संगम साहित्य
- प्राचीन संगम काल में जिन संगम ग्रंथों की रचनाएं की गईं, उन्हें संगम साहित्य कहा गया।
- विषय-वस्तु की दृष्टि से संगम साहित्य में ‘प्रेम’ और ‘राजाओं की प्रशंसा’ पर अधिक जोर दिया जाता था। तमिल में प्रेम संबंधी मानवीय पहलुओं पर आधारित रचनाओं को ‘अगम’ तथा राजाओं की प्रशंसा, सामाजिक जीवन, नैतिकता, वीरता, रीति-रिवाजों संबंधी रचनाओं को ‘पुरम’ कहा जाता था।
संगम साहित्य को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है-(1) पत्थुप्पातु, (2) इत्थुथोकै, (3) पदिनेनकीलकन्कु
पत्थुप्पातु
- पत्थुप्पातु दस संक्षिप्त पदों का संग्रह है। संभवतः इन पदों को लिखे जाने का समय द्वितीय सदी ईसवी का है।
- इन संक्षिप्त पदों में पाण्ड्य राजा नेडुंजेलियन और चोल राजा करिकाल के विषय में जानकारी मिलती है।
इत्थुथोकै
- इत्थुथोकै आठ कविताओं का संग्रह है।
- इन कविताओं में संगम काल के राजाओं के नाम और तात्कालिक समाज का विववरण है। ये कविताएं प्राचीन तमिल साहित्य की उत्कृष्ट कृतियां हैं।
पदिनेनकीलकन्कु
- पदिनेनकीलकन्कु अठारह छोठी कविताओं का संकलन है। इनका भाव उपदेशात्मक है।
- इन कविताओं में तिरूवल्लुवर द्वारा रचित तिरूक्कुरल या कुरल उत्कृष्ट रचना है। इस रचना में राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, आचारशास्त्र और प्रेम जैसे विषय सम्मिलित हैं।
संगमकालीन प्रमुख साहित्य
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संगम साहित्य
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रचनाकार
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तोल्काप्पियम
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तोल्काप्पियर
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मरूगर्रूप्पादय
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नक्कीरर
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शिलप्पादिकारम्
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इलांगो आदिगल
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जीवकचिंतामणि
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तिरूत्तक्कदेवर
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संगमकालीन महाकाव्य
- संगम काल में महाकाव्यों की भी रचना की गई। यद्यपि ये ग्रंथ संगम साहित्य के अन्तर्गत नहीं आते तथापि इनसे तत्कालीन जन-जीवन के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त हो जाती है। इस काल के पांच प्रसिद्ध महाकाव्य हैं-शिलप्पादिकारम्, मणिमेखलै, जीवकचिंतामणि, वलयपति तथा कुंडलकेशि। इनमें प्रथम तीन ही उपलब्ध हैं। इनका विवरण इस प्रकार है-
- संगमकालीन महाकाव्यों में शिलप्पादिकारम् महाकाव्य का बहुत अधिक महत्व है।
- शिलप्पादिकारम् महाकाव्य की रचना चेर शासक शेनगुट्टुवन के भाई इलंगोआदिगल ने की थी।
- यह एक प्रेम-कथा पर आधारित महाकाव्य है। इस महाकाव्य के नायक और नायिका क्रमशः कोवलन और कण्णगी है।
- इस महाकाव्य का नायक कोवलन अपनी पत्नी कण्णगी की उपेक्षा कर माधवी नामक एक वेश्या से प्रेम करता है।
- तमिल साहित्य में शिलप्पादिकारम् को एक राष्ट्रीय काव्य के रूप में मान्यता प्राप्त है।
मणिमेखलै
- इस महाकाव्य की रचना मदुरा के एक बौद्ध व्यापारी सीतलैसत्तनार द्वारा की गई।
- इस महाकाव्य में महाकाव्य की नायिका मणिमेखलै के साहसिक जीवन का वर्णन है। ‘मणिमेखलै’, शिलप्पादिकारम् के नायक कोवलन और उसकी प्रेमिका माधवी से उत्पन्न पुत्री थी।
- उल्लेखनीय है कि जहां पर शिलप्पादिकारम् की कहानी खत्म होती है, वहीं से मणिमेखलै की कहानी प्रारंभ होती है।
जीवकचिंतामणि
- इस महाकाव्य के लेखक जैन धर्मावलंबी तिरूत्तक्कदेवर हैं।
- इस महाकाव्य में इसके नायक के जीवक का चरित्र-चित्रण किया गया है। ऐसा माना जाता है कि नायक कुल आठ विवाह करता है और गृह जीवन के बाद परिवार का त्याग करके जैन धर्म अपनाकर संन्यास ग्रहण कर लेता है।
- जीवकचिंतामणि में आठ विवाहों के वर्णन के कारण इसे धर्मग्रंथ (मणमूल) भी कहा जाता है।
संगमकालीन राजनैतिक इतिहास
संगमकालीन राजनैतिक इतिहास का ज्ञान हमें ‘संगम साहित्य’ से ही मिलता है। संगम साहित्य में तीन महत्वपूर्ण राज्यों-चेर, चोल और पांड्य का उल्लेख किया गया है।
संगम साहित्य के अनुसार चेर का राज्य दक्षिण-पश्चिम में, चोलों का राज्य उत्तर-पूर्व में तथा पांड्यों का राज्य दक्षिण-पूर्व में स्थित था।