भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३६१ ख :
१.(लाभप्रद राजनीतिक पद पर नियुक्ति के लिए निरर्हता ।
किसी राजनीतिक दल का किसी सदन का कोई सदस्य, जो दसवीं अनुसूची के पैरा २ के अधीन सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित है, अपनी निरर्हता की तारीख से प्रारंभ होने वाली और उस तारीख तक जिसको ऐसे सदस्य के रूप में उसकी पदावधि समाप्त होगी या उस तारीख तक जिसको वह किसी सदन के लिए कोई निर्वाचन लडता है, और निर्वाचित घोषित किया जाता है, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, की अवधि के दौरान, कोई लाभप्रद राजनीतिक पद धारण करने के लिए भी निरर्हित होगा ।
स्पष्टीकरण- इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, -
क) सदन पद का वही अर्थ है जो उसका दसवीं अनुसूची के पैरा १ के खंड (क) में है ;
ख) लाभप्रद राजनीतिक पद अभिव्यक्ति से अभिप्रेत है, -
१)भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कोई पद, जहां ऐसे पद के लिए वेतन या पारिश्रमिक का संदाय, यथास्थिति, भारत सरकार या राज्य सरकार के लोक राजस्व से किया जाता है ; या
२) किसी निकाय के अधीन, चाहे निगमित हो या नहीं , जो भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के पूर्णत: या भागत: स्वामित्वाधीन है, कोई पद और ऐसे पद के लिए वेतन या पारिश्रमिक का संदाय ऐसे निकाय से किया जाता है ,
सिवाय वहां के जहां संदत्त ऐसा वेतन या पारिश्रमिक प्रतिकरात्मक स्वरूप का है । )
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१.संविधान (इक्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, २००३ की धारा ४ द्वारा अंत:स्थापित ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३६३ :
कुछ संधियों, करारों आदि से उत्पन्न विवादों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन ।
१)इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु अनुच्छेद १४३ के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय को किसी ऐसी संधि, करार, प्रसंविदा, वचनबंध, सनद या वैसी ही अन्य लिखत के किसी उपबंध से, जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले किसी देशी राज्य के शासक द्वारा की गई थी या निष्पादित की गई थी और जिसमें भारत डोमिनियन की सरकार या उसकी पूर्ववर्ती कोई सरकार एक पक्षकार थी और जो ऐसे प्रारंभ के पश्चात् प्रवर्तन में है या प्रवर्तन में बनी रही है, उत्पन्न किसी विवाद में या ऐसी संधि, करार, प्रसंविदा, वचनबंध, सनद या वैसी ही अन्य लिखत से संबंधित इस संविधान के किसी उपबंध के अधीन प्रोद्भूत किसी अधिकार या उससे उद्भूत किसी दायित्व या बाध्यता के संबंध में किसी विवाद में अधिकारिता नहीं होगी ।
२)इस अनुच्छेद में -
क) देशी राज्य से ऐसा राज्यक्षेत्र अभिप्रेत है जिसे हिज मजेस्टी से या भारत डोमिनियन की सरकार से इस संविधान के प्रारंभ से पहले ऐसे राज्य के रूप में मान्यता प्राप्त थी; और
ख) शासक के अंतर्गत ऐसा राजा, प्रमुख या अन्य व्यक्ति है जिसे हिज मजेस्टी से या भारत डोमिनियन की सरकार से ऐसे प्रारंभ से पहले किसी देशी राज्य के शासक के रूप में मान्यता प्राप्त थी ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३६२ :
(देशी राज्यों के शासकों के अधिकार और विशेषाधिकार ।)
संविधान (छब्बीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ की धारा २ द्वारा निरसित ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३६३ क :
१(देशी राज्यों के शासकों को दी गई मान्यता की समाप्ति और निजी थैलियों का अंत । )
इस संविधान का तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी बात के होते हुए भी -
क) ऐसा राजा, प्रमुख या अन्य व्यक्ति, जिसे संविधान (छब्बीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ के प्रारंभ से पहले किसी समय राष्ट्रपति के किसी देशी राज्य के शासक के रूप में मान्यता प्राप्त थी, या ऐसा व्यक्ति, जिसे ऐसे प्रारंभ से पहले किसी समय राष्ट्रपति से ऐसे शासक के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता प्राप्त थी, ऐसे प्रारंभ को और से ऐसे शासक या ऐसे शासक के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं रह जाएगा ;
