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जनजातीय क्षेत्रों में स्थानीय शासन का स्वरूप

 जनजातीय क्षेत्रों के स्थानीय शासन के विषय में संविधान की पांचवी एवं छठी अनुसूची में विस्तार पूर्वक चर्चा की गई है जिसके मुख्य प्रावधान निम्न हैं-

छठी अनुसूची

 इस अनुसूची का संबंध जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से है जो असम,मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम में लागू होती है । यह अनुच्छेद 244(2) एवं 275 (1) के  उपबन्धों को क्रियान्वित करती है । प्रत्येक जनजातीय क्षेत्र को स्वायत्त क्षेत्र के रूप में प्रशासित किया जाता है ।  ये जिले राज्य की कार्यपालिका शक्ति के अधीन हैं किंतु उसमें जिला परिषदें  अथवा क्षेत्रीय परिषदें बनाई जाती हैं जो कुछ विधाई एवं न्यायिक कृत्य करती हैं । इन परिषदों में जनता के प्रतिनिधि होते हैं तथा उन्हें कुछ विनिर्दिष्ट विषयों पर विधि बनाने की शक्ति होती है।

जिला परिषदों की संरचना

 जिला परिषद में अधिकतम 30 सदस्य होते हैं,जिनमें 4 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत एवं 6 सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित होते हैं। परिषदों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है एवं आपातकाल में अधिकतम 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है । आपातकाल की उद्घोषणा की समाप्ति की तिथि से कार्यकाल में अधिकतम 6 माह की वृद्धि ही की जा सकती है। जिला परिषद के सदस्यों की संख्या समय-समय पर निर्धारित होती है ।

जिला परिषद के कार्य

  • वन प्रबंधन
  • जल स्रोतों के उपयोग का विनियमन
  • झूम कृषि व अन्य कृषि पद्धतियों का विनियमन
  • संपत्ति के उत्तराधिकार का विनियमन
  • विवाह तथा विवाह विच्छेद का विनियमन
  • किसी समुदाय के प्रमुख की नियुक्ति
  • उच्च न्यायालय की अधिकारिता के अधीन ग्राम न्यायालयों की स्थापना

राष्ट्रपति एवं राज्यपाल क्रमशः केंद्रीय एवं प्रांतीय अधिनियमों को उक्त क्षेत्र में लागू करने से मना कर सकते हैं । जिन विषयों के विधायन पर परिषद की अधिकारिता होगी,वहां राज्य विधायन की अधिकारिता नहीं होगी तथा परिषद अधिसूचना द्वारा ऐसी विधियों को लागू करने का निर्देश दे सकती है परिषदों को व्यापक सिविल या दांडिक शक्तियां दी जा सकती हैं।

 जिला परिषद का महत्त्व यह है कि जनजातीय संस्कृति का संरक्षण,जनजातीय समुदाय का सामाजिक आर्थिक विकास एवं उनको मुख्यधारा में जोड़ने में इनसे मदद मिलेगी ।

पांचवी अनुसूची

 पांचवी अनुसूची असम, मेघालय,त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्य को छोड़कर सभी राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों पर लागू होती है । इस प्रकार इसमें अनुसूचित क्षेत्रों की पहचान का उल्लेख किया गया है । पांचवी अनुसूची संविधान के अनुच्छेद 244 (1) को क्रियान्वित करती है । राष्ट्रपति राज्यपाल की अनुशंसा पर ऐसे क्षेत्रों की पहचान करता है । ऐसे क्षेत्रों में राज्यपाल को विशेष उत्तरदायित्व सौपें गए हैं । राज्य की कार्यपालिका शक्ति पांचवी अनुसूची के अधीन है । राज्यपाल से यह अपेक्षा है कि वह प्रतिवर्ष अनुसूचित क्षेत्रों के बारे में राष्ट्रपति को प्रतिवेदन सौपें और राष्ट्रपति के मांगे जाने पर वह प्रतिवेदन प्रस्तुत करें ।

जनजातीय सलाहकार परिषद संरचना एवं कार्य

  • अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्यों में जनजाति सलाहकार परिषद की स्थापना का प्रावधान है । साथ ही उन राज्यों में जहां जनजातियों निवास करती हैं लेकिन वह अनुसूचित क्षेत्र घोषित नहीं है, में भी ऐसी परिषद में स्थापित की जा सकती हैं ।
  • इसके लिए राष्ट्रपति द्वारा आवश्यक दिशा निर्देश जारी करना अनिवार्य है । ऐसी परिषदों की सदस्य संख्या अधिकतम 20 होगी जिसमें तीन चौथाई सदस्य विधान सभा के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए जाएंगे या संख्या कम होने पर जनजातीय समुदाय के अन्य लोगों को लिया जाएगा । परिषद का मुख्य कार्य जनजातियों का कल्याण एवं उसकी प्रगति है ।
  • जनजाति सलाहकार परिषद का यह कर्तव्य है कि वह जनजातीय हितों के संरक्षण एवं उन्नयन हेतु राज्यपाल को सलाह दे  राज्यपाल को यह निर्देश देने का प्राधिकार है कि संसद या राज्य विधानमंडल का कोई विशिष्ट अधिनियम किसी अनुसूचित क्षेत्र में लागू नहीं होगा या कुछ उपांतरणों  के साथ लागू होगा । संसद विधान बनाकर पांचवी अनुसूची में संशोधन कर सकती है । ऐसा संशोधन सामान्य संशोधन होगा ।

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