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पृथ्वी की उत्पत्ति

पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं, जिनकों मुख्यतः दो भागों में वर्गीकृत किया गया है-

1-धार्मिक विचारधारा

2-वैज्ञानिक विचारधारा

 

1-धार्मिक विचार धारा

धार्मिक विचारधारा अर्क बिशप उषर के अंतर्गत नामक वैज्ञानिक ने ये बताया कि पृथ्वी की उत्पत्ति 26 अक्टूबर 4004 B.C. में G.M.T. समय सुबह 9:00 बजे हुई, परंतु इस विचारधारा का वैज्ञानिक आधार न होने के कारण इस सिद्धांत को मान्यता प्राप्त नहीं हुई।

 

2-वैज्ञानिक विचारधारा

वैज्ञानिक विचारधारा के अंतर्गत वैज्ञानिकों का यह मत था कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की उत्पत्ति तारों से हुयी है। तारा ब्रह्मांण में स्थित एक ऐसा विशाल पिण्ड होता है जिसके पास स्वयं की ऊर्जा विद्यमान होती है। जो नाभिकीय संलयन के कारण विकसित होती है। जिसमें H (हाइड्रोजन) के परमाणु मिलकर हीलियम  परमाणु को जन्म देते हैं तथा ऊर्जा ऊष्मा एवं प्रकाश के रूप में उत्सर्जित करते हैं। वैज्ञानिक विचारधारा को भी मुख्यतः दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है।—

 

A-एक तारा सिद्धांत (Monistic Theory)

B- दो तारा सिद्धांत (Dualistic Theory)

 

A-एक तारा सिद्धांत-

एक तारा सिद्धांत के समर्थक ये मानते थे कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की उत्पत्ति एक तारे हुई है। इसमें प्रमुख सिद्धांत ‘इमानुअल काण्ट’ तथा ‘लाप्लास’  ने प्रस्तुत किया है।

(a)-काण्ट की गैसीय विचारधारा-

काण्ट ने 1756 में अपनी पुस्तक ‘GeneralNatural History Of The World’  तथा ‘Theory Of Heaven’ में पृथ्वी की उत्पत्ति की विचारधारा प्रस्तुत की है। इनके सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड में छोटे-छोटे गतिहीन कण उपस्थित थे। गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ये छोटे पिण्ड एक दूसरे की ओर आकर्षित होने लगे तथा एक दूसरे से टकराने लगे जिसके परिणामस्वरूप घर्षण बल की उत्पत्ति हुई तथा ऊष्मा उत्पन्न होने लगी। छोटे-छोटे पिण्ड मिलकर बड़े पिण्डों में तथा बड़े पिण्ड मिलकर विशाल पिण्ड में परिवर्तित होने लगे। ये प्रक्रिया चलती गई जो नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया थी। अंततः एक विशाल गैसीय पिण्ड की उत्पत्ति हुई जो अपनी अक्ष पर घूर्णन गति कर रहा था। ऊष्मा की वृद्धि के कारण इस पिण्ड की गति निरंतर बढ़ती जा रही थी जिसके कारण अपकेंद्रीय बल(केंद्र से बाहर की ओर) अभिकेंद्रीय बल (केंद्र की ओर लगने वाला बल) से अधिक होने लगा जिसके परिणाम स्वरूप छल्ले के आकार का पदार्थ गैसीय पिण्ड से बाहर की ओर उत्सर्जित हुआ तथा यह प्रक्रिया 9 बार घटित हुई। उत्सर्जित होने वाले 9 छल्ले ठण्डे होकर ग्रहों में परिवर्तित हो गए तथा गैसीय पिण्ड का शेष भाग वर्तमान का सूर्य हो गया।

 

(b)-लाप्लास की नेबुला विचारधारा

लेलेप्स ने काण्ट की विचारधारा का संशोधित रूप अपनीपुस्तक ‘Exposition Of The World System’ में प्रस्तुत किया। इनके सिद्धांत के अनुसारब्रह्मांड में एक विशाल गैसीय पिण्ड (नेबुला) विद्यमान था, जिसे लाप्लास ने नेबुला नाम दिया। नेबुला अपनी अक्ष पर घूर्णन गति कर रहा था तथा ऊर्जा में वृद्धि के कारण इसकी घूर्णन गति में वृद्धि होती जा रही थी।अपकेंद्रीय बल (केंद्र से बाहर लगनेवाला बल) अभिकेंद्रीय बल से अधिक हो गया जिसके परिणाम स्वरूप छल्ले आकार का पदार्थबाहर की ओर उत्सर्जित हुआ तथा इसी प्रक्रिया के कारण उत्सर्जित छल्ला 9 छल्लों में परिवर्तित हो गया जो नेबुला के चारों ओर चक्कर लगाने लगे। ठण्डे होने के पश्चात् उत्सर्जित 9 छल्ले वर्तमान के ग्रह हो गए तथा नेबुला का शेष भाग वर्तमान का सूर्य बन गया।

