भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७० :
१(जम्मु-कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध ।
१)इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, -
क) अनुच्छेद २३८ के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में लागू नहीं होंगे ;
ख) उक्त राज्य के लिए विधि बनाने की संसद् की शक्ति, -
१)संघ सूची और समवर्ती सूची के उन विषयों तक सीमित होगी जिनको राष्ट्रपति, उस राज्य की सरकार से परामर्श करके, उन विषयों के तत्स्थानी विषय घोषित कर दे जो भारत डोमिनियन में उस राज्य के अधिमिलन को शासिन करने वाले अधिमिलन पत्र में ऐसे विषयों के रूप में विनिदिॅष्ट है जिनके संबंध में डोमिनियन विधान-मंडल उस राज्य के लिए विधि बना सकता है ; और
२) उक्त सूचियों के उन अन्य विषयों तक सीमित होगी जो राष्ट्रपति, उस राज्य की सरकार की सहमति से, आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे ।
स्पष्टीकरण - इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, उस राज्य की सरकार से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे राष्ट्रपति से जम्मू-कश्मीर के महाराजा की ५ मार्च, १९४८ की उद्घोषणा के अधीन तत्समय पदस्थ मंत्रि-परिषद् की सलाह पर कार्य करने वाले जम्मू-कश्मीर के महाराजा के रूप में तत्समय मान्यता प्राप्त थी ;
ग) अनुच्छेद १ और इस अनुच्छेद के उपबंध उस राज्य के संबंध में लागू होंगे ;
घ) इस संविधान के ऐसे अन्य उपबंध ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा२.() विनिर्दिष्ट करे, उस राज्य के संबंध में लागू होंगे :
परंतु ऐसा कोई आदेश जो उपखंड (ख) के पैरा (१) में निर्दिष्ट राज्य के अधिमिलन पत्र में विनिर्दिष्ट विषयों से संबंधित है, उस राज्य की सरकार से परामर्श करके ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं :
परंतु यह और कि ऐसा कोई आदेश जो अंतिम पूर्ववर्ती परंतुक में निर्दिष्ट विषयों से भिन्न विषयों से संबंधित है, उस सरकार की सहमति से ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं ।
२)यदि खंड (१) के उपखंड (ख) के पैरा (२) में या उस खंड के उपखंड (घ) के दूसरे परंतुक में निर्दिष्ट उस राज्य की सरकार की सहमति, उस राज्य का संविधान बनाने के प्रयोजन के लिए संविधान सभा के बुलाए जाने से पहले दी जाए तो उसे ऐसी संविधान सभा के समक्ष ऐसे विनिश्चय के लिए रखा जाएगा जो वह उस पर करे ।
३) इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा कि यह अनुच्छेद प्रवर्तन में नहीं रहेगा या ऐसे अपवादों और उपांतरणों सहित ही और ऐसी तारीख से, प्रवर्तन में रहेगा, जो वह विनिर्दिष्ट करे :
परंतु राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना निकाले जाने से पहले खंड (२) में निर्दिष्ट उस राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी ।
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१.इस अनुच्छेद द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति ने जम्मू और कश्मीर राज्य की संविधान सभा की सिफारिश पर यह घोषणा की कि १७ नवंबर, १९५२ से उक्त अनुच्छेद ३७० इस उपांतरण के साथ प्रवर्तनीय होगा कि उसके खंड (१) में स्पष्टीकरण के स्थान पर निम्नलिखित स्पष्टीकरण रख दिया गया है, अर्थात्:
स्पष्टीकरण -इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए राज्य की सरकार से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे राज्य की विधान सभा की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने राज्य की तत्समय पदारूढ मंत्रिपरिषद् की सलाह पर कार्य करने वाले जम्मू-कश्मीर के सदरे रियासत* के रूप में मान्यता प्रदान की हो ।
*अब राज्यपाल (विधि मंत्रालय आदेश सं. आ. ४४, दिनांक १५ नवंबर, १९५२ )।
२.समय-समय पर यथासंशोधित संविधान (जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होना ) आदेश,१९५४ (सं.आ. ४८) परिशिष्ट १ में देखिए ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७१ :
१(२(***) महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के संबंध में विशेष उपबन्ध ।
३. (* * *)
(२) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति, ४.(महाराष्ट्र या गुजरात राज्य) के संबंध में किए गए आदेश द्वारा : -
क) यथास्थिति, विदर्भ, मराठवाडा ५.(और शेष महाराष्ट्र या ) सौराष्ट्र, कच्छ और शेष गुजरात के लिए पृथक विकास बोर्डों की स्थापना के लिए, इस उपबंध सहित कि इन बोर्डों में से प्रत्येक के कार्यकरण पर एक प्रतिवेदन राज्य विधान सभा के समक्ष प्रतिवर्ष रखा जाएगा,
ख) समस्त राज्य की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उक्त क्षेत्रों के विकास व्यय के लिए निधियों के साम्यापूर्ण आबंटन के लिए, और
