बंगाल में राजनीतिक संस्थाएं
- भारत में राजनीतिक आंदोलन के प्रवर्तक राजा राममोहन राय थे, वह पाश्चात्य विचारों से बहुत प्रभावित हुए थे |
- वह विद्वान व्यक्ति थे ,इसी कारण वह समकालीन बंगालियों की भांति हठधर्मी और कट्टरपंथी नहीं थे,उनके मन में सार्वभौमिकता थी |
- 1821 में राजा राममोहन राय ने स्पेन में संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना पर एक उत्सव मनाया था |
- राजा राममोहन राय पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने आधुनिक भारत में समाज सुधार कार्योंऔर राजनीतिक आंदोलन का शुभारंभ किया था | उन्होंने भारतीयों की शिकायतों की ओर अंग्रेजों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न किया और उनका समाधान मांगा |
- उन्होंने सार्वभौमिकता से ओतप्रोत राजा राम मोहन राय ने समाचार पत्रों की स्वतंत्रता, सिविल न्यायालय में भारतीयों की नियुक्ति और अन्य उच्च पदोंआदि की मांग की थी |
- परिणाम स्वरुप स्वरुप 1833 के चार्टर एक्ट की कुछ उदारवादी धारणाएं इन्हीं के प्रयत्नों का परिणाम थी |
- लेकिन राजनीतिक संस्थाओं की संगठन का श्रेय उनके साथियों को मिला |
- राजा राम मोहन राय ने भारत में किसी राजनीतिक संगठन की स्थापना नहीं की थी | लेकिन राजा राममोहन राय ने भारत में राजनीतिक विचारधारा की सही मायनों में शुरुआत की थी |
उनके साथियों द्वारा बंगाल में स्थापित किए गए संगठन निम्न थे-
बंगभाषा प्रकाशक/प्रकाशिका सभा
- बंगाल का प्रथम राजनीतिक संगठन बंगभाषा प्रकाशिका सभा थी |
- इसकी स्थापना 1836 में हुई थी |
- इस संगठन में सरकार की नीतियों और प्रशासन की समीक्षा की जाती थी |
- तत्पश्चात इसके द्वारा सरकार के पास प्रार्थना पत्र और मेमो भेजे जाते थे |
- इस संस्था ने भारत वासियों को राजनीति के प्रति जागरूक बनाने में प्रारंभिक प्रयास किया था |
- इस सभा का उद्देश्य सरकारी क्रिया कलापों की समीक्षा कर उनके सुधार के लिए प्रार्थना पत्र भेजना था |
जमीदारी एसोसिएशन अथवा लैंड होल्डर्स सोसाइटी
- जमीदारी एसोसिएशन व्यापक रूप से लैंड होल्डर्स सोसाइटी के नाम से जानी जाती थी |
- इसकी स्थापना कलकत्ता मे1838 में जमींदारों के हितों की रक्षा के लिए हुई थी |
- इस एसोसिएशन के संस्थापक द्वारिका नाथ टैगोर और अन्य जमीदार सहयोगी थे यद्यपि लैंड होल्डर्स सोसायटी के उद्देश्य सीमित है, लेकिन इसमें संगठित राजनीतिक गतिविधियों की शुरुआत की थी |
- जमीदारी एसोसिएशन पहली सभा थी जिसने संगठित राजनीतिक प्रयासों का शुभारंभ किया और अपने कष्टों को दूर करने के लिए संवैधानिक तरीकों का प्रयोग प्रारंभ किया |
- इस संस्था ने ना केवल भारत में ही काम किया बल्कि लंदन में भी 1839 में मिस्टर एडम्ज को ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी की स्थापना करने में मदद की थी | जमीदारी एसोसिएशन में शामिल अंग्रेज नेताओं में थियोडोर डिकेंस विलियम काब्री, विलियम थियोवोल्ड व जे.ए. प्रिंसेस प्रमुख थे |
- इस सोसाइटी के भारतीय नेता द्वारिका नाथ टैगोर राजा राधाकांत देव, प्रसन्न कुमार ठाकुर, राजा काली कृष्ण आदि सभी जमींदार थे |
- लैंड होल्डर्स सोसायटी के भारतीय सचिव प्रसन्न कुमार ठाकुर और अंग्रेज सचिव विलियम काब्री थे |
- जॉन क्रॉफर्ड लंदन में इस एसोसिएशन के प्रतिनिधि थे |
बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी
- अप्रैल1843में एक नई राजनीतिक संगठन बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी की स्थापना हुई |
- इस संगठन की स्थापना जार्ज थॉमसन की अध्यक्षता में हुई थी |
