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भारत का राष्ट्रपति

भारतीय संघ की कार्यपालिका के प्रधान को 'राष्ट्रपति’ कहा जाता है। संघ की कार्यपालिका शक्ति 'राष्ट्रपति’ में निहित है। भारत में संसदीय प्रणाली होने के कारण ब्रिटेन की साम्राज्ञी की तरह भारत का 'राष्ट्रपति’ कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान होता है और मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यकारी। 'राष्ट्रपति’ की स्थित वैधानिक अध्यक्ष की है तथा उनका पद धुरी के समान है जो राजनीतिक व्यवस्था को संतुलित करता है। ब्रिटेन की साम्राज्ञी और भारत के’राष्ट्रपति’ के पद में मूलभूत अंतर यह है कि ब्रिटेन की साम्राज्ञी का पद वंशानुगत है, जबकि भारत का राष्ट्रपति एक निर्वाचक मण्डल द्वारा निर्वाचित किया जाता है। ’राष्ट्रपति’ अपने अधिकारों का प्रयोग स्वयं या अपने अधीनस्थ सरकारी अधिकारियों द्वारा करता है ।

राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया

  • राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक-मण्डल के सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधि प्रणाली के आधार पर एकल संक्रमणीय मत द्वारा करते हैं।
  • इस निर्वाचक मंडल में संसद के दोनों सदनों तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य होते है । 'राष्ट्रपति’ के निर्वाचक  मंडल में संसद के मनोनीत सदस्य तथा राज्य विधान परिषदों के सदस्य शामिल नहीं किये जाते । 
  • 71वे संविधान संशोधन के पूर्व संघ राज्य क्षेत्रो की विधान सभाओं के सदस्यों को ’राष्ट्रपति’ के निर्वाचक मंडल में शामिल नहीं किया जाता था। पाण्डिचेरी तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधान सभाओं के सदस्य 'राष्ट्रपति’ के निर्वाचक मंडल में शामिल किये जाते हैं।
  • 'राष्ट्रपति’ के निर्वाचन पद्वति के सम्बंध के अनुच्छेद-55 में प्रावधान किया गया है, जिसके अनुसार 'राष्ट्रपति’ के निर्वाचन में दो सिद्वांतों को अपनाया जाता है-
    • समरूपता का सिद्वांतः इस सिद्वांत के अनुसार सभी राज्यों की विधानसभाओं का प्रतिनिधित्व का मान निकालने के लिए एक ही प्रक्रिया अपनायी जाती है तथा सभी राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मत मूल्यों का योग संसद के सभी सदस्यों के मत मूल्य के योग के समतुल्य अर्थात समान होता है। राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मत मूल्य तथा संसद के सदस्यों के मत मूल्य को निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनायी जाती है-
      • विधानसभा के सदस्यों के मत मूल का निर्धारण-प्रत्येक राज्य की विधान सभा के सदस्यों के मतों की संख्या निकालने के लिए उस राज्य की कुल जनसंख्या को राज्य विधानसभा की कुल निर्वाचित सदस्य संख्या से विभाजित करके भागफल को 1000 से विभाजित किया जाता है। यदि उक्त विभाजन के परिणामस्वरूप शेष 500 से अधिक आये, तो प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाता है। राज्य विधान सभा के सदस्यो का मूल्य निम्न प्रकार निकाला जाता है।

 

                                                                                                            राज्य की कुल जनसंख्या

                     राज्य के विधानसभा के एक सदस्य का मत मूल्य = --------------------------------------------------------------------

                                                                                                राज्य विधानसभा में निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या /1000

  • संसद सदस्य के मत मूल्य का निर्धारण -संसद सदस्य का मत मूल्य निर्धारित करने के लिए राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मत मूल्य को जोड़कर उसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों के योग का भाग दिया जाता है। संसद सदस्य का मत मूल्य निम्न प्रकार निकाला जाता है-

 

                                                                      कुल राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मत मूल्यों का योग

                        संसद सदस्य का मत मूल्य = ---------------------------------------------------------------------------------

                                                                               संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों का योग 

इस तरह राष्ट्रपति के चुनाव में यह ध्यान रखा जाता है कि सभी राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मतों के मूल्य का योग संसद के निर्वाचित सदस्यों के मतों के मूल्य के योग के बराबर रहे और सभी राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मत मूल्य का निर्धारण करने के निए एक समान प्रक्रिया अपनायी जाए। इसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व का सिद्वांत कहते है।

  • एकल संक्रमणीय सिद्वांतः इस सिद्धांत का तात्पर्य है कि यदि निर्वाचन में एक से अधिक उम्मीदवार हों, तो मतदाताओं  द्वारा मतदान वरीयता क्रम से दिया जाय। इसका आशय यह है कि मतदाता, मतदान पत्र में उम्मीदवारों के नाम या चुनाव चिन्ह के समक्ष अपना वरीयता क्रम लिखेगा। अनुच्छेद 55 के अनुसार निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा।   

 

