• Have Any Questions
  • +91 6307281212
  • smartwayeducation.in@gmail.com

Study Material



राजपूत राजवंशों की उत्पत्ति

  • पांचवीं शताब्दी के अन्त अथवा छठी शताब्दी के पूर्वाद्ध में गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया था।
  • विदेशों से बर्बर हूणों के होने वाले आक्रमण तथा आन्तरिक विघटन गुप्त साम्राज्य के पतन के मुख्य कारण थे जिसके परिणामस्वरूप गुप्त साम्राज्य के प्रान्तीय शासकों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर उत्तर भारत के विभिन्न भागों में अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए।
  • गुप्त साम्राज्य के पतन के साथ ही मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र जो छठी शताब्दी ई.पू. से छठी शताब्दी ई. तक उत्तर भारत की राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्रबिन्दु रहा था, का गौरव भी नष्ट हो गया।
  • पाटलिपुत्र के स्थान पर अब कन्नौज के रूप में उत्तरी भारत के एक नवीन राजनीतिक केन्द्र का उदय हुआ।
  • डा. ईश्वरी प्रसाद ने इस काल के भारत को ‘राज्य के अन्दर राज्यों का काल’ कहा है।
  • इस समय उत्तर भारत के अधिकांश राजवंश राजपूत थे इसलिए इस युग के इतिहास को राजपूत युगीन इतिहास भी कहा जाता है।
  • इन राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में भिन्न-भिन्न मत प्रचलित है। कुछ विद्वान इसे भारत में रहने वाली एक जाति मानते हैं, तो कुछ अन्य इन्हें विदेशियों की संतान मानते हैं।
  • कुछ विद्वान राजपूतों को आबू पर्वत पर विशिष्ठ के अग्निकुण्ड से उत्पन्न हुआ मानते हैं। यह सिद्धांत चन्दबरदाई के पृथ्वीराज रासो पर आधारित है तथा प्रतिहार, चालुक्य, चैहान और परमार राजपूतों का जन्म इससे माना जाता है।