ग) समस्त राज्य की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उक्त सभी क्षेत्रों के संबंध में, तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त सुविधाओं की और राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन सेवाओं में नियोजन के लिए पर्याप्त अवसरों की व्यवस्था करने वाली साम्यपूर्ण व्यवस्था करने के लिए ,
राज्यपाल के किसी विशेष उत्तरदायित्व के लिए उपबंध कर सकेगा । )
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१.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २२ द्वारा अनुच्छेद ३७१ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२.संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७३ की धारा २ द्वारा (१-७-१९७४ से) आंध्र प्रदेश शब्दों का लोप किया गया ।
३.संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७३ की धारा २ द्वारा (१-७-१९७४ से ) खंड (१) का लोप किया गया ।
४. मुंबई पुनर्गठन अधिनियम, १९६० (१९६० का ११) की धारा ८५ द्वारा (१-५-१९६० से) मुंबई राज्य के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५.मुंबई पुनर्गठन अधिनियम, १९६० (१९६० का ११) की धारा ८५ द्वारा (१-५-१९६० से) शेष महाराष्ट्र के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७१ क :
१.(नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष उपबंध ।
१)इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, -
क) निम्नलिखित के संबंध में संसद् का कोई अधिनियम नागालैंड राज्य को तब तक लागू नहीं होगा जब तक नागालैंड की विधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा विनिश्चय नहीं करती है, अर्थात् :-
एक)नागाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथाएं ;
दो) नागा रूढिजन्य विधि और प्रक्रिया ;
तीन) सिविल और दांडिक न्याय प्रशासन, जहां विनिश्चय नागा रूढिजन्य विधि के अनुसार होने है ;
चार) भूमि और उसके संपत्ति स्त्रोतों का स्वामित्व और अंतरण ;
ख) नागालैंड के राज्यपाल का नागालैंड राज्य में विधि और व्यवस्था के संबंध में तब तक विशेष उत्तरदायित्व रहेगा जब तक उस राज्य के निर्माण के ठीक पहले नागा पहाडी त्युएनसांग क्षेत्र में विद्यमान आंतरिक अशांति, उसकी राय में, उसमें या उसके किसी भाग में बनी रहती है और राज्यपाल, उस संबंध में अपने कृत्यों का निर्वहन करने में की जाने वाली कार्रवाई के बारे में अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग, मंत्रि-परिषद से परामर्श करने के पश्चात् करेगा :
परंतु यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई मामला ऐसा मामला है या नहीं जिसके संबंध में राज्यपाल से इस उपखंड के अधीन अपेक्षा की गई है कि वह अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करके कार्य करे तो राज्यपाल का अपने विवेक से किया गया विनिश्चय अंतिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि उसे अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करके कार्य करना चाहिए था या नहीं :
परंतु यह और कि यदि राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि अब यह आवश्यक नहीं है कि नागालैंड राज्य में विधि और व्यवस्था के संबंध में राज्यपााल का विशेष उत्तरदायित्व रहे तो वह, आदेश द्वारा, निदेश दे सकेगा कि राज्यपाल का ऐसा उत्तरदायित्व उस तारीख से नहीं रहेगा जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए ;
ग) अनुदान की किसी मांग के संबंध में अपनी सिफारिश करने में, नागालैंड का राज्यपाल यह सुनिश्चित करेगा कि किसी विनिर्दिष्ट सेवा या प्रयोजन के लिए भारत की संचित निधि में से भारत सरकार द्वारा दिया गया कोई धन उस सेवा या प्रयोजन से संबंधित अनुदान की मांग में, न कि किसी अन्य मांग में, सम्मिलित किया जाए ;
घ) उस तारीख से जिसे नागालैंड का राज्यपाल इस निमित्त लोक अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, त्युएनसांग जिले के लिए एक प्रादेशिक परिषद स्थापित की जाएगी जो पैंतीस सदस्यों से मिलकर बनेगी और राज्यपाल निम्नलिखित बातों का उपबंध करने के लिए नियम अपने विवेक से बनाएगा, अर्थात् :-
एक)प्रादेशिक परिषद् की संरचना और वह रीति जिससे प्रादेशिक परिषद् के सदस्य चुने जाएंगे :
परंतु त्युएनसांग जिले का उपायुक्त प्रादेशिक परिषद् का पदेन अध्यक्ष होगा और प्रादेशिक परिषद् का उपाध्यक्ष उसके सदस्यों द्वारा अपने में से निर्वाचित किया जाएगा ;
दो) प्रादेशिक परिषद् के सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए अर्हताएं ;
