• Have Any Questions
  • +91 6307281212
  • smartwayeducation.in@gmail.com

Study Material



      भारत में अंग्रेजी उपनिवेशवाद के समय से ही स्थानीय शासन के महत्व को समझा जाने लगा था। प्रशासन की इकाई जिला स्थापित की गई थी एवं इसकी प्रशासन व्यवस्था जिलाधिकारी के अधीन थी। वर्ष 1882 में लार्ड रिपन के शासन के कार्यकाल में स्थानीय स्तर पर प्रशासन में लोगों को सम्मिलित करने के कुछ प्रयास किए गए एवं जिला बोर्डों की स्थापना की गई। राष्ट्रीय आंदोलन द्वारा महत्व दिए जाने एवं ब्रिटिश शासन द्वारा लोगों को अपने प्रशासन में सम्मिलित करने के लिए 1930 एवं 1940 में अनेक प्रांतों में पंचायती राज संबंधी कानून बनाए गए। गौरतलब है कि संविधान के प्रथम प्रारूप में पंचायती राज व्यवस्था का कोई उल्लेख नहीं था। इसे संविधान के राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 40 में गांधी जी के दबाव के परिणामस्वरूप स्थान दिया गया।

स्थानीय स्वायत्त शासन के दो मूल कारण हैं-

  • पहला, यह व्यवस्था शासन को निचले स्तर तक लोकतांत्रिक बनाती है, 
  • दूसरा, स्थानीय लोगों की भागीदारी सक्षम बनती है, साथ ही लोगों को शासन की कला का ज्ञान होता है।

स्थानीय स्व-शासन का तात्पर्य है- स्थानीय लोगों की भागीदारी द्वारा स्थानीय शासन की व्यवस्था सुचारू रूप से करना और उस व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाना, जिससे समस्या का निदान भी हो और लोकतांत्रिक स्वरूप की निचले स्तर तक स्वस्थ व्यवस्था भी स्थापित हो।

Videos Related To Subject Topic

Coming Soon....