       कर्नल टाड के अनुसार राजपूत शक-कुषाण तथा हूण आदि विदेशी जातियों की संतान थे।

गुर्जर-प्रतिहार

  • अग्निकुल के राजपूतों में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहार वंश था जो गुर्जरी की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर प्रतिहार कहा जाता है।
  • पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल लेख में गुर्जर जाति का उल्लेख सर्वप्रथम  हुआ है।
  • इस वंश की स्थापना हरिचन्द्र नामक राजा ने की किन्तु वंश का वास्तविक प्रथम महत्वपूर्ण शासक नागभट्ट प्रथम था।
  • वत्सराज के समय से ही कन्नौज के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष शुरू हुआ।
  • नागभट्ट प्रथम (730-756 ई0) ने अरबों से लोहा लिया और पश्चिमी भारत में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की थी। ग्वालियर प्रशस्ति में उसे ‘म्लेच्छों का नाशक’ बताया गया है।
  • इस वंश का चैथा शासक वत्सराज (780-805 ई0) था। वह एक शक्तिशाली शासक था। जिसे प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जा सकता है।
  • उसने पाल शासक धर्मपाल को पराजित किया किन्तु राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से पराजित हुआ।
  • वत्सराज के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय (800-833 ई0) गद्दी पर बैठा। उसने कन्नौज पर अधिकार करके उसे प्रतिहार साम्राज्य की राजधानी बनाय।
  • मिहिर भोज प्रथम (836-885 ई0) इस वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था। लेखों के अतिरिक्त कल्हण तथा अरब यात्री सुलेमान के विवरणों से भी हमें उसके काल की घटनाओं की जानकारी मिलती है। इसका नाम दंत कथाओं में भी प्रसिद्ध है।
  • भोज को अपने समय के दो प्रबल शक्तियों-पाल नरेश देवपाल तथा राष्ट्रकूट नरेश ध्रुव से पराजित होना पड़ा।
  • भोज के प्रारंभिक जीवन की साहसपूर्ण कार्य अपने खोये हुए साम्राज्य की क्रमशः पुनर्विजय और अंतिम रूप से कन्नौज की पुनः प्राप्ति (पुनः प्रतिहारों की राजधानी बनी) ने तत्कालीन लोगों की कल्पना को प्रभावित किया।
  • भोज वैष्णव धर्मानुयायी था। उसने आदिवाराह तथा प्रभास जैसी उपाधियां धारण की जो उसके द्वारा चलाए गये चांदी के ‘द्रम्म’ सिक्कों पर भी अंकि है।
  • उसने राष्ट्रकूट शासक कृष्ण द्वितीय को हराकर मालवा प्राप्त किया। मालवा और  गुजरात पर प्रभुत्व करना राष्ट्रकूटों का वास्तविक उद्देश्य था।
  • मिहिर भोज के पश्चात उसका पुत्र महेन्द्र पाल प्रथम (885-910 ई0) शासन किया। लेखों में उसे परम भट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर कहा गया है।
  • उसने राष्ट्रकूट शासन इन्द्र तृतीय को पराजित किया, किन्तु कश्मीरी शासक से युद्ध में पराजित होना पड़ा।
  • उसकी राजसभा में प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर निवास करते थे जो उसके राजगुरू थे। राजशेखर ने कर्पूर मंजरी, काव्य मीमांसा, विद्धशालभंजिका बालभारत, बालरामायण, भुवनकोश तथा हरविलास जैसे प्रसिद्ध जैन ग्रंथों की रचना की।
  • महेन्द्र पाल प्रथम शासन काल में राजनैतिक एवं सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से प्रतिहार साम्राज्य की अभूतपूर्व प्रगति हुई।
  • महीपाल (912-943 ई0) एक कुशल एवं प्रतापी शासक था। इसके शासन काल में बगदाद निवासी अल मसूदी (915-916 ई0) गुजरात आया था।
  • अल मसूदी गुर्जर प्रतिहार को ‘अल गुजर’ (गुर्जर का अपभ्रंश) ओर राजा को बौरा कहकर पुकारता है जो संभवतः आदि वराह का विशुद्ध उच्चारण है।
  • महीपाल का शासन काल शान्ति एवं समृद्धि का काल रहा है। राजशेखर उसे आर्यावर्त का महाराजाधिराज कहता है।
  • राजशेखर को महेन्द्र पाल प्रथम तथा महीपाल दोनों को संरक्षण प्रदान किया था।
  • महीपाल के समय में ही गुर्जर साम्राज्य का विघटन प्रारंभ हो गया था।
  • महीपाल के बाद महेन्द्रपाल द्वितीय, देवपाल, विनायक पाल द्वितीय, महीपाल द्वितीय तथा विजयपाल जैसे कमजोर शासकों के समय प्रतिहार साम्राज्य के टूटने की गति और भी तेज हो गयी।
  • 963 ई0 राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय ने उत्तरी भारत पर आक्रमण कर प्रतिहार राजा को पराजित किया। इसके पश्चात शीघ्र ही प्रतिहार साम्राज्य का विघटन आरंभ हो गया।
  • प्रतिहारों के सामन्त गुजरात के चालुक्य, जेजाकभुक्ति के चंदेल ग्वालियर के कच्छपघात, मध्यभारत के कलचुरी, मालवा के परमार दक्षिण भारत के गुहिल तथा शांकभरी के चैहान (चाहमान) आदि स्वतंत्र हो गये।
  • 1018 ई0 के महमूद गजनवी ने कमजोर गुर्जर शासक राज्यपाल को हराकर अपने अधीन कर लिया। राज्यपाल के पुत्र त्रिलोचन पाल भी 1019 ई0 में महमूद गजनवी से पराजित हुआ। इसके उपरान्त प्रतिहारों का अन्त हो गया।
  • व्हेनसांग ने गुर्जर राज्य को पश्चिमी भारत का दूसरा बड़ा राज्य कहता है।
  • गुर्जर प्रतिहारों ने विदेशियों के आक्रमण के संकट के समय भारत के द्वारपाल की भूमिका निभाई।
  • प्रतिहार शासकों के पास भारत में सर्वाेच्च अश्वारोही सैनिक थे। उन दिनों मध्य एशिया और अरब घोड़ों का आयात भारतीय व्यापार का एक महत्वपूर्ण अंग था।
  • इस वंश का अंतिम शासक यशपाल (1036 ई0) था।