तीन)प्रादेशिक परिषद् के सदस्यों की पदावधि और उनको दिए जाने वाले वेतन और भत्ते, यदि कोई हों ;
चार)प्रादेशिक परिषद् की प्रक्रिया और कार्य संचालन ;
पाँच) प्रादेशिक परिषद् के अधिकारियों और कर्मचारिवृंद की नियुक्ति और उनकी सेवा की शर्तें; और
छे) कोई अन्य विषय जिसके संबंध में प्रादेशिक परिषद् के गठन और उसके उचित कार्यकरण के लिए नियम बनाने आवश्यक हैं ।
२)इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, नागालैंड राज्य के निर्माण की तारीख से दस वर्ष की अवधि तक या ऐसी अतिरिक्त अवधि के लिए जिसे राज्यपाल, प्रादेशिक परिषद् की सिफारिश पर, लोक अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, -
क) त्युएनसांग जिले का प्रशासन राज्यपाल द्वारा चलाया जाएगा ;
ख) जहां भारत सरकार द्वारा नागालैंड सरकार को, संपूर्ण नागालैंड राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोई धन दिया जाता है वहां, राज्यपाल अपने विवेक से त्युएनसांग जिले और शेष राज्य के बीच उस धन के साम्यपूर्ण आबंटन के लिए प्रबंध करेगा ;
ग) नागालैंड विधान-मंडल का कोई अधिनियम त्युएनसांग जिले को तब तक लागू नहीं होगा जब तक राज्यपाल, प्रादेशिक परिषद् की सिफारिश पर, लोक अधिसूचना द्वारा,
इस प्रकार निदेश नहीं देता है और ऐसे किसी अधिनियम के संबंध में ऐसा निदेश देते हुए राज्यपाल यह निदिष्ट कर सकेगा कि वह अधिनियम त्युएनसांग जिले या उसके किसी भाग को लागू होने में अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए, प्रभावी होगा जिन्हें राज्यपाल प्रादेशिक परिषद् की सिफारिश पर विनिर्दिष्ट करे :
परंतु इस उपखंड के अधीन दिया गया कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ;
घ) राज्यपाल त्युएनसांग जिले की शांति, उन्नति और सुशासन के लिए विनियम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए विनियम उस जिले को तत्समय लागू संसद् के किसी अधिनियम या किसी अन्य विधि का, यदि आवश्यक हो तो भूतलक्षी प्रभाव के निरसन या संशोधन कर सकेंगे ;
ड) १)नागालैंड विधान सभा में त्युएनसांग जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों में से एक सदस्य को राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर त्युएनसांग कार्य मंत्री नियुक्त करेगा और मुख्यमंत्री अपनी सलाह देने में पूर्वाेक्त२.() सदस्यों की बहुसंख्या की सिफारिश पर कार्य करेगा ;
२)त्युएनसांग कार्य मंत्री त्युएनसांग जिले से संबंधित सभी विषयों की बाबत कार्य करेगा और उनके संबंध में राज्यपाल के पास उसकी सीधी पहुंच होगी किंतु वह उनके संबंध में मुख्यमंत्री को जानकारी देता रहेगा ;
च) इस खंड के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, त्युएनसांग जिले से संबंधित सभी विषयों पर अंतिम विनिश्चय राज्यपाल अपने विवेक से करेगा ;
छ) अनुच्छेद ५४ और अनुच्छेद ५५ में तथा अनुच्छेद ८० के खंड (४) में राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों के या ऐसे प्रत्येक सदस्य के प्रति निर्देशों के अंतर्गत इस अनुच्छेद के अधीन स्थापित प्रादेशिक परिषद् द्वारा निर्वाचित नागालैंड विधान सभा के सदस्यों या सदस्य के प्रति निर्देश होंगे ;
ज) अनुच्छेद १७० में -
एक)खंड (१) नागालैंड विधान सभा के संबंध में इस प्रकार प्रभावी होगा मानो साठ शब्द के स्थान पर छियालीस शब्द रख दिया गया हो ;
दो) उक्त खंड में, उस राज्य में प्रादेशिक निर्वाचन- क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन के प्रति निर्देश के अंतर्गत इस अनुच्छेद के अधीन स्थापित प्रादेशिक के सदस्यों द्वारा निर्वाचन होगा ;
तीन)खंड (२) और खंड (३) में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के प्रति निर्देश से कोहिमा और मोकोकचुंग जिलों में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के प्रति निर्देश अभिप्रेत होंगे ।
३)यदि इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी उपबंध को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो राष्ट्रपति, आदेश द्वारा, कोई ऐसी बात (जिसके अंतर्गत किसी अन्य अनुच्छेद का कोई अनुकूलन या उपांतरण है ) कर सकेगा जो उस कठिनाई को दूर करने के प्रयोजन के लिए उसे आवश्यक प्रतीत होती है :
परंतु ऐसा कोई आदेश नागालैंड राज्य के निर्माण की तारीख से तीन वर्ष की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा ।
स्पष्टीकरण - इस अनुच्छेद में, कोहिमा, मोकोकचुंग और त्युएनसांग जिलों का वही अर्थ है जो नागालैंड राज्य अधिनियम, १९६२ में है ।)
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१.संविधान (तेरहवां संशोधन) अधिनियम, १९६२ की धारा २ द्वारा (१-१२-१९६३ से) अंत:स्थापित ।
