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Study Material



भारत में प्रमुख सूफी सिलसिले

चिश्ती सिलसिला

  • भारत में चिश्ती परंपरा के प्रथम संत शेख उस्मान  के शिष्य ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती थे। मोईनुद्दीन चिश्ती 1192ई. में मुहम्मद गौरी  के साथ भारत आए थे। इन्होंने ‘चिश्तिया परंपरा’ की नींव रखी थी।
  • मोईनुद्दीन चिश्ती ने अजमेर को अपना केंद्र (खानकाह) बनाया। उनकी दरगाह अजमेर में स्थित है और ‘ख्वाजा साहब’ के नाम से प्रसिद्ध है।
  • वस्तुतः बाबा फरीद (गंज-ए-शकर) के  कारण चिश्ती सिलसिले को भारत में अत्यधिक प्रसिद्धि मिली। इनकी प्रसिद्धि के प्रभाव से सिख गुरू अर्जुन देव ने ‘गुरूग्रंथ साहिब’ में इनके कथनों को संकलित कराया है।
  • बाबा फरीद, ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के शिष्य थे और ख्वाजा बख्तियार, मोईनुद्दीन चिश्ती के प्रमुख शिष्य थे।
  • चिश्ती संतों में सबसे लोकप्रिय संत निजामुद्दीन औलिया, बाबा फरीद के शिष्य थे। माना जाता है कि निजामुद्दीन औलिया ने दिल्ली के सात सुल्तानों का शासनकाल देखा था, किंतु वे किसी भी सुल्तान के दरबार में उपस्थित नहीं हुए।
  • निजामुद्दीन औलिया के प्रिय शिष्य अमीर खुसरो थे
  • चिश्ती संत नासिरूद्दीन महमूद ‘चिराग-ए-दिल्ली’ अर्थात ‘दिल्ली के चिराग’ नाम से अधिक प्रसिद्ध हुए।
  • दक्षिण भारत में चिश्ती सिलसिले को प्रारंभ करने का श्रेय निजामुद्दीन औलिया के शिष्य ‘शेख बुरहानुद्दीन गरीब’ को जाता है। इन्होंने दौलताबाद को अपने प्रचार-प्रसार का केंद्र बनाया।
  • मुगल शासक अकबर फतेहपुर सीकरी के चिश्ती संत शेख सलीम चिश्ती के प्रति आदर भाव रखता था तथा अपने पुत्र जहांगीर को उनका ही आशीर्वाद समझता था। ‘फतेहपुर सीकरी’ में अकबर ने शेख सलीम चिश्ती के मकबरे का निर्माण कराया।
  • भारत में चिश्ती संप्रदाय सबसे अधिक लोकप्रिय व प्रसिद्ध हुआ।

सुहरावर्दी सिलसिला

  • सुहरावर्दी सिलसिले के संस्थापक बगदाद के शिक्षक शेख शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी थे।
  • भारत में सुहरावर्दी सिलसिले को संगठित, सुदृढ़ तथा लोकप्रिय बनाने का श्रेय शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के शिष्य हाउद्दीन जकारिया को जाता है।
  • सुहरावर्दी सिलसिले का मुख्यालय मुल्तान  में था। इसके अलावा यह पंजाब व सिंध में भी लोकप्रिय था।
  • सुहरावर्दी सिलसिले पर परंपरावादी रूढ़िवादी विचारों का अत्यधिक प्रभाव था। इस सिलसिले के संत चिश्ती सिलसिले के विपरीत शासक वर्ग से संबंध रखते थे तथा राजकीय पद और संरक्षण का लाभ उठाते हुए अत्यंत आराम से जीवन व्यतीत करते थे।
  • शेख बहाउद्दीन जकारिया ने कुबाचा की आलोचना की और इल्तुतमिश का समर्थन किया। इल्तुतमिश ने उन्हें ‘शेख-उल-इस्लाम’ की पदवी दी।
  • सुहरावर्दी सिलसिले के प्रमुख संतों में शेख रूक्नुद्दीन, शेख समाउद्दीन जमाली, मखदूमें जहांनियां, सैयद जलालुद्दीन बुखारी आदि थे।
  • शेख रूक्नुद्दीन ने सुहरावर्दी सिलसिले को काफी प्रसिद्धि अर्जित कराई।
  • सुहरावर्दी सिलसिले की एक शाखा फिरदौसी, जो पूर्वी भारत विशेषकर बिहार में लोकप्रिय हुई, इसके सबसे प्रमुख संत हजरत शर्फुद्दीन याहया मनेरी थे। इनके पत्रों को ‘मक्तूबात’ के नाम से जाना जाता है।
  • चिश्ती सिलसिला और सुहरावर्दी सिलसिला में अंतर-
  1. चिश्ती सिलसिले के संत सुल्तानों और अमीरों से मेल-मिलाप नहीं रखते थे, जबकि सुहरावर्दी संत सुल्तानों और अमीरों से मेल-मिलाप रखते थे।
  2. चिश्ती संतों को जो धन मिलता था, उसे वे लोगों में बांट देते थे, जबकि सुहरावर्दी संत बहाउद्दीन जकारिया ने सब प्रकार से धन इकट्ठा किया।
  3. चिश्तियों के ‘जमातखाना’ में हर तरह के लोग आ सकते थे, वे सभी एक बड़े कमरे में बैठते थे। जबकि सुहरावर्दी सिलसिले के लोगों को अलग-अलग रहने का स्थान दिया जाता था। अमीर और साधारण लोगों को मिलने के लिए अलग-अलग समय दिया जाता था।

