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अनुसूचित जाति जनजातियों के लिए उपबंध

संविधान के भाग 10 में अनुच्छेद 244 व 244-क में अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए विशेष उपबंध किये गये हैं। हालाकि अधिकांश उपबंध अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए समान है, पर कुछ उपबंध दोनों के लिए भिन्न है । इन उपबंधों को निम्नलिखित विस्तृत श्रेणियों में वर्गीकृति किया जा सकता है ।

       1.स्थायी व अस्थायी-कुछ उपबंध संविधान में स्थायी है परंतु कुछ उपबंध एक निश्चित समयावधि के लिए कार्यशील होते हैं।

2.संरक्षणशील व विकासशील- कुछ उपबंध अनुसूचित जाति व जन जातियों को किसी प्रकार के अन्याय व शोषण से सुरक्षा देने हेतु तथा कुछ उनके सामाजिक आर्थिक हितों के विकास के लिए हैं।

            हालाकि संविधान में किसी जाति या जनजाति को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति नहीं बताया गया है । राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेश की जाति व जनजाति को अनुसूचित करने का अधिकार राष्ट्रपति पर छोड़ा गया है अतः विभिन्न राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में अनुसूचित जाति व जनजाति की सूचियां भिन्न भिन्न है । राज्यों के मामलों में राष्ट्रपति, राज्यपाल से सलाह लेकर सूचना जारी करता है। लेकिन किसी जाति को राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई सूची में सम्मिलित करना अथवा सूची से हटाने का कार्य संसद द्वारा किया जाता है न की राष्ट्रपति द्वारा जारी सूचना द्वारा। राष्ट्रपति द्वारा जारी अनेक आदेशों में विभिन्न राज्यों की अनुसूचित जातियों और जनजातियों का उल्लेख है और संसद द्वारा संशोधित की गयी है ।

अनुसूचित जाति जन जातियों के लिए विभिन्न संवैधानिक उपाय इस प्रकार है-

1.संसद व राज्य विधायिका में अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण जनसंख्या अनुपात के आधार पर होगा । प्रारंभ में यह आरक्षण दस वर्षो (1960 तक) के लिए था लेकिन इसे तब से हर बार दस वर्षो के लिए बढ़ा दिया जाता है । 79 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1999 के अंतर्गत अब इसे 2010 तक बढ़ा दिया गया है ।

2.केंद्र व राज्य की लोकसेवाओं, प्रशासन की कार्य क्षमता से किसी प्रकार का समझौता  किए बिना, अनुसूचित जाति व जनजातियों के दावों पर विचार किया जाता है । हालाकि 82वें संविधान संशोधन अधिनियम 2000 में, केन्द्र व राज्य लोकसेवाओं में अनुसूचित जाति व जनजातियों को किसी प्रतियोगिता अर्हता अंकों, अथवा मूल्यांकन के स्तर पर छूट देने, पदोन्नति में आरक्षण देने के सम्बंध में उपबंध किये गये हैं।

3.राष्ट्रपति अनुसूचित जाति के संवैधानिक सुरक्षापायों के मामलों की जांच करने हेतु एक राष्ट्रीय आयोग गठित करेगा, जो इसकी रिपोर्ट उन्हें देगा (अनुच्छेद 368)। इसी प्रकार राष्ट्रपति, अनुसूचित जनजाति के संवैधानिक सुरक्षापायों के मामलों की जांच करने हेतु एक राष्ट्रीय आयोग गठित करेगा, जो इसकी रिपोर्ट उन्हें देगा (अनुच्छेद 338 क)। राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के समक्ष प्रस्तुत करेगा तथा यह भी बताएगा कि इस दिशा में कौन से कदम उठाये गये हैं। मूलतः संविधान द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों हेतु सयुक्त राष्ट्रीय आयोग की व्यवस्था की गयी थी । 89वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति  के संयुक्त आयोग के दो भागों में विभाजित कर दिया गया है ।

4.राष्ट्रपति अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए तथा अनुसूचित क्षेत्रों के उपबंध के लिए एक आयोग गठित करेगा जो अपनी रिपोर्ट उन्हें देगा । वह ऐसे आयोग का गठन किसी भी समय परंतु अनिवार्य रूप से संविधान प्रारंभ होने के 10 वर्ष भीतर कर सकता है। अतः 1960 में एक आयोग का गठन किया गया । इसका गठन यू0एन0 देवर के नेतृत्व में हुआ तथा इसने अपनी रिपोर्ट 1961 में प्रस्तुत की । चार दशक पश्चात् 2002 में दिलीप सिंह भूरिया के नेतृत्व में दूसरे आयोग का गठन हुआ।

5.केंद्र अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं के क्रियान्वयन तथा अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन के स्तर को उठाने के लिए आर्थिक सहायता देगा ।  और इसके अतिरिक्त केंद्र राज्य को इन योजनाओं का निर्धारण करने एवं इनको क्रियान्वित करने का निर्देश दे सकता है।

6.संविधान की पांचवी व छठी अनुसूची में अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों के लिए विशेष प्रशासनिक व्यवस्था पर विचार किया गया है । इन क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्र और जनजातिये क्षेत्र कहा गया है।

7.मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीस गढ़, व उड़ीसा में जनजाति कल्याणमंत्री नियुक्त किया जायेगा । उसे इसके अतिरिक्त अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति व अन्य कार्यो का प्रभार भी दिया जा सकता है । प्रारंभ में यह उपबंध केवल बिहार, मध्य प्रदेश, व उडी़सा के लिए लागू था, जिसे वर्ष 2006 के 94 वें संविधान संशोधन अधिनियम से बदल दिया गया है । अब बिहार को एक उपबंध की बाध्यता से मुक्त कर दिया गया है क्योंकि विभाजन के बाद उसकी अधिकांश जनजातीय जनसंख्या नवगठित राज्य झारखंड चली गयी है । इसी प्रकार का समान उपबंध दो अन्य नवगठित राज्यों झारखंड व छत्तीसगढ़ के लिए कर दिया गया है। (अनुच्छेद 164)।

8.राज्य अनुसूचित जाति व जनजातियों के विकास के लिए विशेष उपबंध बना सकता है (अनुच्छेद 15-4)। इसके अलावा राज्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के शैक्षणिक उत्थान के लिए इस वर्ष के विद्यार्थियों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में, जिनमें निजी संस्थान भी शामिल है, में प्रवेश के लिए विशेष उपबंध करेगा संस्थान चाहे राज्य से अनुदान प्राप्त हो या नहीं तथापि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में यह उपबंध लागू नहीं होगा (अनुच्छेद 15-5) यह उपबंध 2005 के 93वें संविधान संशोधन अधिनियम से जोड़ा गया है यह दोनों उपबंध अनुच्छेद 15 में दिए गए ’’गैर विभेदता के नियम’ के अपवाद होंगे।

9.अनुसूचित जनजातियों के हितों के संरक्षण के संदर्भ में, दो मौलिक अधिकारों (भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र आबाध संचरण और किसी भाग में निवास करने और बस जाने का अधिकार) को प्रतिबंधित किया जा सकता है (अनुच्छेद 19)।

10.राज्य को निर्देश है कि वे अनुसूचित जाति व जनजातियों के शैक्षिक व आर्थिक हितों पर विशेष ध्यान देगा तथा सामाजिक अन्याय व किसी भी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करेगा (अनुच्छेद 46)।

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