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संघीय मंत्रिपरिषद

संघ मन्त्रिपरिषद का गठन प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। मन्त्रिमण्डल का गठन कैबिनेट स्तर के मन्त्रियों से होता है मूल संविधान में कैबिनेट शब्द का उल्लेख नहीं किया गया था। परंतु बाद में 44वें संवैधानिक संशोधन (1978) के द्वारा अनुच्छेद 352 के तहत कैबिनेट शब्द को सम्मिलित कर लिया गया। जब मन्त्रिमण्डल के सदस्यों को उनके कार्यो में सहयता देने के लिए राज्य मंत्रियों और उपमंत्रियों को नियुक्त किया जाता है, तब इन्हें मिलाकर मन्त्रिमण्डल को मंत्रिपरिषद की संज्ञा दी जाती है। मंत्रिपरिषद तीन स्तरीय होता है, अर्थात- 

  • कैबिनेट स्तर का मंत्री।
  • राज्य स्तर का मंत्री।
  • उपमंत्री।

कैबिनेट स्तर का मंत्री अपने विभाग का अध्यक्ष होता है तथा उसकी सहयता के लिए राज्यमंत्री तथा उपमंत्री की नियुक्त की जाती है । राज्यमंत्री को किसी विभाग का प्रभार स्वतंत्र रूप से सौपा जा सकता है। सरकार की नीति का निर्णय मन्त्रिमण्डल द्वारा नीति निर्धारण करते समय उस विभाग के राज्यमंत्री को विशेष आमंत्रित के रूप में नीति निर्धारण कार्यवाही में सम्मिलित किया जा सकता है।

मंत्रिपरिषद में उन्ही व्यक्तियों को शामिल किया जाता है, जो संसद के सदस्य होते है। लेकिन संसद सदस्य न होने वाले व्यक्ति को भी मंत्रिपरिषद में शामिल किया जा सकता है । लेकिन उसे छः माह के अन्दर संसद के किसी सदन का सदस्य निर्वाचित होना पड़ता है। परन्तु संविधान में यह व्यवस्था नहीं दी गयी है कि ऐसा व्यक्ति इस्तीफा देकर पुनः मंत्रिपरिषद का सदस्य बन सकता है या नहीं । सरकार ने इस अस्पष्ट प्रावधान का लाभ उठाते हुए उस व्यक्ति को पुनः मंत्रिमण्डल में शामिल कर लेते है । अब 16 अगस्त 2001 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए व्यवस्था दी की विधायिका का सदस्य निर्वाचित होते हुए बिना कोई व्यक्ति छः महीने से अधिक मंत्रिपद धारण नहीं कर सकता है। यदि इस व्यक्ति को छः महीने बाद विधायिका के उसी सत्र में मंत्री पद पर दुबारा बहाल किया जाता है, तो यह आवश्यक है कि वह चुनाव जीत कर सदन का सदस्य बनें। यदि मंत्री पद पर आसीन गैर निर्वाचित व्यक्ति दिये गये छः महीने की अवधि चुनाव जीतने में असफल रहता है और उस व्यक्ति को दोबारा मंत्री पद पर बहाल किया जाता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 164 (1) और 164 (4) की योजना और भावना पर आघात जैसा होगा।

वेतन एवं भत्ते

कैबिनेट व राज्य स्तर के मंत्रियों को एक निश्चित राशि  वेतन के रूप में दी जाती है, इसके अतिरिक्त उनके रहने के लिये सरकारी निवास तथा जब वे सरकारी कार्य के लिये बाहर जाते हैं तो यात्रा भत्ता भी मिलता है।

कार्य

संघ मंत्रिमण्डल में ही संघ कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति निहित है तथा राष्ट्रपति संघ मंत्रिमण्डल की सलाह के अनुसार अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। मंत्रिमण्डल देश के प्रशासन, आर्थिक सुधार, सुरक्षा तथा विदेशी राज्यों के सम्बन्ध में नीति का निर्धारण करता है और मन्त्रिमण्डल द्वारा निर्धारित नीति के अनुसार ही संघ का शासन संचालित होता है।

मंत्रिपरिषद का सामूहित तथा व्यक्तिगत उत्तरदायित्व

संघ मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है तथा मंत्रिपरिषद का प्रत्येक सदस्य मंत्रिमंडल के निर्णय के लिए उत्तरदायी होता है। इसके अतिरिक्त मंत्री अपने विभाग के अधिकारियां के कार्यो के लिए भी संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। कोई भी मंत्री अपने विभाग के कार्यो के दायित्व से अधिकारियों पर दोष लगाकर बच नहीं सकता। मन्त्री के विभाग के मामलों के सम्बन्ध में संसद में उससे प्रश्न पूछा जा सकता है, जिसका उत्तर मंत्री को देना पड़ता है लेकिन कभी कभी वह लोकहित अथवा गोपनीयता के आधार पर उत्तर देने से इन्कार कर सकता है। इस प्रकार किसी मंत्री का दोहरा उत्तरदायित्व है। अपने विभाग के लिए वह व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी है, जबकि अन्य मन्त्रियों के विभागों के लिए अन्य मन्त्रियों के साथ सामूहिक रूप से उत्तरदायी है।

मंत्रिपरिषद की पदावधि

मंत्रिपरिषद तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक उसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त रहता है तथा लोकसभा के नये चुनाव के बाद नये मंत्रिमंडल का गठन नहीं हो जाता । मंत्रिपरिषद का कोई सदस्य प्रधानमंत्री के साथ मतभेद होने के कारण त्यागपत्र दे सकता है या प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से सिफारिश कर उसे बर्खास्त करवा सकता है। यदि कोई मंत्री संसद का सदस्य नहीं रह जाता, तो उसे त्यागपत्र देना पड़ता है लेकिन कोई मंत्री संसद का सदस्य न होते हुए भी मंत्री पद पर रह सकता है वशर्ते वह 6 महीने के भीतर संसद के किसी सदन का सदस्य बन जाए। यदि मंत्रिपरिषद लोकसभा में विश्वास का मत प्राप्त करने में असफल रहने के बावजूद त्यागपत्र नहीं देता, तो उसे राष्ट्रपति बर्खास्त कर सकता है।

 

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