भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७१ झ :
१(गोवा राज्य के संबंध में विशेष उपबंध ।
इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, गोवा राज्य की विधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी ।)
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१.संविधान (छप्पनवां संशोधन) अधिनियम, १९८७ की धारा २ द्वारा (३०-५-१९८७ से) अंत:स्थापित ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७१ञ :
१.(कर्नाटक राज्य के संबंध में विशेष उपबंध ।
१) राष्ट्रपति, कर्नाटक राज्य के संबंध में किए गए आदेश द्वारा ,-
क) हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए, एक पृथक् विकास बोर्ड की स्थापना के लिए, इस उपबंध सहित कि इस बोर्ड के कार्यकरण पर एक प्रतिवेदन प्रत्येक वर्ष राज्य विधान सभा के समक्ष रखा जाएगा ;
ख) समस्त राज्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, उक्त क्षेत्र के विकास व्यय के लिए निधियों के साम्यापूर्ण आबंटन के लिए; और
ग) समस्त राज्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, उक्त क्षेत्र से संबंधित लोगों के लिए लोक नियोजन, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के विषयों में साम्यपूर्ण अवसर और सुविधाओं के लिए,
राज्पाल के किसी विशेष उत्तरदायित्व के लिए उपबंध कर सकेगा ।
२)खंड (१) के उपखंड (ग) के अधीन किए गए आदेश द्वारा ,-
क) हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में शैक्षणिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थाओं में, ऐसे छात्रों के लिए जो जन्म से या अधिवास द्वारा उस क्षेत्र के हैं, स्थानों के आनुपातिक आरक्षण के लिए उपबंध किया जा सकेगा ; और
ख) हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में राज्य सरकार के अधीन और राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन किसी निकाय या संगठन मे पदों या पदों के वर्गों की पहचान के लिए और उन व्यक्तियों के लिए, जो जन्म से या अधिवास द्वारा उस क्षेत्र के हैं, ऐसे पदों और आनुपातिक आरक्षण के लिए और उन पदों पर सीधे भर्ती या प्रोन्नति द्वारा अथवा ऐसी किसी अन्य रीति में, जो आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, नियुक्ति के लिए उपबंध जा सकेगा ।)
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१.संविधान (अठानवेवां संशोधन) अधिनियम, २०१२ की धारा २ द्वारा अंत:स्थापित ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७२ :
विद्यमान विधियों का प्रवृत्त बने रहना और उनका अनुकूलन ।
१)अनुच्छेद ३९५ में निर्दिष्ट अधिनियमितियों का इस संविधान द्वारा निरसन होने पर भी, किंतु इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में सभी प्रवृत्त विधि वहां तब तक प्रवृत्त बनी रहेगी जब तक किसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे परिवर्तित या निरसित या संशोधित नहीं कर दिया जाता है ।
२) भारत के राज्यक्षेत्र में किसी प्रवृत्त विधि के उपबंधों को इस संविधान के उपबंधों के अनुरूप बनाने के प्रयोजन के लिए राष्ट्रपति, आदेश१.() द्वारा, ऐसी विधि में निरसन के रूप में या संशोधन के रूप में ऐसे अनुकूलन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन हों और यह उपबंध कर सकेगा कि वह विधि ऐसी तारीख से जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, इस प्रकार किए गए अनुकूलनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और किसी ऐसे अनुकूलन या उपांतरण को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा ।
३)खंड (२) की कोई बात -
क) राष्ट्रपति को इस संविधान के प्रारंभ से २(तीन वर्ष ) की समाप्ति के पश्चात् विधि का कोई अनुकूलन या उपांतरण करने के लिए सशक्त करने वाली, या ख) किसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी को, राष्ट्रपति द्वारा उक्त खंड के अधीन अनुकूलित या उपांतरित किसी विधि का निरसन या संशोधन करने से रोकने वाली, नहीं समझी जाएगी ।
स्पष्टीकरण १ :