  • मतगणना
    • उस प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित किया जाता है, जो आधे से अधिक मत प्राप्त करता है। गणना प्रारंभ होने पर सर्वप्रथम अवैध मतपत्रों को निरस्त करके शेष वैध मत पत्रों का मत मूल्य निकाला जाता है और निकाले गये मत मूल्य में 2 का भाग देकर भागफल में एक जोड़कर निर्वाचित घोषित किये जाने वाले उम्मीदवार का कोटा निकाला जाता है। यदि मतगणना के प्रथम दौर में किसी उम्मीदवार को नियत किये गये कोटा के बराबर मत मूल्य प्राप्त हो जाता है, तो उसे निर्वाचित घोषित किया जाता है। यदि किसी उम्मीदवार को नियत कोटों के बराबर मत मूल्य नहीं प्राप्त होता है, तो मतगणना का दूसरा दौर प्रारंभ होता है।
    • दूसरे दौर की मतगणना में जिस उम्मीदवार को प्रथम वरीयता का सबसे कम मत मिला होता है, उसको गणना से बाहर करके उसकी द्वितीय वरीयता के मत मूल्य को अन्य उम्मीदवारों को स्थानांतरित कर दिया जाता है। यदि द्वितीय दौर की गणना में भी किसी उम्मीदवार को नियत किए गये कोटे के बराबर मत मूल्य नहीं प्राप्त होता, तो तीसरे दौर की गणना होती है।
    • तीसरे दौर की गणना में उस उम्मीदवार को गणना से बाहर कर दिया जाता है, जो दूसरे दौर की गणना में सबसे कम मत मूल्य पाता है और इस उम्मीदवार के तृतीय वरीयता मत मूल्य को शेष उम्मीदवारों के पक्ष में हस्तांतरित कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया तब तक अपनायी जाती है, जब तक किसी उम्मीदवार को नियत किये गये कोटे के बराबर मत मूल्य प्राप्त नहीं हो जाता।

 

राष्ट्रपति पद के लिए योग्यता

  • संविधान के अनु.-58 के अनुसार कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति पद के लिए तब योग्य, जब वह,
    • भारत का नागरिक हो।
    • 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
    • लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए योग्य हो।
    • भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन या सरकार में किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद न धारण करता हो। यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर या संघ अथवा किसी राज्य के मंत्रिपरिषद का सदस्य हो, जो यह नहीं माना जाएगा कि वह लाभ के पद पर है। 

 राष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य विधान मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की की तारीख से रिक्त कर दिया है। राष्ट्रपति लाभ का कोई अन्य पद ग्रहण नहीं करेगा।

 

राष्ट्रपति पदावधि एवं हटाये जाने की स्थिति

राष्ट्रपति की पदावधि पद ग्रहण की तिथि से 5 वर्ष की होती है । 5 वर्ष से पहले राष्ट्रपति की पदावधि दो प्रकार से समाप्त हो सकती है-

1.उपराष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना त्यागपत्र देकर,

2.महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा संविधान के उल्लंघन के आरोप में हटाये जाने पर।

महाभियोग की प्रक्रिया

महाभियोग एक न्यायिक प्रक्रिया है जो संसद में चलायी जाती है। संसद का कोई भी सदन राष्ट्रपति पर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाएगा। दूसरा सदन उन आरोपों  की जांच करेगा या करवाएगा।  किंतु ऐसा आरोप तब तक नही चलाया जा सकता जब तक कि-

  • 14 दिन की लिखित सूचना देकर सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक-चौथायी सदस्यों ने हस्ताक्षर करके प्रस्थापना अंतर्विष्ट करने वाला संकल्प प्रस्तावित नहीं किया हो,
  • उस सदन की कुल सदस्य संख्या के दो-तिहाई-बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पारित नहीं किया गया हो।
  • राष्ट्रपति को ऐसे अन्वेषण में उपस्थित होने और अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होता। यदि ऐसे अन्वेषण के परिणामस्वरूप राष्ट्रपति के विरूद्ध लगाया गया आरोप सिद्व हो जाता है तो आरोप का अन्वेषण करने या कराने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा संकल्प पारित कर दिया जाता है। संकल्प पारित किये जाने की तिथि से ही राष्ट्रपति पदच्युत समझा जाएगा।
  • राष्ट्रपति को अनुच्छेद 56 और 61 के उपबंधों के अनुसार, महाभियोग के अलावा किसी और ढंग से नहीं हटाया जा सकता।

 

राष्ट्रपति की शपथ

राष्ट्रपति अपने पद की शपथ सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा लेता है।

 

चुनाव संबंधी विवाद

राष्ट्रपति के चुनाव को जिन आधारों पर चुनौती दी जा सकती है, वे इस प्रकार है-

  • मतदाताओं पर अनुचित दबाव का आरोप,
  • अवैध तरीके से मत पत्र रद्द किये जाने का आरोप,
  • राष्ट्रपति के चुनाव से संबंन्धित संवैधानिक नियमों की अवहेलना का अरोप,
  • किसी भी उम्मीदवार का नामांकन-पत्र अनुचित ढंग से स्वीकार या रद्द किये जाने का आरोप,
  • राष्ट्रपति निर्वाचन की वैधता को चुनौती से संबंधित याचिका वही दायर कर सकता है जो उम्मीदवार हो अथवा निर्वाचक।
  • संविधान के अनुच्छेद 71 में उपबंध है कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न सभी शंकाओं और विवादों की जांच तथा निपटारा उच्चतम न्यायालय करेगा और उसका निर्णय अंतिम होगा।

उल्लेखनीय है कि 1976 में डॉ. जाकिर हुसैन तथा 1969 में श्री वी.वी. गिरि के चुनावों को उच्चतम न्यायालय ने वैध घोषित किया था श्री जैल सिंह के चुनाव के संबंध में जो चुनाव याचिकाएं दायर की गई थी, उच्चतम न्यायालय द्वारा वे भी रद्द कर दी गई। 13 दिसम्बर 1983 को उच्चतम न्यायालय ने श्री जैल सिंह के चुनाव को वैध घोषित किया ।

