क्रान्ति के राष्ट्रव्यापी स्वरूप और भारतीयों में अंग्रेजी सरकार के प्रति बढ़ते आक्रोश को देखकर अंग्रेजी सरकार घबरा गयी। क्रान्ति की विभीषिका को देखते हुए अंग्रेजी सरकार ने निर्ममतापूर्ण दमन की नीति अपनायी। तत्कालीन वायसराय लाॅर्ड केनिंग ने बाहर से अंग्रेजी सेनाएं मंगवायी। जनरल नील के नेतृत्व वाली सेना ने बनारस और इलाहाबाद में क्रान्ति को जिस प्रकार से कुचला, वह पूर्णतः अमानवीय था। क्रान्तिकारियों को छोड़ जनसाधारण का कत्ल किया गया, गांवों को लूटा गया और निर्दाेषों को भी फांसी की सजा दी गई।
दिल्ली में बहादुरशाह को गिरफ्तार कर लेने के बाद नरसंहार शुरू हो गया था। कमाण्डर इन चीफ जनरल एनसन ने रेजिमेण्टों को आदेश देकर फिरोजपुर, जालंधर, फुलवर, अम्बाला आदि में निर्ममता के साथ लोगों की हत्या करवायी। सैनिक नियमों का उल्लंघन कर कैदी सिपाहियों में से अनेकों को तोप के मुंह पर लगाकर उड़ा दिया गया। पंजाब में सिपाहियों को घेरकर जिन्दा जला दिया गया।
अंग्रेजों ने केवल अपनी सैन्य शक्ति के सहारे ही क्रान्ति का दमन नहीं किया, बल्कि उन्होंने प्रलोभन देकर बहादुरशाह को गिरफ्तार करवा लिया, उसके पुत्रों की हत्या करवा दी, सिक्खों और मद्रासी सैनिकों को अपने पक्ष में कर लिया। वस्तुतः, क्रान्ति के दमन में सिक्ख रेजिमेण्ट ने यदि अंग्रेजी सरकार की सहायता नहीं की होती, तो अंग्रेजी सरकार के लिए क्रान्तिकारियों को रोक पाना टेढ़ी खीर ही साबित होता। क्रान्ति के दमन में अंग्रेजों को इसलिए भी सहायता मिली कि विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग समय में क्रान्ति ने जोर पकड़ा था।