इस अनुच्छेद में, प्रवृत्त विधि पद के अंतर्गत ऐसी विधि है जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित की गई है या बनाई गई है और पहले ही निरसित नहीं कर दी गई है, भले ही वह या उसके कोई भाग तब पूर्णत: या किन्हीं विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में न हों ।
स्पष्टीकरण २ :
भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित की गई या बनाई गई ऐसी विधि का, जिसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले राज्यक्षेत्रातीत प्रभाव था और भारत के राज्यक्षेत्र में भी प्रभाव था, यथापूर्वाेक्त किन्हीं अनुकूलनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, ऐसा राज्यक्षेत्रातीत प्रभाव बना रहेगा ।
स्पष्टीकरण ३ :
इस अनुच्छेद की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी अस्थायी प्रवृत्त विधि को, उसकी समाप्ति के लिए नियत तारीख से, या उस तारीख से जिसको, यदि वह संविधान प्रवृत्त न हुआ होता तो, वह समाप्त हो जाती, आगे प्रवृत्त बनाए रखती है ।
स्पष्टीकरण ४ :
किसी प्रांत के राज्यपाल द्वारा भारत शासन अधिनियम, १९३५ की धारा ८८ के अधीन प्रख्यापित और इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रवृत्त अध्यादेश, यदि तत्स्थानी राज्य के राज्यपाल द्वारा पहले ही वापस नहीं ले लिया गया है तो, ऐसे प्रारंभ के पश्चात् अनुच्छेद ३८२ के खंड (१) के अधीन कार्यरत उस राज्य की विधान सभा के प्रथम अधिवेशन से छह सप्ताह की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा और इस अनुच्छेद की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह ऐसे किसी अध्यादेश को उक्त अवधि से आगे प्रवृत्त बनाए रखती है ।
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१.देखिए, अधिसूचना सं.का.नि.आ. ११५, तारीख ५ जून १९५०, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग २, अनुभाग ३, पृ.५१; सं. का.नि.आ. ८७०, तारीख ४ नवंबर, १९५०, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग २, अनुभाग ३, पृ. ९०३; अधिसूचना सं. का.नि.आ. ५०८, तारीख ४ अप्रैल, १९५१, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग २, अनुभाग ३, पृ. २८७; अधिसूचना सं. का.नि.आ. ११४०-ख, तारीख २ जुलाई, १९५२, भारत का राजपत्र, असाधारण , भाग २, अनुभाग ३, पृ.६१६/आय ; और त्रावणकोर- कोचीन भूमि अर्जन विधि अनुकूलन आदेश, १९५२, तारीख २०नवंबर, १९५२ भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग २, अनुभाग ३, पृ.९२३ द्वारा यथासंशोधित विधि अनुकूलन आदेश, १९५०, तारीख २६ जनवरी, १९५०, भारत का राजपत्र, असाधारण, पृ.४४९।
२.संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, १९५१ की धारा १२ द्वारा दो वर्ष के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७२क :
१.(विधियों का अनुकूलन करने की राष्ट्रपति की शक्ति ।
१)संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ के प्रारंभ से ठीक पहले भारत में या उसके किसी भाग में प्रवृत्त किसी विधि के उपबंधों को उस अधिनियम द्वारा यथासंशोधित इस संविधान के उपबंधों के अनुरूप बनाने के प्रयोजनों के लिए, राष्ट्रपति, १ नवंबर, १९५७ से पहले किए गए आदेश२.() द्वारा, ऐसी विधि में निरसन के रूप में या संशोधन के रूप में ऐसे अनुकूलन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन हों और यह उपबंध कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन हों और यह उपबंध कर सकेगा कि वह विधि ऐसी तारीख से जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, इस प्रकार किए गए अनुकूलनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और किसी ऐसे अनुकूलन या उपांतरण को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा ।
२)खंड (१) की कोई बात, किसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी को, राष्ट्रपति द्वारा उक्त खंड के अधीन अनुकूलित या उपांतरित किसी विधि का निरसन या संशोधन करेन से रोकने वाली नहीं समझी जाएगी ।
