किसी स्थान अथवा प्रदेश में लम्बे समय के तापमान,वर्षा,वायुमण्डलीय दाब तथा पवनों की दिशा एवं गति की समस्त दशाओं के योग को जलवायु कहते हैं ।
किसी स्थान के जलवायु में परिवर्तन एक लम्बी अवधि (सामान्यत:30 या इससे भी अधिक वर्ष) में होता है । भारत की जलवायु को जिस एक शब्द से पूर्णत:व्यक्त किया जा सकता है, वह है, मानसून, मानसून हवाओं का मौसमी प्रत्यावर्तन है क्योंकि शीत ऋतु में हवाएँ स्थल से समुद्र की ओर तथा ग्रीष्म ऋतु में समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं ।
मानसून दक्षिणी व दक्षिणी:पूर्वी एशियाई जलवायु की प्रमुख विशेषता है एवं इसका पर्याप्त आर्थिक महत्व है । भारतीय कृषि को मानसून का जुआ माना जाता है क्योंकि अधिकतर क्षेत्रों में कृषि मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर है । वस्तुत:मानसून वह धुरी है जिसके चारों ओर भारतीय अर्थव्यवस्था घूमती है ।
मानसून को शुष्क व आर्द्र दो कालों में बाँटकर देखा जा सकता है । शुष्क काल के अन्तर्गत,शीत शुष्क ऋतु व ग्रीष्म ऋतु आती है जबकि आर्द्र काल के अन्तर्गत,मानसून के आगमन एवं निवर्तन का काल शामिल किया जाता है ।
शीत शुष्क ऋतु
यह मध्य दिसम्बर से फरवरी तक का काल होता है । इस समय सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण पश्चिमोत्तर भारत में उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है ।
यहाँ का तापमान औसतन 10°C मिलता है जबकि इस समय दक्षिणी भारत में लगभग 25°C तापमान रहता है ।
पवन प्रवाह उत्तर-पश्चिमी भारत से पूर्व की ओर होता है एवं पूर्वी तटीय भाग में उत्तर:पूर्वी व्यापारिक पवनों के प्रभाव से वर्षा होती है । इस समय मुख्य रूप से भूमध्यसागरीय पश्चिमी विक्षोभों से वर्षा प्राप्त होती है।ये वे शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात हैं जो उपोष्ण पछुआ जेट पवनों द्वारा इराक, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से होते हुए भारतीय भू:भाग तक प्रवाहित होते हैं ।
पूर्व की ओर बढ़ने पर इनसे वर्षा की मात्रा में कमी देखने को मिलती है । पंजाब में इससे 25 सेमी. वर्षा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 4 सेमी.वर्षा प्राप्त होती है ।
पश्चिमी विक्षोभ से प्राप्त होने वाली अल्प वर्षा पंजाब,हरियाणा आदि राज्यों की गेहूँ,चना,सरसों आदि फसलों की वृद्धि में सहायक होती है । राजस्थान में इस वर्षा को मावट कहते हैं । हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती में भी यह मदद करती है । हिमालय क्षेत्र में हिम:रेखा के ऊपर इनसे हिमपात होता है,जिससे इस क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ सदानीरा बनी रहती हैं ।
पश्चिमी विक्षोभों के प्रभाव से उत्तर: पश्चिमी भारत में इस समय शीत लहरें भी देखने को मिलती हैं । पश्चिमी विक्षोभों से औसत वार्षिक वर्षा का लगभग 3% प्राप्त होता है ।
ग्रीष्म ऋतु
यह मार्च से मध्य जून तक रहती है । इस समय सूर्य उत्तरायण रहता है एवं तापमान में वृद्धि देखी जाती है ।
21 मार्च को सूर्य विषुवत रेखा पर एवं 23 जून को कर्क रेखा पर लम्बवत चमकता है ।
मार्च के मध्य में तापमान बढ़ना शुरू होता है एवं मध्य मई तक तापमान बढ़कर 40-42°C तक हो जाता है । उत्तरी: पश्चिमी भारत में इस समय लू चलती है एवं तापमान कई स्थानों पर 45°C से भी ऊपर पहुँच जाता है । राजस्थान में 49°C, बिहार व उत्तर प्रदेश में 38:40°C तथा महाराष्ट्र,कर्नाटक व केरल में इस समय 27:28°C तापमान रहता है ।
पश्चिमोत्तर भारत का उच्च वायु दाब इस समय धीरे:धीरे निम्न वायु दाब में बदल जाता है । दक्षिणी:पूर्वी आर्द्र समुद्री पवन व स्थलीय शुष्क धूल भरी आंधी के मिलने से तूफान की उत्पत्ति होती है,जिससे पवन की गति और तेज हो जाती है ।
इस समय मानसून पूर्व की वर्षा प्राप्त होती है जो औसत वार्षिक वर्षा का लगभग 10% होती है । विभिन्न भागों में इस वर्षा के अलग-अलग स्थानीय नाम हैं ।
असम में इसे चाय वर्षा ( Tea Shower ),बंगाल में काल वैशाखी,केरल में आम्र वर्षा ( Mango Shover ) एवं कर्नाटक में कॉफी वर्षा ( Coffee Shower ) एवं चेरी ब्लाजप कहा जाता है ।
ओडिशा में इस वर्षा को नार्वेस्टर भी कहा जाता है । इस समय होने वाली वर्षा से तड़ित झंझा ( Thunder Storm ) भी उत्पन्न होते हैं बिजली की चमक के साथ तेज वर्षा होती है ।
आर्द्र काल के अन्तर्गत,मानसून के आगमन एवं निवर्तन के काल को सम्मिलित किया जाता है । जहां मानसून की प्रभाविता की अवधि मय जुन से मध्य सितंबर तक है वही निवर्तित मानसून का मुख्य काल मध्य सितंबर से मध्य दिसम्बर तक है ।