ख) संविधान (छब्बीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ के प्रारंभ को और से निजी थैली का अंत किया जाता है और निजी थैली की बाबत सभी अधिकार, दायित्व और बाध्यताएं निर्वापित की जाती है और तद्नुसार खंड (क) में निर्दिष्ट, यथास्थिति, शासक या ऐसे शासक के उत्तराधिकारी को या अन्य व्यक्ति को किसी राशि का निजी का थैली के रूप में संदाय नहीं किया जाएगा । )
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१.संविधान (छब्बीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ की धारा ३ द्वारा अंत:स्थापित ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३६४ :
महापत्तनों और विमान क्षेत्रों के बारे में विशेष उपबंध ।
१)इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकेगा कि ऐसी तारीख से, जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, -
क) संसद् या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई विधि किसी महापत्तन या विमानक्षेत्र को लागू नहीं होगी अथवा ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगी जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं ; या
ख) कोई विद्यमान विधि किसी महापत्तन या विमानक्षेत्र में उन बातों के सिवाय प्रभावी नहीं रहेगी जिन्हें उक्त तारीख से पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है अथवा ऐसे पत्तन या विमान क्षेत्र को लागू होने में ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होनी जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
२) इस अनुच्छेद में -
क) महापत्तन से ऐसा पत्तन अभिप्रेत है जिसे संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि या किसी विद्यमान विधि द्वारा या उसके अधीन महापत्तन घोषित किया गया है और इसके अंतर्गत ऐसे सभी क्षेत्र हैं जो उस समय ऐसे पत्तन की सीमाओं के भीतर हैं ;
ख) विमानक्षेत्र से वायु मार्गों वायुयानों और विमान चालन से संबंधित अधिनियमितियों के प्रयोजनों के लिए यथा परिभाषित विमानक्षेत्र अभिप्रेत है ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३६५ :
संघ द्वारा दिए गए निदेशों का अनुपालन करने में या उनको प्रभावी करने में असफलता का प्रभाव ।
जहां इस संविधान के किसी उपबंध के अधीन संघ की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग करते हुए दिए गए किन्हीं निदेशों का अनुपालन करने में या उनको प्रभावी करने में कोई राज्य असफल रहता है वहां राष्ट्रपति के लिए यह मानना विधिपूर्ण होगा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें उस राज्य का शासन इस संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३६६ :
परिभाषाएं ।
इस संविधान में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, निम्नलिखित पदों के निम्नलिखित अर्थ हैं, अर्थात् :-
१)कृषि -आय से भारतीय आय-कर से संबंधित अधिनियमितियों के प्रयोजनों के लिए यथा परिभाषित कृषि- आय अभिप्रेत है ;
२) आंग्ल भारतीय से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसका पिता या पितृ-परंपरा में कोई अन्य पुरूष जनक यूरोपीय उद्भव का है या था, किन्तु जो भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवासी है और जो ऐसे राज्यक्षेत्र में ऐसे माता-पिता से जन्मा है या जन्मा था जो वहां साधारणतया निवासी रहे हैं और केवल अस्थायी प्रयोजनों के लिए वास नहीं कर रहे हैं ;
३)अनुच्छेद से इस संविधान का अनुच्छेद अभिप्रेत है ;
४) उधार लेना के अंतर्गत वार्षिकियां देकर धन लेना है और उधार का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा ;
१.( * * * * *)
५)खंड से उस अनुच्छेद का खंड अभिप्रेत है जिसमें वह पद आता है ;
