हुआ था।

 

आर्डोविसियन कल्प

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  • इस कल्प का प्रारंभ आज से 50.5 करोड़ वर्ष हुआ तथा समाप्ति 43.8 करोड़ वर्ष पूर्व हुई अर्थात यह कल्प 6.7 करोड़ वर्ष तक था।
  • इस कल्प में समुद्र का विस्तार हुआ। कुछ छिछले सागरा में बालू और कीचड़ का जमाव बढ़ता गया, जिस कारण कई सागर शुष्क हो गए। इस युग की चट्टानों का जमााव उत्तर-पश्चिम यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में सम्पन्न हुआ। इस समय पर्वत निर्माण शुरू हो गया।
  • इस समय भी वनस्पतियों का विस्तार केवल सागरों तक सीमित रहा।
  • इस समय सागरीय भागों में ज्वालामुखी क्रिया सक्रिय थी। सब जगह पर गर्म जलवायु थी, किन्तु कोई जलवायु कटिबंध नहीं था।

 

सिलुरियन कल्प

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  • यह कल्प 43.8 करोड़ वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ तथा 40.8 करोड़ वर्ष पूर्व समाप्त हो गया था।
  • इस समय सागरीय तल में उतार-चढ़ाव हो रहा था, परिणामस्वरूप स्थ पर बदलाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई। इन सब के बावजूद पर्वत निर्माण की प्रक्रिया तो चलती रही, किन्तु आडोविसियन कल्प की अपेक्षा ज्वालामुखी की क्रिया में कमी आई। जलवायु आनुपातिक रूप से सर्वत्र गर्म एवं समान थी।
  • इस कल्प की पर्वत निर्माण प्रक्रिया को ‘कैलेडोनियन हलचल’ के अन्तर्गत माना जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उत्तर अमेरिका के अप्लेशियन, स्काटलैंड एवं स्कैंडिनेविया के पर्वतों का निर्माण हुआ।
  • सागर में रीढ़ वाले जीवों की किस्मों में विस्तार तथा विकास हुआ। वनस्पतियों के प्रकारों में भी विकास हुआ।‘प्रवाल जीवों’ का सर्वप्रथम बड़े पैमाने पर विस्तार मिलता है।
  • इसी समय स्थल पर पहली बार वनस्पति का उदय हुआ, लेकिन ये वनस्पति पत्ती विहीन थी। इस प्रकार की वनस्पतियों के अवशेष आस्ट्रेलिया में पाए गए हैं।

 

डिवोनियन कल्प

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  • यह कल्प 40.8 करोड़ वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ तथा लगभग 36 करोड़ वर्ष पहले तक समाप्त हो गया था। इस कल्प की अवधि 4.8 करोड़ वर्ष रही।
  • इस समय सागरीय भाग का हृास एवं स्थल भाग का विस्तार हो रहा । सागर में रीढ़ वाले जीवों का तथा मत्स्य का विकास तीव्र गति से हो रहा था।
  • यह कल्प मछलियों के लिए अधिक अनुकूल थी। अतः शार्क जैसी विशाल मछलियों का उदय हुआ, जिनकी लम्बाई 20 फीट तक थी इसलिये इस काल को ‘मत्स्य युग’ कहते हैं।
  • इसी समय उभयचर जीवों (जल व थल दोनों में रहने वाले जीव) का भी उदय हुआ। सागरीय रीढ़ वाले जीव स्थल की तरफ गमन करने लगे, क्योंकि उनके लिए वहां पर प्रचुर मात्रा में भोज्य पदार्थ मौजूद था।
  • जमीन पर जंगलों की मात्रा बढ़ने लगी तथा फर्न (मुलायम पत्ती वाली वनस्पति) जेसी वनस्पति का विस्तार हुआ।

 

