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भूमि सुधार

  • औपनिवेशिक शासनकाल में जमींदारी एवं रैय्यतवाड़ी जैसी कृषि व्यवस्था में कृषकों का भूमि से लगाव अधिक नहीं रह गया   था । परिणामस्वरूप भूमि की उत्पादकता काफी कम थी । जोत के आकार का वितरण-प्रारूप काफी असमान था । छोटे आकार के जोतों में कृषि का पर्याप्त विकास संभव नहीं था । भूमिहीन मजदूरों की संख्या काफी अधिक थी, जो कि भूमि के असमान वितरण का परिणाम था । इसीलिए स्वतंत्रता के बाद इन चुनौतियों पर ध्यान देते हुए 1948 ई. में भूमि सुधार संबंधी कानून बनाया गया । इसके तीन पहलू थे-

हदबंदी-इसके अंतर्गत अधिकतम भूमि की सीमा निर्धारित की गयी तथा अतिरिक्त भूमि के पुनर्वितरण का लक्ष्य रखा गया ।

चकबंदी-इसके द्वारा जोत के आकारों को और छोटा होने से रोकने व भूमि को इकट्ठा कर बड़ी जोतों के माध्यम से सहकारी कृषि पर बल दिया गया ।

काश्तकारी सुधार- इसके माध्यम से किसानों को जोत का अधिकार प्रदान करने तथा जमींदारों के अत्याचार से रक्षा करने का अधिकार दिया गया ।

  • वर्ष 1950-53 के दौरान पूरे देश में जमींदारी उन्मूलन कानून बनाया गया । 2 करोड़ कृषकों को काश्तकारी अधिकार व 1 करोड़ कृषकों को भूमि स्वामित्व प्रदान किया गया परंतु,मौखिक व्यवस्था  के कारण यह पूरी तरह से लागू नहीं किया जा    सका ।
  • 1960 के दशक में भू-दान आंदोलन के द्वारा अतिरिक्त भूमि अधिग्रहण करने का प्रयास किया गया, परंतु भू-दान आंदोलन एवं प्रशासन में तालमेल नहीं होने के कारण दान की गयी भूमि अभी तक दानकर्ताओं के पास ही है । अनेक मामलों में जिनको भूमि दी गयी थी वे भूमि लेने ही के लिए नहीं आए, क्योंकि उनके पास पूँजी का अभाव था । यही कारण है कि, आज भी हमारे देश में भूमि का अत्यधिक असमान वितरण है ।
  • 1 हेक्टेयर से कम भूमि रखने वाले 57.8% सीमांत कृषकों के पास मात्र 13.4% भूमि है । जबकि,हेक्टेयर से अधिक जोत रखने वाले किसान मात्र 2% हैं, परंतु उनके पास कुल भूमि का 20% भाग है इसलिए भूमि-सुधार को गरीबी निवारण व 20 सूत्रीय कार्यक्रम का अंग बनाया गया।
  •  इस सन्दर्भ में वर्ष 1994 ई.में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि,जिन भूमिहीन व सीमांत किसानों को भूमि प्रदान की जाए, उन्हें प्रति हेक्टेयर 2500 रुपये भी प्रदान किए जाएँ ताकि वे कृषि भूमि का विकास कर सकें ।
  • चकबंदी भी मुख्यतः उन्हीं क्षेत्रों में संभव है,जहाँ पर संरचनात्मक सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं । अतः चकबंदी का 80% क्रियान्वयन हरित क्रांति प्रदेशों में ही हो पाया है । अन्य प्रदेशों में चकबंदी उचित रूप से लागू नहीं हो पायी । जैसे-बाढ़,सूखा,भूमि की उर्वरता में विषमता आदि समस्याएँ थी । इसलिए संरचनात्मक कारकों के विकास के बिना यहाँ चकबंदी लगभग असंभव है काश्तकारी सुधार के कार्य भी बहुत कम राज्यों में हो सके हैं । केवल पश्चिम बंगाल में इसके लिए कानून बनाया गया जहाँ काश्तकारों को जोत का अधिकार तब तक दिया गया है, जब तक कि भू-स्वामी स्वयं खेती न करने लगे ।
  • इस कानून में कुल उत्पादन का 10 भाग काश्तकार को एवं 6 भाग भू-स्वामी को मिलने का प्रावधान है । भूमिहीनों व काश्तकारी सुधार की समस्या इस कारण भी बनी हुई है क्योंकि, जो खेती नहीं करते हैं या जिन्होंने कोई अन्य वैकल्पिक व्यवसाय अपना लिया है, वे भी भूमि पर अपने अधिकार को छोड़ना नहीं चाहते हैं ।

        प्रमुख फसलें एवं शीर्ष उत्पादक राज्य

फसलें

शीर्ष उत्पादक राज्य

केसर

कश्मीर

काली मिर्च

केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु

छोटी इलायची

केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु

अदरक

मेघालय, अरुणांचल प्रदेश, सिक्किम

जीरा

राजस्थान, केरल

लौंग

तमिलनाडु, केरल

मिर्च

आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, प. बंगाल

हल्दी

आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक

    प्रमुख फल एवं शीर्ष उत्पादक राज्य

फल

सर्वाधिक उत्पादक

आम

उत्तर प्रदेश

केला

गुजरात

अंगूर

महाराष्ट्र

अमरुद

मध्य प्रदेश

लीची

बिहार

कटहल

असोम

काजू

महाराष्ट्र

आंवला

उत्तर प्रदेश

पपीता

गुजरात

अनन्नास

पश्चिम बंगाल

नारियल

तमिलनाडु

सेपोटा

गुजरात

अनार

महाराष्ट्र

अखरोट

जम्मू और कश्मीर

संतरा

महाराष्ट्र

नीबू वर्ग

आंध्र प्रदेश

सेब

जम्मू कश्मीर

नाशपाती

उत्तराखंड

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