भारत में प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल की समाप्ति तक भारत में अनेक विदेशी शक्तियों का आगमन हुआ परंतु इनमें से अंग्रेजों की प्रकृति सबसे अलग थी । अन्य सभी शक्तियां या तो अल्पकालिक अभियान पर आई और धन-संपदा लूट कर जल्दी ही वापस चली गई या भारत आगमन के बाद भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गई लेकिन अंग्रेजों ने अपने दीर्घकालिक शासन के दौरान यहां शोषण की नीति अपनाई । अंग्रेजों ने यहां औपनिवेशिक दासता से के साथ-साथ औपनिवेशिक अर्थतंत्र की भी स्थापना की | उपनिवेश की स्थापना के बाद शासक और प्रजा के बीच के सामाजिक संबंधों में आमूल परिवर्तन कर दिए गए ।कृषि का वाणिज्यकरण कर दिया गया, दोषपूर्ण राजस्व व्यवस्था को लागू किया गया, औपनिवेशिक हित साधन के लिए यातायात का विकास किया गया, असंगत मुक्त व्यापार की नीति लागू की गई, कर प्रणाली को बोझिल बना दिया गया,उद्योगों के विकास के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया गया था तथा आर्थिक शोषण का सर्वाधिक शिकार जनसाधारण को बनाया गया ।
अंग्रेजों ने अपने शासनकाल के विभिन्न चरणों में भारतीय अर्थव्यवस्था को अलग-अलग तरह से प्रभावित किया । भारत आगमन से लेकर 1757 ई. के प्लासी युद्ध में विजय तक और ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखे जाने से पहले तक अंग्रेजों की भूमिका व्यापारियों के रूप में बनी रही उन्होंने यहां की वस्तुओं की खरीद और बिक्री पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया जिससे उन्हें भारतीय शासक वर्ग था उत्पादक वर्ग का पूर्ण समर्थन मिला ।
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