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अल्पसंख्यकों के लिए उपबंध

संविधान में दो प्रकार के अल्पसंख्यकों-धार्मिक व भाषायी अल्पसंख्यकों का उल्लेख हैं हालाकि संविधान में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कहीं पर भी नहीं है।

केंद्र सरकार ने पांच समुदायों- मुसलमान, सिख, ईसाई बौद्व तथा पारसियों को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक घोषित किया है।

भाषायी अल्पसंख्यक, नागरिकों का वह समूह है जिनकी मातृभाषा, राज्य अथवा राज्य के किसी भाग के बहुसंख्यकों की भाषा से भिन्न है। इस प्रकार भाषायी अल्पसंख्यक राज्य स्तर पर होते हैं।

संविधान में अल्पसंख्यकों के सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक हितों के लिए विशेष उपबंध व उपाय हैं। इनमें से कुछ उपाय भाषायी तथा धार्मिक दोनों अल्पसंख्यकों के लिए समान हैं, जबकि कुछ धर्मों के लिए अलग-अलग हैं। ये उपबंध निम्नलिखित हैं।

धार्मिक भाषायी अल्पसंख्यक

1.नागरिकों के किसी भी वर्ग जिसकी अपनी भाषा, लिपि अथवा संस्कृति है, उसे उनके संरक्षण का मौलिक अधिकार है (अनुच्छेद 29)

2.राज्य अथवा राज्य की सहायता पर निर्भर किसी भी शैक्षणिक संस्थान में धर्म, समुदाय, जाति व भाषा के आधार पर प्रवेश पर रोक नहीं होगी (अनुच्छेद 29)।

3.सभी भाषायी अथवा धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थान स्थापित करने व उनका प्रशासन चलाने का मौलिक अधिकार होगा (अनुच्छेद 30), उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि इस अधिकार के अंतर्गत अल्पसंख्यकों को अपने बच्चों को उनकी अपनी भाषा में शिक्षा देने का अधिकार भी सम्मिलित है  ।

4.किसी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान की संपत्ति के अधिग्रहण हेतु राज्य द्वारा तय क्षतिपूर्ति राशि से भाषायी अथवा धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए सुनिश्चित मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए (अनुच्छेद 30)

5.शिक्षण संस्थानों को दी जाने वाली सहायता के संदर्भ में राज्य किसी भी शिक्षण संस्थान के साथ इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगा कि वह किसी भाषायी अथवा धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के प्रबंधन में है (अनुच्छेद 30)।

भाषायी अल्पसंख्यक

1.जब राष्ट्रपति (यदि मांग की जाय) इस बात से संतुष्ट हो कि किसी राज्य की जनसंख्या का एक सारपूर्ण भाग उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा के लिए राज्य की मान्यता चाहता है तो वह ऐसी भाषा को राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने का निर्देश दे सकता है।

2.प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को अपनी पीड़ा निवारण हेतु संघ अथवा राज्य के किसी भी अधिकारी या प्रधिकारी को राज्य अथवा संघ में उपयोग की जानेवाली भाषा में आवेदन देने का अधिकार है। अर्थात कोई भी आवेदन इस आधार पर निरस्त नहीं किया जा सकता कि वह राजभाषा में नहीं है।

3.प्रत्येक राज्य अथवा स्थानीय प्राधिरण को भाषायी अल्पसंख्यक समूह के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर उनकी मातृभाषा में निर्देश देने हेतु उपयुक्त सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी। राष्ट्रपति इस संबंध में आवश्यक निर्देश दे सकता है।

4.भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए संविधान में किए गए सुरक्षापायों से संबंधित मामलों की जांच हेतु राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी नियुक्त करेगा जो राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट देगा। राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के समक्ष प्रस्तुत करेंगे व संबंधित राज्य सरकारों को भेजेंगे।

        1992 में, संसद  ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिनियम लागू किया । इस अधिनियम के अंतर्गत 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग गठित हुआ, जिसे सांविधिक दर्जा प्राप्त है। इस आयोग ने, 1978 में गठित गैर-सांविधिक अल्पसंख्यक आयोग का स्थान ले लिया। इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पांच सदस्य केंद्र द्वारा तीन वर्ष के लिए नामांकित किए जातें है। यह योग अल्पसंख्यकों के विकास का मूल्यांकन संविधान के, केंद्र तथा राज्य विधियों में अल्पसंख्यकों को प्रदान किए गए अधिकारों की देख-देख करता है और उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिश करता है।

अल्पसंख्यकों के लिए उपबंध

संविधान में दो प्रकार के अल्पसंख्यकों-धार्मिक व भाषायी अल्पसंख्यकों का उल्लेख हैं हालाकि संविधान में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कहीं पर भी नहीं है।

केंद्र सरकार ने पांच समुदायों- मुसलमान, सिख, ईसाई बौद्व तथा परसियों को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक घोषित किया है।

भाषायी अल्पसंख्यक, नागरिकों का वह समूह है जिनकी मातृभाषा, राज्य अथवा राज्य के किसी भाग के बहुसंख्यकों की भाषा से भिन्न है। इस प्रकार भाषायी अल्पसंख्यक राज्य स्तर पर होते हैं।

संविधान में अल्पसंख्यकों के सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक हितों के लिए विशेष उपबंध व उपाय हैं। इनमें से कुछ उपाय भाषायी तथा धार्मिक दोनों अल्पसंख्यकों के लिए समान हैं, जबकि कुछ धर्मों  के लिए अलग-अलग हैं। ये उपबंध निम्नलिखित हैं।

 

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