राज्यों का पुनर्गठन
वैसे तो भारतीय जनता द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने के पहले से ही भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मॉग की जाती रही थी, लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस मांग में और अधिक वृद्धि हो गयी । स्वतंत्रता के पूर्व तथा बाद में भारत का प्रमुख राजनीमिक दल कांग्रेस राजनीतिक कारणोंसे भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग का समर्थन करता था। इस दल में तेलुग, कन्नड़ तथा मराठी भाषी जनता के दबाव में आकर 27 नवम्बर 1947 को राज्यों की भाषा के आधार पर पुनर्गठन की मांग को मान लिया तथा संविधान सभा के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिबृत्त न्यायाधीश एस.के.दर. की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयेग की नियुक्ति की। इस आयेग का कर्य विशेषकर दक्षिण भारत में उठी इस मांग की जाँच करना था कि भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित है या नहीं।
इस आयोग ने 10 दिसम्बर, 1948 को 56 पृष्ठीय अपनी रिपोर्ट संविधान सभा को ेप्रस्तुत किया, जिसमें भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया गया था, लेकिन प्रशासनिक सुविधा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन किया गया था। उक्त आयोग की रिपोर्ट का तीब्र विरोध हुआ और कांग्रेस ने अपने जयपुर अधिवेशन में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के मामले पर विचार करने के लिए जवाहरलाल नेहरू, बल्लभ भाई पटेल तथा पट्टाभि सीतारमैया की एक समिति (जे.वी.पी. समिति) गठित की । इस समिति ने 1 अप्रैल, 1949 को पेश अपनी रिपोर्ट में भाषायी आधार पर राज्यों के विषय में यह भी कहा गया कि यदि जनभावना व्यापक रूप से इस मांग को उठाती है, तो लोकतांत्रिक होने के कारण जनभावना का आदर करते हुए इस मांग को स्वीकार कर लेना चाहिए।
समिति की रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद मद्रास राज्य में रहने वाले तेलुगु भाषियों द्वारा आंदोलन प्रारम्भ कर दिया गया। इस आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले गाँधीवादी नेता पोट्टी श्री रामुल्लु आमरण अनशन पर बैठ गये और 56 दिन के बाद 15 दिसम्बर, 1952 को उपवास के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी । उनकी मृत्यु के बाद आन्दोलन और तीब्र हो गया। फलस्वरूप 19 दिसम्बर, 1952 को तत्काली प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने तेलुगु भाषियों के लिए पृथक आंध्र प्रदेश के गठन की घोषधा कर दी । इस प्रकार अक्टूबर 1953 को आंध्र प्रदेश राज्य का गठन हो गया, जो भाषा के आधार पर गठित भारत का पहला राज्य था। आंध्र प्रदेश राज्य के गठन के कारण भारत के अन्य भाषा भाषियों के मांग की अवहेलना नहीं की जा सकती थी। इसलिए सरकार ने 22 दिसम्बर 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग की नियुक्ति की घोषणा की । इस आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति फजल अली थे तथा आयोग के अन्य सदस्य थे- के.एम. पण्णिकर तथा हृदयनाथ कुंजरू। आयोग ने 30 दिसम्बर, 1955 को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी।
राज्य पुनर्गठन आयोग - 1953 की मुख्य सिफारिशें
- केवल भाषा तथा संस्कृति के आधार पर राज्यों का पुनगर्ठन नहीं किया जाना चाहिए।
- राज्यों का पुनर्गठन करते समय राष्ट्रीय सुरक्षा, वित्तीय तथा प्रशासनिक आवश्यकता तथा पंचवर्षीय योजना को सफल बनाने की क्षमता को भी ध्यान में रखना चाहिए।
- ए.बी. सी. तथा डी. राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करके भारतीय संघ को 16 राज्यों तथा 3 संघ राज्य क्षेत्रों में विभाजित करना चाहिए।
- केंद्र सरकार ने आयोग की सिफारिशों को कुछ संशोधन के साथ स्वीकार करते हुए राज्रू पुनर्गठन अधिनिय, 1956 संसद से पारित करवाया। इस अधिनियम के प्रवर्तन के कारण भारत में 14 राज्यों (आन्ध्र प्रदेश, असम, बम्बई, बिहार, जम्मू-कश्मीर, केरल, मध्य प्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान तथा पश्चिम बंगाल) और 5 संघ राज्य क्षेत्रों (दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, अण्डमान निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप, अमीन द्वीप तथा मिनीकाय द्वीप) का गठन किया गया।