वेतन और भत्ते

राष्ट्रपति को निःशुल्क शासकीय निवास (राष्ट्रपति भवन) उपलब्ध होता है। राष्ट्रपति उन सभी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का हकदार होगा जो संसद द्वारा समय-समय पर निश्चित किये जाएंगे। संविधान के अनु. 59 के अनुसार राष्ट्रपति की उपलब्धियां और भत्ते उसके कार्यकाल में घटाये नहीं जा सकते। भारत के राष्ट्रपति का वेतन वर्तमान में (2019) ₹5 लाख प्रतिमाह है

राष्ट्रपति की शक्तियां

संविधान द्वारा राष्ट्रपति को जो शक्तियां प्रदान की गई है, वे अत्यन्त विस्तृत और व्यापक है। अनुच्छेद-53 के अनुसार संघीय कार्यपालिका की सभी शक्तियां राष्ट्रपति में निहित है, जिनका प्रयोग संविधान के अनुसार या तो राष्ट्रपति स्वयं करता है, या उसके नाम से उसके अधीनस्थ पदाधिकारी करते हैं। राष्ट्रपति की शक्तियों को निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जा सकता है -

कार्यकारी शक्तियां

‘कार्यकारी शक्ति का प्राथमिक अर्थ है विधान मंडल द्वारा अधिनियमित विधियों का कार्यपालन। किंतु आधुनिक राज्य में कार्यपालिका का कार्य उतना सादा नहीं है जितना अरस्तू के युग में था। कार्यपालिका शक्ति की परिधि के परिप्रक्ष्य में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस प्रकार व्याख्या की गई है-’’ कार्यपालिका कृत्य का का अर्थ है और उसकी क्या विवक्षा है, इसकी सर्वग्राही परिभाषा कर पाना संभव नहीं है। विधायी और न्यायिक शक्ति को निकाल देने पर शासकीय कृत्यों में जो भी अवशिष्ट रहता है, सामान्यतया वही कार्यपालिका का कृत्य है। किंतु यह संविधान या किसी अन्य विधि के उपबंधों के आधीन रहते हुए हैं।

कार्यपालिका कृत्य में आते हैं- नीति निर्धारण और उसकी कार्य में परिणिति, व्यवस्था बनाए रखना, सामाजिक और आर्थिक कल्याण का प्रान्नयन, विदेश नीति का मार्गदर्शन, राज्य के साधारण प्रशासन को चलाना या उसका अधीक्षण।

1976 से पूर्व संविधान में यह अभिव्यक्त उपबंध नहीं था कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए आबद्ध है। 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 से अनु.74 (1) का संशोधन करके स्थिति स्पष्ट कर दी गई है- ''राष्ट्रपति को अपनी सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में इनकी सलाह के अनुसार कार्य करेगा।''

अर्थात उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट कुछ मामलों को छोड़कर राष्ट्रपति को किसी मामले में अपने विवेकानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं प्रदान की गई है।

राष्ट्रपति की कार्यपालिका संबंधी शक्तियों को मुख्यतः तीन भागों में बांटा जा सकता है-

मंत्रिपरिषद का गठन

अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति संघ की कार्यपालिका शक्ति के संचालन में  सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद का गठन करता है। सामान्यतः राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त करता है, जो लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता हो। प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है। प्रायः परंपरा रही है कि प्रधानमंत्री लोकसभा का सदस्य होता है, क्योंकि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है, लेकिन राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि यदि लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल किसी ऐसे व्यक्ति को अपना नेता चुनता है जो संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है लेकिन इस प्रकारनियुक्त किये गये व्यक्ति को 6 माह के अंदर संसद का सदस्य होना पड़ता है। इसी तरह प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को मंत्रिपरिषद में शामिल कर सकता है, जो संसद सदस्य नहीं है।  यदि ऐसा व्यक्ति मंत्रिपरिषद में शामिल किया जाता है, तो उसे 6 माह के अन्दर संसद के किसी सदन का सदस्य बनना पड़ता है।

नियुक्ति संबंधी शक्ति

संविधान द्वारा राष्ट्रपति को उच्च पदाधिकारियों को नियुक्त करने तथा उन्हे हटाने की शक्ति प्रदान की गई है। कार्यपालिका का अध्यक्ष होने के नाते राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और प्रधानमंत्री के परामर्श से अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है इनके अतिक्त राष्ट्रपति निम्नलिखित उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है-

  • भारत का महान्यायवादी
  • भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश
  • राज्य के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश
  • राज्यों के राज्यपाल
  • मुख्य निर्वाचन आयुक्त
  •  संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्य।
  • राष्ट्रपति अपने द्वारा नियुक्त प्राधिकारियों तथा अधिकारियों को पदमुक्त भी कर सकता है 

आयोगों का गठन

कार्यपालिका संबंधी शक्तियों के अंतर्गत राष्ट्रपति को आयोगों को गठित करने की शक्तियां भी  प्रदान की गयी है। ये आयोग निम्न लिखित है, जिन्हें राष्ट्रपति गठित करता है-

  • जल प्रदाय में हस्तक्षेप  का अन्वेषण करने के लिए आयोग ।
  • वित्त आयोग।
  • संघ लोक सेवा आयोग और राज्यों के समूहों के लिए संयुक्त आयोग ।
  • अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन पर प्रतिवेदन देने के लिए आयोग।
  • राजभाषा आयोग।
  • भाषायी अल्पसंख्यक आयोग ।
  • पिछड़े वर्ग की दशाओं का अन्वेशण करने के लिए आयोग।