६) निगम कर से कोई आय पर कर अभिप्रेत है जहां तक वह कर कंपनियों द्वारा संदेय है और ऐसा कर है जिसके संबंध में निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं, अर्थात् :-
क) वह कृषि- आय के संबंध में प्रभार्य नहीं है ;
ख) कंपनियों द्वारा संदत्त कर के संबंध में कंपनियों द्वारा व्यष्टियों को संदेय लाभांशों में से किसी कटौती का किया जाना उस कर को लागू अधिनियमितियों द्वारा प्राधिकृत नहीं है ;
ग) ऐसे लाभांश प्राप्त करने वाले व्यष्टियों की कुल आय की भारतीय आय-कर के प्रयोजनों के लिए गणना करने में अथवा ऐसे व्यष्टियों द्वारा संदेय या उनको प्रतिदेय भारतीय आय-कर की गणना करने में , इस प्रकार संदत्त कर को हिसाब में लेने के लिए कोई उपबंध विद्यमान नहीं है ;
७) शंका की दशा में, तत्स्थानी प्रांत तत्स्थानी देशी राज्य या तत्स्थानी राज्य से ऐसा प्रांत ,देशी राज्य या राज्य अभिप्रेत है जिसे राष्ट्रपति प्रश्नगत किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए, यथास्थिति, तत्स्थानी प्रांत, तत्स्थानी देशी राज्य या तत्स्थानी राज्य अवधारित करे ;
८)ऋण के अंतर्गत वार्षिकियों के रूप में मूलधन के प्रतिसंदाय की किसी बाध्यता के संबंध में कोई दायित्व और किसी प्रत्याभूति के अधीन कोई दायित्व है और ऋणभार का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा ;
९)संपदा शुल्क से वह शुल्क अभिप्रेत है जो ऐसे नियमों के अनुसार जो संसद् या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा ऐसे शुल्क के संबंध में बनाई गई विधियों द्वारा या उनके अधीन विहित किए जाएं, मृत्यु पर संक्रांत होने वाली या उक्त विधियों के उपबंधों के अधीन इस प्रकार संक्रांत हुई समझी गई सभी संपत्ति के मूल मूल्य पर या उसके प्रति निर्देश से निर्धारित किया जाए ;
१०)विद्यमान विधि से ऐसी विधि, अध्यादेश आदेश उपविधि नियम या विनियम अभिप्रेत है जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले ऐसी विधि, अध्यादेश, आदेश, उपविधि,नियम या विनियम बनाने की शक्ति रखने वाले किसी विधान-मंडल, प्राधिकारी या व्यक्ति द्वारा पारित किया गया है या बनाया गया है ;
११) फेडरल न्यायालय से भारत शासन अधिनियम, १९३५ के अधीन गठित फेडरल न्यायालय अभिप्रेत है ;
१२) माल के अंतर्गत सभी सामग्री वाणिज्या और वस्तुएं हैं ;
१३) प्रत्याभूति के अंतर्गत ऐसी बाध्यता है जिसका, किसी उपक्रम के लाभों के किसी विनिर्दिष्ट रकम से कम होने की दशा में, संदाय करने का वचनबंध इस संविधान के प्रारंभ से पहले किया गया है ;
१४ उच्च न्यायालय से ऐसा न्यायालय अभिप्रेत है जो इस संविधान के प्रयोजनों के लिए किसी राज्य के लिए उच्च न्यायालय समझा जाता है और इसके अंतर्गत -
क) भारत के राज्यक्षेत्र में इस संविधान के अधीन उच्च न्यायालय के रूप में गठित या पुनर्गठित कोई न्यायालय है, और
ख) भारत के राज्यक्षेत्र में संसद् द्वारा विधि द्वारा इस संविधान के सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए उच्च न्यायालय के रूप में घोषित कोई अन्य न्यायालय है ;
१५) देशी राज्य से ऐसा राज्यक्षेत्र अभिप्रेत है जिसे भारत डोमिनियन की सरकार से ऐसे राज्य के रूप में मान्यता प्राप्त थी;
१६) भाग से इस संविधान का भाग अभिप्रेत है ;
१७) पेंशन से किसी व्यक्ति को या उसके संबंध में संदेय किसी प्रकार की पेंशन अभिप्रेत है चाहे वह अभिदायी है या नहीं है और इसके अंतर्गत इस प्रकार संदेय सेवानिवृत्ति वेतन, इस प्रकार संदेय उपदान और किसी भविष्य निधि के अभिदानों की, उन पर ब्याज या उनमें अन्य परिवर्धन सहित या उसके बिना, वापसी के रूप में इस प्रकार संदेय कोई राशि या राशियां हैं ;
१८)आपात की उद्घोषणा से अनुच्छेद ३५२ के खंड (१) के अधीन की गई उद्घोषणा अभिप्रेत है ;
१९) लोक अधिसूचना से यथास्थिति, भारत के राजपत्र में या किसी राज्य के राजपत्र में अधिसूचना अभिप्रेत है ;
२०)रेल के अंतर्गत -
क) किसी नगरपालिक क्षेत्र में पूर्णतया स्थित ट्राम नहीं है, या
ख) किसी राज्य में पूर्णतया स्थित संचार की ऐसी अन्य लाइन नहीं है जिसकी बाबत संसद् ने विधि द्वारा घोषित किया है कि वह रेल नहीं है ;)
