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मौर्यकाल में समाज

मौर्य कालीन समाज की विशेषताओं को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत समझा जा सकता है-

 

दास व्यवस्था

  • मेगस्थनीज तथा स्ट्रैबो के अनुसार भारत में दास प्रथा नहीं थी, जबकि मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था में दासों का महत्वपूर्ण योगदान था।
  • त्रिपिटक में चार प्रकार के दासों का वर्णन है वहीं कौटिल्य ने नौ प्रकार के दासों का उल्लेख किया है। अशोक ने शिलालेखों में दास और कर्मकार का उल्लेख मिलता है। कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ के अनुसार मौर्य काल में दासों को कृषि कार्यों में बड़े पैमाने पर लगाया गया।

स्त्रियों की स्थिति

  • मौर्यकालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति स्मृति काल की अपेक्षा अधिक सुरक्षित थी। उन्हें पुनर्विवाह व नियोग की अनुमति थी।
  • स्त्रियों को प्रशासन में शामिल किया जाता था। स्त्री एवं पुरूष दोनों को ‘तलाक’ लेने का अधिकार प्राप्त था। कौटिल्य ने ‘मोक्ष’ शब्द तलाक के लिए प्रयुक्त किया है।
  • मौर्यकालीन समाज में विधवा विवाह प्रचलित था। कुछ विधवाएं स्वतंत्र रूप से जीवन यापन करती थीं, जिन्हें ‘छंदवासिनी’ कहा जाता था।
  • समाज में वेश्यावृत्ति की प्रथा प्रचलित थी तथा उसे राजकीय संरक्षण भी प्राप्त था। स्वतंत्र रूप से वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियां रूपाजीवा कहलाती थीं। इनके कार्यों  का निरीक्षण गणिकाध्यक्ष करता था।
  • संभ्रांत घर की स्त्रियां प्रायः घरों में ही रहती थीं। कौटिल्य ने ऐसी स्त्रियों को ‘अनिष्कासिनी’ कहा है।
  • मौर्य काल के बारे में कुछ यूनानी लेखकों ने उत्तर-पश्चिम में सैनिकों की स्त्रियों के सती होने का उल्लेख किया है, जबकि अर्थशास्त्र में सती प्रथा का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।

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