संविधान के अनुसार राष्ट्रपति का दायित्व कि वह मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करे, फिर भी कुछ ऐसे अप्रत्यक्ष क्षेत्र हैं जहां राष्ट्रपति को अपने विवेक तथा बुद्धि का उपयोग करना पड़ता है। वे इस प्रकार है-

प्रधानमंत्री की नियुक्ति

  • अनुच्छेद 75 (1) के अनुसार जब ऐसी स्थिति पैदा हो जाये कि किसी भी एक पार्टी को लोकसभा के सदस्यों के बहुमत का स्पष्ट समर्थन प्राप्त न हो । ध्यातव्य है कि राष्ट्रपति ऐसे पदावरोही प्रधानमंत्री की सलाह पर नये प्रधानमंत्री की नियुक्ति नहीं कर सकता है, जो चुनाव में हार गया हो या जिसने लोकसभा समर्थन गंवा दिया हो।
  • प्रधानमंत्री के अचानक मृत्यु ये उत्पन्न स्थिति में , जहां सत्तारूढ़ विधानमंडल पार्टी नेता का चुनाव करने के लिए तत्काल बैठक न कर सकती हो, जहां मंत्रिमंडल के मंत्रियों के बीच कोई निश्चित वरिष्ठता क्रम न हो और जहॉं मंत्रिमंडल से बाहर के किसी व्यक्ति के नाम का सुझाव दिया गया हो।
  • ऐसी मंत्रिपरिषद की सलाह पर लोकसभा का विघटन {अनुच्छेद-85(1)} जिसने लोकसभा में बहुमत का समर्थन  गंवा दिया हो या जिसके विरूद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर दिया गया हो।
  • उस स्थिति में मंत्रियों की बर्खास्तगी, जब मंत्रिपरिषद ने लोकसभा का विश्वास गंवा दिया हो पर वह इस्तीफा देने के लिए तैयार न हो।

        ऐसी कुछ स्थितियों में राष्ट्रपति की भूमिका अत्यन्त नाजुक तथा निर्णायक हो जाती है ।

 

विधायी शक्तियां

विधायी क्षेत्र में राष्ट्रपति की शक्तियां अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इंग्लैंड के सम्राट के समान, भारत का राष्ट्रपति भी संघ की संसद का अभिन्न अंग है। अनु.-74 (1) के अनुसार, राष्ट्रपति विधायी शक्तियों का प्रयोग मंत्रियों की सलाह पर ही कर सकता है। संविधान द्वारा राष्ट्रपति को निम्नलिखित विधायी शक्तियां प्रदान की गई हैं-

1.संसद से संबंधित शक्तियाँ  राष्ट्रपति संसद के सदनों के अधिवेशन बुलाता है, सत्रावसान करता है, तथा लोकसभा को भंग कर सकता है। गतिरोध उत्पन्न होने की स्थिति में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत करने की भी शक्ति उसे प्राप्त है। राष्ट्रपति को लोकसभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करने की शक्ति प्रदान की गई है। आरंभिक भाषण का वही उपयोग होता है जो इंग्लैंड में  "सिंहासन से भाषण’’ का होता है। राष्ट्रपति संसद के किसी एक सदन में या संसद के संयुक्त अधिवेशन में अभिभाषण कर सकता है।

अभिभाषण करने के अधिकार के अतिरिक्त भारत के राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह संसद में उस समय जब विधेयक लम्बित है किसी विधेयक के संबंध में या किसी अन्य विषय के संबंध में किसी भी सदन को संदेश भेज सकता है और उसके संदेश पर यथाशीघ्र विचार करना आवश्यक होता है।

संसद के दोनों सदनों का गठन मुख्यतः निर्वाचन के द्वारा होता है चाहे वह प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष। किंतु राष्ट्रपति को दोनों सदनों में कुछ सदस्यों के नाम निर्दिष्ट करने की शक्ति दी गई है।

राष्ट्रपति राज्यसभा में ऐसे 12 व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, और सामाजिक विषयों का विशेष ज्ञान या व्यवहारिक अनुभव हो। अनुच्छेद 80 (1),

अनुच्छेद 331 के अनुसार राष्ट्रपति को यह शक्ति भी प्रदान की गई है कि यदि उसको यह लगता है कि लोकसभा में ऐंग्लो-इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह लोकसभा में उस समुदाय के दो सदस्यों को मनोनीत कर सकता है।

राष्ट्रपति की कुछ प्रतिवेदनों और कथनों को संसद के समक्ष रखने की शक्ति और कुछ कर्तव्यों के माध्यम से वह संसद के सम्पर्क में आता है। राष्ट्रपति का यह कर्तव्य है कि संसद के समक्ष यह दस्तावेज रखवाएं-

  • वार्षिक वित्तीय बजटऔर अनुपूरक विवरण
  • भारत सरकार के लेखाओं के संबंध में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन।
  • वित्त आयोग की सिफारिश और उसके साथ उन पर की गई कार्यवाही का स्पष्टीकारक ज्ञापन
  • संघ लोकसेवा आयोग का प्रतिवेदन
  • अनुसूचित जातियों और जनजातियों के विशेष अधिकारी का प्रतिवेदन ।
  • पिछड़े वर्ग का आयोग का प्रतिवेदन।
  • भाषायी अल्पसंख्यकों के विशेष अधिकारों का प्रतिवेदन।

2.विधेयक पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी या सिफारिशः निम्नलिखित विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी या सिफारिश के बिना संसद में पेश नहीं किये जा सकतेः

