भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन
पुर्तगालियों का आगमन एवं उनकी गतिविधियां
- 1498 ई. में वास्को डी गामा ने अब्दुल मनीद नामक गुजराती पथ प्रदर्शक की सहायता से कालीकट तक की यात्रा की और इसके बाद से हिंद महासागर पर पुर्तगालियों का आधिपत्य स्थापित हो गया ।
- कालीकट के शासक जमोरिन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया । लेकिन कालीकट के समुद्री तटों पर पहले से ही व्यापार कर रहे अरबों ने इसका विरोध किया । 1500 ई. में हिंद महासागर से सर्वाधिक लंबा समुद्री व्यापार मार्ग अदन से मलक्का तक था,जो गुजरात तथा मालाबार के रास्ते होकर जाता था ।
- 1500 ई. के आसपास भारत की किसी भी बड़ी रियासत ने समुद्री मार्गों एवं व्यापार के संबंध में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई ।
- सल्तनत काल के अंतिम वर्षों के शासक तथा मुगल शासकों ने स्थल क्षेत्रों में ही अपनी प्रशासनिक गतिविधियों को केंद्रित रखा इसलिए समुद्री मार्ग की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जा सका ।
- पुर्तगालियों के आगमन के समय हिंद महासागर के तटीय भाग की राजनीतिक आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं थी ।
- पुर्तगालियों के दो मुख्य उद्देश्य थे-
- पहला, अरबों व वेनिश के व्यापारियों का भारत से प्रभाव खत्म करना तथा
- दूसरा, ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार करना।
- 15वीं शताब्दी के प्रारंभ में पुर्तगाल के शासक डॉन हेनरिक जिसे हेनरी द नेविगेटर के नाम से भी जाना जाता है ने भारत के लिए एक सीधे समुद्री मार्ग की खोज शुरू कर दी हेनरिक अपने यूरोपीय एवं व्यापारिक गतिविधियों को पीछे छोड़ना तथा अफ्रीका एवं एशिया के लोगों को इसाई बनाकर तुर्की एवं अरबों की बढ़ती शक्ति पर रोक लगाना चाहता था । पोप ने भी उसके इन प्रयासों का समर्थन किया ।
- वास्कोडिगामा ने कालीकट के राजा से व्यापार का अधिकार प्राप्त किया जिसका अरब व्यापारियों ने विरोध किया । विरोध का कारण आर्थिक ही था अंततः वास्कोडिगामा जिस मसालों को लेकर वापस स्वदेश लौटा वह पूरी यात्रा की कीमत के साठ गुना दामों पर बिका परिणामतः इस लाभकारी घटना ने पुर्तगाली व्यापारियों को भारत आने के लिए आकर्षित किया ।
- पूरब के साथ व्यापार करने के लिए इंडिया नामक कंपनी की स्थापना पुर्तगालियों ने की । वास्तव में अलेक्जेंडर-VI द्वारा 1453 में ही पूर्वी समुद्री व्यापार के लिए एक आज्ञा पत्र दे दिया गया ।
- 1500 में पेद्रो अल्वारेज कैब्राल के नेतृत्व में दो जहाजी बेड़े भारत आए ।
- वास्कोडिगामा 1502 में दूसरी बार भारत आया । इसके बाद पुर्तगालियों का भारत में निरंतर आगमन शुरू हो गया । पुर्तगालियों की पहली फैक्ट्री कालीकट में स्थापित हुई जिसे जमोरिन द्वारा बाद में बंद कर दिया गया ।
- 1503 ई. में काली मिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से पुर्तगालियों ने कोचीन के पास अपनी पहली व्यापारिक कोठी बनाई । इसके बाद कन्नूर में 1505 में पुर्तगालियों ने अपनी दूसरी फैक्ट्री बनाई ।
पुर्तगाली वायसराय
फ्रांसिस्को डी अल्मीडा (1505 से 1509)
- भारत में पहला पुर्तगाली वायसराय बन कर आया।