- 1956 में फ्रांस की सरकार के साथ हस्तान्तरण सन्धि पर भारत द्वारा हस्ताक्षर किया गया, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने चंद्रनगर, माहे, यना और कारकल, जो फ्रांसीसी उपनिवेश थे, को अर्जित कर लिया और इन सभी को मिलाकर छठवें संघ राज्य क्षेत्र “पाण्डिचेरी’’ का गठन किया गया।
- गोवा मुक्ति संग्राम की उग्रता के कारण भारत सरकार ने 1961 में सैनिक हस्तक्षेप करके गोवा, दमन तथा दीव को जीतकर भारत में मिला लिया और इसे सातवाँ संघ राज्य क्षेत्र बनाया गया।
- बम्बई प्रांत दो भाषा (मराठी तथा गुजराती) भाषियों के पारस्परिक संघर्ष के कारण बम्बई को 1960 में विभाजित करके 15वें राज्य गुजरात का गठन किया गया।
- नागा आन्दोलन के कारण असम को विभाजित करके 1962 में नागालैण्ड को अलग राज्य बनाया गया।
- 1966 में पंजाब को विभाजित करके पंजाब को पंजाबी भाषी प्रांत बना दियि गया तथा हिन्दी भाषा प्रांत को हरियाणा राज्रू बनाया गया।
- 1969 में असम को एक बार फिर विभाजित करके मेघालय को राज्य बनाया गया।
- 1971 में हिमाचल प्रदेश तथा मेघालय को राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
- 1974 में सिक्किम को पहले सहयोगी राज्रू का दर्जा प्रदान किया गया और 1975 में उसे भारत का राज्य बना दिया गया।
- 1986 में अरूणांचल प्रदेश तथा मिजोरम को पूर्ण राज्य तथा 1987 में गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
- सन् 2000 में गठित छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड तथा झारखंड को 26 वें, 27वें तथा 28वें राज्य के रूप में सम्मिलित किया गया।
- वर्तमान में भारत के राज्यों की संख्या 29 और संघ राज्य क्षेत्रों की संख्या 7 हैं इन्हें संविधान की प्रथम अनुसूची में शामिल किया गया है।
संवैधानिक प्रावधान
- भारत के राज्य क्षेत्र के अन्तर्गत वह सम्पूर्ण भू-भाग आता है जिस पर तत्समय-भारत की प्रभुता होती है। इस प्रकार राज्यों के अतरिक्त दो अन्य प्रकार के राज्य क्षेत्र हैं जो भारत के राज्य क्षेत्र में सम्मिलत- (1) संघ राज्य क्षेत्र और (2) ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र जो भारत द्वारा अर्जित किये जाएं। संघ राज्य क्षेत्र, केन्द्र शासित प्रदेश है जिनका शासन राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त प्रशासक के माध्यम से होता है । इनके प्रशासन के लिए विनिमय भी राष्ट्रपति बनाते है । भारतीय संविधान के भाग एक में अनुच्छेद 1 से 4 तक संघ और उसके राज्य क्षेत्र के संबंध में प्रावधान है। हमारे संविधान निमाताओं ने संघ की संसद को साधारण प्रक्रिया से राज्यों का पुनर्गठन करने की शक्ति दी है। इससे संबंधित उपबंध संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 में है।
- संसद विधि द्वारा किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या दो से अधिक राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्य क्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी। किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी, किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी। किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी। परंतु इस प्रयोजन के लिए कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना पेश नहीं किया जाएगा। संसद द्वारा राज्यों की सीमा, क्षेत्रों तथा नामों में परिवर्तन करने वाले विधेयक को राष्ट्रपति के सहमति के पूर्व संबंधित विधानमण्डल में भेजा जाता है । राष्ट्रपति संबंधित राज्यों के विधान मंडल द्वारा विधेयक पर सहमति देने या न देने दानों ही हालत में विधेयक को संसद में पेश करने की अनुमति दे सकता है। किंतु जम्मू-कश्मीर के संबंध में पहले विधान की स्वीकृति अनिवार्य है।