  • नये राज्य के निर्माण या वर्तमान राज्यों की सीमाओं में परिवर्तत संबंधी विधेयक।
  • ऐसे विधान की सिफारिश करने की अनन्त शक्ति राष्ट्रपति को दी गई है जिससे वह ऐसा विधान प्रारंभ करने के पूर्व प्रभावित राज्यों के विचार प्राप्त कर सके।
  • धन विधेयक (अनुच्छेद 117 (1))।
  • कोई विधेयक, जो सही अर्थो में  धन विधेयक नही है किंतु जिससे भारत की संचित निधि से व्यय करना पड़ेगा,
  • जिस कराधान से राज्य का हित हो, उस कराधान पर प्रभाव डालने वाले विधेयक।
  • अनुच्छेद 304 के अनुसार व्यापार की स्वतंत्रता पर निर्बधन अधिरोपित करने वाले राज्य विधेयक।

3.राज्य विधानमंडल द्वारा बनायी जाने वाली विधि के संबंध में राष्ट्रपति की शक्तिः राज्य विधानमंडल द्वारा बनायी जाने वाली विधि के संबंध में राष्ट्रपति को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैः

  • यदि राज्य विधानमंडल कोई ऐसा विधेयक पारित करता है जिससे उच्च न्यायालय की अधिकारिता प्रभावित होती है तो राज्यपाल उस विधेयक पर अनुमति नहीं देगा और उसे राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित कर देगा।
  • राज्य विधानमंडल द्वारा संपत्ति प्राप्त करने के लिए पारित विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित रखा जाएगा।
  • किसी राज्य के अन्दर दूसरे राज्यों के साथ व्यापार आदि पर प्रतिबंध लगाने वाले विधेयकों को विधान सभा में पेश करने के पहले राष्ट्रपति की अनुमति लेनी होगी।
  • वित्तीय आपात स्थिति के प्रवर्तन की स्थिति में राष्ट्रपति निर्देश दे सकता है कि सभी धन विधेयकों को राज्य विधानसभा में पेश करने से पहले उन पर राष्ट्रपति का अनुमोदन लिया जाये।

4.अध्यादेश जारी करने की शक्तिः राष्ट्रपति की सबसे महत्वपूर्ण विधायी शक्ति आध्यादेश जारी करने की है। यह शक्ति उसे अनुच्छेद 123 के अंतर्गत प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 123 (1) के अनुसार जब संसद का सत्र न चल रहा हो, तब राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है। इस प्रकार का जारी किया गया अध्यादेश उतना ही प्रभावपूर्ण एवं शक्तिशाली होगा जितना कि संसद द्वारा पारित किया गया कानून, परंतु यहअध्यादेश संसद का अगला सत्र  प्रारंभ होने के छः सप्ताह पश्चात समाप्त समझे जाएंगे। यदि संसद चाहे तो उसके द्वारा इस अवधि के पूर्व भी इन अध्यादेशों को समाप्त किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में,  राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति तभी होती है जब दोनों में से किसी एक सदन का सत्रावसान करना संभव नहीं है। जब दोनों सदन सत्र में होते हैं तब उसे यह शक्ति उपलब्ध नहीं होती । राष्ट्रपति इस शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कर सकता है।

5.विशेषाधिकार या वीटो की शक्तिः संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक अधिनियम तब तक नहीं बन सकता जब तक कि उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति नहीं मिल जाती। जब दोनों सदनों से पारित किये जाने के पश्चात कोई विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो वह निम्नलिखित तीन बातों में से कोई एक कर सकता है-

  • वह यह घोषित कर सकता है कि वह विधेयक को अनुमति देता है,
  • वह यह घोषित कर सकता है कि वह विधेयक अनुमति देने से इंकार करता है,
  • यदि वह धन विधेयक नही है तो तो पुनर्विचार के लिए पुनः संसद में भेज सकता है। धन विधेयक को पुनर्विचार के लिए नहीं लौटाया जा सकता। जहां कार्यपालिका और विधानमंडल एक-दूसरे से पृथक और स्वाधीन हैं, वहां कार्यपालिका विधायन के लिए उत्तरदायी नहीं होती है। ऐसी स्थिति में यह उचित होगा कि उसे अवांछनीय विधायन रोकने के लिए कुछ नियंत्रण का अधिकार हो।

भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति

विश्व के कुछ देशों के राष्ट्राध्यक्षों की वीटो शक्तियां और भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्तियों का तुलनात्मक विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति आत्यंतिक, निलंबनकारी और जेबी वीटो का संयोजन है।  संविधान के अनुसार किये गये कार्यो तथा परम्पराओं के आधार पर यह माना जाता है कि राष्ट्रपति को निम्नलिखित तीन प्रकार की वीटो शक्तियां प्राप्त हैं-

1.आत्यांतिक वीटोः जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनुमति प्रदान नहीं करता तो वह विधेयक समाप्त हो जाता है। भारत के संविधान में पूर्ण मंत्रिमंडलीय दायित्व होते हुए भी इस उपबंध को समाविष्ट किया गया है। राष्ट्रपति सामान्यतया इस शक्ति का प्रयोग गैर-सरकारी विधेयकों के संदर्भ में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जिसमें विधेयक के पारित हो जाने के पश्चात और दूसरा मंत्रिमंडल जिसका संसद में बहुमत है राष्ट्रपति को उस विधेयक के विरूद्ध वीटो के प्रयोग की सलाह देता है। ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति के लिए वीटो का प्रयोग सवैधानिक होगा।