- उसने भारत पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए मजबूत सामुद्रिक नीति का संचालन किया जिसे ब्लू वाटर पॉलिसी या शांत जल की नीति के रूप में जाना जाता है । 1508 में वह चौल के युद्ध में गुजरात के शासक से संभवतः परास्त हुआ किंतु 1509 में उसने महमूद बेगड़ा मिश्र तथा तुर्की शासकों के समुद्री बेड़े को पराजित किया तथा दीव पर अधिकार कर लिया | दीव पर कब्जे के बाद पुर्तगाली हिंद महासागर में सबसे अधिक शक्तिशाली बन गए।
अल्फांसो डी अल्बूकर्क (1509 से 1515)
- 1508 में भारत स्क्वैड्रन कमांडर के रूप में आया था 1509 में इसे भारत में वायसराय नियुक्त कर दिया गया अलफांसो डी अल्बूकर्क को भारत में पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक के रूप में माना जाता है ।
- अल्बूकर्क ने 1510 ई. में बीजापुर के शासक आदिलशाह से गोवा को छीन लिया जो बाद में भारत में पुर्तगाली व्यापारिक केंद्रों की राजधानी बनाई गई ।
- अल्बूकर्क ने 1511 ई. में दक्षिण पूर्व एशिया के व्यापारिक मंडी मलक्का और हुर्मुज पर अधिकार कर लिया इसके समय में पुर्तगाली भारत में शक्तिशाली नौसैनिक शक्ति के रूप में उभरे ।
- विजय नगर शासक कृष्णदेव राय ने पुर्तगालियों को भटकल में दुर्ग बनाने की इजाजत दी अल्बूकर्क में पुर्तगालियों को भारतीय स्त्रियों से विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया ।
- अल्बूकर्क ने अपनी सेना में भारतीयों की भी भर्ती की।
नीनू डी कुन्हा-(1529 से 1538)
- भारत में पुर्तगाली वायसराय निनू डी कुन्हा ने 1530 ई. में कोचीन की जगह गोवा को राजधानी बनाया और सेंट टॉमी तथा हुगली में पुर्तगाली बस्तियां बसाई।
- नीनू दी कुन्हा ने गुजरात के शासक बहादुर शाह से मुलाकात के दौरान जहाज पर उसकी हत्या कर बसीन (1534) व दीव पर (1535) पर अधिपत्य स्थापित कर लिया ।
- धीरे-धीरे पुर्तगालियों ने हिंद महासागर में होने वाले व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया कार्टेज पद्धति लागू कि जो एक प्रकार का लाइसेंस था यदि देश का कोई व्यक्ति अपने जहाज को किसी एशियाई देश में भेजना चाहता था तो उसे कार्टेज लेना आवश्यक था जिसके लिए निर्धारित शुल्क देना होता था उल्लेखनीय है कि अकबर ने भी समुद्री व्यापार हेतु कार्टेज को स्वीकार कर लिया था ।
- फारस की खाड़ी तथा हिंद महासागर में अपनी चौकियां स्थापित कीं । भारत का जापान के साथ व्यापार का श्रेय पुर्तगालियों को ही जाता है ।
- पुर्तगीज पूर्वी तट के कोरोमंडल, समुद्री तट के मसूलीपट्टनम और पुलिकट शहरों से वस्त्र एकत्र करते थे । मलक्का तथा मनीला आदि पूर्वी एशियाई देशों से व्यापार के लिए नागपट्टनम बंदरगाह का पुर्तगाली विशेष रूप से प्रयोग करते थे ।
- बंगाल के शासक महमूद शाह द्वारा पुर्तगालियों को चटगाँव, सतगांव में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त की ।
- चटगांव के बंदरगाह को पुर्तगाली महान बंदरगाह की संज्ञा देते थे । पुर्तगालियों ने अकबर की अनुमति से हुबली में तथा शाहजहां की अनुमति से बंदेल में कारखाने स्थापित किए । पुर्तगालियों ने हिंद महासागर से होने वाले व्यापार पर एक आधिपत्य प्राप्त कर यहां से गुजरने वाले अन्य जहाजों से कर की वसूली की ।
- पुर्तगालियों के आगमन से भारत में तंबाकू, आलू, टमाटर की खेती,जहाज निर्माण तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत हुई।
- स्थापत्य कला में गोथिक कला का विकास हुआ ।
- भारत में पुर्तगाली साम्राज्य के पतन के कारणों में धार्मिक असहिष्णुता, भारतीय व्यापारियों संग लूटपाट, भारतीय महिलाओं के साथ वैवाहिक नीति तथा मराठों में मुगलों द्वारा विरोध किया जाना था ।
