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सल्तनतकालीन उद्योग एवं व्यापार

  • सातवीं शताब्दी से दसवीं शताब्दी तक का युग भारत तथा अरब जगत के मध्य व्यापारिक संबंधों का स्वर्णकाल कहा गया है।
  • व्यापारियों के समूह को तुज्जार-ए-खास कहा जाता था।
  • मुहम्मद बिन तुगलक का काल व्यापारिक गतिविधियों के लिए चिरस्मरणीय रहेगा।
  • हिन्दुस्तान में लोदी शासक स्वयं ही एक व्यापारी थे।
  • देश के विभिन्न भागों में व्यापारिक वस्तुओं पर कर प्राप्त करने के लिए चैकियां स्थापित की गयी थी जिसका सर्वप्रथम उल्लेख मिनहाउद्दीन सिराज के तबकाते नासिरी में मिलता है।
  • चार पहिए वाले रथ तथा इक्के का वर्णन भी सल्तनत काल में मिलता है। नौका निर्माण का उद्योग इस काल में काफी जोरों पर था।
  • मध्यकाल में अनेक व्यापारिक मार्गों, सूर्य मंदिर तथा शेख बहाउद्दीन जकारिया की खानकाह होने के कारण मुल्तान सर्वाधिक प्रसिद्ध था
  • देवल (गुजरात) व्यापारिक दृष्टि से मध्यकाल में समृद्ध माना गया है। यह अन्तर्राष्ट्रीय बन्दरगाह का कार्य करता था।
  • विदेशी यात्री वार्थेमा ने विभिन्न देशों से प्रतिवर्ष खंभात आने वाले लगभग तीन सौ विदेशी जहाजों का उल्लेख  किया है। खंभात का रेशम मूल्यवान वस्तुओं में से एक था जिस पर अलाउद्दीन खिलजी ने नियंत्रण लगा दिया था।
  • अन्हिलवाड़ नगर व्यापारियों के लिए तीर्थस्थान के समान था। यहां पर बड़ी संख्या में मुस्लिम व्यापारी रहते थे।
  • देवगिरि के निवासी अधिकतर व्यापारी थे जो रत्नों का व्यापार करते थे। यहां के रंग-बिरंगे वस्त्रों की तुलना अमीर खुसरो ने रंग-बिरंगे फूलों से की है।
  • बंगाल चावल एवं रेशम के लिए प्रसिद्ध था। प्रसिद्ध चीनी यात्री माहुआन वहां पर रेशम के कीड़े पाले जाने का उल्लेख करता है।
  • मध्यकाल में बनारस एक विशेष प्रकार की पगड़ियों के निर्यात के लिए प्रसिद्ध था।

 

आयात

  • घोड़े-विभिन्न देशों से मंगाये जाने वाले व्यापारिक माल में घोड़ों का आयात सर्वोपरि था। इब्नबतूता एवं मार्कोपोलो तुर्किस्तान एवं ईरान से घोड़े के निर्यात का उल्लेख करता है
  • अस्त्र-शस्त्र- घोड़ों के बाद हथियारों का विशेष स्थान था। मुहम्मद बिन तुगलक के काल में सैयद अबुल-हसन अल इबादी राज्य के पैसे से अस्त्रों का व्यापार करता था

 

दास

  • इल्तुतमिश के दरबार में चीनी व्यापारियों द्वारा तुर्कीदास लाने का उल्लेख मिलता है। अलाउद्दीन के काल में खिताई एवं तुर्की दास लड़कों एवं लड़कियों के आयात का प्रसंग मिलता है। अदन एवं मिस्र से बराबर दासों का व्यापार होता रहता था।
  • मेवे तथा फल-ईरान से भारत में अंगूर आता था। इब्नबतूता लिखता है कि भारत आने वाले विदेशी यात्रियों द्वारा भेंट में लाई गई वस्तुओं में सूखे मेवे प्रमुख थे।

 

सिक्के

  • प्रारम्भ में दिल्ली सुल्तानों ने भारत में प्रचलित सिक्कों को अपनाया। इसीलिए मुहम्मद गोरी के सिक्कों पर उसका नाम तथा दूसरी ओर देवी लक्ष्मी की आकृति अंकित मिली है
  • मुहम्मद बिन तुगलक ने मुद्रा संबंधी महत्वपूर्ण प्रयोग किये। एडवर्ड टामस उसे ‘धनवानों का युवराज’ कहता है। उसने सोने का नया सिक्का चलाया जिसे इब्नबतूता दीनार कहता है।
  • उसने सोने एवं चांदी के सिक्कों के बदले अदली नामक सिक्के जारी किये जिसका वजन 140 ग्रेन चांदी के बराबर था।
  • फिरोज तुगलक ने अद्धा एवं बिख नामक क्रमशः आधे एवं चौथाई जीतल के तांबा और चांदी मिश्रित दो सिक्के चलाए।
  • तांबे के सिक्के को सल्तनत काल में दिरहम कहा जाता था।

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