2.निलंबनकारी वीटोः जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनुमति देने से स्पष्ट रूप से इंकार करने के स्थान पर विधेयक या इसके किसी भाग को पुनर्विचार के लिए वापस कर देता है तो यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति ने निलम्बनकारी वीटो का प्रयोग किया है पुनर्विचार के लिए वापस किया गया विधेयक यदि पुनः सामान्य बहुमत से पारित कर दिया जाता है, जो उस स्थिति में राष्ट्रपति की अपनी अनुमति देने के लिए विवश होना पड़ेगा। भारत में राष्ट्रपति द्वारा लौटाए जाने का प्रभाव निलंबन मात्र होता है।

3.जेबी वीटोः अनुच्छेद 111 के अनुसार यदि राष्ट्रपति किसी विधेयक को वापस करना चाहता है तो वह विधेयक को प्रस्तुत किए जाने के पश्चात यथाशीघ्र लौटा देगा। संविधान में इसके लिए कोई समय सीमा निश्चित नहीं की गयी है। समय-सीमा के अभाव में, भारत का राष्ट्रपति जेबी वीटो की शक्ति का प्रयोग करता है। इसे पॉकेट वीटो भी कहा जाता है । जब राष्ट्रपति अनुमति के लिए प्रस्तुत विधेयक पर न तो अनुमति देता है, न ही इंकार करता है अथवा न ही  उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है विशेषकर तब जब वह पाता है कि मंत्रिमंडल का पतन शीघ्र होने वाला है, तो यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति ने जेबी वीटो का प्रयोग किया है । उदाहरणस्वरूप इस वीटो का प्रयोग राष्ट्रपति (ज्ञानी जैल सिंह) ने 1986 में संसद द्वारा पारित भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक के संदर्भ में किया था। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने  इसे न तो अनुमति दी, न ही इंकार किया और न ही संसद में पुनर्विचार के लिए वापस भेजा। अभी तक यह राष्ट्रपति की जेब में ही है।

सैन्य शक्तियाँ 

  • राष्ट्रपति भारत की तीनों सेनाओं अर्थात जल, थल और वायु सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है। इन सेनाओं के प्रमुखों की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करता है। राष्ट्रपति को युद्ध या शान्ति की घोषणा करने या रक्षा बलों को अभिनियोजित  करने की शक्ति है किंतु संसद इन शक्तियों के प्रयोग को नियंत्रित कर सकती है। भारत के राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियां अमेरिकी राष्ट्रपति या इंग्लैंड के सम्राट की तुलना में सीमित हैं।
  • संविधान में यह उपबंध है कि संसद की मंजूरी के अभाव में राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग करने में सक्षम नहीं होगा। उदाहरणार्थ- वे कार्य जिनमें धन व्यय होगा (अनुच्छेद 114(3) जैसे सैन्यबलों की भर्ती, प्रशिक्षण और अनुरक्षण।
  • राजनयिक शक्तियाँ  राजनयिक शक्ति एक व्यापक विषय है । इसमें वे सभी विषय आते है जो संघ को किसी विदेशी राज्य के संस्पर्श में लाते हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों में राष्ट्रपति देश का प्रतिनिधित्व करता है। वह राजदूतों, व्यापार दूतों और राजनयिक प्रतिनिधियों की नियुक्त करता है। संसद के अनुसर्मथन के अधीन रहते हुए अन्य देशों से संधि और करार करने का कार्य राष्ट्रपति, मंत्रियों की सलाह के आधार पर करता है ।
  • विधान के विषय के रूप में  राजनयिक प्रतिनिधित्व संसद का विषय है। किन्तु राज्य का प्रधान होने के नाते भारत का राष्ट्रपति अंतरराष्ट्रीय क्रियाकलापों में भारत का प्रतिनिधित्व करता है इसके अतिरिक्त अन्य देशों से भारत में आने वाले राजदूत अपने प्रमाण-पत्र राष्ट्रपति को ही प्रस्तुत करते है ।

न्यायिक शक्तियाँ  

कार्यपालिका को न्यायिक शक्ति प्रदान करने का उद्देश्य यह है कि यदि कोई न्यायिक भूल हुई हो तो उसे सुधार किया जा सके। इस प्रकार राष्ट्रपति को मुख्यता दो प्रकार की न्यायिक शक्तियां प्राप्त हैं-

1.क्षमादान की शक्तिः संविधान के अनुच्छेद-72 के अनुसार राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान किए गए हैं कि  वह किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा कर दे अथवा दंड कम कर दे या निलंबित कर दे अथवा दंड को किसी अन्य दंड में बदल दे। क्षमा से अभिप्राय यह है कि जिसमें अपराधी को सभी दंडों और निरहर्ताओं से मुक्ति मिल जाती है। किंतु क्षमा प्रदान करने अथवा दंड को कम करने की शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति निम्नलिखित परिस्थितियों में ही कर सकता है-

1.उन मामलों में जिनमें किसी व्यक्ति को केंद्रीय कानूनों के तहत दंडित किया गया हो ।

2.उन सभी मामलों में जिनमें मृत्युदंड न्यायालय द्वारा दिया गया हो।

3.उन मामलों में जिनमें दंड सैनिक न्यायालय द्वारा दिया गया हो।

केहर सिंह बनाम भारत संघ, 1989 विवाद के पश्चात उच्चतम न्यायालय ने क्षमादान की शक्ति के संबंध में निम्नलिखित सिद्वांत प्रतिपादित किए-

1.जो व्यक्ति राष्ट्रपति को क्षमादान के लिए आवेदन करता है उसे राष्ट्रपति के समक्ष मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है।

2.इस शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति के विवेकाधीन है। न्यायालय मार्ग दर्शन के सिद्वांत अधिकथित करने की आवश्यकता नहीं समझता ।