२.( * * * * *)
३.(२२) शासक से ऐसा राजा, प्रमुख या अन्य व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे संविधान (छब्बीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ के प्रारंभ से पहले किसी समय, राष्ट्रपति से किसी देशी राज्य के शासक के रूप में मान्यता प्राप्त थी या ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे ऐसे प्रारंभ से पहले किसी समय, राष्ट्रपति से ऐसे शासक के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता प्राप्त थी ;)
२३) अनुसूची से इस संविधान की अनुसूची अभिप्रेत है ;
२४) अनुसूचित जातियों से ऐसी जातियां, मूलवंश या जनजातियां अथवा ऐसी जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के भाग या उनमें के यूथ अभिप्रेत हैं जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद ३४१ के अधीन अनुसूचित जातियां समझा जाता है ;
२५) अनुसूचित जनजातियों से ऐसी जनजातियां या जनजाति समुदाय अथवा ऐसी जनजातियों या जनजाति समुदायों के भाग या उनमें के यूथ अभिप्रेत हैं जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद ३४२ के अधीन अनुसूचित जनजातियां समझा जात है ;
२६) प्रतिभूतियों के अंतर्गत स्टाक है ;
४.( * * * * *)
२७) उपखंड से उस खंड का उपखंड अभिप्रेत है जिसमें वह पद आता है ;
२८) कराधान के अंतर्गत किसी कर या लाग का अधिरोपण है चाहे वह साधारण या स्थानीय या विशेष है और कर का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा ;
२९) आय पर कर के अंतर्गत अतिलाभ-कर की प्रकृति का कर है ;
५(२९क) माल के क्रय या विक्रय पर कर के अंतर्गत -
क)वह कर है जो नकदी, आस्थगित संदाय या अन्य मूल्यवान प्रतिफल के लिए किसी माल में संपत्ति के ऐसे अंतरण पर है जो किसी संविदा के अनुसरण में न करके अन्यथा किया गया है ;
ख) वह कर है जो माल में संपत्ति के (चाहे वह माल के रूप में हो या किसी अन्य रूप में ) ऐसे अंतरण पर है जो किसी संकर्म संविदा के निष्पादन में अंतर्वलित है ;
ग) वह कर है जो अवक्रय या किस्तों में संदाय की पध्दति से माल के परिदान पर है ;
घ) वह कर है जो नकदी, आस्थगित संदाय या अन्य मूल्यवान प्रतिफल के लिए किसी माल का किसी प्रयोजन के लिए उपयोग करने के अधिकार के (चाहे वह विनिर्दिष्ट अवधि के लिए हों या नहीं ) अंतरण पर है ;
ड) वह कर है जो नकदी, आस्थगित संदाय या अन्य मूल्यवान प्रतिफल के लिए किसी माल के प्रदाय पर है जो किसी अनिगमित संगम या व्यक्ति - निकाय द्वारा अपने किसी सदस्य को किया गया है ;
च) वह कर है, जो ऐसे माल के, जो खाद्य या मानव उपभोग के लिए कोई अन्य पदार्थ या कोई पेय है (चाहे वह मादक हो या नहीं ) ऐसे प्रदाय पर है, जो किसी सेवा के रूप में या सेवा के भाग के रूप में या किसी भी अन्य रीति से किया गया है और ऐसा प्रदाय या सेवा नकदी, आस्थगित संदाय या अन्य मूल्यवान प्रतिफल के लिए की गई है ,
और माल के ऐसे अंतरण, परिदान या प्रदाय के बारे में यह समझा जाएगा कि वह उस व्यक्ति द्वारा, जो ऐसा अंतरण, परिदान या प्रदाय कर रहा है, उस माल का विक्रय है, और उस व्यक्ति द्वारा जिसको ऐसा अंतरण, परिदान या प्रदाय किया जाता है, उस माल का क्रय है ।)
६.(३०) संघ राज्यक्षेत्र से पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट कोई संघ राज्यक्षेत्र अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत ऐसा अन्य राज्यक्षेत्र है जो भारत के राज्यक्षेत्र में समाविष्ट है किंतु उस अनुसूची में विनिर्दिष्ट नहीं है । )
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१.संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ५४ द्वारा (१-२-१९७७ से) खंड ४क अंत:स्थापित किया गया और उसका संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७७ की धारा ११ द्वारा (१३-४-१९७८ से) लोप किया गया ।
२.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा खंड (२१)का लोप किया गया ।
