मौर्यकालीन कला
- मौर्ययुगीन कला को दो भागों में विभाजित किया जाता है -
- राजकीय कला-राजकीय कला में राजरक्षकों द्वारा निर्मित स्मारकों को शामिल किया गया, जैसे-स्तंभ, गुहा, स्तूप आदि। राजकीय कला में राजरक्षकों द्वारा निर्मित स्मारकों को शामिल किया गया, जैसे-स्तंभ, गुहा, स्तूप आदि।
- लोककला- लोककला के अन्तर्गत स्वतंत्र कलाकारों द्वारा निर्मित वस्तुएं, जैसे-यक्ष-यक्षिणी की प्रतिमाएं, मिट्टी की मूर्ति आदि शामिल किए गए।
- मौर्य काल के सर्वात्कृष्ट नमूने अशोक के एकाश्म स्तंभ हैं जोकि उसने धम्म प्रचार के लिए देश के विभिन्न भागों में स्थापित किये थे। अशोक ने चट्टानों को काटकर कंदराओं का निर्माण करवाकर वास्तुकला में एक नई शैली आरंभ किया।
- गुहा वास्तु इस काल की अन्य देन है। अशोक के शासनकाल से ही गुहाओं का उपयोग आवास के रूप में होने लगा था।
मौर्यकालीन स्थापत्य की प्रमुख विशेषताएं
- निर्माण कार्य में पत्थरों का इस्तेमाल
- लौह अयस्कों का सधा हुआ प्रयोग
- चमकदार पॉलिश (ओप) का प्रयोग
- भवन निर्माण में लकड़ी का विशेष प्रयोग
- मौर्य काल में मूर्तियों का निर्माण चिपकवा विधि (अंगुलियां या चुटकियों का इस्तेमाल करके) या सांचे में ढालकर किया जाता था।
- पारखम (उत्तर प्रदेश) से प्राप्त 7 फीट ऊँची यक्ष की मूर्ति, दिगंबर प्रतिमा (लोहानीपुर-पटना), धौली (ओडिशा) का हाथी तथा दीदारगंज (पटना) से प्राप्त यक्षिणी मूर्ति मौर्य कला के विशिष्ट उदाहरण हैं।
- सारनाथ स्तंभ के शीर्ष पर बने चार सिंहों की आकृतियां तथा उसके नीचे बल्लरी-आकृति अशोक कालीन मूर्तिकला का बेहतरीन नमूना है, जो आज हमारा राष्ट्रीय चिन्ह है।