- 1632 में शाहजहां ने पुर्तगालियों को हुबली से भगाया तथा औरंगजेब ने चटगांव के समुद्री लुटेरों का सफाया कर दिया ।
- पुर्तगालियों ने भारत में पूर्व के साथ व्यापार में वस्तु विनिमय का सहारा नहीं लिया यहां से वस्तुओं की खरीद में पुर्तगीज सोना चांदी तथा अन्य अनेक बहुमूल्य रत्नों का प्रयोग करते थे ।
- पुर्तगाली भारत से सर्वाधिक काली मिर्च का निर्यात करते थे, मालाबार तट से अदरक, दालचीनी, चंदन, हल्दी, नील आदि का निर्यात होता था ।
- उत्तर पश्चिम भारत में पुर्तगाली वस्तु जींस ले जाते थे ।
- भारत से केवल काली मिर्च की खरीद के लिए पुर्तगाली प्रतिवर्ष एक लाख सत्तर हजार क्रूज़ेडो भारत लाते थे ।
- पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डिसूजा (1542 से 1545) के साथ प्रसिद्ध जेसुइट संत फ्रांसिस जेवियर भारत आये ।
- पुर्तगाली गोवा दमन और दीव पर 1961 ई. तक शासन करते रहे ।
डचों का आगमन एवं उनकी एवं गतिविधियाँ
- भारत में व्यापारियों के रूप में पुर्तगालियों के बाद डचों का आगमन हुआ, डच, हॉलैंड (वर्तमान नीदरलैंड) के निवासी थे । कुस्तुनतुनिया के पतन के बाद हॉलैंड की राजधानी एम्सटर्डम यूरोप का प्रमुख व्यापारिक केंद्र बनने लगा था । 1596 में कर्नेलिस डी हाउटमैन बेन टेन, केप ऑफ गुड होप होते हुए सुमात्रा तथा बांटेन पहुंचने वाला प्रथम डच नागरिक था ।
- 1602 में डच कंपनी ‘वेरिन्ग्दे ओस्त इंडसे कंपनी’ की स्थापना हुई । जिसे डच संसद में एक चार्टर जारी करके कंपनी को युद्ध करने संधि करने, इलाके जीतने और किले बनाने का अधिकार दे दिया था बाद में विभिन्न डच कंपनियों को मिलाकर यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ नीदरलैंड के नाम से एक विशाल व्यापारिक कंपनी की स्थापना की गई ।
- डच ईस्ट इंडिया कंपनी की आरंभिक पूंजी जिससे उन्हें व्यापार करना था 6 लाख 50 हजार गिल्डर थी ।
- भारत में शीघ्र ही ‘वेरिन्ग्दे ओस्त इंडसे कंपनी’ ने मसाला व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया ।
- डच प्रारंभ में इंडोनेशिया तक केंद्रित थे तथा मसालों के व्यापार में संलग्न थे जब भारत के साथ इनका संपर्क हुआ तब इन्होंने व्यापार में सूती वस्त्र के व्यापार को भी शामिल किया जिनका इन्हें अत्यधिक फायदा मिला ।
- पुर्तगालियों की एशिया में स्थापित सर्वोच्चता को तोड़ने के लिए डच व्यापारियों ने पहले पुर्तगाली जहाजों पर हमले किए और बाद में स्थलीय ठिकानों पर डच कंपनी द्वारा गोवा और मलक्का समुद्री नाकेबंदी कर पुर्तगाली व्यापार को बाधित किया गया ।
- 1641 ई. में डचों ने मलक्का को जीत लिया 1658 ई. में श्रीलंका से भी पुर्तगालियों को निकाल दिया गया 1663 ई. में कोचीन पर भी डचों का अधिकार हो गया । कोचीन के मुट्टा शासन से डच कंपनी ने विशेष व्यापारी सुविधाएं प्राप्त की, जिनमें पुड़ाकड्ड और क्रांगनूर के बीच के क्षेत्र में काली मिर्च का अधिकार सर्वाधिक महत्वपूर्ण था ।
- डचों ने 1605 ई. में मछलीपट्टनम में प्रथम डच कारखाने की स्थापना की ।
- डचों द्वारा भारत में स्थापित कुछ अन्य कारखाने निम्न हैं -
- पुलिकट - 1610 ई.
- सूरत - 1616 ई.
- मसूलीपट्टनम - 1641 ई.
- कराईकल- 1645 ई.
- चिनसुरा- 1653 ई.
- कोचीन- 1663 ई.
- कासिम बाजार, पटना
- बालासोर, नागपट्टनम- 1658 ई.
