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प्राचीन भारत में धार्मिक आन्दोलन

  • छठी शताब्दी ई.पू. में मध्य गंगा की घाटी में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हुआ। जिनमें लगभग 62 सम्प्रदायों के बारे में हमें जानकारी मिलती है। इनमें जैन और बौद्ध सम्प्रदाय प्रमुख थे।
  • इन धार्मिक सम्प्रदायों में उपनिषदों द्वारा तैयार वैधानिक पृष्ठभूमि के आधार पर पुरातन वैदिक ब्राह्मण धर्म के अनेक दोषों पर प्रहार किया इसीलिए इनको सुधार वाले आन्दोलन भी कहा गया है।

 

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में नवीन धर्मों की उत्पत्ति के कारण-

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में नवीन धर्म के उदय में निम्नलिखित महत्वपूर्ण कारकों का योगदान रहा -

वैदिक धर्म की जटिलता तथा कर्मकांडों की परंपरा का प्रारंभ-ऋगवैदिक कालीन वैदिक धर्म अत्यधिक सरल एवं विशुद्ध था | स्तुति पाठ तथा यज्ञ सामूहिक किए जाते थे किंतु उत्तर वैदिक काल में धर्म में अनेक जटिलताओं का समावेश हुआ | धर्म पर एक वर्ग विशेष का प्रभुत्व स्थापित हो गया तथा धर्म का स्थान जटिल एवं निरर्थक कर्मकांड ने ले लिया |

 जाति प्रथा की जटिलता-व्यवसाय के आधार पर वर्ण व्यवस्था की स्थापना की ताकि समाज का संचालन सुचारू रूप से किया जा सके | उत्तर वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था जन्म पर आधारित जाति व्यवस्था में बदल गई | छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक इन परंपराओं ने कठोर रूप धारण कर लिया |

वैश्य वर्ग के महत्व में वृद्धि-समाज में वैश्य वर्ग का महत्व बढ़ने लगा वैश्य वर्ग ने समाज में अपनी स्थिति सुधारने एवं व्यापार वाणिज्य का विस्तार करने के लिए ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था का विरोध किया | ऐसा इसलिए क्योंकि वैदिक कालीन व्यवस्था ब्याज पर ऋण लेना पाप समझती थी अतः वैश्य वर्ग ने नवीन धर्म के उदय को प्रोत्साहित किया |

अनुकूल राजनीतिक दशा-  छठी शताब्दी ईसा पूर्व की अनुकूल राजनीतिक स्थिति नवीन धर्मों के उदय में पर्याप्त योगदान दिया | भारत में मगध सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था तथा इसके शासक विम्बिसार तथा अजातशत्रु ब्राह्मणों के प्रभाव से मुक्त थे इन्होंने नवीन धर्म को संरक्षण प्रदान किया |

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