3.इस शक्ति का प्रयोग केंद्रीय सरकार की सलाह पर किया जायेगा।

4.राष्ट्रपति न्यायालय के निर्णय पर विचार करके उससे भिन्न मत अपना सकता है।

5.राष्ट्रपति के निर्णय का न्यायालय पुनर्विलोकन मारूराम के मामले में बताई गई सीमा में ही कर सकते है।

मारूराम के मामले में बताये गये निर्देश के अनुसार न्यायालय वहां हस्तक्षेप कर सकेगा, जहां राष्ट्रपति का निर्णय अनुच्छेद 72 के उद्देश्यों से पूर्णतया असंगत है या तर्कहीन, मनमाना, विभेदकारी है।

भारत के संविधान में क्रमशः अनुच्छेद-72 और 161 के अधीन राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल दोनों को ही क्षमादान की शक्ति प्राप्त है।

2.उच्चतम न्यायालय से परामर्श लेने का अधिकारः अनुच्छेद-143 के अनुसार जब राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत हो कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की सम्भावना है, जो ऐसी प्रकृति और व्यापक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है, तब वह उस प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय की राय मांग सकता है ।

वित्तीय शक्तियाँ

राष्ट्रपति को संविधान द्वारा कई वित्तीय शक्तियां प्रदान की गयी है। धन विधेयक तथा वित्त विधेयक को तभी लोकसभा में पेश किया जाता है, जब राष्ट्रपति उसकी सिफारिश करे। जिस विधेयक को प्रवर्तित किये जाने पर भारत की संचित निधि में व्यय करना पड़े, उस विधेयक को संसद में तभी पारित किया जायेगा, जब राष्ट्रपति उस विधेयक पर विचार विमर्श करने की सिफारिश संसद से करे। जिस कराधान में राज्य का हित सम्बद्ध है, उस कराधान से सम्बन्धित विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति से ही लोकसभा में पेश किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति प्रत्येक वर्ष वित्तमंत्री के माध्यम से वर्ष का बजट लोकसभा में पेश करवाता है तथा प्रत्येक पांच वर्ष की समाप्ति  पर वित्त आयोग का गठन करता है। राष्ट्रपति वित्त आयोग द्वारा की गयी प्रत्येक सिफारिश को, उस पर किये गये स्पष्टीकारक ज्ञापन संहित संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाता है।

आपात शक्तियाँ

राष्ट्रपति को निम्नलिखित आपातकालीन शक्तियां प्रदान की गयी हैं-

  • राष्ट्रीय आपात घोषित करने की (अनुच्छेद 352)
  • राज्यों में संवैधानिक तन्त्र की विफलता वर वहाँ आपातकाल घोषित करने की (अनुच्छेद-356),
  • वित्तीय आपात घोषित करने की (अनुच्छेद-360)।

 

राष्ट्रपति का विशेषाधिकार

संविधान द्वारा राष्ट्रपति को यह विशेषाधिकार प्रदान किया गया है कि वह अपने पद के किसी कर्तव्य के निर्वहन तथा शक्तियों के प्रयोग में किये जाने वाले किसी कार्य के लिए न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा ।

 

राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति

  • संविधान की भावना तथा संविधान सभा में इसके सदस्यों द्वारा व्यक्त किये गये विचारों के अनुसार राष्ट्रपति राष्ट्र का केवल औपचारिक प्रधान होगा, लेकिन मूल संविधान के अनुच्छेद 74 (1) में यह प्रावधान किया गया था कि राष्ट्रपति को उसके कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा इसका यह अर्थ लगाया जाता है कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है और वह अपने विवेक से भी संविधान के प्रावधानों के अनुसार अपने कृत्यों का निर्वहन कर सकता है।
  • इसी प्रावधान के कारण प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तथा तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद के बीच हिन्दू कोड विधेयक तथा चीन से सम्बन्ध आदि मामलों में काफी मतभेद था जिससे दोनों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। इसके बावजूद 1976 तक संविधान के इस प्रावधान को कायम रखा गया परन्तु 42वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 74 (1) में संशोधन करके व्यवस्था दी गयी कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद के सलाह के अनुसार ही कार्य करेगा और इस प्रकार राष्ट्रपति  को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य कर दिया गया, किन्तु 44वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 74 (1) में यह व्यवस्था कर दी गयी कि यदि राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद द्वारा कोई सलाह दी जाती है, तो वह मंत्रिपरिषद तो दी गयी सलाह पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है। इस प्रकार मंत्रिपरिषद द्वारा पुनर्विचार के बाद दी गयी सलाह पर राष्ट्रपति कार्य करने के लिए बाध्य है।

स्वतंत्रता पश्चात से अबतक के भारत के राष्ट्रपतियों की सूची

क्रमांक

राष्ट्रपति का नाम

कार्यकाल

तत्कालीन उपराष्ट्रपति का नाम

विशेष विवरण

         

1.

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(1884-1963)

26/01/1950 से 13/05/1962

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

राजेंद्र प्रसाद एक स्वतंत्रता सेनानी थे वह भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने। वे बिहार राज्य से थे। वे लगातार दो बार 1952 और 1957 के चुनावों में राष्ट्रपति चुने गए। वे इकलौते ऐसे राष्ट्रपति हैं जोकि दो बार राष्ट्रपति चुने गए।

2.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
(1888-1975)

13/05/1962 से 13/05/1967

डॉ. जाकिर हुसैन

डॉ. एस. राधाकृष्णन 1962 के चुनाव में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। वे दर्शनशास्त्री और लेखक थे। साथ ही वे आन्ध्र विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।

3.

