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भारत का प्रजातीय समूह

भारतीय उपमहाद्वीप की वर्तमान जनसंख्या को मोटे तौर पर निम्नलिखित प्रजातीय समूहों में बाँटा गया है-

निग्रिटो 

  • संभवतः यह भारत में आने वाला सबसे पहला प्रजातीय समूह था । इनका बसाव केरल की पहाड़ी भागों में तथा अंडमान द्वीप समूह में हुआ । केरल की कडार, इरूला एवं पुलियान जनजातियाँ निग्रिटो से काफी मिलती-जुलती हैं । इनका संबंध अफ्रीका, आस्ट्रेलिया एवं उनके पड़ोसी द्वीपों से है । निग्रिटो प्रजाति के लोगों की त्वचा काली, बाल ऊन की तरह, नाक चीड़ी एवं समतल (चिपटी), जबड़ा थोड़ा बाहर निकला हुआ होता है ।

प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड(आद्य-आस्ट्रेलियाई)

  • निग्रिटो प्रजाति के तुरंत बाद ही संभवतः प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड प्रजाति के लोग यहाँ आए । इनके स्रोत आस्ट्रेलियन एबोर्जिन्स हैं । ये राजमहल से अरावली की पहाड़ी शृंखला तक मध्य भारत में बसे हैं । संथाल, भील, गोंड, मुंडा, उराँव आदि जनजातियाँ इस समूह से संबंधित हैं ।
  • शारीरिक रूप से ये निग्रिटो से कई तरह से भिन्न हैं, जैसे इनके बाल ऊन की तरह न होकर, मोटे और खड़े होते हैं । ऐसा माना जाता है कि भूमध्यसागरीय प्रजाति के साथ मिलकर इन लोगों ने ही सिंधु घाटी सभ्यता का विकास किया था। मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाइयों से इनके शरीर के ढाँचे प्राप्त हुए हैं ।  

मंगोलॉयड 

  • इस प्रजाति का मूल निवास स्थान मंगोलिया (चीन) था । भारत के उत्तरी एवं पूर्वी पर्वत श्रेणियों के दर्रो द्वारा ये भारत आए । इस प्रजाति के लोग हिमालय के समीपवर्ती क्षेत्रों,  जैसे-लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश तथा उत्तर-पूर्वी भारत के अन्य भागों में संकेंद्रित हैं । मंगोलॉयड प्रजाति की त्वचा का रंग पीला या लगभग पीला, कद छोटा, सिर तुलनात्मक दृष्टि से बड़ा, आँखें अधखुली, चेहरा चपटा और नाक फैली होती हैं ।

भारत में मंगोलॉयड प्रजाति को दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है-

(i) पैलियो-मंगोलॉयड (पुरा-मंगोलॉयड) यह पहले आने वाली शाखा थी । ये मुख्यतः हिमालय के सीमावर्ती इलाकों में बसे हुए हैं । इनकी संख्या असम एवं इसकी सीमा से लगे राज्यों में अधिक है ।

(ii) तिब्बती-मंगोलॉयड — ये तिब्बत से आए और मुख्यतः भूटान, सिक्किम तथा उत्तरी-पश्चिमी हिमालय तथा हिमालय पार के क्षेत्रों में बसे हैं जिसमें लद्दाख और बालतिस्तान शामिल हैं ।

 

भूमध्य सागरीय

यह प्रजाति भारत में दक्षिण-पश्चिम एशिया से आई है । इन्हें तीन वर्गों में बाँटा जाता है-

  1. पैलियो–मेडिटेरेनियन्स (पुरा-भूमध्य सागरीय)
  2. मेडिटेरेनियन्स (भूमध्य सागरीय)
  3. ओरियन्टल-मेडिटेरेनियन्स (प्राच्य-भूमध्य सागरीय)

पैलियो-मेडिटेरेनियन्स 

  • भूमध्य सागरीय प्रजाति का यह भारत में सबसे पहले आनेवाला समूह है । इनका कद मध्यम, त्वचा काली, शरीर सुगठित एवं सिर लम्बा था । संभवतः इन्होंने ही उत्तरी-पश्चिमी भारत में सबसे पहले कृषि शुरू की थी । बाद में आने वाले समूहों ने इन्हें मध्य भारत तथा दक्षिण भारत की ओर ढकेल दिया । वर्तमान में पैलियो-मेडिटेरेनियन्स अन्य उप-प्रकारों के साथ दक्षिण भारत की जनसंख्या के अधिकांश भाग एवं उत्तर भारत की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से का निर्माण करते हैं ।

मेडिटेरेनियन्स 

  • ये भारत में बाद में आए प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड के साथ मिलकर इन्होंने सिंधु घाटी की सभ्यता का विकास किया तथा 2500-1500 ई. पूर्व में सर्वप्रथम कांस्य संस्कृति का प्रवर्तन किया । इनके बाद उत्तर-पश्चिम से आने वाले नए आक्रमणकारी समूह ने इन्हें सिंधु घाटी से धकेल कर गंगा घाटी तथा विंध्याचल पर्वत के दक्षिण की ओर भेज दिया । आज उत्तर भारत में निम्न जातियों की अधिकांश जनसंख्या इस प्रजाति से संबंधित है ।

ओरियन्टल मेडिटेरेनियन्स 

  • ये बहुत बाद में भारत आए । इनकी संख्या पाकिस्तान के  उत्तरी-पश्चिमी सीमांत प्रदेश तथा पंजाब में अधिक है । सिंध, राजस्थान पश्चिमी उत्तर-प्रदेश में भी ये यथेष्ठ संख्या में पाए जाते हैं । प्रोफेसर गुहा के अनुसार भारत की मीणा जनजाति, जाट, खत्री राजपूत आदि इस प्रजातीय समूह से संबंधित हैं ।

ब्रेकि सेफेलिक (चौड़ी सिर वाली पाश्चात्य प्रजातियाँ) मंगोलॉयड के अतिरिक्त भारत में चीड़ी सिर वाले कुछ अन्य प्रजातीय समूह पाए जाते हैं

(i) अल्पिनॉयड

(ii) डिनैरिक्स

(iii)आर्मिनॉयड्स – वर्तमान पारसी लोग इस प्रजाति से संबंधित हैं ।

नॉर्डिक

  • भारत में आने वाला यह सबसे अंतिम प्रजातीय समूह है । ये टैगा एवं बाल्टिक प्रदेश से  आए ।
  • ये आर्य भाषा बोलने वाले परिवार से थे । इनका सिर लंबा, रंग गोरा, नाक तीखी, शरीर सुविकसित एवं सुदृढ़ होता है । ये ईसा से 2000 वर्ष पूर्व भारत आए थे ।
  • इस प्रजाति से जुड़े लोगों का मुख्य संकेंद्रण देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में है । पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू में इनकी प्रधानता है । उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भारत की विशेषकर पंजाब की उच्च जातियों के लोग इस वर्ग के प्रतिनिधि हैं ।

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