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१.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २३ द्वारा अंत:स्थापित ।
२. देखिए १९५६ और १९५७ के विधि अनुकूलन आदेश ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७३ :
निवारक निरोध में रखे गए व्यक्तियों के संबंध में कुछ दशाओं में आदेश करने की राष्ट्रपति की शक्ति ।
जब तक अनुच्छेद २२ के खंड (७) के अधीन संसद् उपबंध नहीं करती है या जब तक इस संविधान के प्रारंभ से एक वर्ष समाप्त नहीं हो जाता है, इनमें से जो भी पहले हो, तब तक उकत अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो उसके खंड (४) और खंड (७) में संसद् के प्रति किसी निर्देश के स्थान पर राष्ट्रपति के प्रति निर्देश और उन खंडों में संसद् द्वारा बनाई गई विधि के प्रति निर्देश के स्थान पर राष्ट्रपति द्वारा किए गए आदेश के प्रति निर्देश रख दिया गया हो ।
भारत का संविधान :
अनच्छेद ३७४ :
फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों और फेडरल न्यायालय में या सपरिषद् हिज मजेस्टी के समक्ष लंबित कार्यवाहियों के बारे में उपबंध ।
१) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले फेडरल न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, यदि वे अन्यथा निर्वाचन न कर चुके हों तो, ऐसे प्रारंभ पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे और तब ऐसे वेतनों और भत्तों तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों के हकदार होंगे जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के संबंध में अनुच्छेद १२५ के अधीन उपबंधित हैं ।
२)इस संविधान के प्रारंभ पर फेडरल न्यायालय में लंबित सभी सिविल या दांडिक वाद, अपील और कार्यवाहियां, उच्चतम न्यायालय को अंतरित हो जाएंगी और उच्चतम न्यायालय को उनको सुनने और उनका अवधारण करने की अधिकारिता होगी और फेडरल न्यायालय द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले सुनाए गए या दिए गए निर्णयों और आदेशों का वही बल और प्रभाव होगा मानो वे उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनाए गए हों या दिए गए हों ।
३)इस संविधान की कोई बात भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री या आदेश की या उसके संबंध में अपीलों और याचिकाओं को निपटाने के लिए सपरिषद् हिज मजेस्टी द्वारा अधिकारिता के प्रयोग को वहां तक अविधिमान्य नहीं करेगा जहां तक ऐसी अधिकारिता का प्रयोग विधि द्वारा प्राधिकृत है और ऐसी अपील या याचिका पर इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात् किया गया सपरिषद् हिज मजेस्टी का कोई आदेश सभी प्रयोजनों के लिए ऐसे प्रभावी होगा मानो वह उच्चतम न्यायालय द्वारा उस अधिकारिता के प्रयोग में जो ऐसे न्यायालय को इस संविधान द्वारा प्रदान की गई है, किया गया कोई आदेश या डिक्री हो ।
४)इस संविधान के प्रारंभ से ही पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट किसी राज्य में प्रिवी कौंसिल के रूप में कार्यरत प्राधिकारी की उस राज्य के भीतर किसी न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री या आदेश की या उसके संबंध में अपीलों और याचिकाओं को ग्रहण करने या निपटाने की अधिकारिता समाप्त हो जाएगी और उक्त प्राधिकारी के समक्ष ऐसे प्रारंभ पर लंबित सभी अपीलें और अन्य कार्यवाहियां उच्चतम न्यायालय को अंतरित कर दी जाएंगी और उसके द्वारा निपटाई जाएंगी ।
५) इस अनुच्छेद के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए संसद् विधि द्वारा और उपबंध कर सकेगी ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७५ :
संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए न्यायालयों, प्राधिकारियों और अधिकारियों का कृत्य करते रहना ।
भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र सिविल, दांडिक औ राजस्व अधिकारिता वाले सभी न्यायालय और सभी न्यायिक, कार्यपालक और अनुसचिवीय प्राधिकारी और अधिकारी अपने-अपने कृत्यों को, इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, करते रहेंगे ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७६ :
उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध ।
१) अनुच्छेद २१७ के खंड (२) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी प्रांत के उच्च न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, यदि वे अन्यथा निर्वाचन न कर चुके हों तो, ऐसे प्रारंभ पर तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे और तब ऐसे वेतन और भत्तों तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों के हकदार होंगे जो ऐसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के संबंध में अनुच्छेद २२१ के अधीन उपबंधित हैं। १.(ऐसा न्यायाधीश इस बात के होते हुए भी कि वह भारत का नागरिक नहीं है, ऐसे उच्च न्यायालय को मुख्य न्यायमूर्ति अथवा किसी अन्य उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश नियुक्त होने का पात्र होगा । )
२)इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य के उच्च न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, यदि वे अन्यथा निर्वाचन न कर चुके हों तो, ऐसे प्रारंभ पर इस प्रका विनिर्दिष्ट राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे और अनुच्छेद २१७ के खंड (१) और खंड (२) में किसी बात के होते हुए भी, किंतु उस अनुच्छेद के खंड (१) के परंतुक के अधीन रहते हुए, ऐसी अवधि की समाप्ति तक पद धारण करते रहेंगे जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे ।
३) इस अनुच्छेद में, न्यायाधीश पद के अंतर्गत कार्यकारी न्यायाधीश या अपर न्यायाधीश नहीं है ।
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१.संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, १९५१ की धारा २३ द्वारा जोडा गया ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७७ :
भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध ।
इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पद धारण करने वाला भारत का महालेखापरीक्षक, यदि वह अन्यथा निर्वाचन न कर चुका हो तो, ऐसे प्रारंभ पर भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक हो जाएगा और तब ऐसे वेतनों तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों का हकदार होगा जो भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के संबंध में अनुच्छेद १४८ के खंड (३) के अधीन उपबंधित है और अपनी उस पदावधि की समाप्ति तक पद धारण करने का हकदार होगा जो ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले उसे लागू होने वाले उपबंधों के अधीन अवधारित की जाए ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३७८ :
लोक सेवा आयोगों के बारे में उपबंध ।
१) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन के लोक सेवा आयोग के पद धारण करने वाले सदस्य, यदि वे अन्यथा निर्वाचन न कर चुके हों तो ऐसे प्रारंभ पर संघ के लोक सेवा आयोग के सदस्य हो जाएंगे और अनुच्छेद ३१६ के खंड (१) और खंड (२) में किसी बात के होते हुए भी, किंतु उस अनुच्छेद के खंड (२) के परंतुक के अधीन रहते हुए, अपनी उस पदावधि की समाप्ति तक पद धारण करते रहेंगे जो ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले ऐसे सदस्यों को लागू नियमों के अधीन अवधारित है ।
२) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी प्रांत के लोक सेवा आयोग के या प्रांतों के समूह की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले किसी लोक सेवा आयोग के पद धारण करने वाले सदस्य, यदि वे अन्यथा निर्वाचन न कर चुके हों तो, ऐसे प्रारंभ पर, यथास्थिति, तत्थानी राज्य के लोक सेवा आयोग के सदस्य या तत्थानी राज्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य हो जाएंगे और अनुच्छेद ३१६ के खंड (१) और खंड (२) में किसी बात के होते हुए भी, किंतु उस अनुच्छेद के खंड (२) के परंतुक के अधीन रहते हुए, अपनी उस पदावधि की समाप्ति तक पद धारण करते रहेंगे जो ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले ऐसे सदस्यों को लागू नियमों के अधीन अवधारित है ।