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विधायी सम्बन्ध

केंद्र राज्य विधायी संबंधों का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद  245 में किया गया है । संघात्मक शासन की मुख्य विशेषता संविधान में केन्द्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया जाना है । इस विभाजन का आधार यह होता है कि राष्ट्रीय महत्व के मामलों को केंद्र सरकार को दिया जाता है। और स्थानीय मामलों को राज्य सरकार को दिया जाता है । जिन मामलों का विभाजन केंद्र तथा राज्य के मध्य नहीं किया जाता है, उन्हें दोनों के अधिकार के अन्तर्गत रखा जाता है । जिन मामलों को न तो केंन्द्र को और न तो राज्य को प्रदान किया जाता है और न ही दोनों के अधिकार के अन्तर्गत रखा जाता है, उन मामलों को या तो राज्य को प्रदान किया जाता है या केन्द्र को। भारतीय संविधान में वर्णित सातवी अनुसूची में शामिल संघ सूची के विषयों पर केन्द्र सरकार को, राज्य सूची के विषयों पर राज्य सरकार को तथा समवर्ती सूची के विषयों पर केंद्र तथा राज्य दोनों को और इन तीनों सूची में  न वर्णित विषयों अर्थात अवशिष्ट विषयों पर केंद्र को अधिकार दिया गया है।

संघ सूची

संघ सूची में उन विषयों को शामिल किया गया है, जो राष्ट्रीय महत्व के है तथा जिन पर कानून बनाने का एक मात्र अधिकार केंद्रीय विधायिका अर्थात संसद को है | इस सूची में कुल 99 विषयों को शामिल किया गया है, जिनमें से प्रमुख है-रक्षा, विदेश मामले, युद्ध, अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि, अणु, शक्ति, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, आयात शुल्क, बीमा, बैंकिंग, नागरिकता, जनगणना, विदेशी ऋण, डाक एवं तार, प्रसारण, टेलीफोन, विदेशी व्यापार, रेल तथा वायु एवं जल परिवहन आदि।

राज्य सूची

राज्य सूची में उन विषयों को शामिल किया गया है, जो स्थानीय महत्व के है तथा  जिन पर कानून बनाने का एक मात्र अधिकार राज्य विधान मंडल को है लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में संसद भी इस सूची में शामिल विषयों पर कानून बना सकती है । इस सूची में शामिल विषयों की संख्या 61 है, जिनमें प्रमुख है- लोक सेवा, कृषि, वन, कारागार, भू-राजस्व, लोक व्यवस्था, पुलिस, लोक स्वास्थ्य, स्थानीय शासन, जेल, न्याय प्रशासन, क्रय, विक्रय, सिंचाई आदि।

समवर्ती सूची

 समवर्ती सूची में 52 विषयों को शामिल किया गया है, जिन पर कानून बनाने का अधिकार संसद तथा राज्य विधानमंडल दोनों को दिया गया है । यदि इस सूची में वर्णित विषयों पर संसद तथा राज्य विधान मंडल दोनों द्वारा कानून बनाया जाता है, और यदि दोनों कानूनों में विरोध है, तो संसद द्वारा निर्मित कानून लागू होगा । इस सूची में जिन विषयों को शामिल किया गया है, उनमें से प्रमुख है - राष्ट्रीय जल मार्ग , परिवार नियोजन, जनसंख्या नियंत्रण, समाचार पत्र, कारखाना, शिक्षा, आर्थिक तथा सामाजिक योजना आदि।

अवशिष्ट विधायी शक्ति

जिन विषयों को संघ सूची और समवर्ती सूची में शामिल नहीं किया गया है, उन पर कानून बनाने का एक मात्र अधिकार संसद को प्रदान किया गया है । इस शक्ति के प्रयोग में संसद ऐसे विषयों पर कर लगाने के लिए कानून बना सकती है, जो विषय उक्त तीन सूचियों में से किसी में भी शामिल नहीं किये गये है।

राज्य सूची के विषयों पर संसद को कानून बनाने का अधिकार- संविधान में राज्य सूची के विषयों  पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के विधानमण्डल  को दिया गया है, कुछ विशेष परिस्थितियों में संसद भी राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है। यें विशेष परिस्थितियां निम्नलिखित है-

राष्ट्रीय हित में राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की संसद की शक्ति

  • संविधान के अनुच्छेद 249 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि राज्यसभा अपने उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर दे कि राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है । संसद द्वारा इस प्रकार निर्मित कानून एक वर्ष की अवधि के लिए प्रवर्तनीय होता है, लेकिन राज्य सभा एक वर्ष में पुनः प्रस्ताव पारित करके संसद द्वारा पारित कानून के प्रवर्तन की अवधि एक वर्ष या बार-बार कई वर्षो के लिए बढ़ा सकती है। राज्यसभा ने इस शक्ति का प्रयोग अभी तक केवल एक बार 1950 में किया था जब संसद द्वारा व्यापार तथा वाणिज्य से संबंधित कानून बनाया गया था।