कन्नौज का गहड़वाल वंश

गहड़वालों का मूल निवास स्थान विंध्याचल का पर्वतीय वन प्रांत माना जाता है। चंद्रदेव ने कन्नौज में गहड़वाल वंश की स्थापना की। दिल्ली के तोमरों ने भी उसकी अधीनता स्वीकार की। उसने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की।

प्रमुख शासक

  • गोविंदचंद्र (1114-1155 ई0)
  • गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। उसने आधुनिक पश्चिमी बिहार से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक का समस्त भाग अपने अधीन करके कन्नौज के प्राचीन गौरव को पुनः स्थापित किया।
  • वह स्वयं बड़ा विद्वान था। उसे उसके लेखों में ‘विविधविद्याविचारवाचस्पति’ कहा गया है।
  • लक्ष्मीधर गोविंदचंद्र का शांति एवं युद्ध मंत्री था। वह भी शास्त्रों का प्रकांड पंडित था। उसने ‘कृत्यकल्पतरू’ नामक ग्रंथ की रचना की, जिससे तत्कालीन राजनीति, समाज एवं संस्कृति पर सुंदर प्रकाश पड़ता है।
  • जयचंद (1170-1194 ई0)
  • इस वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक जयचंद था। भारतीय लोक साहित्य तथा कथाओं में वह ‘राजा जयचंद’ के नाम से विख्यात है।
  • 1194 ई0 में चंदावर के युद्ध में वह मुहम्मद गौरी से पराजित हुआ तथा मारा गया। पूर्व की ओर विस्तार के प्रयास में जयचंद को बंगाल के शासक लक्ष्मणसेन द्वारा भी पराजित होना पड़ा था।
  • जयचंद ने संस्कृत के प्रख्यात कवि श्रीहर्ष को संरक्षण प्रदान किया, जिसने ‘नैषेधचरित’ एवं ‘खंडन-खंड-खाद्य’ की रचना की। अपनी विजय के उपलक्ष्य में उसने राजसूय यज्ञ भी किया था।
  • कालांतर में इल्तुतमिश ने कन्नौज पर अधिकार कर गहड़वाल वंश के शासन को समाप्त कर दिया।

चाहमान या चैहान वंश

  • चैहान वंश का संस्थापक वासुदेव था। इस वंश की प्रारंभिक राजधानी अहिच्छत्र थी बाद में अजयराज द्वितीय ने अजमेर नगर की स्थापना की और उसे राजधानी बनाया।
  • इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक अर्णाेराज के पुत्र विग्रहराज चतुर्थ वीसलदेव (1153-1163 ई0) हुआ, जिसने हरिकेलि नामक संस्कृत नाटक की रचना की।
  • सोमदेव, विग्रहराज चतुर्थ के राजकवि थे। इन्होंने ललित विग्रहराज नामक नाटक लिखा।
  • अढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद शुरू में विग्रहराज चतुर्थ द्वारा निर्मित एक विद्यालय था।
  • पृथ्वीराज तृतीय इस वंश का अंतिम शासक था।
  • चन्दवरदाई, पृथ्वीराज तृतीय का राजकवि था, जिसकी रचना पृथ्वीराज रासो है
  • रणथम्भौर के जैन मंदिर का शिखर पृथ्वीराज तृतीय ने बनवाया था।
  • तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ई0 में हुआ, जिसमें पृथ्वीराज तृतीय की विजय एवं गौरी की हार हुई।
  • तराइन के द्वितीय युद्ध 1192 ई0 में हुआ, जिसमें गौरी की विजय एवं पृथ्वीराज तृतीय की हार हुई। 