- सूरत स्थित डच व्यापार निदेशालय, डच ईस्ट इंडिया कंपनी का सर्वाधिक लाभ प्राप्त करने वाला प्रतिष्ठान था।
- डचों ने पुलिकट में अपने स्वर्ण निर्मित पैगोडा सिक्के का प्रचलन करवाया ।
- लगभग तीन शताब्दियों तक पूर्वी द्वीप समूहों पर डचों का अधिकार रहा लेकिन अंग्रेजों ने भारत में उन्हें स्थापित नहीं होने दिया जिस शक्ति के साथ डचों ने पुर्तगालियों को पराजित किया था वह शक्ति अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में काम नहीं आ सकी ।
- आरंभिक वर्षों में डच एवं अंग्रेज के बीच संबंध अच्छे थे लेकिन बाद में व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता के कारण वे एक दूसरे के शत्रु बन गए आरंभ में डचों ने कुछ हद तक अंग्रेजों का मुकाबला किया लेकिन बाद में अंग्रेजों ने उन्हें दबा दिया।
- डच कंपनी का नियंत्रण सीधे डच सरकार के हाथ में था इसलिए कंपनी अपनी इच्छा अनुसार विस्तार नहीं कर सकती थी जो कंपनी के पतन का प्रमुख कारण बनी । इसके अलावा अपने प्रतिद्वंदी अंग्रेजों की तुलना में डचों की नौ सैनिक शक्ति कमजोर थी और दक्षिण पूर्वी एशिया के द्वीपों पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित रखने के कारण बाद में भी भारत में अंग्रेजों व फ्रांसीसियों के साथ निर्णायक प्रतिस्पर्धा नहीं कर सके ।
अंग्रेजों का आगमन एवं उनकी गतिविधियाँ
- 16वीं शताब्दी में जिन देशों की व्यापारिक कंपनियों तथा सरकारों ने भारत में व्यापार एवं वाणिज्य की गतिविधियां शुरू की उनमें सर्वाधिक प्रभावी भूमिका अंग्रेजों की रही । व्यापारिक उद्देश्य से भारत में आने के बाद उन्होंने इसे अपना उपनिवेश बना लिया भारत में इनकी गतिविधियां दीर्घकालिक रहीं, उन्होंने व्यापार के अपने प्राथमिक उद्देश्य को धीरे-धीरे राजनीतिक सत्ता की ओट में गौड़ बनाया । पूर्ववर्ती पुर्तगालियों एवं अन्य यूरोपीय देशों की नीतियों को अंग्रेजों ने छोड़ दिया और ज्यादा से ज्यादा हड़प लेने की नीति अपनाई ।
- अंग्रेजों की सफलता का कारण था उनका भारत सहित समूचे एशियाई व्यापार के स्वरूप को समझना तथा व्यापार विस्तार में राजनैतिक- सैनिक शक्ति का सहारा लेना ।
- 1599 ई. में जॉन मिलडेन हॉल नामक ब्रिटिश यात्री थल मार्ग से भारत आया ।
- 1599 ई. में इंग्लैंड में एक मर्चेंट एडवेंचर्स नामक दल ने अंग्रेजी ‘ईस्ट इंडिया कंपनी अथवा दी गवर्नर एंड कंपनी ऑफ मर्चेंट ऑफ ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडीज’ की स्थापना की ।
- 31 दिसंबर 1600 को महारानी एलिजाबेथ- l ने एक रॉयल चार्टर जारी कर इस कंपनी को प्रारंभ में 15 वर्षों के लिए पूर्वी देशों से व्यापार करने का एकाधिकार पत्र दे दिया किंतु आगे चलकर 1609 में ब्रिटिश सम्राट जेम्स-l ने कंपनी को अनिश्चितकालीन व्यापारिक एकाधिकार प्रदान किया ।
- कंपनी का प्रारंभिक उद्देश्य था, भू-भाग नहीं बल्कि व्यापार ।
- अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रथम समुद्री यात्रा 1601 में जावा, सुमात्रा तथा मलक्का के लिए हुई ।
- 1608 में इस कंपनी ने भारत के पश्चिमी तट पर सूरत में एक फैक्ट्री खोलने का निश्चय किया।ब्रिटिश सम्राट जेम्स-l ने विलियम हॉकिंस को 1608 में राजदूत के रूप में मुगल सम्राट जहांगीर के दरबार में भेजा परिणाम स्वरूप एक शाही फरमान के द्वारा सूरत में फैक्ट्री खोलने की इजाजत मिली ।