२.संविधान (कठिनाइयों का निराकरण) आदेश सं. १० के पैरा २ में यह उपबंध है कि भारत के संविधना का अनुच्छेद ३७१क इस प्रकार प्रभावी होगा मानो उसके खंड (२) के उपखंड (ड) के पैरा (१) में निम्नलिखित परंतुक (१-१२-१९६३) से जोड दिया गया हो, अर्थात् :-
परंतु राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर, किसी व्यक्ति को त्युएनसांग कार्य मंत्री के रूप में ऐसे समय तक के लिए नियुक्त कर सकेगा, जब तक कि नागालैंड की विधान सभा में त्युएनसांग जिले के लिए आबंटित स्थलों को भरने के लिए विधि के अनुसार व्यक्तियों को चुन नहीं लिया जाता है ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७१ ख :
१(असम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध ।
इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति, असम राज्य के संबंध में किए गए आदेश द्वारा, उस राज्य की विधान सभा की एक समिति के गठन और कृत्यों के लिए, जो समिति छठी अनुसूची के पैरा २० से संलग्न सारणी के २.(भाग १) में विनिर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों से निर्वाचित उस विधान सभा के सदस्यों से और उस विधान सभा के उतने अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगी जितने आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं तथा ऐसी समिति के गठन और उसके उचित कार्यकरण के लिए उस विधान सभा की प्रक्रिया के नियमों में किए जाने वाले उपांतरणों के लिए उपबंध कर सकेगा । )
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१.संविधान (बाइसवां संशोधन) अधिनियम, १९६९ की धारा ४ द्वारा अंत:स्थापित ।
२.पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन )अधिनियम, १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ द्वारा (२१-१-१९७२ से) भाग क के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७१ग :
१(मणिपुर राज्य के संबंध में विशेष उपबंध ।
१) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति, मणिपूर राज्य के संबंध में किए गए आदेश द्वारा, उस राज्य की विधान सभा की एक समिति के गठन और कृत्यों के लिए, जो समिति उस राज्य के पहाडी क्षेत्रों से निर्वाचित उस विधान सभा के सदस्यों से मिलकर बनेगी, राज्य की सरकार के कामकाज के नियमों में और राज्य की विधान सभा की प्रक्रिया के नियमों में किए जाने वाले उपांतरणों के लिए और ऐसी समिति का उचित कार्यकरण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राज्यपाल के किसी विशेष उत्तरदायित्व के लिए उपबंध कर सकेगा ।
२) राज्यपाल प्रतिवर्ष या जब कभी राष्ट्रपति ऐसी अपेक्षा करे, मणिपुर राज्य के पहाडी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देगा और संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उक्त क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में राज्य को निदेश देने तक होगा ।)
स्पष्टीकरण - इस अनुच्छेद में, पहाडी क्षेत्रों से ऐसे क्षेत्र अभिप्रेत है जिन्हें राष्ट्रपति, आदेश द्वारा, पहाडी क्षेत्र घोषित करे । )
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१.संविधान (सत्ताईसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ की धारा ५ द्वारा (१५-२-१९७२ से ) अंत:स्थापित ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७१घ :
१.(२.(आंध्रप्रदेश राज्य या तेलंगाना राज्य के संबंध में विशेष उपबंध । )
२.(१) राष्ट्रपति, आंध्रप्रदेश राज्य या तेलंगाना राज्य के संबंध में किए गए आदेश द्वारा, प्रत्येक राज्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए दोनों राज्यों के विभिन्न भागों के लोगों के लिए लोक नियोजन के विषय में और शिक्षा के विषय में साम्यापूर्ण अवसरों और सुविधाओं का ुउपबंध कर सकेगा और दोनों राज्यों के विभिन्न भागों के लिए भिन्न-भिन्न उपबंध किए जा सकेंगे । )
२) खंड (१) के अधीन किया गया आदेश विशिष्टतया-
क) राज्य सरकार से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह राज्य की सिविल सेवा में पदों के किसी वर्ग या वर्गों का अथवा राज्य के अधीन सिविल पदों के किसी वर्ग या वर्गों का राज्य के भिन्न भागों के लिए भिन्न स्थानीय काडरों में गठन करे और ऐसे सिध्दांतों और प्रक्रिया के अनुसार जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसे पदों को धारण करने वाले व्यक्तियों का इस प्रकार गठित स्थानीय काडरों में आबंटन करे ;
ख)राज्य के ऐसे भाग या भागों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा जो -
१) राज्य सरकार के अधीन किसी स्थानीय काडर में (चाहे उसका गठन इस अनुच्छेद के अधीन आदेश के अनुसरण में या अन्यथा किया गया है ) पदों के लिए सीधी भर्ती के लिए,
२) राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के अधीन किसी काडर में पदों के लिए सीधी भर्ती के लिए, और
३)राज्य के भीतर किसी विश्वविद्यालय में या राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन किसी अन्य शिक्षा संस्था में प्रवेश के प्रयोजन के लिए,
स्थानीय क्षेत्र समझे जाएंगे ;
ग) वह विस्तार विनिर्दिष्ट कर सकेगा जिस तक, वह रीति विनिर्दिष्ट कर सकेगा जिससे और व शर्तें विनिर्दिष्ट कर सकेगा जिनके अधीन, यथास्थिति, ऐसे काडर, विश्वविद्यालय या अन्य शिक्षा संस्था के संबंध में ऐसे अभ्यर्थियों को, जिन्होंने आदेश में विनिर्दिष्ट किसी अवधि के लिए स्थानीय क्षेत्र में निवास या अध्ययन किया है -
१)उपखंड (ख) में निर्दिष्ट ऐसे काडर में जो इस निमित्त आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, पदों के लिए सीधी भर्ती के विषय में ;
२)उपखंड (ख) में निर्दिष्ट ऐसे विश्वविद्यालय या अन्य शिक्षा संस्था में जो इस निमित्त आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, प्रवेश के विषय में,
अधिमान दिया जाएगा या उनके लिए आरक्षण किया जाएगा ।
३)राष्ट्रपति, आदेश द्वारा, ३.(आंध्र प्रदेश राज्य के लिए और तेलंगाना राज्य के लिए ) एक प्रशासनिक अधिकरण के गठन के लिए उपबंध कर सकेगा जो अधिकरण निम्नलिखित विषयों की बाबत ऐसी अधिकारिता, शक्ति और प्राधिकार का जिसके अंतर्गत वह अधिकारिता, शक्ति या प्राधिकार है जो संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७३ के प्रारंभ से ठीक पहले (उच्चतम न्यायालय से भिन्न) किसी न्यायालय द्वारा अथवा किसी अधिकरण या अन्य प्राधिकारी द्वारा प्रयोक्तव्य था प्रयोग करेगा जो आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, अर्थात् :-
क) राज्य की सिविल सेवा में ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के सिविल पदों पर अथवा राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के नियंत्रण के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, नियुक्त, आबंटन या प्रोन्नति ;
ख) राज्य की सिविल सेवा में ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के सिविल पदों पर अथवा राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के नियंत्रण के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, नियुक्त, आबंटित या प्रोन्नत व्यक्तियों की ज्येष्ठता ;
ग) राज्य की सिविल सेवा में ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के सिविल पदों पर अथवा राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के नियंत्रण के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर नियुक्त, आबंटित या प्रोन्नत व्यक्तियों की सेवा की ऐसी अन्य शर्तें जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं ।
४) खंड (३) के अधीन किया गया आदेश -
क) प्रशासनिक अधिकरण को उसकी अधिकारिता के भीतर किसी विषय से संबंधित व्यथाओं के निवारण के लिए ऐसे अभ्यावेदन प्राप्त करने के लिए, जो राष्ट्रपति आदेश में विनिर्दिष्ट करे और उस पर ऐसे आदेश करने के लिए जो वह प्रशासनिक अधिकरण ठीक समझता है, प्राधिकृत कर सकेगा ;
ख) प्रशासनिक अधिकरण की शक्तियों और प्राधिकारों और प्रक्रिया के संबंध में ऐसे उपबंध (जिनके अंतर्गत प्रशासनिक अधिकरण की अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति के संबंध में उपबंध हैं ) अंतर्विष्ट कर सकेगा जो राष्ट्रपति आवश्यक समझे ;
ग) प्रशासनिक अधिकरण को उसकी अधिकारिता के भीतर आने वाले विषयों से संबंधित और उस आदेश के प्रारंभ से ठीक पहले (उच्चतम न्यायालय से भिन्न) किसी न्यायालय अथवा किसी अधिकरण या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित कार्यवाहियों के ऐसे वर्गों के , जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, अंतरण के लिए उपबंध कर सकेगा ;
घ)ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध (जिनके अंतर्गत फीस के बारे में और परिसीमा, साक्ष्य के बारे में या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि को किन्हीं अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू करने के लिए उपबंध हैं ) अंतर्विष्ट कर सकेगा जो राष्ट्रपति आवश्यक समझे ।
*५) प्रशासनिक अधिकरण का किसी मामले को अंतिम रूप से निपटाने वाला आदेश, राज्य सरकार द्वारा उसकी पुष्टि किए जाने पर या आदेश किए जाने की तारीख से तीन मास की समाप्ति पर, इनमें से जो भी पहले हो, प्रभावी हो जाएगा :