डॉ. ज़ाकिर हुसैन
(1897-1969)

13/05/1967 से 03/05/1969

वराहगिरि वेंकट गिरि

डॉ. जाकिर हुसैन 1967 के चुनाव में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। जाकिर हुसैन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (A.M.U.) के कुलपति भी रहे। इन्हें पद्म विभूषण और भारत रत्न सम्मान भी प्राप्त हुआ। इनका देहान्त पदस्थ रहते हुए हो गया था। पदस्थ राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन के देहान्त के पश्चात वी.वी. गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति (3 मई 1969 - 20 जुलाई 1969 तक) बने। इनके बाद मु. हिदायतुल्लाह कार्यवाहक राष्ट्रपति (20 जुलाई 1969 - 24 अगस्त 1969 तक) रहे। हिदायतुल्लाह भारत के मुख्य न्यायाधीश (C.J.I.) थे और इन्हें आर्डर ऑफ ब्रिटिश इंडिया भी प्राप्त हुआ था।

4.

वराहगिरि वेंकट गिरि
(1894-1980)

24/08/1969 से 24/08/1974

गोपाल स्वरुप पाठक

वी.वी. गिरि 1969 के चुनाव में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। गिरि एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं जो कार्यवाहक राष्ट्रपति और राष्ट्रपति दोनों बने। वे भारत रत्न से भी सम्मानित हुए।

5.

फखरुद्दीन अली अहमद
(1905-1977)

24/08/1974 से 11/02/1977

बासप्पा दनप्पा जत्ती

फखरुद्दीन अली अहमद 1974 के चुनाव में राष्ट्रपति चुने गए। इनकी पदस्थ रहते हुए मृत्यु हो गयी। वे डॉ. ज़ाकिर हुसैन के बाद दूसरे ऐसे राष्ट्रपति हैं जो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के बाद बी.डी. जत्ती भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति (11 फरवरी 1977 - 25 जुलाई 1977 तक) बने। इससे पहले वह मैसूर राज्य के मुख्यमंत्री थे।

6.

नीलम संजीव रेड्डी
(1913-1996)

25/07/1977 से 25/07/1982

मुहम्मद हिदायतुल्लाह

नीलम संजीव रेड्डी 1977 के चुनाव में राष्ट्रपति चुने गए। वे आन्ध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे। रेड्डी आन्ध्र प्रदेश से चुने गए एकमात्र सांसद थे। वे 26 मार्च 1977 को लोक सभा के अध्यक्ष चुने गए और 13 जुलाई 1977 को यह पद छोड़ दिया और भारत के छठे राष्ट्रपति बने।

7.

ज्ञानी जैल सिंह
(1916-1994)

25/07/1982 से 25/071987

रामास्वामी वेंकटरमण

जैल सिंह 1982 के चुनाव में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। वे 1972 में पंजाब के मुख्यमंत्री बने और 1980 में भारत के गृहमंत्री बने।

8.

रामास्वामी वेंकटरमण
(1910-2009)

25/07/1987 से 25/07/1992

डॉ. शंकर दयाल शर्मा

1987 के चुनाव में आर. वेंकटरमण भारत के राष्ट्रपति बने। 1942 
में वेंकटरमण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में जेल भी गए। जेल से छूटने के बाद वे कांग्रेस पार्टी के सांसद रहे। इसके अतिरिक्त वे भारत के वित्त एवं औद्योगिक मंत्री और रक्षा मंत्री भी रहे।

9.

डॉ. शंकर दयाल शर्मा
(1918-1999)

25/07/1992 से 25/07/1997

के. आर. नारायणन

डॉ. शंकर दयाल शर्मा 1992 के चुनाव में राष्ट्रपति चुने गए। शर्मा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारत के संचार मंत्री रहे। और इसके अतिरिक्त वे आन्ध्र प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र के राज्यपाल भी रहे।

10.

के. आर. नारायणन
(1920-2005)

25/07/1997 से 25/07/2002

कृष्ण कांत

1997 के चुनाव में के. आर. नारायण भारत के राष्ट्रपति चुने गए। नारायणन चीन, तुर्की, थाईलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत रहे। उन्हें विज्ञान और कानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त थी। वे जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (J.N.U.) के कुलपति भी रह चुके हैं।

11.

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
(1931-2015)

25/07/2002 से 25/07/2007

भैरोंसिंह शेखावत

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम 2002 के चुनाव में भारत के 11 वें राष्ट्रपति चुने गए। कलाम एक वैज्ञानिक थे जिन्होंने मिसाइल और परमाणु हथियार बनाने में मुख्य योगदान दिया। अब्दुल कलाम को भारत का मिसाइल मैन भी कहा जाता है। इन्हें भारत रत्न के सम्मान से सम्मानित किया गया।

12.

श्रीमती प्रतिभा पाटिल
(जन्म 1934)

25/07/2007 से 25/07/2012

मोहम्मद हामिद अंसारी

2007 के चुनाव में प्रतिभा पाटिल भारत की 12 वीं राष्ट्रपति चुनी गयीं। प्रतिभा पाटिल भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति बनीं। वह राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल भी थी।

13.

प्रणव मुखर्जी
(जन्म 1935)

25/07/2012 से 25/07/2017

मोहम्मद हामिद अंसारी

प्रणव मुखर्जी 2012 के चुनाव में राष्ट्रपति चुने गए। प्रणब मुखर्जी भारत सरकार में वित्त मंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके हैं।

14

रामनाथ कोविंद
(जन्म 1 अक्टूबर 1945)

25/07/2017 से अब तक

वेंकैया नायडू
 

 

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