- 1611 में मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में अंग्रेज कैप्टन मिडलटन पहुंचा और व्यापार करने की अनुमति पाने में सफल हुआ। जहांगीर ने 1613 में सूरत में अंग्रेजों को स्थाई कारखाना स्थापित करने की अनुमति प्रदान की।अंग्रेज कैप्टन बेस्ट द्वारा सूरत के समीप स्वाली में पुर्तगालियों के जहाजी बेड़े को पराजित कर उनके व्यापारिक एकाधिकार को भंग किया गया ।
- 1615 में इंग्लैंड के सम्राट जेंट्स प्रथम का एक दूत सर टॉमस रो जहांगीर के दरबार में आया।उसका उद्देश्य एक व्यापारिक संधि करना था सर टॉमस रो ने मुगल सम्राट के सभी भागों में व्यापार करने एवं फैक्ट्रियां स्थापित करने का अधिकार प्राप्त कर लिया ।
- 1623 तक अंग्रेजों ने सूरत, आगरा,अहमदाबाद, मछलीपट्टनम तथा भड़ौच में अपनी व्यापारिक कोठियों की स्थापना कर ली थी ।
- दक्षिण भारत में अंग्रेजों ने अपनी प्रथम व्यापारिक कोठी की स्थापना 1611 में मछलीपट्टनम में की । उसके बाद 1639 में मद्रास में व्यापारिक कोठी स्थापित की ।
- 1633 में उड़ीसा के बालासोर में खोला गया कारखाना, पूर्वी भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित प्रथम कारखाना था और 1651 में हुगली नगर में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त करने के बाद बंगाल, बिहार, पटना और ढाका में भी कारखाने खोले गए ।
- फ्रांसिस डे ने 1639 में चंद्र गिरी के राजा से मद्रास को पट्टे पर लिया जहां कालांतर में एक किलेबंद कोठी का निर्माण किया गया इसी कोठी को ‘फोर्ट सेंट जॉर्ज’ नाम दिया गया ।
- गोलकुंडा के सुल्तान द्वारा 1632 में अंग्रेजों को एक ‘सुनहरा फरमान’ के माध्यम से गोलकुंडा राज्य में स्वतंत्रता पूर्वक व्यापार करने की अनुमति प्राप्त हुई ।
- 1661 में ब्रिटेन के राजा चार्ल्स द्वितीय ने पुर्तगाली राजकुमारी से विवाह कर लिया जिसमें दहेज स्वरूप उसे मुंबई टापू मिल गया। चार्ल्स ने इसे 10 पाउंड वार्षिक के मामूली से किराए पर ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया । 1669 और 1677 के बीच कंपनी के गवर्नर जेराल्ड आन्गियर ने आधुनिक मुंबई नगर की नींव रखी ।
- इंडिया कंपनी ने ब्रिटिश सरकार से बम्बई को प्राप्त किया । अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण पश्चिमी तट पर कंपनी के मुख्यालय के रूप में बंदरगाहों में सूरत का स्थान जल्द ही बम्बई को प्राप्त हो गया ।
- 1686 ने अंग्रेजो ने हुगली को लूट लिया, परिणाम स्वरूप उनका मुगल सेना से संघर्ष हुआ तत्पश्चात कंपनी को सूरत,मछलीपट्टनम, विशाखापट्टनम आदि कारखानों से अपने अधिकार खो देने पड़े।परंतु अंग्रेजों द्वारा क्षमायाचना करने पर औरंगजेब ने उन्हें डेढ़ लाख रुपया मुआवजा देने के बदले व्यापारिक अधिकार प्रदान करने का निश्चय किया ।
- 1691 से जारी एक शाही फरमान के तहत एकमुश्त वार्षिक कर के बदले कंपनी को बंगाल में सीमा शुल्क से छूट प्रदान की गई ।
- 1698 में अजीमुशान द्वारा अंग्रेजों को सुतानती, कालिकाता (कालीघाट-कलकता) और गोविंदपुर नामक तीन गांवों की जमीदारी मिल गई । इन्ही को मिलकर जॉब चारनाक ने कलकत्ता की नींव रखी । कंपनी की इस नयी किलेबंदी को ‘फोर्ट विलियम’ का नाम दिया गया । इसके सुचारू रूप से प्रशासन के लिए एक प्रेसिडेंट और काउंसिल की व्यवस्था की गई तथा चार्ल्स आयर को प्रथम प्रेसिडेंट नियुक्त किया गया ।
- कलकत्ता को अंग्रेजों ने 1700 में पहला प्रेसिडेंट नगर घोषित किया।1774 से 1911 तक कलकत्ता ब्रिटिश भारत की राजधानी बना रहा।