परंतु राज्य सरकार, विशेष आदेश द्वारा, जो लिखित रूप में किया जाएगा और जिसमें उसके कारण विनिर्दिष्ट किए जाएंगे, प्रशासनिक अधिकरण के किसी आदेश को उसके प्रभावी होने के पहले उपांतरित या रद्द कर सकेगी और ऐसे मामले में प्रशासनिक अधिकरण का आदेश, यथास्थिति, ऐसे उपांतरित रूप में ही प्रभावी होगा या वह निष्प्रभाव हो जाएगा ।
६) राज्य सरकार द्वारा खंड (५) के परंतुक के अधीन किया गया प्रत्येक विशेष आदेश, किए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, राज्य विधान-मंडल के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा ।
७)राज्य के उच्च न्यायालय को प्रशासनिक अधिकरण पर अधीक्षण की शक्ति नहीं होगी और (उच्चतम न्यायालय से भिन्न ) कोई न्यायालय अथवा कोई अधिकरण, प्रशासनिक अधिकरण की या उसके संबंध में अधिकारिता, शक्ति या प्राधिकार के अधीन किसी विषय की बाबत किसी अधिकारिता, शक्ति या प्राधिकार का प्रयोग नहीं करेगा ।
८) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि प्रशासनिक अधिकरण का निरंतर बने रहना आवश्यक नहीं है तो राष्ट्रपति आदेश द्वारा प्रशासनिक अधिकरण का उत्सादन कर सकेगा और ऐसे उत्सादन से ठीक पहले अधिकरण के समक्ष लंबित मामलों के अंतरण और निपटारे के लिए ऐसे आदेश में ऐसे उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।
९) किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकारी के किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के होते हुए भी, -
क) किसी व्यक्ति की कोई नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण की बाबत जो-
एक)१ नवंबर, १९५६ से पहले यथाविद्यमान हैदराबाद राज्य की सरकार के या उसके भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के अधीन उस तारीख से पहले किसी पद पर किया गया था, या
दो) संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७३ के प्रारंभ से पहले आंध्र प्रदेश राज्य की सरकार के अधीन या उस राज्य के भीतर किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन किसी पद पर किया गया था, और
ख) उपखंड (क) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति द्वारा या उसके समक्ष की गई किसी कार्रवाई या बात की बाबत,
केवल इस आधार पर कि ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण, ऐसी नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण की बाबत,यथास्थिति, हैदराबाद राज्य के भीतर या आंध्र प्रदेश राज्य के किसी भाग के भीतर निवास के बारे में किसी अपेक्षा का उपबंध करने वाली तत्समय प्रवृत्त विधि के अनुसार नहीं किया गया था, यह नहीं समझा जाएगा कि वह अवैध या शून्य है या कभी भी अवैध या शून्य रहा था ।
१०) इस अनुच्छेद के और राष्ट्रपति द्वारा इसके अधीन किए गए किसी आदेश के उपबंध इस संविधान के किसी अन्य उपबंध में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे ।
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१.संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७३ की धारा ३ द्वारा (१--७-१९७४ से ) अंत:स्थापित ।
२.आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २०१४ (२०१४ का ६ ) की धारा ९७ द्वारा (२-६-२०१४ से ) प्रतिस्थापित ।
३.आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २०१४ (२०१४ का ६ ) की धारा ९७ द्वारा (२-६-२०१४ से ) प्रतिस्थापित ।
* उच्चतम न्यायालय ने पी. सांबमूर्ति और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और एक अन्य १९८७ (१) एस.सी.सी. पृ.३६२ में अनुच्छेद ३७१ घ के खंड (५) और उसके परंतुक का असंवैधानिक और शून्य घोषित किया ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७१ ड :
आंध्र प्रदेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना ।
संसद् विधि द्वारा, आंध्र प्रदेश राज्य में एक विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए उपबंध कर सकेगी ।)
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७१ च :
१(सिक्किम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध।
इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,-
क) सिक्किम राज्य की विधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी ;
ख) संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७५ के प्रारंभ की तारीख से (जिसे इस अनुच्छेद में इसके पश्चात् नियत दिन कहा गया है ) -
१)सिक्किम की विधान सभा, जो अप्रैल, १९७४ में सिक्किम में हुए निर्वाचनों के परिणामस्वरूप उक्त निर्वाचनों में निर्वाचित बत्तीस सदस्यों से (जिन्हें इसमें इसमे इसके पश्चात् आसीन सदस्य कहा गया है ) मिलकर बनी है, इस संविधान के अधीन सम्यक् रूप से गठित सिक्किम राज्य की विधान सभा समझी जाएगी ;
२) आसीन सदस्य इस संविधान के अधीन सम्यक् रूप से निर्वाचित सिक्किम राज्य की विधान सभा के सदस्य समझे जाएंगे; और