कादिरी सिलसिला

  • कादिरी संप्रदाय की स्थापना बगदाद के अब्दुल कादिर जिलानी ने 12वीं सदी में की थी।
  • शेख मुहम्मद अल हुसैनी के पुत्र शेख अब्दुल कादिर ने पूरे भारत में इस परंपरा का प्रचार किया।
  • कादिरी सिलसिले के सबसे प्रमुख संत शेख मीर मुहम्मद या मियां मीर थे।
  • शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह इस सिलसिले का अनुयायी था।

कादिरी सिलसिले की विशेषता

  1. कादिरी सिलसिले का दृष्टिकोण रूढ़िवादी और कट्टर था। वे शासक वर्ग से संबंध रखते थे और राज्याश्रय प्राप्त करते थे।
  2. कादिरी सिलसिले के अनुयायी गाना-बजाना पसंद नहीं करते थे। वे हरे रंग की पगड़ियां बांधते थे।
  3. प्रारंभ में यह सिलसिला केवल सिंध में ही सीमित था, लेकिन बाद में यह पंजाब, दक्कन क्षेत्रों में भी फैल गया।

नक्शबंदी सिलसिला

  • 13वीं सदी में नक्शबंदी सिलसिले की स्थापना ख्वाजा उबैदुल्ला (अन्य स्रोतों में ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंद) ने की थी, परंतु भारत में इसे लोकप्रिय बनाने का काम ख्वाजा बकी बिल्लाह ने किया।
  • नक्शबंदी सिलसिले के सबसे प्रसिद्ध संत शेख अहमद सरहिंदी थे, जो मुगल बादशाह अकबर और जहांगीर के समकालीन थे। ये इस्लाम के प्रबल समर्थक थे।
  • शेख अहमद सरहिंदी ने अकबर की उदार धार्मिक नीतियों का विरोध किया। औरंगजेब इस परंपरा का समर्थक था।

नक्शबंदी सिलसिले की विशेषता

  1. सूफी सिलसिलों में नक्शबंदी सिलसिला सबसे कट्टरपंथी था।
  2. नक्शबंदी सिलसिले के संत ‘शरीयत’ पर अधिक जोर देते  थे।
  3. इस सिलसिले के लोग संगीत के विरोधी  थे। उन्होंने  एक ईश्वरवाद के सिद्धांत को भी चुनौती दी।

शत्तारी सिलसिला

  • इस सूफी सिलसिले की भारत में स्थापना शाह अब्दुल शत्तार  द्वारा की गई।
  • शत्तारी सिलसिले का प्रभाव जौनपुर, बंगाल और दक्कन के क्षेत्रों में था।
  • इस सिलसिले के सबसे प्रसिद्ध संत ग्वालियर निवासी हजरत मुहम्मद गौस  थे। इन्होंने संगीत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। संगीत सम्राट तानसेन इन्हीं के शिष्य थे।

भारत में सूफी मत का प्रभाव

  •  भारतीय इतिहास में सूफी आंदोलन ने दो संस्कृतियों के समन्वय में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वस्तुतः भारत में इस्लाम की लोकप्रियता सूफी संतों की वजह से ही संभव हुई थी, न कि शासकवर्ग के प्रभाव से। बल्कि, शासकवर्ग के अत्याचारों व भेदभावपूर्ण नीति के कारण भारतीयों को इस्लाम के प्रति जो घृणा-सी हो गई थी, उसे सूफियों ने अपनी प्रेमपूर्ण वाणी और जनकल्याणकारी गतिविधियों से दूर कर दिया। साथ ही, सर्वाधिक धर्मपरिवर्तन भी सूफियों द्वारा ही हुआ और इसके लिए उन्होंने बल का प्रयोग भी नहीं किया। उन्होंने बड़े शांतिपूर्ण ढंग से इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया।
  •  संक्रमण व अव्यवस्था के उस दौर में समाज में शांति बनाए रखने में भी उनकी अहम भूमिका रही। उन्होंने सामाजिक विघटन को बचाया और सुलह कुल (विश्वबंधुत्व) का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उन्होंने जीवन-दर्शन में नैतिकता को सर्वाेच्च स्थान दिया।
  •  सूफियों का भारतीय संदर्भ में जो सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा, वह यह कि उन्होंने मुस्लिम शासकवर्ग को धर्मांधता से दूर बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सदभाव और सह-अस्तित्व पर बहुत बल दिया। वस्तुतः मध्यकाल में धार्मिक सहिष्णुता और समन्वय, दो स्तरों पर दो भिन्न आंदोलनों के अथक प्रयासों की पृष्ठभूमि में ही संभव हो पाया। जनसाधारण के स्तर पर भक्त कवियों ने धार्मिक सहिष्णुता की बातें प्रसारित कीं और शासकवर्ग के स्तर पर सूफियों ने धार्मिक सहिष्णुता के अनुकूल नीतिगत परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चिश्तियों की उदारता का प्रभाव अकबर पर बहुत अधिक था। दाराशिकोह व जहांआरा भी चिश्ती संप्रदाय के प्रति बहुत श्रद्धा रखते थे। वस्तुतः सूफियों ने इस्लाम और मुसलमानों का भारतीयकरण कर भारत में उनकी स्थिरता सुनिश्चित की।

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