- मुगल सम्राट फर्रूखसियर की बीमारी का इलाज कंपनी के एक डॉक्टर विलियम हैमिल्टन द्वारा किए जाने के फल स्वरूप कंपनी को व्यापारिक सुविधाओं वाला एक फरमान जारी किया गया। फरमान के अंतर्गत एक निश्चित वार्षिक कर ₹3000 चुकाकर निशुल्क व्यापार करने तथा मुंबई में कंपनी द्वारा ढाले गए सिक्कों को संपूर्ण मुगल राज्य में चलाने की आज्ञा मिल गई । उन्हें वही कर देने पड़ते थे जो भारतीयों को भी देने होते थे। ब्रिटिश इतिहासकार ओर्म्स ने इसको कंपनी का अधिकार पत्र या मैग्नाकार्टा कहा।
- बंगाल के नवाब मुर्शिद कुली खां ने फर्रूखसियर द्वारा दिए गए फरमान के बंगाल में स्वतंत्र प्रयोग को नियंत्रित करने का प्रयास किया।
- मराठा सेना नायक कान्होजी आंगरिया ने पश्चिमी तट पर अंग्रेजों की स्थिति को काफी कमजोर बना दिया था ।
- भारत में कंपनी की फैक्ट्री एक किलाबंद क्षेत्र जैसी होती थी जिसके अंदर गोदाम, दफ्तर और कंपनी के कर्मचारियों के लिए आवास होते थे ।
- विलियम हैजेज बंगाल का प्रथम अंग्रेज गवर्नर था ।
डेनिसों का आगमन एवं उनकी गतिविधियाँ
- पुर्तगाली,डच और अंग्रेजों के बाद भारत में आने वाले चौथे यूरोपीय व्यापारी डेनिस थे जिनका आगमन 1616 में हुआ ।
- डेनिसों ने 1620 में ट्रेन्कोबार तथा 1676 में से सेरामपोर (बंगाल) में अपनी फैक्ट्रियां स्थापित की ।
- प्रारंभ से ही ये कंपनी भारत में अपनी स्थिति को मजबूत करने में सफल नहीं हुई और 1845 तक अपनी सारी फैक्ट्रियां डेनिस अंग्रेजों को बेचकर चले गए।
फ्रांसीसियों का आगमन एवं उनकी गतिविधियाँ
- फ्रांसीसियों ने भारत में अन्य यूरोपीय कंपनियों की अपेक्षा सबसे बाद में प्रवेश किया ।
- लुई XIVवें, फ्रांस के सम्राट का शासन काल कई युगांतकारी घटनाओं के लिए याद किया जाता है। सन 1664 में फ्रांस के सम्राट लुई XIVवें के मंत्री कोलबर्ट के प्रयास से फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई जिसे ‘कंपनी फ्रेंकेस देस इन्देस ओरिएंटलेस’ कहा गया ।
- फ्रांस की व्यापारिक कंपनी को राज्य द्वारा विशेषाधिकार तथा वित्तीय संसाधन प्राप्त था इसलिए इसे एक सरकारी व्यापारिक कंपनी कहा जाता था।
- 1668 में फ्रैंकोइस कैरो द्वारा सूरत में प्रथम फ्रांसीसी फैक्ट्री की स्थापना की गई।
- 1669 में मर्करा ने गोलकुंडा के सुल्तान से अनुमति प्राप्त कर मसूलीपट्टनम में दूसरी फ्रेंच फैक्ट्री की स्थापना की।
- 1673 में कंपनी के निदेशक फ्रांसिस मार्टिन ने वर्ली कोंडापुरम के सूबेदार शेरखान लोदी से कुछ गांव प्राप्त किए जिसे कालांतर में पांडिचेरी के नाम से जाना गया।
- 1673 में बंगाल के नवाब शाइस्ता खान ने फ्रांसीसियों को एक जगह किराए पर दी जहां चन्द्रनगर की सुप्रसिद्ध कोठी की स्थापना की गई यहां का किला ‘फोर्ट ऑरलियंस’ कहा जाता है।
- डचों ने अंग्रेजों की सहायता से 1693 में पांडिचेरी को छीन लिया लेकिन 1697 में संपन्न रिज्विक की संधि के बाद पांडिचेरी पुनः फ्रांसीसियों को प्राप्त हो गया ।
- फ्रांसीसियों द्वारा 1721 में मॉरीशस, 1725 में मालाबार में स्थित माहे एवं 1739 में कराईकल पर अधिकार कर लिया गया ।
- इसके बाद फ्रांसीसी भी व्यापारिक लाभ कमाने की तुलना में राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में सक्रिय हो गए परिणाम स्वरूप अंग्रेज और फ्रांसीसियों में युद्ध प्रारंभ हो गया ।
- अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच लड़े गए युद्ध को कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना जाता है । कोरोमंडल समुद्र तट पर स्थित क्षेत्र जिसे कर्नाटक कहा जाता था पर अधिकार को लेकर इन दोनों कंपनियों में लगभग 20 वर्षों तक संघर्ष चलता रहा ।