३) सिक्किम राज्य की उक्त विधान सभा इस संविधान के अधीन राज्य की विधान सभा की शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का पालन करेगी ;
ग) खंड (ख) के अधीन सिक्किम राज्य की विधान सभा समझी गई विधान सभा की दशा में, अनुच्छेद १७२ के खंड (१) में २.(पांच वर्ष) की अवधि के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे ३.(चार वर्ष ) की अवधि के प्रति निर्देश है और ३.(चार वर्ष ) की उक्त अवधि नियत दिन से प्रारंभ हुई समझी जाएगी ;
घ) जब तक संसद् विधि द्वारा अन्य उपबंध नहीं करती है तब तक सिक्किम राज्य को लोक सभा में एक स्थान आबंटित किया जाएगा और सिक्किम राज्य एक संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र होगा जिसका नाम सिक्किम संसदीय निर्वाचन क्षेत्र होगा ;
ड) नियम दिन को विद्यमान लोक सभा में सिक्किम राज्य का प्रतिनिधि सिक्किम राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाएगा;
च)संसद्, सिक्किम की जनता के विभिन्न अनुभागों के अधिकारों और हितों की संरक्षा करने के प्रयोजन के लिए सिक्किम राज्य की विधान सभा में उन स्थानों की संख्या के लिए जो ऐसे अनुभागों के अभ्यार्थियों द्वारा भरे जा सकेंगे और ऐसे सभा निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन के लिए, जिनसे केवल ऐसे अनुभागों के अभ्यर्थी ही सिक्किम राज्य की विधान सभा के निर्वाचन के लिए खडे हो सकेंगे, उपबंध कर सकेगी ;
छ) सिक्किम के राज्यपाल का, शांति के लिए और सिक्किम की जनता के विभिन्न अनुभागों की सामाजिक और आर्थिक उन्नति सुनिश्चित करने के लिए साम्यपूर्ण व्यवस्था करने के लिए विशेष उत्तरदायित्व होगा और इस खंड के अधीन अपने विशेष उत्तरदायित्व का निर्वहन करने में सिक्किम का राज्यपाल ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए जो राष्ट्रपति समय-समय पर देना ठीक समझे, अपने विवेक से कार्य करेगा;
ज) सभी संपत्ति और आस्तियां (चाहे वे सिक्किम राज्य में समाविष्ट राज्यक्षेत्रों के भीतर हों या बाहर) जो नियत दिन से ठीक पहले सिक्किम सरकार में या सिक्किम सरकार के प्रयोजनों के लिए किसी अन्य प्राधिकारी या व्यक्ति में निहित थीं, नियत दिन से सिक्किम राज्य की सरकार में निहित हो जाएंगी ;
झ) सिक्किम राज्य में समाविष्ट राज्यक्षेत्रों में नियत दिन से ठीक पहले उच्च न्यायालय के रूप में कार्यरत उच्च न्यायालय नियत दिन को और से सिक्किम राज्य का उच्च न्यायालय समझा जाएगा ;
ञ) सिक्किम राज्य के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र सिविल, दांडिक और राजस्व अधिकारिता वाले सभी न्यायिक, कार्यपालक और अनुसचिवीय प्राधिकारी और अधिकारी नियत दिन को और से अपने-अपने कृत्यों को इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, करते रहेंगे ;
ट) सिक्किम राज्य में समाविष्ट राज्यक्षेत्र में या उसके किसी भाग में नियत दिन से ठीक पहले प्रवृत्त सभी विधियां वहां तब तक प्रवृत्त बनी रहेंगी जब तक किसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उनका संशोधन या निरसन नहीं कर दिया जाता है ;
ठ) सिक्किम राज्य के प्रशासन के संबंध में किसी ऐसी विधि को, जो खंड (ट) में निर्दिष्ट है, लागू किए जाने को सुकर बनाने के प्रयोजन के लिए और किसी ऐसी विधि के उपबंधों को इस संविधान के उपबंधों के अनुरूप बनाने के प्रयोजन के लिए राष्ट्रपति, नियत दिन से दो वर्ष के भीतर, आदेश द्वारा, ऐसी विधि में निरसन के रूप में या संशोधन के रूप में ऐसे अनुकूलन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन हों और तब प्रत्येक ऐसी विधि इस प्रकार किए गए अनुकूलनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और किसी ऐसे अनुकूलन या उपांतरण को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा ;
ड)उच्चतम न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय को, सिक्किम के संबंध में किसी ऐसी संधि, करार, वचनबंध या वैसी ही अन्य लिखत से, जो नियत दिन से पहले की गई थी या निष्पादित की गई थी और जिसमें भारत सरकार या उसकी पूर्ववर्ती कोई सरकार पक्षकार थी, उत्पन्न किसी विवाद या अन्य विषय के संबंध में अधिकारिता नहीं होगी, किंतु इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह अनुच्छेद १४३ के उपबंधों का
अल्पीकरण करती है ;
ढ) राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा, किसी ऐसी अधिनियमिति का विस्तार, जो उस अधिसूचना की तारीख को भारत के किसी राज्य में प्रवृत्त है, ऐसे निर्बन्धनों या उपांतरणों सहित, जो वह ठीक समझता है, सिक्किम राज्य पर कर सकेगा ;