शाकंभरी का चैहान वंश

  • 7वीं शताब्दी में वासुदेव द्वारा स्थापित शाकंभरी (सांभर एवं अजमेर के निकट) के चैहान राज्य का इतिहास में विशेष स्थान है। इस वंश के प्रारंभिक इतिहास तथा वंशावली का ज्ञान हमें विग्रहराज.प्प् के हर्ष प्रस्तर अभिलेख तथा सोमेश्वर के समय में बिजौलिया प्रस्तर लेख से होता है।
  • चैहान, प्रतिहार शासकों के सामंत थे। 10वीं शताब्दी के प्रारंभ में वाक्पतिराज प्रथम ने प्रतिहारों से अपने को स्वतंत्र कर लिया।

प्रमुख शासक

अजयराज

  • अजयराज 12वीं शताब्दी में चैहान वंश का शासक बना। वह पृथ्वीराज प्रथम का पुत्र था। उसने अजमेर नगर की स्थापना की थी तथा उसे अपनी राजधानी बनाया था।
  • अजयराज का उत्तराधिकारी अर्णाेराज एक महत्वपूर्ण शासक था। उसने अजमेर के निकट सुल्तान महमूद की सेना को पराजित किया।
  • विग्रहराज चतुर्थ अथवा वीसलदेव (1153-1163 ई0)
  • वीसलदेव की सबसे बड़ी सफलता तोमरों की स्वाधीनता समाप्त करके उन्हें अपना सामंत बनाना था।
  • वीसलदेव विजेता होने के साथ-साथ यशस्वी कवि और लेखक भी था। उसने ‘हरिकेल’ नामक एक संस्कृत नाटक की रचना की। इस नाटक के कुछ अंश ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ नामक मस्जिद की दीवारों पर उत्कीर्ण किये गए हैं।
  • वीसलदेव ने अजमेर में सरस्वती का प्रसिद्ध मंदिर बनवाया। उसके दरबार में कथासरित्सागर के रचयिता सोमदेव रहते थे, जिन्होंने वीसलदेव के सम्मान में ‘ललितविग्रहराज’ नामक ग्रंथ की रचना की।

पृथ्वीराज तृतीय (1178-1192 ई0)

  •  पृृथ्वीराज चैहान अथवा पृथ्वीराज-तृृतीय को ‘रायपिथौरा’ भी कहा जाता है। वह चैहान वंश का प्रसिद्ध राजा था। उसके अधिकार मे दिल्ली से लेकर अजमेर तक का विस्तृत भू-भाग था। उसने अपनी राजधानी दिल्ली का नवनिर्माण किया।

पृथ्वीराज चैहान का युद्ध संघर्ष

  • 1186 ई0 में पृथ्वीराज चैहान ने गुजरात के चालुक्य शासक भीम द्वितीय पर आक्रमण किया। संभवतः परमार राजकुमारी से विवाह के प्रश्न पर भीम द्वितीय से उसका युद्ध हुआ था।
  • 1191 ई0 में मुहम्मद गौरी तथा पृथ्वीराज चैहान के बीच प्रथम तराइन युद्ध हुआ, जिसमे मुहम्मद गौरी पराजित हुआ।
  • 1192 ई0 में मुहम्मद गौरी तथा पृृथ्वीराज चैहान के बीच पुनः युद्ध हुआ, जिसे ‘तराइन का द्वितीय युद्ध’ कहते हैं। उसमें पृथ्वीराज पराजित हुआ तथा उसे बंदी बनाकर कुछ समय के बाद उसकी हत्या कर दी गई।
  • नोट: पृथ्वीराज चैहान के राजकवि चंदबरदाई ने ‘पृथ्वीराज रासो’ नामक अपभ्रंश महाकाव्य और जयानक ने ‘पृथ्वीराज विजय’ नामक संस्कृत काव्य की रचना की।
  • कालांतर में गौरी के एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली तथा अजमेर पर आक्रमण करके चैहानों की सत्ता का अंत कर दिया।