- इस संस्था ने सभी वर्गों के लोगों के उत्थान और अधिकारों की मांग रखी थी |इस संस्था ने लैंड होल्डर्स सोसाइटी को बिल्कुल दुर्बलकर दिया था |
- यह संस्था भी भारतीय और गैरसरकारी अंग्रेजों का सम्मलित संगठन था |
- इसके सचिव प्यारी चंद्र मित्र जमीदारी प्रथा की आलोचना किया करते थे और किसानों के अधिकारों का सवाल उठाते थे |
- इस सभा का प्रमुख उद्देश्य अंग्रेजी शासन में भारतीयों की वास्तविक अवस्था के विषय में जानकारी प्राप्त करउनका प्रचार प्रसार करना और जनता की उन्नति,सामाजिक कल्याण के लिए व न्यायपूर्ण अधिकारों के लिए शांतिमय और कानूनी साधनों का प्रयोग करना था |1846 तक यह सोसायटी भी निष्क्रिय हो गई थी |
ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन
- लैंड होल्डर्स सोसायटी और बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी कोई उन्नति नहीं कर सकी थी और इसकी असफलताओं के कारण इन दोनों को 28 अक्टूबर 1851 को मिलाकर एक ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन बना दिया गया |
- ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन के संस्थापक राजा राधाकांत देव थे |
- इस सभा में भूमिपति ही मुखिया थे और यह उन्हीं के हितों के लिए थी | यह संस्था भूमिपत्तियों के हितों के लिए मुख्य रूप से कार्य कर रही थी |
- इस संस्था ने एक उदारवादी प्रयत्नअवश्य किया और 1853 में चार्टर के नवीनीकरण के समय ब्रिटिश संसद को एक प्रार्थना पत्र भेजा|
- जिसमें लोकप्रिय प्रकार की विधानसभा न्यायिक और दंडनायक कार्य अलगकर दिए जाने की बड़े अधिकारियों के वेतन कमकरने की नमक आबकारी और स्टाम कर इत्यादि समाप्त कर दिए जाने की मांग की थी|
- इस सभा के प्रार्थना पत्र का कुछ प्रभाव अवश्य हुआ और 1853 की चार्टर एक्ट में गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में 6 सदस्य कानून बनानेके लिए जोड़ दिए गए|
- बंगला में इस सभा का नाम भारत वर्षीय सभा रखा गया और राजा राधाकांत देव इसके अध्यक्ष थे|
- इसमें भारतीय जमीदारों के अलावा व्यापारी और नए बुद्धिजीवी लोग भी शामिल किए गए|
- इस संगठन ने नील विद्रोह की जांच के लिए आयोग बैठाने की मांग की थी| इसनें 1860में अकाल पीड़ितों के लिए धन इकट्ठा किया था|
- ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन ने कैनिंग द्वारा 1860 में आयकर लगाने का भी विरोध किया|
- हिंदू पैट्रियाट इसका मुख पत्र था |
- एक राजनीतिक संस्था के रुप में यह 20 वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रही ,इसके पश्चात भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसे आच्छादित कर लिया|
इंडियन लीग
- इस संस्था की स्थापना कोलकाता में 25 सितंबर 1875 को अमृत बाजार पत्रिका के संपादक और मालिक शिशिर कुमार घोष ने की थी
- इसके अस्थाई अध्यक्ष शंभू चंद्र मुखर्जी बने थे|
- इसका प्रमुख उद्देश्य लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का विकास कर राजनीतिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना था|
इंडियन एसोसिएशन
- 26 जुलाई 1876 को इंडियन लीग की स्थापना के 1 वर्ष बाद इसका स्थान इंडियन एसोसिएशन ने ले लिया था | इंडियन एसोसिएशन की स्थापना आनंद मोहन बोस और सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने की थी |
- इंडियन एसोसिएशन के संस्थापक सुरेंद्रनाथ बनर्जी थे लेकिन इसके सचिव आनंद मोहन बोस थे| बाद में इसके अध्यक्ष कलकत्ता के प्रमुख बेरिस्टर मनमोहन घोष चुने गए थे |
