सीमावर्ती राजवंशों का अभ्युदय
बंगाल का पाल वंश
- व्हेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है कि 8वीं शताब्दी के मध्य में बंगाल में चार राज्य थे-1. पुंड्रवर्धन, 2. कर्णसुवर्ण, 3. समतट, 4. ताम्रलिप्ति।
- पाल शासकों के साम्राज्य का विस्तार सम्पूर्ण बंगल, बिहार तथा कन्नौज तक था। उनका शासन खाड़ी से लेकर दिल्ली तक तथा जालंधर से लेकर विंध्य पर्वत तक फैला हुआ था।
- प्रमुख शासक
- गोपाल (750-770 ई0)
- आठवीं शताब्दी के मध्य बंगाल में अशांति एवं अव्यवस्था फैली हुई थी। बताया जाता है कि बंगाल में फैली अशांति को दबाने के लिएए कुछ प्रमुख लोगों ने गोपाल को राजा बनाया।
- गोपाल बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने 750 ई0 में पाल वंश की स्थापना की। उसने ‘ओदंतपुरी’ में एक मठ का निर्माण करवाया था।
- धर्मपाल (770-810 ई0)
- गोपाल के बाद उसका पुत्र धर्मपाल 770 ई0 में सिंहासन पर बैठा। उसने बंगाल को उत्तरी भारत के प्रमुख राज्यों की श्रेणी में स्थापित कर दिया।
- धर्मपाल कन्नौज के लिए त्रिकोणात्मक संघर्ष में उलझा रहा। उसने कन्नौज के शासक इंद्रायुध को परास्त कर चक्रायुध को अपने संरक्षण में कन्नौज की गद्दी पर बैठाया।
- धर्मपाल ने चक्रायुध को गद्दी पर बैठाने के बाद भव्य दरबार का आयोजन किया। गुजराती कवि सोड्ढल ने उसे ‘उत्तरापथ स्वामी’ की उपाधि से संबोधित किया। धर्मपाल के लेखों में उसे ‘परम सौगात’ कहा गया है।
- धर्मपाल बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने अनेक मठ एवं बौद्ध विहार बनवाए। उसने विक्रमशिला विश्वविद्यालय (भागलपुर, बिहार) तथा सोमपुर महाविहार (वर्तमान में बांग्लादेश में स्थित है) की स्थापना की।
- धर्मपाल एक उत्साही बौद्ध था उसके लेखों में उसे परम सौगात कहा गया है। उसने विक्रमशिला तथा सोमपुरी (पहाड़पुर) में प्रसिद्ध विहारों की स्थापना की। उसकी राजसभा में प्रसिद्ध बौद्ध लेखक हरिभद्र निवास करता था।
- धर्मपाल प्रतिहार शासक वत्सराज तथा राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से पराजित हुआ था।
- धर्मपाल ने कन्नौज पर अधिकार कर एक शानदार दरबार का आयोजन किया जिसमें पंजाब, पूर्वी राजस्थान आदि के अधीनस्थ राजा उपस्थित हुए थे।
- देवपाल (810-850 ई0) अपने पिता के समान ही एक योग्य एवं साम्राज्यवादी शासक था। उसे इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक माना गया है।
- पुरालेखीय अभिलेख बताते हैं कि उसने दूर-दूर तक विजयें प्राप्त की।
- बादल स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख इस बात का दावा करता है कि देवपाल ने ‘‘उत्कलों की प्रजाति का सफाया कर दिया, हूणों का घमण्ड खण्डित किया और द्रविड़ तथा गुर्जर शासकों के मिथ्याभिमान को ध्वस्त कर दिया।’’
- देवपाल के उत्तराधिकारी विग्रहपाल (850-854 ई0) ने अपने पुत्र नारायणपाल के पक्ष में सिंहासन छोड़कर संन्यस ग्रहण कर लिया।
- नारायण पाल की भी सैनिक जीवन की अपेक्षा साधु जीवन व्यतीत करने में अधिक रूचि थी। उसने शिव के सम्मान में एक हजार मंदिर का निर्माण करवाया।
- महीपाल प्रथम (988-1038 ई0) ने पाल वंश की शक्ति तथा प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित करके अपनी अपनी योग्यता प्रमाणित की।
- महिपाल प्रथम को पाल वंश का दूसरा संस्थापक माना जाता है। इसके काल में राजेन्द्र चोल ने बंगाल पर आक्रमण किया तथा पाल शासक महिपाल को पराजित किया।
- महिपाल ने बौद्ध भिक्षु अतिस के नेतृत्व में तिब्बत में एक धर्म प्रचारक मण्डल भेजा था।
- हिन्दू काव्य में दायभाग का जन्मदाता जीमूतवाहन को पाल शासकों का संरक्षण प्राप्त था।
- महिपाल की मृत्यु के बाद पालवंश की अवनति आरम्भ हो गई।
- तारानाथ ने संध्याकार नन्दी द्वारा रचित रामपाल चरित के नायक रामपाल (1077-1120 ई0) को इस वंश का अंतिम शासक माना है।
- रामपाल के ही शासन काल में कैवर्ताे का विद्रोह हुआ था जिसका उल्लेख रामपाल चरित में मिलता है।
- नवीं शताब्दी के मध्य में सुलेमान नामक अरबी व्यापारी ने भारत की यात्रा की थी। उसके द्वारा लिखे गये यात्रा वृतान्त में पाल शासकों के अधिक शक्तिशाली होने के तथ्य का प्रमाण मिलता है। उसने पाल साम्राज्य को ‘रूहमा’ कहा है।
- पाल कलाकारों को कांस्य की मूर्तियां बनाने में महारत हासिल थी।
- बंगाल के पाल शासक बौद्ध धर्म (तान्त्रिक) के अनुयायी थे।
- पाल राजाओं द्वारा बहुत बड़ी संख्या में हाथी रखे जाते थे।