३.संविधान (छब्बीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ की धारा ४ द्वारा खंड (२२)के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४.संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ५४ द्वारा (१-२-१९७७ से) खंड (२६क) अंत:स्थापित किया गया और उसका संविधान (तैतालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७७ की धारा ११ द्वारा (१३-४-१९७८ से) लोप किया गया ।
५.संविधान (छियालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९८२ की धारा ४ द्वारा अंत:स्थापित ।
६.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा खंड (३०) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
भारत का संविधान :
अनुच्छेद ३६७ :
निर्वचन ।
१) जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, इस संविधान के निर्वचन के लिए साधारण खंड अधिनियम, १८९७, ऐसे अनुकूलनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, जो अनुच्छेद ३७२ के अधीन उसमें किए जाएं, वैसे ही लागू होगा जैसे वह भारत डोमिनियन के विधान-मंडल के किसी अधिनियम के निर्वचन के लिए लागू होता है ।
२)इस संविधान में संसद् के या उसके द्वारा बनाए गए अधिनियमों या विधियों के प्रति किसी निर्देश का अथवा १.(*) किसी राज्य के विधान-मंडल के या उसके द्वारा बनाए गए अधिनियमों या विधियों के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत, यथास्थिति, राष्ट्रपति द्वारा निर्मित अध्यादेश या किसी राज्यपाल २.(*) द्वारा निर्मित अध्यादेश के प्रति निर्देश है ।
३)इस संविधान के प्रयोजनों के लिए विदेशी राज्य से भारत से भिन्न कोई राज्य अभिप्रेत है :
परंतु संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राष्ट्रपति आदेश३.() द्वारा यह घोषणा कर सकेगा कि कोई राज्य उन प्रयोजनों के लिए, जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं विदेशी राज्य नहीं हैं ।
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१.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया ।
२.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा या राजप्रमुख शब्दों का लोप किया गया ।
३.संविधान (विदेशी राज्यों के बारे में घोषणा ) आदेश, १९५० (सं.आ. २) देखिए ।
भारत का संविधान :
भाग २० :
संविधान का संशोधन :
अनुच्छेद ३६८ :
१.(संविधान का संशोधन करने की संसद् की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया । )
२.(१) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद् अपनी संविधायी शक्ति का प्रयोग करते हुए इस संविधान के किसी उपबंध का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधन इस अनुच्छेद में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार कर सकेगी । )
३.(२) इस संविधान के संशोधन का आरंभ संसद् के किसी सदन में इस प्रयोजन के लिए विधेयक पुर:स्थापित करके ही किया जा सकेगा और जब वह विधेयक प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तब ४.(वह राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जो विधेयक को अपनी अनुमति देगा और तब ) संविधान उस विधेयक के निबंधनों के अनुसार संशोधित हो जाएगा :
परंतु यदि ऐसा संशोधन-
क) अनुच्छेद ५४, अनुच्छेद ५५, अनुच्छेद ७३, अनुच्छेद १६२ या अनुच्छेद २४१ में, या
ख) भाग ५ के अध्याय ४, भाग ६ के अध्याय ५ या भाग ११ के अध्याय १ में, या
ग) सातवीं अनुसूची की किसी सूची में, या
घ) संसद् में राज्यों के प्रतिनिधित्व में, या
ड) इस अनुच्छेद के उपबंधों में,
कोई परिवर्तन करने के लिए है तो ऐसे संशोधन के लिए उपबंध करने वाला विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किए जाने से पहले उस संशोधन के लिए ५.(***) कम से कम आधे राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा पारित इस आशय के संकल्पों द्वारा उन विधान-मंडलों का अनुसमर्थन भी अपेक्षित होगा ।
६.(३)अनु्च्छेद १३ की कोई बात इस अनुच्छेद के अधीन किए गए किसी संशोधन को लागू नहीं होगी । )