जेजाक भुक्ति के चन्देल

  • आज के बुंदेल खण्ड क्षेत्र में ही चंदेलों का उदय हुआ था तथा खजुराहों उनकी राजधानी थी। चंदेल प्रतिहारों के सामन्त थे।
  • इस वंश का प्रथम शासक नुन्नुक था। उसके पौत्र जयसिंह अथवा जेजा के नाम पर यह प्रदेश जेजाकभुक्ति कहलाया।
  • यशोवर्मन एक साम्राज्यवादी शासक था। उसने मालवा, चेदि और महाकोशल पर आक्रमण् करके अपने राजय का पर्याप्त विस्तार किया।
  • यशोवर्मन ने खजुराहों के प्रसिद्ध विष्णु मंदिर (चतुर्भुज मंदिर) का निर्माण करवाया इसके अतिरिक्त उसने एक विशाल जलाशय का भी निर्माण करवाया।
  • यशोधवर्मन का पुत्र धंग (950-1008 ई0) इस वंश का प्रसिद्ध शासक था। प्रतिहारों से पूर्ण स्वतंत्रता का वास्तविक श्रेय (वास्तविक स्वाधीनता का जन्मदाता) उसी (धंग) को दिया जाता है।
  • धंग ने कालिंजर पर अपना अधिकार सुदृढ़ करके उसे अपनी राजधानी बनाई। ग्वालियर की विजय धंग की सबसे महत्वपूर्ण सफलता थी।
  • धंग ने भटिण्डा के शाही शासक जयपाल को सुबुक्तगीन के विरूद्ध सैनिक सहायता भेजी तथा उसके विरूद्ध बने हिन्दू राजाओं के संघ में सम्मिलित हुआ।
  • धंग ने ब्राम्हणों को भूमि दान में दिया तथा उन्हें उच्च प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किया।
  • धंग एक महान निर्माण भी था जिसने खजुराहों में अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया। इनमें जिननाथ, विश्वनाथ, वैद्यनाथ आदि मंदिर उल्लेखनीय है।
  • धंग के बाद उसका पुत्र गंड राजा हुआ। उसने भी 1008 ई0 में महमूद गजनवी का सामना करने के लिए जयपाल के पुत्र आनन्दपाल द्वारा बनाए हुए संघ में भाग लिया।
  • विद्याधर (1019-1029 ई0) चंदेहल शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली था। मुसलमान लेखक उसका नाम ‘नन्द’ तथा ‘विदा’ नाम से करते है।
  • विद्याधर ने मालवा के परमार शासक भोज तथा कलचुरि शासक गांगेय देव को पराजित कर उसे अपने अधीन किया। उसका शासन काल चन्देल साम्राज्य के चरमोत्कर्ष को व्यक्त करता है।
  • चंदेल वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक परमर्दिदेव अथवा परमल था। 1182 ई0 में पृथ्वीराज ने इसे पराजित कर महोबा पर तथा 1203 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर पर अधिकार कर लिया।
  • चंदेल शासक उच्च कोटि के निर्माता थे उन्होंने बहुत से मंदिर, झीलें तथा नगरों का निर्माण कराया।