कार्बोनीफेरस कल्प

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  • इस कल्प का प्रारंभ लगभग 36 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ तथा 28.6 करोड़ वर्ष पहले तक समाप्त हुआ। इसकी अवधि 7.4 करोड़ वर्ष तक थी।
  • इस कल्प में पर्वत निर्माण प्रक्रिया ‘अमेरिकन हलचल’ से संबद्ध मानी जाती है।
  • इस कल्प में लगभग 100 फीट ऊँचे पेड़ों का विकास हुआ, इसलिये इसे ‘बड़े वृक्षों का काल’ भी कहते हैं।
  • इसी समय बने भ्रंशों में पेड़ों के दब जाने से ‘गोंडवाना’ चट्टानों/संरचना का उदय हुआ, जिसके कारण कारण इसमें कोयले के व्यापक निक्षेप मिलते हैं। इसी के कारण इसे ‘कार्बोनीफेरस कल्प’ या ‘कोयला युग’ कहते हैं।
  • इस काल में स्थल पर बड़े-बड़े रेंगने वाले जीवों का उदय हुआ, इसलिये इसे ‘रेंगने वाले जीवों का काल’ भी कहते हैं।

 

पर्मियन कल्प

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  • यह पेलियोजोइक महाकल्प का अंतिम कल्प था।
  • इस समय व्यापक भूगर्भिक हलचल के कारण ‘ब्लैक फारेस्ट’ व ‘वास्जेस’ जैसे भ्रंशोत्थ पर्वतों (ब्लाक पर्वत) का निर्माण हुआ।
  • भूपटल में भ्रंशन की क्रिया के कारण आंतरिक झीलों का विकास हुआ। इन झीलों में वाष्पीकरण के कारण वैश्विक स्तर पर पोटाश निक्षेपों की रचना हुई।
  • तिएनशान, अल्ताई एवं अप्लेशियन जैसे पर्वत इसी काल में निर्मित हुए हैं।
  • जलवायु में मौसमी परिवर्तन के कारण सदाबहार वृक्षों में कमी आई। परिणामस्वरूप शुष्क मौसम तथा पाला को सहने वाले पर्णपाती वनों का विकास हुआ।
  • स्थलीय रेंगने वाले जीवों की संख्या तथा प्रजातियों में पर्याप्त वृद्धि हुई, विशेष रूप से कई प्रकार के कीड़ों का उद्भव हुआ। जलीय भाग के जीवों की संख्या में कमी आई।

 

ट्रायेसिक कल्प

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  • यह मेसोजोइक महाकल्प का पहला कल्प था।
  • सागर में मांसाहारी मत्स्य तुल्य सरीसृप् का जन्म हुआ तथा लाॅब्स्टर (केकड़ा के समान) किस्म की मछलियों का जन्म हुआ।
  • इस काल में मेंढक व कछुआ की उत्पत्ति हुई थी।

 

जुरैसिक कल्प

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  • एशिया, यूरोप का अधिकांश भाग एवं ग्रेट ब्रिटेन के निकटवर्ती भाग सागरीय जल से भर गए। चूना पत्थर का जमाव इस युग की मुख्य विशेषता थी, जो मुख्यतः फ्रांस, दक्षिणी जर्मनी एवं स्विट्जरलैंड में पाई जाती थी।
  • इस काल में स्थलचर, जलचर तथ नभचर जीवों का विकास हो गया था। इसी समय ‘डायनासोर’ का भी विकास हुआ था।
  • स्थल पर सरीसृपों का पर्याप्त विस्तार हुआ। कुछ सरीसृप अत्यधिक लंबे तथा भरी थे, जिससे वे स्थलों पर नहीं रह सके एवं चले गए।
  • इसी काल में सर्वप्रथम पुष्प वाले पादपों अर्थात आवृतबीजी पौधों का विकास प्रारंभ हुआ।
  • स्तनधारी जीव अभी क चूहों जैसे थे तथा जंगलों में रहते थे।
  • प्रथम उड़ने वाली (आर्कियोप्टेरिक्स) का उद्भव इसी कल्प में हुआ।

 

