ब्रिटिश काल में भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़ी कुछ प्रथाएं -
तीन कठिया प्रथा- इस प्रथा के अंतर्गत चंपारण, बिहार के किसानों का अपने अंग्रेज बागान मालिकों के अनुबंध पर अपनी जमीन के करीब 3/20 भाग पर नील की खेती करना अनिवार्य होता था ।
ददनी प्रथा- इस प्रथा के अंतर्गत अग्रिम करारनामा जो बाजार भाव से बहुत कम दाम पर हुआ करता था, कर लिया जाता था । इस प्रथा के अन्तर्गत ब्रिटिश व्यापारी भारतीय उत्पादकों, कारीगरों एवं शिल्पियों को 'अग्रिम संविदा' (पेशगी) के रूप में दे देते थे।
दुबला हाली प्रथा- यह प्रथा भारत के पश्चिमी क्षेत्र मुख्यतः सूरत में प्रचलित थी जिसके अंतर्गत दुबला तथा हाली कहलाने वाले भू-दास अपने मालिकों को ही अपनी संपत्ति का और स्वयं का संरक्षक मानते थे ।
कमियौंटी प्रथा - बिहार एवं उडीसा में प्रचलित इस प्रथा के अन्तर्गत कृषिदास के रूप में खेती करने वाले कमियाँ जाति के लोग अपने मालिकों द्वारा प्राप्त ऋण पर दी जाने वाली ब्याज की राशि के बदले जीवन भर उनकी सेवा करते थे।
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