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       मध्य काल में भारत आर्थिक दृष्टि से अत्यंत संपन्न राज्य था।11 वीं-12 वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों द्वारा अपार संपत्ति लूट कर ले जाने के बाद भी आर्थिक सम्पन्नता बनी रही। यूरोपीय देशों में भारत की आर्थिक संपन्नता के संबंधों में सूचनाएं मिली तब ये भारत की ओर अग्रसर हुए बिना नहीं रहे। यूरोपीय यात्रियों ने भारत की यात्रा की और अपने शासकों को भारत के संबंध में विस्तृत विवरण प्रदान किया। यूरोप में वाणिज्यिक दृष्टि से अंग्रेज, डेनिश आदि व्यापार के क्षेत्र में विकास करने लगे थे। इन देशों में  उत्पादित वस्तुओं के लिए बाजार और वस्तुओं के उत्पादन के लिए कच्चे माल की प्रचुरता नहीं थी । इसलिए इन सभी देशों ने भारत में अपनी व्यापारिक कंपनियाँ स्थापित कीं ।

      दूसरी ओर 1707 में मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य के पतानोंमुखी परिस्थितियों का लाभ उठाकर कई अधीनस्थ राज्यों ने  स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर लिया । किंतु भारत में ऐसा कोई शक्तिशाली राज्य नहीं था जो भारत को एक सूत्र में बांध सकें । इस कारण भारत में प्रारंभिक व्यापारिक एकाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से यूरोपीय कंपनियों के बीच क्षेत्रीय दलों के सहयोग से एक चतुर्भुजी संघर्ष प्रारंभ हो गया । इस संघर्ष में अंग्रेजों को विजय श्री प्राप्त हुई । कालांतर में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय राज्यों को जीतकर भारत में अपने उपनिवेश की स्थापना की ।

यूरोपियों का भारत आने का क्रम -  पुर्तगाली, डच, अंग्रेज, डेनिश तथा फ्रांसीसी ।

 

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