क्रिटेशियस कल्प

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  • इस समय ‘राकी एवं एंडीज’ पर्वत श्रेणियों का निर्माण भी प्रारंभ हुआ।
  • इसी कल्प में ज्वालामुखी लावा के दरारी उद्भेदन से ‘दक्कन ट्रैप’ व ‘काली मृदा’ का भारत में निर्माण हुआ।
  • सागरीय क्षेत्रों में शार्क तथा हेरिंग के समान मत्स्य जन्म हुआ। उड़ने वाले तथा परविहीन दोनों प्रकार के पक्षियों का विकास हुआ।
  • अभी स्तनधारियों की स्थिति अनिश्चित थी।
  • इस कल्प में डायनासोर लगभग विलुप्त हो गए थे।

 

पेलिओसीन युग

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  • सिनोजोइक महाकल्प के ‘टर्शियरी कल्प’ का यह पहला युग था।
  • इस युग में सागरीय विस्तार अपेक्षाकृत सीमित हुआ। यद्यपि स्थलखण्डों के विकास की गति सक्रिय रही।
  • अल्पाइन पर्वतीकरण, पुष्पी पादपों का विस्तार हुआ।
  • स्तनधारी जीवों की संख्या में तीव्र गति से हृास देखा गया, किन्तु मानव सदृश बंदरों एवं छोटे स्तनपायी चूहे आदि का विकास हुआ।

 

इओसीन युग

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  • यूरोप महाद्वीप के ज्यादातर भागों के नीचे दब जाने के कारण सागर का विस्तार हुआ। पिछले युग में निर्मित पर्वत श्रेणियों की ऊँचाई में वृद्धि होने लगी। ज्वालामुखी की क्रिया विस्तृत पैमाने पर हुई, जिससे स्काटलैंड, आयरलैंड तथा प्रायद्वीपीय भारत पर अत्यधिक लावा का जमाव हुआ।
  • इस काल में ज्वालामुखी उद्गार के कारण ही स्थल पर रेंगने वाले जीव प्रायः विलुप्तप्राय हो गए तथा प्राचीन बंदर, गिब्बन (म्यांमार में), हाथी, घोड़ा, गैंडा, सूअर आदि के पूर्वजों का उदय हुआ।
  • ‘वृहद हिमालय’ की उत्पत्ति भी मुख्यतः इसी काल में हुई है।


 

ओलिगोसीन युग

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  • इस युग में स्थलीय भाग का विस्तार एवं सागरीय भाग का संकुचन हुआ। अमेरिका तथा यूरोप में क्रमशः भूसंचलन के कारण राकी तथा अल्प्स पर्वत का निर्माण प्रारंभ हुआ।
  • इसी काल में पूँछविहीन बंदर का उदय हुआ, जो मानव के पूर्वज थे।
  • अल्प्स पर्वत का निर्माण तथा वृहद हिमालय का निर्माण इस काल में पूर्णता की ओर जारी रहा।

 

मायोसीन युग

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  • यह ‘लघु/मध्य हिमालय’ की उत्पत्ति का मुख्य काल है।
  • इस युग में जलवायु दशाओं में अंतर के कारण उत्तर अमेरिका तथा यूरोप में पतझड़ वाले वृक्षों का उद्भव हुआ। उत्तर अमेरिका के प्रेयरी मैदानों में घासों का विकास हुआ।
  • इस युग में जलीय भाग में अस्थि वाली मछलियों की प्रजातियों में वृद्धि हुई। इस यम की प्रमुख मछली शार्क थी, जिसकी लम्बाई लगभग 60 फीट थी। स्थलीय भागों पर पूँछविहीन बंदर तथा हाथियों का स्थानांतरण अफ्रीका से यूरोप तथा एशिया में हुआ।
  • इस युग में पेंग्विन का उद्भव अंटार्कटिका में हुआ।

 

प्लायोसीन युग

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  • सिनोजोइक महाकल्प के ‘टर्शियरी कल्प’ का यह अंतिम युग था।
  • इस काल में समुद्रों के अवसादीकरण से विस्तृत तटीय मैदानों का निर्माण हुआ।
  • इस युग में बड़े आकार वाली शार्क मछली का विनाश हो गया।
  • स्थल पर बड़े-बड़े स्तनधारी जीवों का हृास हुआ।
  • आरंभिक मानव की उत्पत्ति हुई।
  • ‘शिवालिक’ की उत्पत्ति भी इसी काल में हुई।
  • काला सागर, उत्तरी सागर, कैसिपयन सागर, अरब सागर की उत्पत्ति हुई।