- तत्कालीन कर्नाटक, दक्कन के सूबेदार के नियंत्रण में था जिसकी राजधानी अर्काट थी ।
प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746 48)- इसका तात्कालिक कारण था अंग्रेज कैप्टन बर्नेट के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना द्वारा कुछ फ्रांसीसी जहाजों पर अधिकार कर लेना ।
- बदले में फ्रांसीसी गवर्नर ला बुर्दने के सहयोग से डुप्ले ने मद्रास के गवर्नर मोर्स को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। इस समय अंग्रेज फ्रांसीसियों के सामने बिल्कुल असहाय थे ।
- प्रथम कर्नाटक युद्ध के समय ही कर्नाटक के नवाब अनवरूद्दीन ने महफूज खान के नेतृत्व में 10 हजार सिपाहियों की एक सेना फ्रांसीसियों पर आक्रमण के लिए भेजा। कैप्टन पैराडाइज के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने सेंटथोमे के युद्ध में नवाब को पराजित किया।
- यूरोप में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच ऑस्ट्रेलिया में लड़े जा रहे उत्तराधिकार युद्ध की समाप्ति हेतु 1748 में एक्स-ला शैपेल की संधि के संपन्न होने पर भारत में भी इन दोनों कंपनियों के बीच संघर्ष समाप्त हो गया तथा मद्रास पुनः अंग्रेजों को मिल गया ।
द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749 -54)-
- इस युद्ध की पृष्ठभूमि भारतीय परिस्थितियों में ही निर्मित हुई कर्नाटक ने हैदराबाद के निजाम एवं मराठों के हस्तक्षेप से युद्ध की परिस्थितियां उत्पन्न हुई ।
- 1748 ई. में हैदराबाद के निजाम आसफजहाँ निजाम उल मुल्क का देहावसान हो जाने पर उसके पुत्र मुजफ्फर जंग तथा नासिर जंग के बीच उत्तराधिकार का युद्ध शुरू हुआ ठीक उसी समय कर्नाटक में भी इसी प्रकार का संघर्ष कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन तथा भूतपूर्व नवाब दोस्त अली के दामाद चंदा साहब के बीच शुरू हो गया अंग्रेजों ने अनवरुद्दीन और नासिर जंग को अपना समर्थन प्रदान किया ।
- चंदा साहब ने 1749 में अंबर में अनवरुद्दीन को पराजित कर मार डाला तथा कर्नाटक के अधिकांश हिस्सों पर अधिकार कर लिया लेकिन मुजफ्फर जंग ढक्कन की सूबेदारी हेतु अपने भाई नासिरजंग से पराजित हुआ लेकिन 1750 में नासिर की मृत्यु के बाद मुजफ्फर दक्कन पर सूबेदार बन गया ।
- 1750 में हैदराबाद में नासिर जंग भी मारा गया और मुजफ्फर जंग नवाब बना इसने प्रसन्न होकर फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले को मसूलीपट्टनम में पांडिचेरी का क्षेत्र प्रदान कर दिया और साथ ही डूप्ले को कृष्णा नदी से कन्याकुमारी तक के क्षेत्र का गवर्नर बनाया ।
- फ्रांसीसी अधिकारियों ने भारत में डूप्ले की नीति की आलोचना करते हुए उसे वापस इंग्लैंड बुला लिया तथा इसके स्थान पर गोंदेहू को पांडिचेरी का अगला गवर्नर बनाकर भारत भेजा गया ।
- डूप्ले की बारे में जी.आर. मैरियट ने कहा कि डूप्ले ने भारत की पूंजी मद्रास में तलाश कर भयानक भूल की क्लाइव ने इसे बंगाल में खोज लिया।
- गोंडेहू के प्रयास से अंग्रेजी कंपनी के साथ 1754 ई. में पांडिचेरी की संधि हुई जिसके तहत दोनों पक्ष युद्धविराम पर सहमत हुए।
- इस संधि के परिणाम स्वरुप दोनों कंपनियों को अपने-अपने क्षेत्र वापस मिल गए। अंग्रेजों के समर्थक मोहम्मद अली को कर्नाटक का नवाब बनाया गया इस संधि में दोनों कंपनियों ने भारतीय नरेशों के झगड़ों में हस्तक्षेप ना करने का वादा किया ।
