उन्नीसवीं शताब्दी की अंतिम चौथाई काल भारत में राष्ट्रीयता के जन्म का काल माना जाता है। सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन, आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार, प्रेस की भूमिका, मध्यमवर्ग का उदय तथा ब्रिटिश शासन के आर्थिक परिणाम ने भारत में राष्ट्रवादी आकांक्षा को जन्म दिया। राष्ट्रवादी चेतना के कारण ही उन्नीसवीं सदी के अंतिम चरण में भारत के महानगरों में अनेक राजनीतिक संगठनों का गठन हुआ जिसमें पाश्चात्य शिक्षा में शिक्षित लोग संगठित होकर राजनीतिक विकास के समान कार्यक्रमों पर विचार - विमर्श करते थे । राष्ट्रवादी चेतना जैसी प्रवृत्ति का चरमोत्कर्ष 1885 में 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के रूप में सामने आया , जिसने 'संगठित राष्ट्रवादी आंदोलन के औपचारिक आरम्भ' का श्री गणेश किया ।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को मुख्य रूप से तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है । ये चरण हैं-
1 . प्रथम चरण (1885 - 1905 ई०)
2 . द्वितीय चरण (1905 - 1919 ई०)
3 . तृतीय चरण (1919 - 1947 ई०)
Videos Related To Subject Topic