• Have Any Questions
  • +91 6307281212
  • smartwayeducation.in@gmail.com

Study Material



मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था

मौर्य काल की अर्थव्यवस्था के तीन स्तंभ थे-

1. कृषि,

2. पशुपालन/उद्योग,  

3. वाणिज्य या व्यापार।

कृषि

  • मौर्य काल में कृषि की प्रधानता थी। भूमि पर राज्य के साथ  कृषकों का भी अधिकार होता था।
  • राजकीय भूमि की व्यवस्था करने वाला प्रधान अधिकारी सीताध्यक्ष कहलाता था। भूमि पर दासों, कर्मचारियों और कैदियों द्वारा जुताई-बुआई होती थी।
  • कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र’ में कृष्ट (जुती हुई), आकृष्ट (बिना जुती हुई), स्थल (ऊँची भूमि) आदि अनेक भूमि का उल्लेख किया है। ‘अदेवमातृक’ भूमि वह भूमि होती थी, जिसमें बिना वर्षा के भी अच्छी खेती होती थी।
  • राज्य में आय का प्रमुख स्रोत भूमिकर था। यह मुख्यतः उपज का 1/6 भाग होता था। यह दो प्रकार का होता था- 

1. सेतु कर     

2. वन कर

 

  • चाणक्य के अनुसार-
    • क्षेत्रक-   भूस्वामी को कहते थे।
    • उपवास -   काश्तकार होता था। 

 

कर से संबंधित प्रमुख शब्दावलियां और उनसे संबंधित विषय-वस्तु

सीता

राजकीय भूमि से होने वाली आय

भाग

उपज का हिस्सा

प्रवेश्य

आयात कर

निष्क्राम्य

निर्यात कर

प्रणय

आपातकालीन कर

बलि

एक प्रकार का राजस्व कर

हिरण्य

अनाज के रूप में न लेकर नकद लिया जाता था

सेतुबंध

राज्य की ओर से सिंचाई का प्रबंध

विष्टि

निःशुल्क श्रम एवं बेगार

 

उद्योग

  • सूत कातना एवं बुनना मौर्य काल का प्रधान उद्योग था।
  • उद्योग धंधों की संस्थाओं को ‘श्रेणी’  कहा जाता था। श्रेणी न्यायालय के प्रधान को ‘महाश्रेष्ठि’ कहा जाता था।
  • व्यापारिक जहाजों का निर्माण इस काल के प्रमुख उद्योगों में से एक था।

 

प्रमुख व्यापारिक संगठन

श्रेणी

शिल्पियों का संगठन

निगम

व्यापारियों का संगठन

संघ

देनदारों/महाजनों का संगठन

सार्थवाह

कारवां व्यापारियों का प्रमुख व्यापारी (अनाज से संबंधित)

 

 

मौर्यकालीन मुद्राएं

  • मौर्यों की राजकीय मुद्रा ‘पण’थी।
  • सुवर्ण एवं निष्क यह सोने का बना होता था।
  • कार्षापण, पण, धारण  चांदी का बना होता था। पण 3/4 तोले के बराबर चांदी का सिक्का था।
  • माषक एवं काकणि यह तांबे का सिक्का होता था।
  • मुद्राओं का परीक्षण करने वाले अधिकारी को ‘रूपदर्शक’ कहा जाता था।
  • राज्य के शीर्षस्थ अधिकारियों को 48000 पण तथा सबसे निम्न अधिकारियों को 60 पण वेतन मिलता था।
  • मयूर, पर्वत और अर्द्धचंद्र की छाप वाली आहत रजत मुद्राएं मौर्य साम्राज्य की मान्य मुद्राएं थीं।

वाणिज्य एवं व्यापार

  • मौर्य काल में व्यापार (आंतरिक एवं बाह्य), जल एवं स्थल दोनों मार्गों से होता था।
  • आंतरिक व्यापार के प्रमुख केन्द्र थे-तक्षशिला, काशी, उज्जैन, कौशांबी तथा तोसली (कलिंग राज्य की राजधानी) आदि।
  • इस समय भारत का बाह्य व्यापार रोम, सीरिया, फारस, मिस्र तथा अन्य पश्चिमी देशों के साथ होता था। यह व्यापार पश्चिमी भारत में भृगुकच्छ बंदरगाह से तथा पूर्वी भारत में ताम्रलिप्ति के बंदरगाह द्वारा किया जाता था।
  • मेगस्थनीज ने ऐग्रोनोमोई नामक अधिकारी की चर्चा की है, जो मार्ग निर्माण का विशेष अधिकारी था।
  • भारत से मिस्र को हाथी दांत, कछुए, सीपियां, मोती, रंग, नील और लकड़ी निर्यात होता था।

व्यापारिक मार्ग

  • मुख्य रूप से चार व्यापारिक मार्गों का उल्लेख मिलता है-
    • प्रथम मार्ग(उत्तरपथ)-उत्तर-पश्चिम पुरूषपुर से पाटलिपुत्र (ताम्रलिप्ति) तक जाने वाला राजमार्ग (सबसे महत्वपूर्ण मार्ग)
    • द्वितीय मार्ग-पश्चिम में पाटल से पूर्व में कौशांबी के समीप उत्तरापथ मार्ग से मिलता था।
    • तृतीय मार्ग-दक्षिण में प्रतिष्ठान से उत्तर में श्रावस्ती तक जाने वाला मार्ग।
    • चतुर्थ मार्ग- यह मार्ग भृगुकच्छ से मथुरा तक जाता था, जिसके मार्ग में उज्जयिनी पड़ता था।

Videos Related To Subject Topic