ण) यदि इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी उपबंध को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो राष्ट्रपति, आदेश ४.() द्वारा, कोई ऐसी बात (जिसके अंतर्गत किसी अन्य अनुच्छेद का कोई अनुकूलन या उपांतरण है) कर सकेगा जो उस कठिनाई को दूर करने के प्रयोजन के लिए उसे आवश्यक प्रतीत होती है:
परंतु ऐसा कोई आदेश नियत दिन से दो वर्ष की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा ;
त) सिक्किम राज्य या उसमें समाविष्ट राज्यक्षेत्रों में या उनके संबंध में, नियत दिन को प्राारंभ होने वाली और उस तारीख से जिसको संविधान (छत्तीसवां संशोधन ) अधिनियम, १९७५ द्वारा यथासंशोधित इस संविधान के उपबंधों के अनुरूप हैं, सभी प्रयोजनों के लिए इस प्रकार यथासंशोधित इस संविधान के अधीन विधिमान्यत: की गई समझी जाएंगी । )
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१.संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७५ की धारा ३ द्वारा (२६-४-१९७५ से ) अंत:स्थापित ।
२.संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७८ की धारा ४३ द्वारा (६-९-१९७९ से) छह वर्ष के स्थान पर प्रतिस्थापित । संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ५६ द्वारा (३-१-१९७७ से ) पांच वर्ष मूल शब्दों के स्थान पर छह वर्ष शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे ।
३.संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७८ की धारा ४३ द्वारा (६-९-१९७९ से) पाच वर्ष के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान अधिनियम, १९७६ की धारा ५६ द्वारा (३-१-१९७७ से) चार वर्ष मूल शब्दों के स्थान पर पांच वर्ष शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।
४.संविधान(कठिनाइयों का निराकरण ) आदेश सं. ११ (सं.आ.९९ ) देखिए ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७१ छ :
१.(मिजोरम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध ।
इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, -
क) निम्नलिखित के संबंध में संसद् का कोई अधिनियम मिजोरम राज्य को तब लागू नहीं होगा जब तक मिजोरम राज्य की विधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा विनिश्चय नहीं करती है, अर्थात् :-
१)मिजो लोगों की धार्मिक या सामाजिक प्रथाएं ;
२)मिजो रूढिजन्य विधि और प्रक्रिया ;
३)सिविल और दांडिक न्याय प्रशासन, जहां विनिश्चय मिजो रूढिजन्य विधि के अनुसार होने हैं ;
४)भूमि का स्वामित्व और अंतरण :
परंतु इस खंड की कोई बात, संविधान (तिरपनवां संशोधन) अधिनियम, १९८६ के प्रारंभ से ठीक पहले मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त किसी केंद्रीय अधिनियम को लागू नहंी होगी ;
ख) मिजोरम राज्य की विधान सभा कम से कम चालीस सदस्यों से मिलकर बनेगी ।)
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१.संविधान(तिरपनवां संशोधन) अधिनियम, १९८६ की धारा २ द्वारा (२०-२-१९८७ से ) अंत:स्थापित ।
भारत का संविधान :
अनुच्छदे ३७१ज :
१(अरूणाचल प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष उपबंध ।
इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,-
क) अरूणाचल प्रदेश के राज्यपाल का अरूणाचल प्रदेश राज्य में विधि और व्यवस्था के संबंध में विशेष उत्तरदायित्व रहेगा और राज्यपाल, उस संबंध में अपने कृत्यों का निर्वहन करने में की जाने वाली कार्रवाई के बारे में अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग मंत्रिपरिषद् से परामर्श करने के पश्चात् करेगा :
परंतु यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई मामला ऐसा मामला है या नहीं जिसके संबंध में राज्यपाल से इस खंड के अधीन अपेक्षा की गई है कि वह अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करके कार्य करे तो राज्यपाल का अपने विवेक से किया गया विनिश्चय अंतिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि उसे अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करके कार्य करना चाहिए था या नहीं :
परंतु यह और कि यदि राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि अब यह आवश्यक नहीं है कि अरूणाचल प्रदेश राज्य में विधि और व्यवस्था के संबंध में राज्यपाल का विशेष उत्तरदायित्व रहे तो वह, आदेश द्वारा, निदेश दे सकेगा कि राज्यपाल का ऐसा उत्तरदायित्व उस तारीख से नहीं रहेगा जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए ;
ख) अरूणाचल प्रदेश राज्य की विधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी । )
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१.संविधान (पचपनवां संशोधन) अधिनियम, १९८६ की धारा २ द्वारा (२०-२-१९८७ से) अंत:स्थापित ।