७.(४) इस संविधान का (जिसके अंतर्गत भाग ३ के उपबंध है ) इस अनुच्छेद के अधीन (संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ५५ के प्रारंभ से पहले या उसके पश्चात्) किया गया या किया गया तात्पर्यित कोई संशोधन किसी न्यायालय में किसी भी आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा ।
५)शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि इस अनुच्छेद के अधीन इस संविधान के उपबंधों का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधन करने के लिए संसद् की संविधायी शक्ति पर किसी प्रकार का निर्बन्धन नहीं होगा । )
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१.संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ की धारा ३ द्वारा संविधान में संविधान करने की प्रक्रिया के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२.संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ की धारा ३ द्वारा अंत:स्थापित ।
३.संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ की धारा ३ द्वारा अनुच्छेद ३६८ को खंड (२) के रूप में पुनर्संख्यांकित किया गया ।
४.संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ की धारा ३ द्वारा तब वह राष्ट्रपति के समक्ष उसकी अनुमति के लिए रखा जाएगा तथा विधेयक को ऐसी अनुमति दी जाने के पश्चात् के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५.संविधान ( सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची के भाग क और ख में विनिर्दिष्ट शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया ।
६.संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ की धारा ३ द्वारा अंत:स्थापित ।
७.अनुच्छेद ३६८ के खंड (४) और खंड (५) संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ५५ द्वारा अंत:स्थापित किए गए थे। उच्चतम न्यायालय ने मिनर्वा मिल्स लिमिटेड और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (१९८०) २ एस.सी.सी. ५९१ के मामले में इस धारा को अविधिमान्य घोषित किया है ।
भारत का संविधान :
भाग २१ :
१(अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध ) :
अनुच्छेद ३६९ :
राज्यसूची के कुछ विषयों के संबंध में विधि बनाने की संसद् की इस प्रकार अस्थायी शक्ति मानो वे समवर्ती सूची के विषय हों ।
इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद् को इस संविधान के प्रारंभ से पांच वर्ष की अवधि के दौरान निम्नलिखित विषयों के बारे में विधि बनाने की इस प्रकार शक्ति होगी मानो वे विषय समवर्ती सूची में प्रगणित हों, अर्थात् :-
क) सूती और ऊनी वस्त्रों, कच्ची कपास, (जिसके अंतर्गत ओटी हुई रूई और बिना ओटी रूई या कपास हैं ),
बिनौले, कागज (जिसके अंतर्गत अखबारी कागज हैं ), खाद्य पदार्थ (जिसके अंतर्गत खाद्य तिलहन और तेल हैं), पशुओं के चारे (जिसके अंतर्गत खली और अन्य सारकृत चारे हैं) कोयले (जिसके अंतर्गत कोक और कोयले के व्युत्पाद हैं ) लोहे, इस्पात और अभ्रक का किसी राज्य के भीतर व्यापार और वाणिज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और वितरण ;
ख) खंड (क) में वर्णित विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधियों के विरूध्द अपराध, उन विषयों में से किसी के संबंध में उच्चतम न्यायालय से भिन्न सभी न्यायालयों की अधिकारिता और शक्तियां, तथा उन विषयों में से किसी के संबंध में फीस किंतु इसके अंतर्गत किसी न्यायालय में ली जाने वाली फीस नहीं है,
किंतु संसद् द्वारा बनाई गई कोई विधि, जिसे संसद् इस अनुच्छेद के उपबंधों के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होती, उक्त अवधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय प्रभावी नहीं रहेगी जिन्हें उस अवधि की समाप्ति के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है ।
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१.संविधान (तेरहवां संशोधन) अधिनियम, १९६२ की धारा २ द्वारा (१-१२-१९६३ से) अस्थायी तथा अंत:कालीन उपबंध के स्थान पर प्रतिस्थापित ।