तृतीय कर्नाटक युद्ध 1758 से 1763- तृतीय कर्नाटक युद्ध में आस्ट्रिया तथा इंग्लैंड के बीच प्रशा में शुरू हुए 7 वर्षीय युद्ध का ही विस्तार था । यूरोप में फ्रांस, ऑस्ट्रिया को तथा इंग्लैंड,प्रशा को समर्थन दे रहे थे, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव भारत में उपस्थित दोनों शक्तियों के संबंधों पर पड़ा ।
- तृतीय कर्नाटक युद्ध का तात्कालिक कारण फ्रांस की सरकार द्वारा काउंट डी लाली को भारत के संपूर्ण फ्रांसीसी क्षेत्र के सैनिक एवं असैनिक अधिकारों को प्रदान किया जाना था ।1758 में लाली ने फोर्ट सेंट डेविड पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। हालांकि तंजौर पर अधिकार करने में असफल रहा। लाली ने युद्ध में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बुस्सी को हैदराबाद से वापस बुला लिया जो कालांतर में उसकी एक रणनीतिक भूल साबित हुई ।
- दूसरी तरफ अंग्रेजी नौसेना ने एडमिरल पोकॉक के नेतृत्व में फ्रांसीसी बेड़े को तीन बार हराया और इसी समय क्लाइव और वॉटसन ने चंदनगर को अपने अधिकार में ले लिया।
- 1760 में अंग्रेजी सेनानायक सर आयरकूट के नेतृत्व में वांडीवाश का युद्ध 22 जनवरी 1760 को हुआ जिसमें फ्रांसीसियों की हार हुई।अंग्रेजों ने बुस्सी को कैद कर लिया तथा 1761 में पांडिचेरी पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के बाद माहे एवं जिंजी पर भी उन्होंने कब्जा कर लिया ।
- तृतीय कर्नाटक युद्ध का अंत सन 1763 में पेरिस की संधि से हुआ इस संधि की शर्तों के अनुसार, अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को भारत में विजित सारी फैक्ट्रियां लौटा दी पर अब वे अपनी फैक्ट्रियों की किलेबंदी नहीं कर सकते थे और न ही वहां सैनिक रख सकते थे।अब फैक्ट्रियां केवल व्यापार केंद्रों के रूप में कार्य कर सकती थी ।
- तृतीय कर्नाटक युद्ध पूर्णतः निर्णायक था अब फ्रांसीसी भारत में एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में समाप्त हो चुके थे।
- पेरिस संधि के बाद फ्रांसीसियों ने भारत में अपने राज्य विस्तार के विचार को छोड़ दिया और अपना सारा ध्यान व्यापार पर केंद्रित किया।
- लगभग 20 वर्ष की अवधि तक चलने वाले कर्नाटक युद्धों के बाद फ्रांसीसियों की हार ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत के आगामी सर्वेसर्वा अंग्रेज ही होंगे।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- वास्कोडिगामा- यह भारत आने वाला पहला यूरोपीय यात्री था,
- पेड्रो अल्वारेज कैब्रोल- भारत आने वाला द्वितीय पुर्तगाली,
- फ्रांसिस्को डी अलमीडा- भारत का प्रथम पुर्तगीज गवर्नर,
- कैप्टन हॉकिंस- पहला अंग्रेजी दूत जिसने सम्राट जहांगीर से भेंट की,
- जॉब चारनाक- कलकत्ता का संस्थापक,
- फ्रांसिस डे - मद्रास का संस्थापक,
- गेराल्ड अंगियार-बम्बई का वास्तविक संस्थापक,
महत्वपूर्ण तिथियाँ
- वास्कोडिगामा का भारत आगमन-1498,
- वास्कोडिगामा द्वारा भारत की दूसरी यात्रा- 1501,
- गोवा पुर्तगालियों का अधिकार-1510,
- भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना-1599,
- डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना-1602,
- पुर्तगालियों ने बम्बई को दहेज के रूप में ब्रिटेन के राजा को दिया-1661,
- भारत में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना-1664,
- जॉब चारनाक द्वारा कोलकाता की स्थापना-1690,
- बेदरा का निर्णायक युद्ध जिसमें अंग्रेजों ने डचों को पराजित करके भारतीय व्यापार से बाहर निकाला-1759,
- वांडीवाश का निर्णायक युद्ध-1760,