 

2-दो तारा सिद्धांत-

दो तारा सिद्धांत के समर्थक यह मानते थे कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की उत्पत्ति दो तारे से हुई है जिस में बफ़न (BUFFON) नामक वैज्ञानिक ने “टकराव सिद्धांत” प्रस्तुत किया जिसे अत्यधिक प्रसिद्धि नहीं मिल पाई। दो तारा सिद्धांत में सबसे मान्य सिद्धांत “जेम्स जीन” नामक वैज्ञानिक ने प्रस्तुत किया है।

 

जेम्स जीन की ज्वारीय विचारधारा (Tidal Hypothesis Of James Jean):-

जेम्स जीन ने अपनी विचारधारा दो तारा सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत की। जेम्स जीन की विचारधारा को 1929 में जेफरी नामक वैज्ञानिक ने संशोधित किया। जेम्स जीन के अनुसार ब्रह्मांड में एक गैसीय पिण्ड विद्यमान था जो अपनी अक्ष पर घूर्णन गति पर कर रहा था। इसे जेम्स जीन ने प्राचीन सूर्य (Proto Sun) का नाम दिया।

इस तारे के निकट से एक विशाल तारा गुजरा जिसे भेदता तारा कहा गया। ‘भेदता तारा’ जैसे-जैसे प्राचीन सूर्य के निकट आया, प्राचीन सूर्य पर गुरूत्वाकर्षण बल कार्य करने लगा जिसके कारण प्राचीन सूर्य से कुछ पदार्थ बाहर की ओर उत्सर्जित होने लगा। जैसे-जैसे भेदता तारा निकट आ रहा था बल का मान बढ़ता जा रहा था। जिसके कारण उत्सर्जित पदार्थ की मात्रा वृद्धि कर रही थी।

जब दोनों तारे निकटतम दूरी पर विद्यमान थे उस समय सर्वाधिक मात्रा में प्राचीन सूर्य से पदार्थ का उत्सर्जन हुआ तथा जैसे-जैसे भेदता तारा दूर जा रहा था उत्सर्जित होने वाले पदार्थों की मात्रा घटने लगी। जब भेदता तारा प्रचीन सूर्य से अत्यधिक दूरी पर पहुंच गया तो पदार्थ का उत्सर्जन समाप्त हो गया तथा उत्सर्जित होने वाला पदार्थ प्राचीन सूर्य के चारों ओर चक्कर लगानेलगा।

उत्सर्जित पदार्थ ठंडा होकर 9 गोलों में परिवर्तित हो गया जिसे ग्रह कहा गया। जेम्स जीन के अनुसार उत्सर्जित पदार्थ का आकार वर्तमान में स्थित सौर्य परिवार के भांति है जिसके मध्य में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति तथा दोनों किनारों पर सबसे छोटेग्रह बुद्ध तथा यम स्थित है।

 

बिग बैंग सिद्धांत (विशाल विस्फोट सिद्धांत)—(Big Bang Theory)

इससिद्धांत का प्रतिपादन ‘जॉर्ज लेमेटियर’ नामक वैज्ञानिक ने की थी। ये सिद्धांत 1950 में प्रतिपातिद हुआ। 1960 में इसका संशोधन हुआ तथा मई 1992 में इसे मान्यता प्राप्त हुई। इनके सिद्धांत के अनुसार लगभग 15 बिलियन वर्ष पूर्व ब्रह्मांड में स्थित समस्त पदार्थ ब्रह्मांड के केंद्र की ओर आकर्षित होने लगे तथा नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के कारण ब्रह्मांड में स्थित समस्त पदार्थ ब्रह्मांड के केंद्र पर केंद्रीत हो गया।

नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के कारण ऊर्जा तीव्रता से वृद्धि कर रही थी जिसके परिणाम स्वरूप एक विशाल धमाका हुआ जिसे बिग बैंग कहा गया। इस धमाके के साथ ब्रह्मांड में केन्द्रित पदार्थ विखंडित होकर एक दूसरे से दूर जाने लगा अर्थात विखंडित पदार्थ का विस्तार होने लगा। विखंडित पदार्थ के भाग तारों में परिवर्तित हो गए जो आज की फैलती हुई अवस्था में पाए जाते हैं।

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