राज्यों की सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति

  • जब दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमंडल प्रस्ताव पारित करके संसद से यह अनुरोध करे कि वह राज्य सूची में वर्णित किसी विषय पर कानून का निर्माण करे, तब संसद राज्य सूची में वर्णित उन विषयों, पर कानून बनाने का अनुरोध किया गया है, पर अनुच्छेद 252 के तहत कानून बना सकती है,  लेकिन संसद द्वारा इस प्रकार निर्मित कानून केवल उन राज्यों पर लागू होता है, जिनके विधानमंडल कानून बनाने का अनुरोध करें । राज्य विधानमंडलों द्वारा संविधान के प्रवर्तन के बाद अब तक केवल दो बार राज्य सूची वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया है-

 

  • पांच राज्यों (मुम्बई, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश) द्वारा 1953 में सम्पदा शुल्क पर कानून बनाने के लिए।
  • आठ राज्यों (आन्ध्र प्रदेश, मुम्बई, मद्रास, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, हैदराबाद, पेप्सू, तथा सौराष्ट्र) द्वारा 1955 में पुरस्कार प्रतियोगिता पर कानून बनाने के लिए।
  • संसद द्वारा राज्यों के विधानमंडलों के अनुरोध पर पारित कानून में संशोधन का अधिकार केवल संसद को है, न कि राज्य विधान मंडलों को।

राष्ट्रीय आपात के समय कानून बनाने की संसद की शक्ति 

अनुच्छेद 250 के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपात काल घोषित किये जाने की स्थिति में संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। लेकिन संसद द्वारा इस प्रकार राज्य सूची पर बनाया गया कानून आपातकाल की अवधि के समापन के 6 माह के बाद अप्रवर्तनीय हो जाता है।

राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति में संसद की शक्ति 

जब राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के कारण राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है (अनुच्छेद 356), जब संसद को राज्य सूची पर विधि निर्माण का या राज्य विधानमंडल द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली शक्ति के प्रयोग का अधिकार प्राप्त हो जाता है । यदि संसद चाहे तो इस प्रकार राज्य विधानमंडल की प्राप्त शक्ति के प्रयोग का अधिकार राष्ट्रपति को दे सकती है तथा राष्ट्रपति कुछ शार्तो के साथ इनके प्रयोग का अधिकार अन्य प्राधिकारी द्वारा राष्ट्रपति शासन के दौरान निर्मित कानून तब तक लागू रहते हैं जब तक विधान मंडल उसे निरस्त न कर दे।

राज्य के विधायी मामलों पर केंद्रीय नियंत्रण- संविधान में राज्य के विधायी मामलों पर कुछ नियंत्रण स्थापित किया गया है, जिसका विवरण निम्न प्रकार है-

राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयकों का आरक्षित किया जाना

  • संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि राज्यपाल राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर अपनी सम्मति देने के पूर्व उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखे। जिस विधेयक में उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में कमी करने का प्रावधान किया गया है, उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करना राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है। इसी तरह राज्य विधान मंडल द्वारा समवर्ती सूची में वर्णित विषयों से सम्बंधित विधेयक राज्यपाल राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकता है। इसके अतिरिक्त आपातकाल की उद्घोषणा  के प्रवर्तन में रहने के दौरान राष्ट्रपति राज्यपाल को यह निर्देश दे सकता है कि राज्य के विधानमंडल द्वारा पारित वित्तीय तथा साधारण विधेयक को उसकी अनुमति के लिए आरक्षित रखा जाय।

विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित किये जाने पर प्रक्रिया

  • जब राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित करके उसके समक्ष पेश किया जाता है, तब उसके पास विधेयक के सम्बन्ध में दो विकल्प उपलब्ध होते हैं। पहला यह कि या तो वह विधेयक पर अपनी अनुमति प्रदान कर दे या दूसरा, यदि वह चाहे, तो उस विधेयक को अपनी अनुमति प्रदान कर दे या दूसरा यदि वह चाहे तो उस विधेयक को टिप्पड़ी सहित विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए भेज सकता है।
  • यदि कोई विधेयक विधान मंडल के पुनर्विचार के लिए भेजा जाता है, तो राष्ट्रपति के पास उस विधेयक को 6 मास के अंदर वापस भेज देना चाहिए, चाहे विधेयक को राष्ट्रपति की टिप्पड़ी के अनुसार संशोधित किया गया हो या नही। दूसरी बार विधेयक प्राप्त करने पर राष्ट्रपति उस पर अपनी सम्मति के लिए बाध्य नहीं है।

राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति से विधि निर्माण

  • राज्य सूची में कुछ ऐसे विषयों को शामिल किया गया है, जिन पर राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना कानून का निर्माण नहीं किया जा सकता अर्थात ऐसे विषयों पर कानून निर्माण के लिए राज्य विधानमंडल में विधेयक पेश करने के पूर्व राष्ट्रपति की सहमति पर कानून बनाने के लिए राज्य विधानमंडल में विधेयक पेश करने के पूर्व उस विधेयक पर राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है।

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