संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासन
- संघ राज्य क्षेत्रों का इसका प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति यह कार्य एक प्रशासक के माध्यम से करता है, जिसकी नियुक्ति स्वयं राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। कुछ क्षेत्रों में प्रशासक को उपराज्यपाल यथा दिल्ली, कुछ में मुख्य आयुक्त यथा चंडीगढ़ तथा कुछ मेंं प्रशासक यथा लक्षद्वीप कहा जाता है । किसी राज्य के राज्यपाल को निकटवर्ती संघ-राज्य क्षेत्र का प्रशासक नियुक्त किया जा सकता है। संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासक राज्य का अधिपति नहीं होता अपितु वह राष्ट्रपति का अभिकर्ता होता है।
- 1962 में संविधान में अनु0 239 अंतः स्थापित कर संसद को यह शक्ति दी गयी कि संघ-राज्य क्षेत्र के लिए मंत्रिपरिषद या विधानमंडल या दोनों का सृजन कर सकेगी। अतः इसका प्रयोग करते हुए संसद ने संघ-राज्य क्षेत्र अधिनियम, 1963 पारित किया इसके द्वारा संघ राज्य क्षेत्र में विधानमंडल एवं मंत्रिपरिषद की व्यवस्था की गयी। विदित है कि अधिनियम बनाकर विधान सभा व विधानमंडल का सृजन करना अनुच्छेद 368 के प्रयोजन के लिए संविधान-संशोधन नहीं माना जाता। दिल्ली में विधानमण्डल का सृजन करना अनुच्छेद 368 के प्रयोजन के लिए संविधान-संशोधन नहीं माना जाता। दिल्ली में विधानमण्डल के गठन एवं इससे संबंधित अन्य विषयों के लिए 69वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अनु0 339 क, (क) तथा 239 क, (ख), अतः स्थापित किया गया। यह संशोधन 1 फरवरी, 1992 में प्रवृत्त हुआ।
दिल्ली के लिए विशेष उपबंध
- इस राज्य क्षेत्र का नाम दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र तथा प्रशासक उपराज्यपाल।
- इस राज्य क्षेत्र की एक विधान सभा।
- विधानसभा का निर्वाचन भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा संचालित किए जाएँगे।
- विधानमंडल को कुछ विषयों को छोड़कर राज्यसूची या समवर्ती सूची में सम्मिलित सभी विषयों पर विधि सृजन की शक्ति होगी।
- जो विषय विधान मंडल की शक्ति से बाहर रखे गये हैं- राज्य सूची 1.(लोक व्यवस्था), 2. (पुलिस), और 18. (भूमि)
- पुनः राज्य सूची की प्रविष्टी 64,65, तथा 66 उस विस्तार तक जहाँ तक संबंध प्रविष्ट 1, 2, तथा 18 से है।
- संसद की संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधान बनाने की शक्ति सदा बनी रहेगी।
- विधान सभा द्वारा बनायी गयी विधि व संसद द्वारा बनायी गयी विधि में विरोध होने की दशा में, विधान सभा द्वारा सृजित विधि विरोध की मात्रा तक शून्य होगी।
- किन्तु यदि विधान सभा द्वारा बनायी गयी विधि राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित की गयी हो तथा उसे राष्ट्रपति द्वारा अनुमति प्राप्त होने पर ऐसी अनुमति दिल्ली के अविभावी होगी।
- उपराज्यपाल की सहायता व सलाह के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी।
- मंत्रिपरिषद एवं उपराज्यपाल के मध्य किसी विषय को राष्ट्रपति को निर्देशित करेगा और राष्ट्रपति के विनिश्चय के अनुसार कार्य करेगा। लेकिन यदि विषय बहुत आवश्यक है तो उपराज्यपाल तुरंत कारवाई करेगा।
- मंत्रीपरिषद में कुल विधानसभा की सदस्य संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक सदस्य नहीं होगें यह एक अनूठा उपबंध है जो मात्र दिल्ली नगर निगम पर ही लागू है। लेकिन वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयानुसार अन्य सभी राज्यों में यह सीमा 15 प्रतिशत निर्धारित हो गयी है ।
- मुख्यमंत्री व अन्य मंत्री राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जाते है, उपराज्यपाल द्वारा नहीं ।
- मंत्रीपरिषद विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तदायी है ।
- संसद को दिल्ली के प्रशासन के लिए अनुपूरक विधान बनाने की शक्ति है ।
- उपराज्यपाल को अध्यादेश प्रख्याति करने की शक्ति है।
- संसद में अनु.239 क, (क) के अनुबंधो की पूर्ति के लिए दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम 1991 अधिनियमित किया है।
- संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर राष्ट्रपति उपराज्यपाल से प्रतिवेदन प्राप्त कर या अन्यता उक्त विधियों के प्रवर्तन को निलंबित कर सकता है और ऐसे अनुषंगी का पारिमाणिक उपबंध कर सकता है जो उसे आवश्यक प्रतीत हो। (अनुच्छेद 239 क,ख,) यह उपबंध अनुच्छेद 356 के समान ही प्रतीत होता है।
- अनु0 239 ख, के अनुसार प्रशासन, विधान सभा के सत्र में न होने की स्थिति में , अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है। लेकिन यदि विधानसभा विघटित एवं दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम 1991 के तहत निलंबित कर दी गयी हो तो अध्यादेश जारी नहीं किया जायेगा। अध्यादेश प्रख्याति करने के लिए, राष्ट्रपति से अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य होगा।
- अध्यादेश को विधानमंडल के समक्ष रखना आवश्यक है। विधानमंडल चाहे तो उसे निरस्त कर सकता है अध्यादेश विधानमंडल के पुनः समवेत होने से 6 सप्ताह की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा। यदि अनुमोदित न करने का संकल्प पारित किया जाता है तो संकल्प की तारीख से ही समाप्त हो जायेगा।
- राष्ट्रपति को अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप समूह, दादर व नगर हवेली तथा दमन-दीव संघ राज्य क्षेत्र की शांति प्रगति और सुशासन के लिए विनिमय बनाने की शक्ति है। विदित है कि इन राज्य क्षेत्रों में विधानमंडल नहीं है । अतः विधायी कार्य राष्ट्रपति को ही सौपा गया है । पांडिचेरी की दशा में भी विधानसभा के निलंबन की स्थिति में राष्ट्रपति विनिमय बना सकता है लेकिन विधानसभा के अस्तित्व में रहने पर नहीं ।