राष्ट्रकूट राजवंश का संस्थापक दन्तिदुर्ग (752 ई0) था। शुरूआत में वे कर्नाटक के चालुक्य राजाओं के अधीन थे।
इसकी राजधानी मनकिर या मान्यखेत (वर्तमान मालखेड़, शोलापुर के निकट) थी।
राष्ट्रकूट वंश के प्रमुख शासक थे: कृष्ण प्रथम, ध्रुव, गोविन्द तृतीय, अमोघवर्ष, कृष्ण-द्वितीय, इन्द्र-तृतीय, एवं कृष्ण-तृतीय।
एलोरा क प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने करवाया था।
ध्रुव राष्ट्रकूट वंश का पहला शासक था, जिसने कन्नौज पर अधिकार करने हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया और प्रतिहार नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया।
ध्रुव को ‘धारावर्ष’ भी कहा जाता था।
गोविंद तृतीय ने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर चक्रायुद्ध एवं उसके संरक्षक धर्मपाल तथा प्रतिहार वंश के शासक नागभट्ट-द्वितीय को पराजित किया।
पल्लव, पाण्ड्य, केरल एवं गंग शासकों के संघ को गोविंद-तृतीय ने नष्ट किया।
अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयायी था। इसने कन्नड़ में कविराजमार्ग की रचना की।
आदिपुराण के रचनाकार जिनसेन, गणितासार संग्रह के लेखक महावीराचार्य एवं अमोघवृत्ति के लेखक सक्तायन अमोघवर्ष के दरबार में रहते थे।
अमोघवर्ष नेतुंगभद्रा नदी में जल-समाधि लेकर अपने जीवन का अंत किया।
इन्द्र-तृतीय के शासन काल में अरब निवासी अलमसूदी भारत आया; इसने तत्कालीन राष्ट्रकूट शासकों को भारत का सर्वश्रेष्ठ शासक कहा।
राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक कृष्ण-तृतीय था। इसी के दरबार मे कन्नड़ भाषा के कवि पोन्न रहते थे जिन्होंने शान्तिपुराण की रचना की।
कल्याणी के चालुक्य तैलप-द्वितीय ने 973 ई0 में कर्क को हराकर राष्ट्रकूट राजय पर अपना अधिकार कर लिया और कल्याणी के चालुक्य वंश की नींव डाली।
एलोरा एवं एलिफेंटा (महाराष्ट्र) गुहामंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूटों के समय ही हुआ।
एलोरा में 34 शैलकृत गुफाएं हैं। इसमें 1 से 12 तक बौद्धों, 13 से 29 तक हिन्दुओं एवं 30 से 34 तक जैनों की गुफाएं हैं। बौद्ध गुफाओं में सबसे प्रसिद्ध विश्वकर्मा गुफा (संख्या-10) है। इसमें एक चैत्य है। वहां पर दो मंजिली और तीन मंजिली गुफाएं भी हैं, जिन्हें दो थल तथा तीन थल नाम दिया गया है। एलोरा की गुफा 15 में विष्णु को नरसिंह अर्थात पुरूष-सिंह के रूप दिखलाया गया है।
नोट: एलोरा गुफाओं का सर्वप्रथम उल्लेख फ्रांसीसी यात्री थेविनेट ने 17वीं शताब्दी में किया था।
राष्ट्रकूट शैव, वैष्णव, शाक्त सम्प्रदायों के साथ-साथ जैन धर्म के भी उपासक थे।
राष्ट्रकूटों ने अपने राज्यों में मुसलमान व्यापारियों को बसने तथा इस्लाम के प्रचार की स्वीकृति दी थी।