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1857 का विद्रोह: स्वतंत्रता संघर्ष अथवा सैनिक विद्रोह?

  • वर्ष 1857 का विद्रोह शताब्दियों से शोषित, प्रताड़ित एवं उपेक्षित भारतीय जन-समूह की स्वतंत्रता प्राप्ति की तीव्र उत्कंठा का प्रतीक है। 1857 में हुए इस विद्रोह के सम्पूर्ण घटनाक्रम पर सूक्ष्म दृष्टि डालने से स्पष्ट हो जाता है कि यह एक राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत स्वतंत्रता संघर्ष था, परन्तु कुछ अंग्रेज इतिहासकारों और उनके समर्थक भारतीय इतिहासकारों द्वारा इसे ‘सैनिक विद्रोह’ अथवा ‘गदर’ की संज्ञा प्रदान कर इसके महत्व को कम करने की कोशिश की जाती है।
  • फ्रेड राबर्ट्स, एडवर्ड टाम्प्सन, जी.टी.गैरेट, सर जॉनसिले, जेम्स आउट्रम, विलियम हावर्ड रसेल, जी.बी. मैल्लेसन आदि पाश्चात्य इतिहासकारों के साथ-साथ रमेशचन्द्र मजूमदार , सुरेंद्रनाथ सेन, हरिप्रसाद चट्टोपाध्याय, पूरनचंद्र जोशी आदि भारतीय इतिहास 1857 के विद्रोह को सैनिकों द्वारा छोटे स्तर पर किए गए विद्रोह के रूप् में व्याख्यायित करते हैं। इनका मानता है कि 1857 के विद्रोह में राष्ट्रीयता की भावना का सर्वथा अभाव था।
  • दूसरी ओर, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, विनायक दामोदर सावरकर, एम.ए.ए. रिजवी, बेंजामिन डिजरैली, जस्टिस मेकार्थी, जान ब्रूस नार्टन, बिपिन चन्द आदि-जैसे इतिहासकार 1857 के विद्रोह को भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रथम संघर्ष की संज्ञा दी है। इनका मानना है कि वर्ष 1857 का आंदोलन जन-जीवन से संपृक्त, भारत से विदेशी आतातायियों को निकालने के उद्देश्य से संबद्ध तथा एक संगठित और सुनियोजित कार्यक्रम था।
  • 1857 का संग्राम यदि सैनिक विद्रोह मात्र था, तो उसमें सिर्फ सैनिकों ने ही भाग क्यों लिया ? मेरठ से उठी क्रान्ति की लहर ने दो दिनों के भीतर ही दिल्ली को भी अपनी चपेट में ले लिया। वस्तुतः, विद्रोह में ग्रामीण और शहरी जनता सम्मिलित थी। हां, क्रान्ति की शुरूआत सैनिकों ने की थी।
  • वर्ष 1857 के विप्लव में क्रुद्ध सिपाहियों के साथ-साथ अंग्रेजों के अत्याचार से क्षुब्ध जनसाधारण ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया था। इसलिए, इसे मात्र ‘सैनिक विद्रोह’ की संज्ञा देना युक्तिसंगत नहीं है। डॉ. आर.सी. मजूमदार का यह कहना कि ‘तथाकथित 1857 का प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम न तो प्रथम था, न ही राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम था’  सर्वथा अतिशयोक्तिपूर्ण और सत्यता से परे है। स्वतंत्रता की भावना से उद्वेलित हिन्दू और मुसलमान दोनों सम्प्रदायों का सम्मिलित होकर विदेशियों को अपने देश से निकालने का पहला प्रयास 1857 में ही हुआ। इसलिए, 1857 की क्रान्ति को ‘भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम का प्रथम उदघोष’ कहना सर्वथा युक्तिसंगत है।

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