 

प्लीस्टोसीन युग

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  •  सिनोजोइक महाकल्प के क्वाटरनरी कल्प का यह पहला युग है। महान हिमयुग का संबंध इसी युग से है।इस युग में तापमान बहुत कम हो गया था, जिसके कारण पृथ्वी पर (यूरोप में) क्रमशः ‘चार हिम युग’ देखे गए, जो निम्नलिखित हैं-
  •  

             गुंज, मिंडेल, रिस और वुर्म

  • हिमयुगों से अनेक भू-दृश्य निर्मित हुए। यथा-उत्तर अमेरिका की वृहद झीलें तथा नाॅर्वे, स्वीडन, स्विट्जरलैंड तथा उत्तरी इटली में झीलों का विकास हुआ। नाॅर्वे में फियाॅर्ड तट का विकास हिमचादर की समाप्ति के कारण हुआ।

  • इस युग में हिमानीकरण के कारण सागर में प्रवालों का विनाश हो गया, किन्तु हिम के पिघल जाने के बाद उनका पुनः विकास हो गया। इस युग की जलवायु अत्यंत परिवर्तनकारी थी।

  • स्थलमण्डल पर बंदर सदृश मानव (आदिमानव) का विकास हुआ।

  

होलोसीन युग

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  • इस समय जलवायु संबंधी सभी दशाओं में समानता होने लगी थी, किन्तु उत्तरी अफ्रीका तथा मध्य एशिया में शुष्कता की अधिकता के कारण उष्ण एवं शुष्क रेगिस्तानों का विकास हुआ ।
  • होलोसीन वर्तमान विश्व के उदय का काल है, जो अब तक जारी है।
  • इस युग में पूर्ण विकसित मानव का विकास हो चुका था। यहाँ तक कि मानव ने पशुपालन तथा कृषि कार्य भी प्रारंभ किया। तकनीक पर आधारित विकास कार्य मानव ने इसी चरण में आरंभ किया।

पर्वतीय समय मापक्रम

              पर्वतों की उत्पत्ति के समय के आधार पर वर्गीकरण निम्न प्रकार है-

सेनोजोइक

मेसोजोइक

पैल्योजोइक

प्री-कैंब्रियन

  • इस काल में अवसादों के निक्षेपण एवं उनमें वलन द्वारा निर्मित नवीनतम पर्वतों को ‘अल्पाइन पर्वत’ कहते हैं।
  • इस युग के पर्वतों में उत्तर अमेरिका के राकी, दक्षिण अमेरिका के एंडीज एवं एशिया का हिमालय पर्वत प्रमुख है।
  • इस समय मध्ययुगीन पर्वतों का निर्माण हुआ, जिसे-‘हर्सीनियन पर्वत’ कहते हैं।
  • इस युग के पर्वतों में यूरोप का हार्ज, ब्लैक फारेस्ट, यूराल पर्वत तथा एशिया के अल्टई, तियानशान तथा खिंगन पर्वत इत्यादि है।

 

  • इस काल में निक्षेपण द्वारा निर्मित मैदान प्राचीन पर्वतों को ‘कैलेडोनियन पर्वत’ कहते हैं।
  • इस युग के पर्वतों में उत्तर अमेरिका के अप्लेशियन पर्वत; भारत के अरावली, सतपुड़ा व महादेव पर्वत आदि हैं।

 

  • इस युग/काल में निर्मित प्राचीनतम पर्वतों को ‘आर्कियन पर्वत’ कहते है।
  • इस काल के शैलों में जीवाश्मों का पूर्णतः अभाव था।
  • इस समय के तीन प्रमुख पर्वत लारेंशियन, अलगोमन तथा किलार्नियन हैं।

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