- इस संस्था का उद्देश्य मध्यमवर्ग ही नहीं बल्कि सर्वसाधारण को इसमें लाना था | इसलिए इसमे सदस्यों के लिए चंदा ₹5 वार्षिक रखा गया जबकि ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन का चंदा ₹50 वार्षिक था |
- शीघ्र ही इंडियन एसोसिएशन शिक्षित वर्ग के प्रतिनिधियों की मुख्य संस्था बन गई थी|
सुरेंद्रनाथ बनर्जी के अनुसार इसके उद्देश्य निम्न थे-
- देश में जनमत की एक शक्तिशाली संस्था का गठन करना,
- सामान्य राजनीतिक स्वार्थ के आधार पर भारतीयों को सूत्रबद्ध करना,
- हिंदू और मुसलमानों के बीच मैत्री भाव को बढ़ाना,
- इस एसोसिएशन में जमींदारों के स्थान पर मध्यम वर्ग को प्रधानता दी गई,
- इस संगठन ने सिविल सर्विसेज आंदोलन चलाया,जिसे भारतीय जनपद सेवा आंदोलन कहा जाता है,
- यह आंदोलन लिटन की नीतियों के विरुद्ध किया था,
- इसके अतिरिक्त वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, आर्म्स एक्ट और अल्बर्ट बिल के विरोध में आंदोलन चलाया गया था,
इल्बर्ट बिल विवाद के दौरान अपने पत्र “बंगाली”में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जे.एफ.मारिश की आलोचनाकरने के कारण सुरेंद्रनाथ बनर्जी को 5 मई 1883 को दो माह की सजा मिली थी| जुलाई 1883को उन्हें रिहा कर दिया गया था |
इण्डियन एसोसिएशन ने 29 दिसंबर 1883 को कलकत्ता के अल्बर्ट हॉल में आनंद मोहन बोस की अध्यक्षता में नेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया|दूसरी इंडियन नेशनल कांफ्रेंस कलकत्ता में 25 दिसंबर 1885 को हुई थी| इसकी अध्यक्षता सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने की थी |
इस कारण वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में शामिल नहीं हो सके थे | सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने देश में एक चक्रवात के समान तीव्र गति से दौरा किया| उन्होंने कुछ नगरों में इंडियन एसोसिएशन कलकत्ता की सहायक संस्थाएं स्थापित की थी |
भारतीय जनपद सेवा आंदोलन अथवा सिविल सर्विसेज आंदोलन
- भारत में सिविल सेवा का जन्मदाता कार्नवालिस था |
- 1853 में सिविल सेवा के दरवाजे भारतीयों के लिए भी खुल गए थे | जब इसमें प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन होने लगा था |
- 1861 में इस परीक्षा में सम्मिलित होने की अधिकतम आयु 22 वर्ष थी और यह केवल लंदन में ही होती थी |
- 1863 में प्रथम भारतीय आई. सी. एस. सत्येन्द्र नाथ टैगोर हुए थे |
- 1866 में अधिक उम्र घटाकर 21 वर्ष कर दी गई |
- 1869 तक सुरेंद्रनाथ बनर्जी सहित चार भारतीयों ने यह परीक्षा पास की थी |
- सुरेंद्रनाथ बनर्जी जब असम के कलेक्टर थे 1874 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था |
- 1877 में इस सेवा की उम्र घटाकर 19 वर्षकर दी गई थी ताकि भारतीय शिक्षित लोग यह परीक्षा नहीं दे पाए क्योंकि इस परीक्षा को देने के लिए लंदन जाना पड़ता था और कम उम्र के कारण लंदन जाना असंभव हो गया था |
- कोलकाता में इंडियन एसोसिएशन ने इसके विरोध में 1877 में टाउन हॉल में एक सभा बुलाई अपने जीवन में किसी भी राजनीतिक सभा में भाग न लेने वाले केशवचंद्र सेन इस सभा में उपस्थित हुए |
- इंडियन एसोसिएशन ने 1879 में ब्रिटिश सरकार के सामने स्मृति पत्र पेश करने के लिए लालमोहन घोष को ब्रिटेन भेजा गया |
- 1923 से सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन भारत और ब्रिटेन में एक साथ किया जाने लगा |
कलकत्ता स्टूडेंट्स एसोसिएशन
- इसकी स्थापना 1875 में आनंद मोहन बोस के द्वारा की गई थी |
- आनंद मोहन बोस के साथ सुरेंद्रनाथ बनर्जी भी छात्रों के इस संगठन में आ मिले थे |
- यह छात्रों के बेताज बादशाह हो गए |