परमार वंश

  • परमार वंश का संस्थापक उपेन्द्रराज था। इसकी राजधानी धारा नगरी थी। (प्राचीन राजधानी-उज्जैन) परमार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक राजा भोज था।
  • राजा भोज ने भोपाल के दक्षिण में भोजपुर नामक झील का निर्माण करवाया।
  • नैषधीयचरित के लेखक श्रीहर्ष एवं प्रबन्धचिन्तामणि के लेखक मेरूतुंग थे।
  • राजा भोज ने चिकित्सा, गणित एवं व्याकरण पर अनेक ग्रंथ लिखे। भोजकृत युक्तिकल्पतरू में वास्तुशास्त्र के साथ-साथ विविध वैज्ञानिक यंत्रों व उनके उपयोग का उल्लेख है।
  • नववसाहसांचरित के रचयिता पद्मगुप्त, दशरूपक के रचयिता धनंजय, धनिक, हलायुद्ध एवं अमितगति जैसे विद्वान वाक्यपति मुंज के दरबार में रहते थे।
  • कविराज की उपाधि से विभूषित शासक था-राजा भोज
  • भोज ने अपनी राजधानी में सरस्वती मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • इस मंदिर के परिसर में संस्कृत विद्यालय भी खोला गया था।
  • राजा भोज के शासनकाल में धारा नगरी विद्या एवं विद्वानों का प्रमुख केन्द्र थी।
  • भोज ने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण करवाया।
  • परमार वंश के बाद तोमर वंश का, उसके बाद चाहमान वंश का और अन्ततः 1297 ई0 में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नसरत खां और उलुग खां ने मालवा पर अधिकार कर लिया।

सोलंकी वंश अथवा गुजरात के चालुक्य शासक

  • सोलंकी वंश का संस्थापक मूलराज प्रथम था। इसकी राजधानी अन्हिलवाड़ थी।
  • मूलराज प्रथम शैव धर्म का अनुयायी था।
  • भीम प्रथम के शासनकाल में महमूद गजनी ने सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण किया।
  • भीम प्रथम के सामान्त बिमलसाह ने आबू पर्वत पर दिलवाड़ा का प्रसिद्ध जैन मंदिर बनवाया।
  • सोलंकी वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक जयसिंह सिद्धराज था।
  • प्रसिद्ध जैन विद्वान हेमचन्द्र जयसिंह सिद्धराज के दरबार में था।
  • माउण्ट आबू पर्वत (राजस्थान) पर एक मंडप बनाकर जयसिंह सिद्धराज ने अपने सातों पूर्वजों की गजारोही मूर्तियों की स्थापना की।
  • मोढ़ेरा के सूर्य मंदिर का निर्माण सोलंकी राजाओं के शासनकाल में हुआ था
  • सिद्धपुर में रूद्रमहाकाल के मंदिर का निर्माण जयसिंह सिद्धराज ने किया था।
  • सोलंकी शासक कुमारपाल जैन-मतानुयायी था। वह जैन धर्म के अंतिम राजकीय प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध है।
  • सोलंकी वंश का अंतिम शासक भीम द्वितीय था।
  • भीम द्वितीय के एक सामन्त लवण प्रसाद ने गुजरात में बघेल वंश की स्थापना की थी।
  • बघेल वंश का कर्ण द्वितीय गुजरात का अंतिम हिन्दू शासक था, इसने अलाउद्दीन खिलजी की सेनाओं का मुकाबला किया था।

कलचुरी-चेदि राजवंश

  • कलचुरी वंश का संस्थापक कोक्कल था। इसकी राजधानी त्रिपुरी थी।
  • कलचुरी वंश का एक शक्तिशाली शासक गांगेयदेव था, जिसने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की। पूर्व-मध्यकाल में स्वर्ण सिक्कों के विलुप्त हो जाने के पश्चात् इन्होंने सर्वप्रथम इसे प्रारंभ करवाया।
  • कलचुरी वंश चुरी सबसे महान शासक कर्णदेव था, जिसने कलिंग पर विजय प्राप्त की और चित्रलिंगाधिपति की उपाधि धारण की।
  • प्रसिद्ध कवि राजशेखर कलचुरी के दरबार में ही रहते थे

सिसोदिया वंश

सिसोदिया वंश के शासक अपने को सूर्यवंशी कहते थे।

सिसोदिया वंश के शासक मेवाड़ पर शासन करते थे। मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ थी।

अपनी विजयों के उपलक्ष्य में विजयस्तंभ का निर्माण राणा कुम्भा ने चित्तौड़ में करवाया।

खतोली का युद्ध 1518 ई0 में राणा सांगा एवं इब्राहिम लोदी के बीच हुआ

Videos Related To Subject Topic

Coming Soon....